शनिवार, 14 जून 2014

क्या सिर्फ धारायें लगायेंगी बलात्कार में विराम

क्या सिर्फ धारायें लगायेंगी बलात्कार में विराम
आज के समय में बलात्कार ,गैंगरेप,छेडखानी,और मौखिक छींटाकसी जैसी वारदातें,भारत के हर कोने में हो रहीं है.पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई क्षेत्रों में यह परिदृश्य देखने को मिला,उत्तर प्रदेश को तो मीडिया ने पूरी तरह से इस मामले में खामोश करके नंगा करने में कोई कसर नहीं छोडा.ऐसा नहीं है कि ये घटनायें सिर्फ कुछ दिनों पूर्व से शुरू हुई है. हम शायद गत वर्ष दामनी कांड को भुला चुके है.मध्यप्रदेश के वह क्षेत्र जहाँ पर आदिवासी निवास करते है उनके साथ गांव में सामूहिक दुष्कर्म और बाद में गांव में नग्न घुमाने जैसा घिनौना कृत्य स्थानीय समाचार पत्रों और चैनलों से छिपे नहीं है.पर इसके नियंत्रण के लिये क्या किया जा रहा है या जो भी किया जा रहा है उसने कितना प्रभावी बदलाव लाया है. इस पर कोई विचार नहीं कर रहा है. सब बयान बाजी और,आरोपो प्रत्यारोपों के भंवर जाल में एक दूसरे को कैद करने में लगे हुये है. यदि इन राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों की बहन बेटियों और घर की इज्जत को इन घटनाओं से तार तार करने की कोई कोशिश करे तो शायद उस समय ये पूरे दल बल के साथ उस गुनहगार को उसके परिवार रिश्तेदारों सहित जमींजोद कर देंगे.कोर्ट,पुलिस,एफ.आई.आर.,सजा जैसी सरकारी शब्दावली का इनके सामने कोई अस्तित्व नहीं होगा.तब ये नहीं कहेगें कि बलात्कार आवेश में गल्ती से हो जाता है. ना ही उस समय कोई मंत्री,जनप्रतिनिधि,और नेता,नपुंसकतापूर्ण बयानबाजी नहीं करेगा.
संविधान में कहने को बहुत सी धारायें है.धारा ३७२,पर क्या इसके लिये बनी धारा ३७२ काफी है बलात्कार रोकने के लिये.बिल्कुल भी नहीं.क्योंकि बलात्कारियों के लिये इस धारा का डर खत्म हो गया है.पुलिस भी इस धारा के परिणामों को जनता तक पहुँचाने में असफल रही है.जब इसतरह की घटनाये देश में घटती है तो सरकार ,मुख्यमंत्री और जन प्रतिनिधियों के अनर्गल प्रलाप गुनहगारों को और छूट दे देते है.इस धारा से बचने के लिये पुलिस भी दबाव में आकर ३७६-घ,३५४-क, ३२३, और ५०६ धाराये लगाने के लिये मजबूर है.ऐसा क्यों होता है कि हमारे आसपास होने वाली इस तरह की घटनाओं के लिये अदालतें उसी तरह से कछुआ चाल से न्याय प्रक्रिया का प्रारंभ करती है जिस तरह से वो दीवानी और फौजदारी मुकदमों के लिये अपना क्रियाकलाप दिखाती चली आई है.न्याय प्रक्रिया हो या पुलिस कार्यवाही सब कछुआ चाल से अपने दस्तावेज पूरा करते है. क्या इसी तरह महिला सुरक्षा पर सवाल उठते रहेंगें.हम नारी जागरुकता वर्ष और स्त्री सशक्तीकरण वर्ष का राग अलापते है परन्तु इन सब का कोई अर्थ नहीं होता यदि हमारे समाज में ऐसी घटनायें घटती रहेंगी.
जो लोग यह बयान करते है.जो संगठन पुरुषवादी कट्टर सोच का प्रतिनिधित्व करते है और कहते है- कि बलात्कार तब तक नहीं रुकेगा जब तक कि लडकियाँ अपना पहनावा नहीं बदलेगीं,फिल्मों में आकर्षक दिखने वाले उत्तेजक सीन चलते रहेंगें. गानों में अस्लीलता और हनी सिंह जैसे रैप सिंगर अपने गाने गाते रहेंगें.जब तक प्रेम की अनुभूति दिखाने वाले गाने हर घरों में गूँजेगें,जब तक टीवी के प्रचार में महिलायें सिरकत करती रहेंगी. आदि आदि...... पर जब गावों में इस तरह की घटनायें घटती है,कस्बों में या शहरों में महिलाओं और बच्चों के साथ गैंगरेप की घटनायें होती है तब भी इस तरह के कारक कार्यकरते है.शायद नहीं क्या हमारे घर में परिवार की महिलायें,बच्चियाँ,हर प्रकार से रहती है तो क्या उनके साथ रेप हो जाता है.नहीं.क्योंकि हमारी नैतिकता वासना तक नहीं पहुँचती है.वासना का अनियंत्रित हो जाना बलात्कार को पैदा करता है.कई लोग पुरातन काल के कुछ मिथकों को उदाहरण बनाकर बलात्कार को ऐतिहासिक दंस बताते है.पर उस समय की परिस्थितियाँ और आज की परिस्थितियाँ पूर्णतः भिन्न है.यह बात सभी को समझना चाहिये जो आवश्यक भी है.
इस लिये आज के समय पर सजा की कडाई का स्तर बढाना चाहिये.फास्टट्रैक कोर्ट होना चाहिये और एक सप्ताह के अंदर सजा का प्रावधान होना चाहिये और आंगे कोई सुनवाई नहीं होनी चाहिये.और सबसे बडी बात है कि जब तक समाज मे हम सब अपनी नैतिकता को हवस में परिवर्तित होने मे नियंत्रण नहीं कर सकते है तब तक कोई धारा या कोई सजा बलात्कार जैसी जघन्य घटनाओं को कोई नहीं रोक सकता है.धाराओं से सजा दिलायी जा सकती है पर धाराओं का डर पैदा करना न्यायपालिका की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है. आज के समय पर नैतिकता दम तोड चुकी है.जब तक हम खुद के परिवार से यह शुरुआत नहीं करेंगे तो,सेक्स को सब कुछ मानने की भूल कुंठित मानसिकता वाले लोग करते रहेंगें.सजा जितनी कष्टकारी होगी तो गुनाह उतना ही कम होगा.हर दिशा से इस पर पहल करने की आवश्यकता है. सरकार का काम है बहसबाजी की बजाय त्वरित क्रियाशीलता दिखाये.न्यायपालिका का काम है फास्ट्रट्रैक कोर्ट में एक सप्ताह के अंदर निर्णय हो.पुलिस का काम है कि इसप्रकार के मामलों के लिये विशेश सेल बने तुरंत अपराधियों को पकडा जाये और अदालतों तक पहुँचाये. और सबसे बडी जिम्मेवारी हम सब की है हमें अपने परिवार से नैतिकता की शुरुआत करनी चाहिये.परिवार को समझाना चाहिये कि हवस,सेक्स,को अपराध में परिवर्तित करना गुनाह की राह को तय करती है.नियंत्रण करना हमें आना चाहिये.डर और तत्काल सजा से यह जघन्य अपराध कम होगा.तो आइये मिल कर सब एक बार पहल करें.धारायें हमें राह दिखा सकती है.धाराऒं पर पूरी तरह से आश्रित नहीं रहा जा सकता है. हाँ इस बात से ताल्लुकात जरूर रखता हूँ कि संविधान में यदि धाराओं का परिष्करण और परिवर्धन होता है तो शायद इनका प्रायोगिक परिणाम निकल सकता है.वरना यह संविधान मे लिखी सिर्फ पक्तियों के अलावा कुछ नहीं है. जिसका उपयोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये भारत में अपराधी वकीलों के माध्यम से अदालतों में करते है.यही सच जनता को पता है परन्तु अपराध को रोकने के लिये सब बेबस है.
अनिल अयान,सतना
९४०६७८१०४०

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