सोमवार, 10 जून 2013

नक्सलवाद यदि आबाद तो देश बरबाद


नक्सलवाद यदि आबाद तो देश बरबाद
पिछले पंद्रह दिन से एक नया मुद्दा छत्तीसगढ में बहुत गरमाया हुआ है नक्सलवाद और माओवाद का कुप्रभाव और उसमे पिसते भारतीय जन.आम लोग हो या फिर खास किसी को नहीं छोडते है ये नक्सली जैसे इनकी विशेष दुश्मनी होती है हम सब से. चीन के माओ की जुवान को समेटे ये लोग हमे हमारा अधिकार सिर्फ बंदूख की नोंक से ही मिल सकता है.भारत का सत्यानाश करने में तुले हुये ये लोग कहीं ना कहीं भारत में आंतरिक आतंकवाद फैला रहे है.भारत वैसे भी अपने बाह्य मामलों में काफी परेशान रहा है. और परेशान होता चला आरहा है तो फिर यह नया मुद्दा कहीं ना कहीं देश की आंतरिक शांति व्यव्स्था को बिगाडने का नया खेल खेलते नजर आता है.कभी कभी लगता है कि नक्सल और माओवाद में मुख्य धारा का अंतर क्या है. क्यों ये शासन के विरोध में डंडा गाडे रहते है. क्यों ये मार काट में ज्यादा यकीन करते है. क्या इन्हे शांति प्रिय नहीं है. ऐसे बहुत से सवाल है जो कहीं ना कहीं हम सब के सामने खडे यक्ष प्रश्न की भाँति अटूट से नजर आते है.
   माओ के फालोवर जब भारत में आये तो उन्होने उन स्थानों को अपना निशाना बनाया जहाँ बेगारी और गरीबी अधिक थी. जहाँ शासन की ओर से कोई कारगर प्रयास नहीं किया गया.इतिहास गवाह रहा है कि दार्जिंलिंग और पश्चिम बंगाल के ऐसे बहुत से घटना चक्र है जो इस प्रकार घातक आँदोलनों को हवा देते रहे और देश की आंतरिक सुरक्षा को ठेंगा दिखाते रहे. जब यह झारखंड और फिर उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में पहुंचे तो वहाँ की सरकार को अपने दांतों तले अंगुली दबाना पड गया. फिर ये लोग दक्षिणी राज्यों और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ के उन आदिवासी इलाकों को अपना गढ बनाने की कोशिश में कामयाब हुये जिन जगहों पर सबका ध्यान लगभग ना के बराबर था........ युवाओं के हुनर को खरीद कर अपने अनुसार अन्याय के खिलाफ ये एक साथ मोर्चा खोलने की आदत बना चुके ये गिरोह कदम दर कदम अपने हौसलों को बढाते रहे.आंध्रा प्रदेश की यह स्थिति है जिसमे गनपंथी,आर.श्रीनिवासन,गणेश उइके और कट्टकम सुदर्शन जैसे ऐसे महानुभाव है जो पूरे आँध्रा मे अपना वर्चस्व स्थापित करने की सोच को लिये आगे बढ रहे है.इस हमले के बाद भारते में अलगाववादियों की स्थिति हावी होने जैसी हो गई है. ऐसा लगता है जैसे असुरक्षा का माहौल आज अपने पर पसारे आगे बढ कर देश को निगलने के लिये आतुर हो रहा है.१९६० के बाद शुरू हुआ यह संघर्ष देश की एकता और अखण्डता को नष्ट करने में लगा हुआ है.पढे लिखे ये नौजवानो की बदहवास फौज अपने पहले चरण में इतनी तेज गति से विद्रोह मचायी है कि पूरा देश अपने कर्मों में पश्चाताप इसलिये कर रहा है कि पहले इस मुद्दे पे कारगर कदम क्यों नहीं उठाये गये. जो काँग्रेस आज शासन और प्रशासन की दुहायी देरही है वह खुद ही विपक्ष में बैठे कभी माओ और नक्सलवादियों के खिलाफ बनाये जारहे कानून के सामने खूँटा गाडे खडी हुई थी. यह मै स्वीकार करता हूँ कि नक्सली हमले की वजह से भारत के कई राज्य अपना विकास नहीं कर पा रहे है.ना हि विकास की बातें सोच रहे है. उनका पूरा ध्यान इस समस्या को दूर करने के लिये लगा हुआ है. परन्तु दूसरा पहलू देखे तो यही राजनेता जब नक्सली हमलों मे सिर्फ शोक व्यक्त करके रह जाते है. या फिर बयानबाजी करके अपने आप को पापुलर करने के लिये मीडिया में धुरंधर बनकर चर्चाओं  में भाग लेते है तब इनका जमीर कहाँ सो जाता है. तब इनके लोग अपने परिवार और देशवासियों के परिवार की चिंता करके चुप हो जाते है. कोई कारगर कदम उठाने से परहेज क्यों कर जाते है. आज जब राजनैतिक प्रभुसत्ता पर आक्रमण हुआ तो काँग्रेस ऐसे चिल्लारही है या बौखला रही है जैसे कि किसी ने उसके घर में आग लगा दी है.गोरिल्ला आक्रमण का जवाब शायद किसी सरकार के पास नहीं है.
   इस तरह की घटनाओं में यह होना चाहिये कि ऐसे देश व्यापी मुद्दों में पूरे देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों को एक साथ खडे होकर कारगर कदम उठाने चाहिये. जिन लोगो को यह भ्रम है कि सेना इस का सबसे सार्थक उपाय है तो इस बात में मुझे लगता है कि हम सिविलियन क्षेत्र में सेना को पूरा प्रशासन नहीं सौप सकते है. क्योंकी सेना को जिस तरह से ला और आर्डर सुधारने का काम सौपा जाता है वहाँ सिर्फ ओपन फायरिंग के अलावा कोई रास्ता नहीं है और इस काम के लिये यदि ऐसा किया जाता है तो यह मान लेना चाहिये कि जितने नक्सली मारे नहीं जायेंगे उससे कहीं ज्यादा बेगुनाह अपने बेगुनाह परिवार को इस मुठभेड में मरता देखने के बाद बंदूखें उठा लेंगें और इस तरह समस्या और बढ जायेगी. क्योंकी सेना की मुठभेड में गोलियाँ यह नही देखेंगी की नक्सली कौन है या आम जन कौन है. सरकारों को चाहिये की यदि इस आंतरिक घुसबैठ से निजात पाना है तो उसे सवसे पहले  हर जगह पर विकास कार्य बराबर करना होगा. चाहे वो विकसित जगह हो या आदिवासी जगह, चाहे वह फारवर्ड हो या बैकवर्ड इलाका. क्योंकी नक्सली वहीं अपना रहने का स्थान चुनते है जहाँ गरीबी और विकासहीनता अधिक है. अन्यथा भविष्य में सरकार से ज्यादा हुनर मंद युवा नक्सलियों के पास है जो साठ्योत्तर पार कर चुकी सरकार के हर हौसले को पस्त करने का दम रखती है.नक्सलियों के फालोवर सिर्फ युवाओं की उस उर्जा को इस्तेमाल करते है जिसे हम बेरोजगारी का जामा ओढा कर कचडे के डिब्बे में डाल देते है. सरकार को चाहिये हि अपनी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृण करने के साथ साथ पारदर्षी विकास करें इसतरह के बाह्य और आंतरिक मामलों में एक जुट होकर खाली जगह को भरें वरना नक्सली तो बैठे ही है सरकार की अनियमितताओं और खाली जगहों को भरकर अपनी नयी सत्ता स्थापित करने के लिये.और यह भी तय है कि हम और हमारे सरकार उनके सामने घुटने टेकने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते है.यह छत्तीसगढ में हुआ नक्सली हमला चींख चींख कर कह रहा है.

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