मंगलवार, 14 जनवरी 2014

राजनैतिक रेगिस्तान से निकला कवि मन का आक्रोशित स्वर


राजनैतिक रेगिस्तान से निकला कवि मन का आक्रोशित स्वर
न दैन्यं ना पलायनम पं अटल बिहारी वाजपेयी के कवि कर्म की रचनाधर्मिता का खुला प्रमाण है. एक राजनीतिज्ञ,सांसद,संपादक,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अंततः प्रधानमंत्री के दायित्वों के बाद सब द्वंदो के मध्य कवित्व का मर्म हृदय में वास करना राजनैतिक रेगिस्तानी दलदल में कहीं मीठे जल की सरिता के उद्गम की तरह जान पडता है. पुस्तक १०३ पॄष्ठों की है. जिसका संपादन डाँ चंद्रिका प्रसाद शर्मा ने किया है.
            पुस्तक में तीन खण्ड है जिसमें प्रथम खण्ड में संपादित की गयी वाजपेयी जी द्वारा लिखित पदबद्ध कविताये हैं और द्वितीय खण्ड तथा तृतीय खण्ड में वायपेयी  जी का जीवन वृत एवं साक्षात्कार है.पुस्तकनुमा इस कृति का मूल स्वर प्रथम खण्ड है जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी के मन के मर्म में दबे आस्था के स्वर ,चिंतन के स्वर, आपातकाल के दंश के स्वर,और विविध स्वर के अंतर्गत ५२ कवितायें संग्रहित है. इसमें अधिक्तर कवितायें सुर,लय,तालय्क्त गेयता लिये हुये छंद बद्धता का पीछा करती नजर आती है जो आज की प्रगति और प्रयोगवादी कविताओं से भिन्नता लिये हुये है.इस संग्रह में उन्होने अपने भाव पक्ष के संदर्भ में खुद लिखा है कि विविधता के नाम पर विभाजन को प्रोत्साहन देना सबसे बडी भूल है. यह प्रादेशिक नहीं होसकता है. हम एक राष्ट्र मेम रहने के कारण एक नहीं वरन  हमारे विचार एक है इस लिये हम सब एक है.जो देश को एक बंद मुट्ठी की तरह मजबूत बनाता है.भावपक्ष की बात करें तो आस्था के स्वर में विभिन्न विषय राष्ट्र प्रेम,हिन्दी भाषा के प्रति लगाव और जीवन दर्शन अ के प्रति अमिट सोच को उभारा है.उन्होने जीवन के कुरुक्षेत्र और जीव को अर्जुन की भाँति माना है लगातार उद्घोष करने के लिये ,आँगे बढने के लिये कहा है. इन पक्तियों को देखें.
            आग्नेय परीक्षा की इस घडी में
            आइये अर्जुन की तरह उद्घोष करें
            ना दैन्यं ना पलायनम
ना दीन बनूँगा और ना ही पलायन करूँगा,अंत तक लडता रहूँगा.एक सफल जीवन जीने का यही संदेश है,उन्होने स्वाधीनता विनोवा भावे,कवियों राष्ट्रभाषा आदि पर बहुत सी कुंडलियाँ लिखी है.चिंतन के स्वर में अंतर्मन की वेदना ,सत्यनिष्ठा ,स्वराज, की कवितायें चतुष्पदी और कुंडलियों में बंधी हुई है.आपातकाल के स्वर में आपातकाल के भयावह  दॄश्यों को पँक्तियों की भाव भंगिमाओं में संजोया गया है. जिसमें अनुशासन पर्व,अंधेरा कब जायेगा,भूल भारी की भाई,मीसामंत्र महान.विविध स्वर में समाजिकविसंगतियों,पर्वों,पर्यावरण,वृद्धों तथा अन्य विषयों पर कवि ने कलम चलायी है. इस पूरे खंड में  प्रथम स्वर और आपात काल का स्वर कवि की लेखनी की ताकत  को पाठकों के समक्ष  रखता है परन्तु विविध स्वर में इस पुस्तक की गरिमा में खटास सा पैदा करता है. क्योंकि भाषा शैली और भाव पक्ष बहुत हल्का और सतही महसूस होता है जिसे अन्य तीन स्वरों मेम डीठ की तरह ही मान सकते है.
            पुस्तक का दूसरा और तीसरा भाग परिशिष्ट और साक्षात्कार सर्ग है जिसमें संपादक शर्मा जी ने वाजपेयी जी के जीवन वृत्त,उनकी शिक्षा दीक्षा,राष्ट्र स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और १९३९ सन से कविता के प्रति झुकाव को भी पाठकों के सामने लाया है.अटल जी ने संपादक के रूप में राष्ट्र धर्म,पांचजन्य,दैनिक स्वदेश, चेतना,वीर अर्जुन,आदि पत्रों को सम्हाला है.उनके अभिनंदन,सम्मान,में नजर डालें तो, हिन्दी गौरव,पद्मविभूषण, और अन्य सम्मान से भी विभूषित किया गया है.प्रकाशित रचनाओं में मृत्यु या हत्या,अमरबलिदान,कैदीकविराय की कुंडलियाँ.अमर राग है,मेरी इक्यावन कवितायें,राजनीति की रपटीली राहें,सेक्युलरवाद,शक्ति से क्रांति,न दैन्यं न पलायनम, नई चुनौतियाँ नया अवसर, आदि का जिक्र इस पुस्तक में मिलता है.संपादक ने साक्षात्कार में पाठकों के सामने यह रखा है कि अटल जी को साहित्य विरासत के रूप में श्याम लाल वाजपेयी वटेश्वर पिता जी और अवधेश वाजपेयी बडे भाई से मिला था. प्रसाद,निराला,नवीन, दिनकर,माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कवियों, जैनेंद्र, अज्ञेय,वॄंदावन लाल वर्मा, तसलीमा नसरीन, जैसे लेखकों भरत,जगन्नाथ मिलिंद रामकुमार वर्मा जैसे नाटककारों के मुरीद है.साहित्यकार से उनकी अपेक्षा और साहित्यकार को राजनीति के लिये सरोकार के लिये उनका अभिमत मुझे ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाया.समाजिक समरसता के लिये उनकी विचारधारा उच्चकोटि की है. इस पुस्तक में "कवि आज सुना वह गान रे" गीत है जो१९३९ में अटल जी नें नौवीं कक्षा में अध्ययन के दौरान लिखे थे.उनकी एक कविता युगबोध में भी राष्ट्र कवि,निराला,दिनकर के, क्रमशः साकेत,राम की शक्ति पूजा, और उर्वशी को विशिष्ट प्रकार से उद्धत किया गया है.इस कविता संग्रह ने अटल बिहारी वाजपेयी का लेखक और कवि होने को चर्चित हस्ताक्षर,खोजी पत्रकार,संपादक,और अंततः राजनीतिज्ञ के रूप में एक कदम और आगें बढाया है. कविता संग्रह के माध्यम से शर्मा जी ने अटल बिहारी वाजपेयी जी के काव्य के माध्यम से पाठकों को यही संदेश देना चाहा है कि  न कभी मन में दीनता रखो ना कभी जीवन रण से पलायन करो.इस पुस्तक का बारहवाँ संस्करण है इस तथ्य के पश्चात ज्यादा टिप्पणी करना अनुचित है.परन्तु एक कवि होने के नाते मुझे लगता है कि अटल जी की कवितायें एक व्याकरणिक छंद बद्धता के  मर्म को स्पष्ट करती है.परन्तु आज के समय पर प्रताडित आम जन सर्वहारा वर्ग,शोषित लोगों की पीडा का बखान करने में प्रतिनिधित्व करती नजर नहीं आती है. वही नौकरशाही,भ्रष्टाचार,खाये अघाये लोगों का विषय पुराना सा नजर आता है.स्त्री और युवाओं का विमर्श भी इस पुस्तक से अनुपस्थित नजर आता है.जो विषय पहले उठाये जा चुके है या उठाये जाते रहे हैं उनके साथ ही इस पुस्तक की इति श्री हुई है.लेखक ने पाठक को इस पुस्तक के माध्यम से यह बताया है कि राजनीति में शामिल होकर भी कविताये लिखी जा सकती है.परन्तु चिंतन के लिये समय की अल्प अवधि हमेशा आपके सामने रहेगी.अटल जी भी उमर भर चिंतन की इसी समस्या से घिरे रहे जिससे वो काव्य में विशंगतियों,परिस्थियों का बखान तो किया परन्तु कहीं ना कहीं निराकरण बताने में कमतर से लगे.पूरी पुस्तक में सामग्री संपादन और साज सज्जा के लिये शर्मा जी बधाई के पात्र हैं.किताबघर को इस बात का आभार कि उसने राष्ट्रचिंतन और ओज वाली कृति पाठकों के समक्ष प्रभावी कलेवर में पहुँचायी है.
अनिल अयान
संपादक
शब्द शिल्पी,सतना
९४०६७८१०४०