शिक्षक दिवस या भक्षक दिवस
शिक्षक दिवस नजदीक है और इस दिन
शिक्षको के सम्मान का एक नया स्वांग रचाया
जायेगा. फिर से नये नये तरीके से शिक्षकों के गुणगान किये जायेगे. और अगले ही दिन से
वही पुराना ढर्रे पे आजायेगी शिक्षा व्यवस्था और शिक्षक. दबे,कुचले,हर वर्ग से पीडित
और हर वर्ग से शामिल होने वाले मजबूर शिक्षक.कभी कभी लगता है कि डाँ राधाकृष्ण को यदि
शिक्षण का काम इतना पसंद था तो उन्होने यह कार्य अपने जीवन में क्यों नहीं किया राष्ट्रपति
की जिम्मेवारी से मुक्त होने के बाद और यदि सिर्फ यह सद्भावना का मामला था तो यह भी
तय है उनको शिक्षकों की उस वख्त की स्थिति को देखते हुये भविष्यगत दूरगामी लाभ देकर
जाना चाहिये था. या सरकार के सहयोग से नये नियम और कानून , योजनाये बनवाना चाहिये था.
क्योंकी आज के समय में शिक्षक दिवस भी व्यावसायिक
होता जा रहा है. आज के समय में शिक्षक के सम्मान के लिये किसी दिवस की आवश्यकता नहीं
है. क्योंकि आज के समय में शिक्षकों का सम्मान बचा ही नहीं है. क्योंकी आज के समय में
शिक्षक, शिक्षक बचा हीनहीं. उन्हे शिक्षाकर्मी, संविदा शिक्षक, और न जाने किस किस घाट
का पानी पिला कर सब मिलावटी बना दिया है.
आजकल
शिक्षक दिवस का यह हाल है कि शिक्षक खुद अपना सम्मान करवाने के लिये आवेदन देते है.
अपनी उपलब्धियों का गुणगान खुद करता है और फिर जाकर शिफारिस के बाद कहीं जाकर सम्मान
लिस्ट में उसका नाम आ पाता है. हर वर्ष यही ढोंग होता है.५ सितम्बर के लिये तो शिक्षा
विभाग अपना विशेष बजट निर्धारित करता है. परन्तु उसका सम्मान के लिये कितना खर्च होता
है वह शिक्षा विभाग भी बखूबी जानता है. एक दिन का सम्मान और बाकी ३६५ दिन अपमान करता
है शिक्षा विभाग इस शिक्षकों का.आज के समय में शिक्षक हो, अतिथिविद्वान हो, संविदा
शिक्षक हो. गुरू जी हो. सब समान वेतन समान काम की लडाई लड रहे है. परन्तु सरकार उसे
सुनने की बजाय नया स्वांग रचने की परंपरा का अंधानुकरण इसी लिये करती चली आ रही है.
क्योंकी इसी बहाने एक बहुत मोटी रकम इस समारोह के लिये पार कर दी जाती है. काम थोडा
सा किया जाता है और दिखावा करोडो का होता है. आज के समय शिक्षक दिवस जैसे दिनो की आवश्यकता
क्या है. यदि इसकी आवश्यकता है तो फिर प्राध्यापक दिवस, व्याख्याता दिवस .. प्राचार्य
दिवस, और गुरु जी दिवस मनाया जाना चाहिये. आज के समय में एक अच्छी तरह से पढे लिखे
शिक्षक को अंगूठा छाप सरपंच, या पालक, या अधिकारी सरेआम पूरे बच्चों के सामने क्लास
लगा देता है. और शिक्षक के पास अपने बचाव करने के लिये कोई मौका नहीं मिलता वह सिर्फ
सिर झुका कर यस सर ही कह सकता है क्योंकी सामने वाला उसका अधिकारी जो ठहरा. रही बात
प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों की तो वहाँ पर जो मैनेजमेंट के ज्यादा करीब होता है वह
ज्यादा अर्थ का अधिकारी होता है उसे इंक्रीमेंट उतना ही अधिक मिलता है. जो शिक्षक अपने
काम से काम रखता है वह सिर्फ नाम भर का शिक्षक रह जाता है.चाहे प्राइवेट हो या सरकारी
सब जगह शिक्षक दिवस का धतकरम करके प्रशासन और प्रबंधन अपने अपने तरीके से स्वांग भरते
है. आज के समय में शिक्षकों की जो स्थिति रहती है उसे देख कर हमारे पूर्व राष्ट्रपति
जी जरूर अफसोस कर रहे होगें स्वर्ग से कि इस प्रजाति के लिये अपना जन्मदिन दान करके
जीते जी बहुत बडा गुनाह कर दिया काश एक बार और जन्म मिल जाये भारत में तो यह भूल सुधार
कर देता. परन्तु यह संभव कहाँ है आज कल.
आज सरकार मजदूर से लेकर हर प्रोफेसन वाले
से बहुत डरती है. थोडा से हडताल हुई नहीं की लगता है कि कहीं सरकार की राज्य व्यवस्था
का बंटाधार कहीं ना हो जाए और तुरंत माँगे मान ली जाती है. परन्तु शिक्षक साल भर मे
५० बार यदि हडताल करें और यह भी छोडिये यदि आमरण अनसन करे तो भी सरकार के कानों में
जूँ तक नहीं रेंगती है. जैसे उसे शिक्षकों की कोई चिंता ही नहीं है. और किस बात की
चिंता की जाये कौन सा आर्थिक नुकसान होना है उसका. चाहे ४ दिन करें या ४० दिन.. यही
सब हाल है जनाब.ऐसा लगता है कि दिहाडी करने वाले शिक्षा के मजदूरों का दिवस है. जिसकी
आय एक पखाना उठाने के मजदूर से भी कम है. और उसके चिल्लाने में कोई प्रतिक्रिया नहीं
होती है. यह भी सच है कि यदि प्रतिक्रिया की भी तो सिर्फ आस्वासन और झूठे वायदे है.
अफसोस
तो तब होता है जब वो सब आफीसर ,नेता, जो शिक्षक दिवस के दिन शिक्षकों की तारीफ में
पुल बाँधने से नहीं थकते है वो सब अगले दिन २४ घंटे के पूर्व ही इस प्रभाव से निकल
कर शिक्षकों को समाज में मुर्गा बनाने की आदत से बाज नहीं आते है.शिक्षक दिवस में शिक्षक
की स्थिति ठीक उसी तरह है जिसमें महापुरुषों का वह पत्थर का बुत है जिसे साल भर धूल
बीट सम्मान करते है और एक दिन उसे धोया पोंछा जाता है माला पहनाया जाता है उसके बारेमें
कसीदे पढे जाते है. और अगले दिन से फिर वही सार भर किस्सा चलता रहता है. आज के समय
में जरूरत है शिक्षक को जागरुक होने की और अपने अधिकारों की माँग सही लहजे से करने
की.नीतिगत तरीके से अपना अधिकार लेने की. और सरकार को चाहिये कि वह इस जिम्मेवार कद
को सही सम्मान दिलाये ताकि वह कम से कम भूँखो ना मरे. यह सच्चा सम्मान होगा शिक्षा
और शिक्षक का .
नहीं तो यह तो वह रामलीला है जिसके सब
पात्र खुश है सिर्फ राम को छोडकर. दिहाडी करने वाले ये शिक्षा के मजदूरों का दिवस इनकी
बेबसी में ठहाके लगा कर अपमान करने के अलावा और कुछ नहीं है.
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