रविवार, 4 अगस्त 2013

क्षेत्र के विकास में राजनैतिक बट्टा.

क्षेत्र के विकास में राजनैतिक बट्टा.
केंद्र की राजनीति में फिर से एक नया मोड आगया है. जिसके तहत नये राज्यों की माँग जोर पकडती जा रही है. और इसके चलते लोकसभा के चुनाव भी प्रभावित होने के आसार नजर आने लगे है, तेलंगाना की घोषणा के बाद जिस तरह का माहौल आंघ्राप्रदेश में बना हुआ है वह एक राजनैतिक नौटंकी के अलावा और कुछ भी नही है. और यह भी तय है कि मंत्रियों का इस्तीफा इसका एक भाग है हम सब जानते है कि देश के विकास में नये राज्यों के विकास का मह्त्वपूर्ण योगदान रहाहै.
भारत जैसे गणतंत्र और लोकतांत्रिक लघुमहाद्वीप में जितने अधिक नये राज्य या प्रदेश बनेंगे उतना ही अधिक देश का विकास तय है. और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. हाँ यह भी तय है कि यदि केंद्र सरकार मजबूती से राज्य सरकारों में अपना सामन्जस्य बना कर रखे तो देश दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की करेगा क्योंकी एक समान भाषा ,बोली, और संस्कृति वाले लोग अपने समान व्यवस्था के चलते जीवन यापन करेंगे और उस क्षेत्र का समुचित विकास भी करेंगें क्योंके उनके पास समुचित सत्ता का अधिकार और अर्थ मौजूद होगी. आज भी केंद्र सरकार के पास राज्यों के द्वारा अनुमोदित बहुत से ऐसे प्रस्ताव है जिसमे नये राज्यों को बनाने का प्रस्ताव रखा गया है और वह है कि इस प्रस्तावों पे इसलिये गौर नहीं कर पा रही है क्योंकी कहीं ना कहीं उसके स्वार्थ की चपातियाँ यहा नहीं सेंकी जा रही है. और उसे इस  वक्त भारतीय जनता पार्टी की छीछालेदर करने से फुरसत कहाँ है.
आज के समय में देश में लगभग ३० राज्यों को बनाने की माँग तेज हो गयी है और इस माँग का उठना इसलिये जायज है क्योंकी इस जरिये ही सही उस क्षेत्र का विकास और तेजी से होगा . इस बारे में संबंधित राज्य सरकारों ने पहले से केंद्र के पास अनुमोदन भेज दिया है और और इस इंतजार में है कि कब कैबिनेट इस पर अपनी मोहर लगा देगा. जिसके चलते काफी लंबे समय चल रहे आंदोलनों और संघर्ष को देर से ही सही विराम तो मिलेगा. परन्तु परिणाम सिर्फ सिफर आ रहा है. तेलंगाना के बनने से ही माहोल इतना गरमा गया है अब केंद्र की हिम्म्त ही नहीं है कि वह और राज्यों की माँग को अपने ठंडे बस्ते से निकाल कर पब्लिक के सामने नया परिणाम रखे. आज के समय में तेलंगाना ,विदर्भ, गोरखालैड, कार्बी. बोडोलैड, कामतापुर,मिथिलांचल, बुंदेलखंड, बघेलखंड , सौराष्ट्र, विंध्यप्रदेश, सीमांघ्र, ब्रजप्रदेश, सहित ३० राज्यों की कहानी आज क्या होने वाली है यह कोई नहीं जानता है,. हमारे देश का संविधान भी कहता है कि यदि क्षेत्र का विकास नये राज्य बनाने से होता है तो राज्य , जिले ,कस्बे, और नयी तहसीले बनाने में कोई हर्ज नहीं है. यदि इन राज्यों के बनाने में मुद्रा और मानव संसाधन खर्च होता है तो इन जगहों में उपस्थित प्राकृतिक संपदा और जन शक्ति से नये विकास के पथ भी खुलते है. और इससे भारत के विकासशील देश से विकसित देश के रास्ते और साफ होंगे.जो लोग यह कहते है कि इस तरह के विकास से क्षेत्रवाद पनपता है और व्यक्तियों राजनीति, धर्म, जाति, क्षेत्र , भाषा के नाम में बाँटने की एक साजिस है , तब मुझे उनसे एक ही प्रश्न करने का मन करता है कि आज ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहाँ पर राजनीति नहीं है. और यदि विकास के लिये बंटवारा होता है अच्छा है.मैने अभी देखा है कि छत्तीसगढ बना, झारखण्ड बना, उत्तरांचल बना. कहाँ पर विकास नहीं हुआअ. है यह तो तय है कि यदि क्षेत्र का निर्माण हो रहा है और वहाँ का कोई नेतृत्व नया प्रदेश बनाने में लगा हुआ  है तो वहाँ का विकास तय है कि होगा. पर यह बात भी तय है कि नया राज्य बनाने और उसकी राजधानी बनाने के साथ केंद्र सरकार को नयी जिम्मेवारियों को ढोने  के लिये कंधों को मजबूत करना पडॆगा. और इस मामले में शायद हमारे देश के केंद्र में बैठी सरकार की स्थिति अभी उतनी परिष्कृत नहीं है इसी लिये वो क्षेत्रवाद को मुद्दा बनाकर नये राज्यों को गठन करने मे आना कानी करने में लगी हुयी है. हो सकता है कि मेरा नजरिया आप सभी से अलग हो. परन्तु मेरा मानना है कि नये राज्यों के गढन में संभावनायें भी है और आशंकाये भी संभावनायें इस लिये है कि प्रगति और विकास का नया रास्ता खुलेगा और उस क्षेत्र के लोग ज्यादा तीव्रता से विकास करेंगे और देश का विकास होगा, आशंकायें इसलिये है कि वोट बैंक में  यह देखा जायेगा की केंद्रीय पार्टियों में किसका पक्ष ज्यादा मजबूत हो रहा है , भाजपा का या काग्रेस का. क्योकीं केंद्र की पार्टी का यदि वोट बैंक कमजोर हो जायेगा तो नये राज्य कभी ना बनेंगें. चाहे कोई जितना भी सर पटक कर मर जाये. इसलिये मुझे लगता है कि देश की आज की स्थिति को देख कर लगता हैकि आज जिस तरह भ्रष्टाचार, बढ रहा है और चरित्र का पतन हो रहाहै . उसके लिये देश को जरूरत है कि नये आयाम खोजे जाये ताकि विकास के नये कदम बढाने में मदद मिले. और इस हेतु नये राज्यों का गढन बहुत आवश्यक है. क्योंकि इसके बिना पिछ्डे क्षेत्रों के अविकसित लोगो को आँगे बढने का मौका मिलना तय है नहीं तो ये राजनीतिज्ञ अपने वोट और स्वार्थ के चलते नये राज्यों की फाइले ठंडे बस्ते में ही डाले रह जायेगें.

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