शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

मंत्री आये , विकास लाये.


कब तक सहें:- मंत्रीआये , विकास लाये.

इस बार मेरे शहर का विकास काफ़ी तेजी से हो रहा है. ना जाने क्यो. शायद फ़िर किसी केंद्रीय मंत्री या राज्य के मुख्य मंत्री जी के आने का अवसर नजदीक आ रहा है. तभी प्रशासनिक अमले को पर लग गये है. दिन रात युद्ध स्तर से काम चल रहा है. सब धुआंधार स्पीड से भाग रहे है. मुझे तो इस बात की खुशी है कि चलो किसी बहाने ही सही इस बूढे शहर को फ़िर से जवानी का जामा पहनाया जारहा है. उसके लिये ठेकेदार, इंजीनियर और अन्य कमाऊखोर अफ़सर चाहे जितना माल हजम करे . क्या फ़र्क पडता है. सब उनकी आदतों मे शुमार है. और माल जितना सरकारी है उतना ही जनता का है. कौन सा उनके बाप का है. और फ़्री का माल खाने और फ़्री की दारू पीने से किसी को कभी परहेज नहीं होता है दोस्तो.
  चौराहों का सौंदर्यीकरण, सडकों को चमाचम करना, डिवाइडर की मरम्मत, और जल्दी जल्दी पौधों का प्लान्टेशन... और भी बहुत कुछ जैसे लाइट्स को सही करना, मेन हाई वे को अपडेट करना बहुत से काम बहुत ही तेजी से लगातार इस शहर मे दिख रहे है. नगर पालिका निगम के नीचे से ऊपर तक के आलाअधिकारियों के पैरो मे तो जैसे पहिये लग गये हो. इतनी तेजी से ट्रैफ़िक को डिस्टर्ब करके ऐसे सरकारी काम होते तो मैने बचपन से आज तक और आज से पचपन तक नहीं देख पाउंगा शायद. काश इसी स्पीड से न्यायालय यदि न्याय करने लगे. और पुलिस गुनहगारों को पकडने लगे तो कसम से कितना अच्छा हो. लेकिन फ़िर यह सोच कर रह जाता हूं और अपने मन को समझा लेता हूं कि शायद वहां किसी मंत्री या मुख्यमंत्री ,या अन्य उच्चस्तरीय मंत्री का कोई डर नही होता होगा. या फ़िर इनको कोई भजता नहीं होगा.
  विकास और साफ़सफ़ाई का वैसे भी राजनीति से बहुत गहरा नाता तथाकथित रूप से रहा है ऐसा मैने राजनीतिशास्त्र की किताब मे पढा था. हां पर देखने को सिर्फ़ चुनाव के पहले या कुछ महीने बाद तक ही मिलता है. यही तो वोट बैंक का बही खाता है जो आम जनता के समझ के परे है.पर गाहे बगाहे यदि ऐसे ही विकास और साफ़ सफ़ाई का अभियान चलता रहताहै तो लगता है कि कुम्भ्कर्ण कभी कभी जाग तो जाता है हाल चाल लेने के लिये. वरना ना कभी केशेस की सफ़ाई होती है. ना न्याय जगत मे साफ़ सफ़ाई होती है. ना भ्रष्टाचार की साफ़ सफ़ाई होती है. पूरा शहर इतने कम सालो मे बूढा दिखने लगा पर सरकार , न प्रशासन , ना अन्य किसी ने जिम्मेदारी निभाई. जिस तरह विकास कार्य  चल रहा है. तो सोचता हूं कि काश  ओवर ब्रिज का काम, बाई पास का काम. और पुराने बाई पास की मरम्मत , हाई वे का फ़ोर लेने का काम इसी स्पीड से काम हो. जो काम हो चुका है उसकी देख रेख हो. पार्कस का रख रखाव जारी ्रहे. ट्रैफ़िक सही सलामत पहुंचे. जाम की स्थिति ना बने. कोई दुर्घटना ना हो. अस्पतालों की स्थिति मे सुधार हो पुस्तकालयों के बुढापे को दूर किया जा सके तो शायद मंत्रियो की आवक भी आमजन के लिये लाभ प्रद होगी. समस्यायें तो बहुत सी होती है. पर क्या कहा जाये. कभी मैने एक शेर लिखा था
 ज़ख्म जब भी उसको दिखाये गये.
खार मरहम की तरह लगाये गये.
ये स्थिति आज भी समाज मे बनी हुयी है. आज भी जब कोई जागरुकता का परिचय देकर समस्याओं के समाधान के लिये शासन के पास, नगर निगम के पास , या न्यायालय मे न्याय के लिये जाता है. तो ये मानिये कि समाधान हो या ना हो न्याय मिले या ना मिले . लेकिन जागरुकता को वो भुला ही बैठता है. जूते और चप्पल घिस जाते है. और समाज सुधार के नाम पे सरकारी बाबू और चपरासी यहां तक की अधिकारी उनके जेब की साफ़ सफ़ाई जरूर कर देते है. जैसे वो अपने घर का काम कराने आया हो. या किसी बडे कर्ज के लिये गोहारी लगा रहा हो. फ़िर तो वो मन ही मन गालियां देकर सिर्फ़ यह मौन निश्चय कर लेता है, कि अपना विकास करो. देश और शहर गया ऐसी की तैसी कराने. उसके लिये चांदी के जूते वाले पावरफ़ुल ये नेता नपाडी है ना. जिनके लिये  सरकारी बाबू और चपरासी यहां तक की अधिकारी अपनी जेबें साफ़ करने के लिये तैयार बैठे रहते है. नहीं तो चांदी के जूते तो है हीं. ऐसी स्थिति मे मुझे तो लगता है. कि  पिछ्ले पैरा मे बताई बीमारियों से निजात पाने के लिये और अपने शहर को मरणासन्न स्थिति से बचाने के लिये या तो चुनाव कराना पडेगा या फ़िर किसी मंत्री -संत्री को सतना बुलाना पडेगा, तभी तो सतना इंदौर और भोपाल की तरह बन पायेगा, भाई अब क्या किया जाये इससे बडे विकास के सपने क्या देखे. अब दिल्ली, जैसे और बडे महानगर बनाने के ख्वाब अपने ५० साल होने के बाद देखना सही रहेगा. क्या है सपने जब टूटते है तो बहुत दुख होता है. चाहे वो अपनी जिंदगी से संबंधित हो या समाज से संबंधित हो. इसी लिये सबसे बढिया किसी बडे मंत्री को बुलाओ  नहीं तो चुनाव कराओ, और विकास कराओ. शहर का मेकब कराओ, और अपने सपने पूरे कराओ. आज कल का यही दस्तूर है. फ़िर खुशियां मनाओ.क्योंकि
खेत पर पानी बरसता है हमारे देश मे.
खेत पानी को तरसता है हमारे देश मे.
यहां पर नेताओं और मंत्रियों को छोड्कर
अब खुशी से कौन हंसता है हमारे देश मे.




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