शनिवार, 24 नवंबर 2012

प्राॅक्सी वार का एक बुत धराशायी, अब होगी अफजल गुरू की विदाई

प्राॅक्सी वार का एक बुत धराशायी, अब होगी अफजल गुरू की विदाई
बरसी नजदीक ही थी कि एक अचानक खबर फेसबुक में देखा की आज कसाब को फांसी मुझे लगा कि फेक पोस्ट है पर दोपहर तक जब टी0वी0 चैनलो से ब्रेकिंग न्यूज सुना तब जाकर यकीन आया। यह वाकयै श्रद्वांजली थी। एक परोक्ष युद्व का बुत धरासायी हुआ कई लोगों, कई देशो को झटका लगा कि भारत के संविधान में ये करिश्मा कैसे हो गया। कसाब को पकडे जाने के बाद जिस तरह 4-5 साल तक उसकी खातिरदारी की गई वह भारत और भारतवासियों के लिए चिंता का विषय था। भारतीय लोकतंत्रा और भातीय न्यायपालिका के लिए यह सरकारी दामाद की सेवा करने की जगदोजहद जारी थी।
कसाब और अफजल गुरू इतना ज्यादा प्रसिद्व हो गए थे कि वीर रस के कवियों से लेकर राजनैतिक समीक्षाकार भारत पाक संबंधों पर लंबे-लंबे आर्टिकल लिखनें लगे और संसद हमले में शहीद हुए परिवारों को सच्ची सहानुभूति भारत के संविधान और भारत के कानून के द्वारा इस अवसर पर दी गई।
इतने वर्षो से भारत की धर्मनिरपेक्ष उदारता का परिणाम था कि कसाब को सारे मौके दिए गए अपनी बेगुनाही को साबित करने का वकील प्रदान किए गए उसका पूरा ख्याल रखा गया लेकिन मामला भारत के शहीद परिवारों की दुआओं की तरफ झुकता रहा। इस प्रक्रिया का गोपनीय रहना वाकयै एक गोरिल्ला युद्व की तकनीक का आधुनिक पर्याय था। पूरा काम इतनी सफाई और नैतिक ढंग से हुआ कि जल्लाद तक को कानोकान खबर नहीं हुई। पाकिस्तान, भारत पाक युद्व के बाद से ही परोक्ष युद्व को तेज करने के लिए आतंकी हमले की साजिश करता रहा है जो लगातार अक्षरधाम मंदिर हमलों से मुम्बई बम विस्फोटों और भारत के सर्वोच्चतम संविधान के रखवाले लोकतंत्रा के केन्द्र बिंदु संसद में हमला करवाकर यह सिद्व कर दिया कि आतंकवादी प्राॅक्सीवार करते हुए परोक्ष रूप से भारत के हृदय में भी आक्रमण करने में परहेज नहीं करेेंगे पर भारत ने जितने भी सैनिकों के इंतजाम अपने सुरक्षा के नाम किये उनकी शहादतों को कसाब और अफजल गुरू जैसे आतंकी बुतों का जिंदा रहना शर्मिदिगीं का कारण बन रहा था। भारत का संविधान अपने पुराने पाकिस्तान के साथ रिश्तों की दुहाई देकर मुॅह में पट्टी बांधे हुए उदासीन बना हुआ था। कभी आगरा वार्ता कभी स्लामाबाद यात्रा कभी जसवंत सिंह का जिन्ना के ऊपर किताब लिखना कभी आडवानी का पाकिस्तान को सेगुलर कहना कभी कांग्रेस की तरफ से पाकिस्तान पर टिप्पणी करके विवादित बने रहना ये सब पाकिस्तान के साथ जितने संबंध मजबूत किये उतना ही आतंकवादियो ने उधर से एहसास दिला दिया कि जन्मजात दुश्मन पाकिस्तान कभी दोस्त नही हो सकता। लंबी जद्दोजहद के बाद प्रणव दा के द्वारा जीवनदान की अर्जी खारिज करने से लेकर कसाब की फांसी और फिर आतंकी संगठनों को खिसयानी बिल्ला खंभा नोचे वाले कहावत को चरितार्थ करने की प्रक्रिया यह साबित कर दी कि भारत को जो कार्य संसद हमले की दुर्घटना के बाद कर लेना चाहिए जैसे की अमेरिका ने वल्र्ड ट्रेड हमले के बाद किया था, वह इस कार्य में देरी करके अनावश्यक अपने नागरिकों की नजरों में इतने सालों तक चढा रहा।
यह सच है कि कसाब प्राॅक्सीवार या परोक्ष युद्व का एक बुत था जो लश्करे तोयबा के द्वारा तैयार किया गया था उसके 25 वर्ष के जीवन में यह जेहाद का मिशन अंजाम तक उसे पहुॅचा दिया। अफजल गुरू के द्वारा तैयार किया गया यह बुत आतंकवादी संगठनों को हीरो कब बन गया वह खुद कसाब को भी नहीं पता था। तभी तो उसकी मौत की खबर सुनते ही लश्कर ने ऐसी गुहारी मारी कि जैसे उसको पूरे चैराहे में सभी के सामने बलात्किृत कर दिया गया हो। अभी तक जो हुआ वह तो एक अच्छे निर्णय का परिणाम था परंतु अब भारत को चाहिए कि मुस्लिम देशों में भारत के उच्चायोगों और भारत की आत्मसुरक्षा को सख्ती से ज्यादा मजबूत कर देना चाहिए ताकि कोई दुष्कर परिणाम न भोगना पडे। इस घटना से भारत में रह रहे सच्चे मुसलमानों की भी पहचान हो गई वे इसलिए खुश थे क्योकि आतंकी हमलों में आतंकियो ने जब बेगुनाहो को मौत के घाट उतारा तब उन्हांेने यह बिल्कुल नहीं देखा कि मरने वाला किस धर्म का है। इसी वजह से आज वो सभी मुसलमान जश्न मना रहे है। हमारे खुशियाॅ मनाने का अवसर है लेकिन हमें इस बात का भी चिंतन करना चाहिए कि इस बुत के सहारे इसके कारीगरों को भी अंजाम तक पहुॅचाया जाय और उस कारखाने को भी नष्ट किया जाय जिसमें अफजल गुरू जैसे कारीगर दिन रात एक करके कसाब जैसे बुतों का निर्माण करने में लगे हुए है और जेहाद का राग अलाप रहे है। भारत को अपने इस अच्छे काम की कडी को जारी रखना चाहिए और एक बात ध्यान देनी चाहिए कि पाकिस्तानी विदेश मंत्राी चाहे जितना भारत के साथ मधुर रिश्तों की बडाई करती रहे पर कसाब की मृत्यु के बाद उनका भारत दौरा निरस्त कर देना अच्छे परिणामों की रोक संकेत नहीं करता, वह किस ओर संकेत करता है वह हम सब जानते है। भारत के उच्च सत्ताधिकारी, जनप्रतिनिधियों और न्यायपालिका को चाहिए कि अब सीधे अफजल गुरू की विदाई के लिए आरती का थाल सजा लें ताकि किसी आतंकी संगठन के हौसले को सिर उठाने तक का मौका न मिल पाय तभी शहीदों को यह एक और बेदाम श्रद्वांजली होगी।
इस तरह शहीदों को मैं सदा देता हूॅ वतन परस्ती के शोलो को हवा देता हूॅ
शहीदी परिवारों को दुआ देता हूॅ और आतंक के खुदा को बद्दुआ देता हूॅ।
- अनिल अयान
सम्पादक, शब्द शिल्पी
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