शुक्रवार, 1 मार्च 2013

ऐ कुंभ तेरा आभार


ऐ कुंभ तेरा आभार
उत्तर प्रदेश सरकार का एक ऐसा नगर जिसे प्रयाग के नाम से सब लोग जानते है. कहते है हर बारह वर्षो मे कुम्भ का धार्मिक आयोजन जरूर होता है इस भारत वर्ष मे और वह धरा कई वर्षो तक के लिये पावन हो जाती है. इस साल प्रयाग जरूर तर गया होगा इस धार्मिक आयोजन के पूर्ण होने पर.कभी कभी मै यह सोचता हूं की यदि इस साल कुंभ नहीं होता तो इस देश के भविष्य का क्या होता,इस पर्व ने कई चीजों, कई व्यव्स्थाओं की कलई खोल दी है और कई राजनैतिक मुद्दो मे फ़िर से जान फ़ूक दी है
 क्या संयोग बना है एक तो धार्मिक कुम्भ, दूसरा चुनावी मौसम का आगमन, तीसरा हादसों से बेफ़िक्र सरकार का बडबोलापन
सब ऐसे जाल का निर्माण किया है वक्त ने की धर्म राजनीति और सत्ता सब एक साथ संगम डुबकी लगाती मुझे नजर आई. और फ़िर शुरू हुया मीडिया मे इसी बहाने ब्रेकिंग न्यूज का केंद्र बनाने की होड जिसको देखो वही पत्रकारों के सामने और कैमरा मैन के सामने अपनी फ़ोटो खिंचवा कर लोगो को दिखाने के लिये जूझे मरे दिखायी पड रहे थे.
 इस पूरे पर्व मे मैने एक बात जाना की कुम्भ मे आस्था सभी वर्गो के हिन्दुओं की थी और अटूट थी. पर उ.प्र. सरकार का इंतजाम सभी के लिये नहीं था. तभी तो रेल्वे दुर्घटना का एक बचकाना हादसा हमारी नजरो के सामने से आज भी भुलाये नहीं भूलता है. इस हादसे मे भले ही उ.प्र. सरकार अपना पल्ला झाड कर पूरा दोष रेल्वे जोन के सिर मढ दे. मेरी नजरोंमें दोषी दोनो है. एक राज्य की जिम्मेवारी है की वो पुराने आंकडों से और अपने अनुभवो से ऐसी तैयारियां करे की आने वाले भक्त जनों और आम नागरिकों को कोई परेशानी ना होती. रेल मंत्रालय और इलाहावाद रेलवे के सभी आला अधिकारियों को चाहिये था की उनकी हर व्यवस्था युद्ध स्तर की होती.लेकिन सिर्फ़ अफ़सोस दिखाने के अलावा दोनो के पास कोई साधन नहीं दिखा इस पर्व के दौरान. अगला एक और अनुभव जो इस कुंभ के दौरान देखने को मिला वह यह था कि सारे प्रशासनिक अधिकारी. प्रभाव वाले नेता नपाडियों के साथ साथ सारे मंत्री संत्री तंत्री का जब काफ़िला निकलता देखा गया तो ऐसा लगा की सरकारी सारी व्यवस्थाओ का केन्द्र बिंदु यही है. फ़िर सारे नियमों को शिथिल करते हुये सारे नियम कानूनो को ताक मे रख कर स्नान कराया गया. और स्नान को शाही बनाने के लिये कोई कसर नहीं छोडी गयी. इनके सामने तो सारे बाबा , साधू संतों के अखाडे फ़ेल नजर आये.और संतो साधुओं को तो अपने दर्शन देने के लिये अपने को सुरक्षा व्यवस्थाओ से वैसे भी दूर रहना चाहिये था उन्हे किस बात का डर था. ताकि अधिक से अधिक  लोग उनके दर्शन करके अपने जीवन को धन्य बना सके. इसी अगला मुदा भी कुछ ऐसा ही नजर आया.
अगला मुद्दा जो महसूस हुआ वह यह था की सुरक्षा व्यवस्था का मुद्दा , जिसको देखो कमांडो और सुरक्षा गार्डो की टीम टाम व्यव्स्था के साथ सभी उच्च वर्गो के प्रतिनिधि, जनता के प्रतिनिधि, और धर्म के प्रतिनिधि नजर आये. अब सवाल यह उठता है की इतनी सुरक्षा व्यवस्था वो भी व्यक्तिगत रूप से प्रयाग ले जाकर दिखाने का दिखावा किस काम का था. क्या अब जन प्रतिनिधियों को श्रद्धालुओ से जनता से और भक्त जनो से असुरक्षा महसूस होने लगी है और यही हाल क्या धर्म के प्रतिनिधियो साधुओ और संतो का था. या फ़िर सरकार की व्यवस्थाओ को ठेंगा दिखाने की होड चल रही थी इन सबके बीच. यहं पर आम लोगो के लिये ना सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे. ना सेवा दलो के कर्मचारी थे. और ना ही सरकार के सशक्त नियामक तंत्र थे, सारा माजरा सारी व्यवस्थाये. सिर्फ़ और सिर्फ़ धन वैभव वाले राज तंत्र के लोगो प्रतिनिधियो के लिये ,जिनसे कोइ स्वार्थ सिद्ध हो सकता था, की गयी थी. आम श्रद्धालू सिर्फ़ और सिर्फ़ दर्शन ,डुबकियां, अपने गुरू महराजॊ के आशीर्वाद , अव्यवस्थाओ, कडकती ठंड, रेल और यातायात की भीडतंत्र. के मूक दर्शक के रूप मे इस पर्व को मनाया और गाहे बगाहे इस जन्म को पावन और पवित्र करके संतुष्ट हो गया. इसी बहाने पूरा का पूरा कुंभ पर्व केंद्रित नजर आया कई नामी गिरामी बाबाओं संतो के अखाडो के शाही स्नान के बहाने उनके धन वैभव के प्रदर्शन पे, राजनैतिक प्रतिनिधियों के आरोपो और प्रत्यारोपो के बीच धर्म संसद के अवसर पर मीडिया के द्वारा बनायी गयी ब्रेकिग न्यूजेज पे, और पल्ला झाडती और जिम्मेदारियो से बचाव करती उ.प्र, सरकार और अन्य व्यवस्थाओं की टीम के बहाने बाजी और बयानबाजी पे. और हां करोडो आम श्रद्धालुओ की तार तार होती आस्थाओ.सरकारी व्यवस्थाओ पर उठते और  टूटते यकीन पे. इस तरह इस वर्ष के कुम्भ को बहुत कुछ जाना पहचाना और बहुत कुछ अनजाना घटना क्रम दिखाने के लिये आभार...कोटिशः आभार.

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