मंगलवार, 3 जून 2014

सिर्फ डिग्रियों के दम पर ही नहीं चलता देश

सिर्फ डिग्रियों के दम पर ही नहीं चलता देश

सत्ता परिवर्तन हुआ ही था कि विरोधी पार्टियों की तरफ से एक नया रोडा अटकाया गया.इस रोडे का नाम था डिग्री का हौआ. जिसके चलते श्री मती स्मृति ईरानी और बाद में माननीय मुंडा जी भी घेराव में आगये.कभी कभी यह लगता है कि क्या डिग्री ही सब कुछ है.या कोई इसके अलावा भी ऐसे कारक है जो मनुष्य के विकास में सहायक हो सकते है.यदि डिग्रियों से ही किसी जिम्मेवारी का मापदंड है तो फिर रावडी देवी जी के संदर्भ में लोग क्या कहेंगें.जो लालूयादव जी की सत्ता को कई वर्षों तक दम खम के साथ चलायी.हम सब जानते है कि डिग्रियों को बेचने वाले विश्वविद्याल और महाविद्यालय हमारे देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले हुये है.और जो चाहे,जब चाहे,जैसे चाहे डिग्रियाँ थोक का थोक खरीद कर अपने को डिग्री धारी की उपाधि दे सकता है.आज के समय में तो हर वर्ष नये नये प्राईवेट विश्वविद्यालय खुल रहे है.और इस प्रकार डिग्री का व्यवसाय भी फल फूल रहा है.मै अपने बारे में खुद बताऊ तो मै यदि एम.एस.सी. और एम.एड हू तो मैने कौन सा सातवें आसमान से तारे तोड लिया. कम से कम ज्ञान का सहारा लेकर अपनी बात आप सबके सामने कहने का संबल तो प्राप्त कर लिया है. यही स्थिति अन्य स्थानों के युवाओं की है.वो भी डिग्री का घंटा लिये बाजार में फिर रहें है परन्तु उन्हें कोई पूँछने वाला नहीं है.ना ही उनका कोई माई बाप है.
          जिस डिग्री के लिये कांग्रेस और अन्य घटक दल मानवसंसाधन विकास मंत्री युवा स्मृति ईरानी के तिल का ताड बनाने में लगे हुये थे ,उनहें शायद अपने माई बापों की भी डिग्री का अनुमान या खोज खबर नहीं है.जब यू पी ए सरकार अस्तित्व में आई तब ४० प्रतिशत मंत्री स्नातक के नीचे थे. तब भी दस साल देश में अपनी नालायकी और नाकारापन के दम पर राज्य किये.और मंत्रालय चलाये. और अधिक बढे तो हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री जी जाने माने अर्थशास्त्री थे डाक्ट्रेट थे,उनके दस साल किस तरह बीते वो अपनी आपबीती बखूबी जानते है.क्या वो अपने डिग्री के जलवे सत्ता में दिखा पाये ,नहीं क्योंकि उनकी सुप्रीमों जो उनसे कम पढी लिखी थी उनके सिर पर अपना शासन चला रही थी. और कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर सका और तो और इसी का परिणाम था कि आज कांग्रेस का अस्तित्व जनता,मीडिया,और राजनीति में खतरे में है.इतिहास में ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञो के नाम दर्ज है जो पढे नहीं थे ज्यादा बल्कि लढे थे. उनका यही अनुभव राजनीति में उनको अमर कर दिया. और उनके नाम का जाप करके उनके शिष्य आज राजनीति में अपना नाम रोशन कर रहें है.और दूसरे तरीके से बात करें तो जब स्मृति ईरानी चुनाव लडने का फार्म दाखिल किया.किसी ने कुछ नहीं बोला,जब वो जीत दर्ज की तब किसी ने कुछ नहीं बोला, जब उन्हें संसदीय मंत्रिमंडल में जगह मिली और महत्वपूर्ण पद दिया गया तो ही क्यों सभी लोगों के दिमाग के घंटे बजने लगे.और असीम कष्ट का अनुभव होने लगा.क्या किसी नये व्यक्ति को सत्ता में मंत्रालय में बिठाना गलत है.या सबको यह लगता है कि स्मृति ईरानी नरेंद्र मोदी की खासम खास है. और यदि बात आदर्श वादिता की है कि उन्होंने गलत ढंग से अपने शिक्षा को चुनाव आयोग के सामने रखा गलत शपथ पत्र दाखिल किया तो राजनीति में इस तरह के कर्मकांड करने वाले नेताओं के प्रतिशत ९० प्रतिशत से ऊपर है तब किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है. ना ही कोई गोहार लगाता है.
          डिग्री का मूल्य यदि इतना ही अधिक है तो मुझे लगता है कि चपरासी से कलेक्टर पद के लिये ली जाने वाली चयन परीक्षा को बंद कर देना चाहिये.सिर्फ डिग्रियों और उसमे अंकित प्रतिशत के आधार पर ही लोगों को नौकरी मिल जानी चाहिये.इस प्रकार की परीक्षाओं को लेने का मतलब है कि सरकार को डिग्रियों पर विश्वास रहा ही नहीं इस लिये वो परीक्षाओं का ढकोसला करने में उतारू रही,चपरासी के लिये पाँचवीं पास वाले को क्यों भर्ती नहीं किया जाता है. क्यों परीक्षाओं में स्नातक तक के विद्यार्थी इस पद के लिये परीक्षा देते है. इन सब का कोई जवाब नहीं है सरकार के पास. आज के समय में डिग्रियाँ सिर्फ जेब में रखी जाने वाली रुमाल है.जो आवश्यकता ना होने पर फेंक दी जाती है.और आकर्षक दिखने वाली दूसरी खरीद ली जातीहै.जिससे लोगों के बीच आकर्षक का केंद्र बन सकें.क्या हम नहीं जानते कि डिग्री पाने के लिये जुगाड और मुद्रा से कापी बनवाई जाती है,प्रश्न पत्र खरीदे जाते है. और तो और मुद्रा देकर मनपसंद अंक भी प्राप्त किये जा सकते है.इन सबके बीच किसी जनप्रतिनिधि का जनता के बीच से चुनकर संसद में कार्य करने हेतु जाने की प्रक्रिया में डिग्री के मापदंड उठाना .सिर्फ ध्यानाकर्षक के अलावा कुछ नहीं है. जनता खुद जानती है और स्मृति ईरानी भी कि जनता को कार्य करने से मतलब है जिसके लिये जनता वोट करती है या भविष्य में करेंगी.रही बात अनुभव की तो वह करने से होता है.सही मार्गदर्शन मिलने से अनुभवहीन भी अनुभव प्राप्तकर अनुभवयुक्त बनजाता है. इसलिये डिग्री को देखने की बजाय मंत्रियों के फैसले और किये जाने वाले कार्यों पर ध्यान देना चाहिये.जो सत्ता समाज और समय की माँग भी है.
अनिल अयान,सतना.
९४०६७८१०४

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