गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

नागा संत: कुछ कही कुछ अनकही


नागा संत: कुछ कही कुछ अनकही.
 कुम्भ का पर्व शुरू होते ही साधू संतो की आवक शुरू हो जाती है. सबसी जमात है इनकी हमारे यहां भारत मे. सबसे प्रसिद्ध समूह नागा साधुओं का समूह को हम सब जूना अखाडा के नाम से जानते है. जूना अखाडा या ये कहे नागा साधुओं का अपना देश, ये विशेष प्रकार के संत ,संतों की श्रेणी से कहीं उपर और ज्यादा हठी  स्वभाव के होते हैं. लेकिन शायद कोई जानता हो कि ये इतने हठी क्यों होते है. जीवन का सबसे बडा और कडा तप इनके जीवन की हर घडी मे गुजरता है.मै इस समय आप सभी पाठकों के सामने इसी संदर्भ मे कुछ बात-चीत करूंगा. महन्त, संत, महापुरुष, और अवधूत,ये सभी ब्रह्म्चर्य की अलग अलग बढते क्रम की श्रेणियां है.
  नागा सन्त सिर्फ़ संत ही नही अवधूत होते हैं. जिनके, सोलह नहीं सत्रह संस्कार होते है, इनके जीवन की हर घटना रोचकता और रोमांच से भरपूर होती है. जब आम इन्शान अपने जीवन को ब्रह्म्चर्य की तपस्या मे लगाने के लिये संकल्पित होता है तो उसे सभी परिवार जनों से रिस्ता तोडना पडता है.नागा अवधूत बनने का मतलब यह नही होता कि सिर्फ़ वस्त्र ही त्यागना पडता है.  वस्त्र तो सिर्फ़ एक बहाना है ,अपने को इस मायाजाल से अलग करने के लिये.
परिवार को छोड कर ये ब्रह्मचारी अपने जीवन की मुख्य धारा से कट जाता है.
और भक्ति की धारा से जुड जाता है. नागा बनने के लिये पहले ब्रह्मचारी का जीवन कई सालों व्यतीत करना पडता है. उसके बाद उसे किसी आश्रम मे जाकर अपने जीवन मे गेरुए रंग के वस्त्रो को धारण करके पूर्णरूपेण एक साधू के रूप मे परिवर्तित हो जाना पडता है. जूना अखाडे के पुराने बाबाओं के समूह के सामने नागा बनने आये इन
साधुओं का मेल मिलाप होता है. हम यह भी कह सकते है कि प्रथम मिलन होता है.
जानकारियों का आदान प्रदान होता है.
 परिचय के इस दौर के बाद नागा बनने हेतु इन संतो के वास्तविक ब्रह्मचर्य का स्तर जांचा जाता है. इसके लिये कुछ महीनों से कई साल तक लग जाते है.इसके बाद जूना अखाडे के संत नागा बनने वाले संत के भाई- पट्टीदारो, परिवारो और सगे- संबंधियों के बारे मे पूरा पता लगाते है. वो भी उस संत के बिना संग्यान मे दिये. जब जूना अखाडे के प्रमुख लोगो को लग जाता है कि यह साधू नागा बनने के योग्य है तब उसे महापुरुष बनने हेतु किसी एकांत जगह पर किसी एक मुद्रा मे बिना किसी वस्त्र के खडे रहना पडता है. उस पर सबकी नजर होती है. यह काल कितना लम्बा होता है या होगा इस बात का निर्णय जूना अखाडे वाले करते है. इस तपस्या के बाद. कुम्भ आने तक इन्हे वरिष्ठ नागा बाबा के साथ रखा जाता है. कुम्भ के काल मे इन संतो को अपने जीवित अवस्थ मे अपना श्राध और पिण्डदान करना पडता है. यहा से यह मान लिया जाता है कि अब इस साधू का पूरे संसार से कोई ताल्लुकात नहीं है. यह सभी के लिये स्वर्गवासी हो गया है. इस समय ये अपने सारे वस्त्र त्याग कर सत्रहवां सस्कार करते है, अपने बाल बनवाते है और अपनी तेरहवी और बरषी मे शामिल होते है. और जैन मुनियों के समान निर्वस्त्र हो जाते है. यहां से इन साधुओं का नया जीवन तय होता है.
इसके बाद इनके शरीर मे जूना अखाडे का चिह्न लगाया जाता है और विधिपूर्वक ये जूना अखाडॆ के सदस्य बनाये जाते है.
  नागा बाबाओं का इंतिहान इसी जगह पर खत्म नहीं होता, बल्कि यहां से और कडा हो जाता है. या यह कह सकते है कि अभी तक सिर्फ़ प्रवेश परीछा थी अब तो पूरी पढाई इन्हे करना है.यहां से शुरू होता है हठ योग का जीवन ,या ये कहें कि साधू के जीवन का सबसे कठिन समय का पहला चरण जिसमे सभी नागा बाबाओ के सामने नग्न शरीर मे ये शाबित करना होता है की शरीर ने ब्रह्मचर्य को शोषित कर लिया है. वासना पूरी तरह से खत्म हो चुकी है. क्योकि यदि वासना शरीर मे बची रह गयी तो अगले चरण मे उतना ही ज्यादा कठिनता से गुजरेगी. कई महीनो के कठिन तप के बाद सोना आग मे तप कर निखर आता है. कुछ समय के बाद ब्रह्मचर्य का असली इंतिहान होता है. जिसमे  लिंग भंग की प्रक्रिया होती है. यह इनके जीवन का सबसे पीडा का वक्त होता है. इस प्रकिया मे लिंग की उस नस को निष्क्रिय किया जाता है जो वासना का सम्प्रेषण शरीर मे करती है. जीवन की महानतम और शारीरिक पीडा के बाद अवधूत अब नागा बाबा के स्वरूप को धारण कर चुका होता है. यहां से इसकी १०८ संगम की डुबकियां उपयोगी होने का वक्त उपस्थित होता है. अब ये भगवान शिव के सच्चे भक्त बन जाते है. अब हर प्रकार का नशा और ब्रह्मचारी जीवन इनके लिये उपयोगी होता है. इनकी सेना मे इनका स्वागत किया जाता है. जश्न होता है. उत्सव की तरह इनका सेना मे स्वागत होता है.
   नागा बाबा का यह रूप इतने तप के बाद निखरकर लोगों के सामने आता है. सेना मे पौराणिक समय के समान हाथी, घोडे, और अन्य प्रकार के जीव जन्तु होते है. साथ ही सभी प्रकार के अस्त्र और शस्त्र होते है. ये नागा बाबा जब ,जहां से गुजरते है. उस जगह के लोगो के लिये कौतूहल का विषय बन जाते है. हठ योग के बाद ये इतने ज्यादा हठी और क्रोधी, साथ साथ जिद्दी हो जाते है. कि सबसे पहले इन्ही का सुना जाता है. इन्ही का सम्मान किया जाता है. हर तरफ़ इन्ही की तूती बोलती है. तभी तो  ना गलत ये सहते है और ना ही जुबान से बोलते है. नागा बाबाओं का मानना है की भगवान शिव का अंश इनके अंदर होता है. और यदि ये गलत का साथ देते है तो इनको नर्क भोगना पडेगा. नागाओं का यह भी मानना है कि इन सब ने यह रास्ता सिर्फ़ अपना जीवन सही मार्ग मे चलने के लिये चुना है. ऐसा सिर्फ़ भारत मे ही देखने को मिल सकता है जहां की परम्परायें इतनी मजबूत है.और इतिहास इतना पौराणिक है जो स्तुत्य और प्रण्म्य है.
अनिल अयान.सतना.

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