रविवार, 1 जून 2014

संविलयन और विलगन की उहापोह में काश्मीर

संविलयन और विलगन की उहापोह में काश्मीर..

नरेद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद ग्रहण करते ही एक बहुत ही सार्थक पहल हुई है सरकार के सपथ ग्रहण समारोह में पडोसी राष्ट्रो को आमंत्रण और इसी बहाने पाकिस्तान से बात करने का जरिया खोजना.यह सब कितना कारगर रहा वह आज के समय में उत्पन्न हुये धारा ३७० के खत्म करने और परिवर्तित करने की मुहिम के प्रसंग से समझ में आ रहा है.जटिलता की दृष्टि से देखे तो पाकिस्तान के साथ संबंध बनाना इतना कठिन नहीं हैजितना कि काश्मीर को भारत में संविलयित करने की कार्यप्रणाली. वास्तविकता यह है कि काश्मीर समस्या इतनी ज्यादा कठिन है कि देखने मे सीधी साधी और समाधान करने में उतनी कठिन है.
     धारा ३७० का अर्थ है काश्मीर के सुरक्षा कवच की भाँति मजबूत स्वतंत्रता जो भारत की तरफ से काश्मीर को उपहार स्वरूप दिया गया था. हम सब इतिहास के उस पन्ने से वाकिफ है जिस समय पर काश्मीर में पाक के आतंकियों ने आक्रमण कर कब्जा करने में उतारू था और काश्मीर मजबूर था अपने को बचाने के लिये जिसकी वजह से उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी के सामने संधि का प्रस्ताव स्वीकार करना पडा.काश्मीर की आज भी तीन भागों की विचारधारा में बटी हुई है. एक पक्ष पाकिस्तान की शरण में जाना चाहता है.दूसरा पक्ष स्वतंत्र रहना चाहता है और तीसरा पक्ष भारत से जुडना चाहता है.पाकिस्तान और भारत के जबडों के बीच में फंसे काश्मीर नाम भर का स्वतंत्र राज्य घोषित है पूरा का पूरा सुरक्षा का खर्चा भारत के जिम्मे ही रहता है भारत अपनी सुरक्षा मंत्रालय का ९५ प्रतिशत भाग काश्मीर सुरक्षा के लिये नियुक्त कर रखा है.भारत के अधिक्तर युद्ध काश्मीर सुरक्षा के लिये हुये है और होते रहेंगें.भारत यदि उस समय चाहता तो राष्ट्रसंघ के कहने पर जनमत संग्रह करवा काश्मीर को भारत संविलयन वाले भाग को अपने पास रखकर अन्य भाग को स्वतंत्र कर देता तो आज यह कहानी नहीं होती.हमारा मोह हमें काश्मीर को अपने से अलग करने नहीं देता है.और संवैधानिक रूप से ३७० धारा को परिवर्तित करना भी भारत के लिये बहुत कठिन है.धारा ३७० को परिवर्तित करने के लिये यह आवश्यक है कि संसद में धारा परिवर्तन के साथ साथ अन्य राज्यों की विधानसभाओं में भी ८८ प्रतिशत पारित होना चाहिये और सबसे महत्वपूर्ण बात काश्मीर की संवैधानिक समिति के सामने धारा पर परिवर्तन ही एक मात्र रास्ता है.और काश्मीर की संवैधानिक निर्माण समित को अद्यतन किया ही नहीं किया गया.इस समिति को अद्यतन करने में ही सरकार को पसीने छूट जायेंगें. इस धारा का परिवर्तन ,काश्मीर की सत्ता के लिये नकारात्मक और भारत के लिये सकारात्मक पहल सिद्ध हो सकती है.परन्तु यह प्रायोगिक रूप से यदि लागू होती है तब इसका परिणाम फलदायक रहेगा.लेकिन प्रश्न यह उठता है कि परिणाम तक पहुँचने में ही बहुत से ब्रेकर्स उत्पन्न हो रहे है. अबदुल्ला परिवार ,पी.डी.पी. पार्टी इसमें कोई बदलाव नहीं चाहती है और क्योंकि उनको मिलने वाला विशेष धन और सुरक्षा उनसे छिन जायेगी. वही दूसरी तरफ अब भारत सरकार का पूरा मूड है कि इसपे बहस होना चाहिये जो भारत के विकास और समान राज्यों की परिकल्पना के लिये अति आवश्यक .समाज में हो या देश में बदलाव के लिये लहर उठाने और बदलाव करने के लिये संघर्ष और विरोध को झेलना ही पडता है .इस बीच कुशल प्रशासक वही बन सकता है जो इस सब मनोवैज्ञानिक दबाव के बीच अपने कार्य को सिद्ध करले और देश को विकास के पथ में लेजाने के लिये धर्म परायण के साथ साथ विकास परायण भी बने.यह पहल नरेद्र मोदी पहले ही दिन से कर चुके है.
     एक राज्य के लिये और उसकी स्वतंत्र सत्ता के लिये पूरा धन बल लगादेना जब मंहगा पडने लगे और उस परिस्थिति में जब वह भारत के द्वारा किये गये उपकारों को बिना महत्व दिये यह राग अलापे कि वह स्वतंत्र राज्य बनकर रहना चाहता है.भारत के किसी नागरिक का उस राज्य में कोई मान्यता नहीं हो.उस राज्य की विधानसभा के बिना भारत का कोई नागरिक वहाँ रह नहीं सकता कोई जमीन खरीद नहीं सकता.और भी अन्य बंधन है जो भारत के नागरिको के लिये काश्मीर में लागू है.यह सब कहाँ तक उचित है क्या नेहरू जी ने अपने कार्यकाल में काश्मीर से संधि करके जो कार्य किया था वह भारत के लिये बहुत बडी रुकावट है,यह सब प्रश्न आज भी सबके जेहन में गूँजते है.धारा पर राजनीति करना सही नहीं है परन्तु यह भी सच है इस पर बात चीत ना करना भी सबसे बडी कायरता है.अब देखना यह है कि हमारी सरकार जिस काम को आगाज किया है वह अंजाम तक पहुँचता है या कि समय के बहाव में विलुप्त हो जाता है. काश्मीर का भारत में संविलियन भारत की प्रगति के लिये प्रथम कदम है इसमें कोई दो राय नहीं है. बस आवश्यता है राजनैतिक रूप दिये बिना इस पर निष्कर्ष हेतु बैठक होनी चाहिये.और भारत की शर्तों पर या यह कहूँ कि सामन्जस्य पूर्ण निर्णय लेने में काश्मीर के हुक्मरानों को मदद भी करनी चाहिये .शायद इसी में उनकी भलाई है.क्योंकि भारत से अलग होने के बाद काश्मीर पर किसी और उपनिवेशी ताकत की हुकूमत होगी. अब फैसला काश्मीर को करना है कि भारत के साथ संविलयित होना है या भारत से विलगित.
अनिल अयान,सतना

९४०६७८१०४०

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