शनिवार, 5 जुलाई 2014

मँहगाई का पैगाम,मोहि कहाँ विश्राम

मँहगाई का पैगाम,मोहि कहाँ विश्राम
१८५७ से प्रारंभ हुई भारतीय रेल सेवा का यह वर्ष सुरसा की तरह अपना मुँह खोले आम  जनता को निगलने के लिये उत्साहित नजर आरहा है.और यह अवसर है जब बिना रेल बजट के किराये भाडे में उम्मीद से अधिक वृद्धि करना.१४.२ प्रतिशत किराये में वृद्धि और ६.५ प्रतिशत माल भाडे में वृद्धि ने जनता और सत्ता को झकझोर कर रख दिया है.मोदी सरकार के द्वारा बढाए गयी दरों को यह कह कर बचाव किया जा रहा है कि देश को पुराने किराये भाडे से हर दिन ९०० करोड का आर्थिक बोझ देश पर पड रहा था.और इस फैसले से ८ करोड प्रतिदिन का अतिरिक्त बोझ कम होगा. सरकार का यह कहना कि यह वृद्धि यूपीए सरकार के द्वारा ही लागू की जा चुकी थी.हमने सिर्फ उसे लागू किया है. ऐसा लगा कि उन्होने उत्तराधिकार का भरपूर उपयोग कर जनता का खून जोंक की तरह चूसने की परंपरा का निर्वहन किया है.रेल सेवा का मँहगा होना यातायात,परिवहन और आवागमन को आम जन की जेब से कहीं ज्यादा दूर कर दिया है.सरकार के द्वारा बजट सत्र का इंतजार ना कर पाने का कार्य और अनर्गल प्रलाप करके अपनी जिम्मेवारियों और वादों के प्रति विस्मरण भी कहीं ना कहीं आम जन के गले से नींचे नहीं उतर रहा है.विपक्षी दलों के लिये ही भले ही यह कुम्भकर्णी नींद से जागने वाले छण की तरह हो जो उन्हें राजनीति में पुनः सुबह की बेला की तरह एहसास करवा रहा है.पर उनका इन सब से वास्तविक रूप में कोई लेना देना नहीं है.ना उन्हें मँहगाई से कोई लेनादेना है और ना ही किराये भाडे से.वो तो इसमे भी वोट फैक्ट्री का नया दरवाजा बनाने की सोच रख रहें है.

किराया वृद्धि और भाडे में बढोत्तरी के घटाने के पक्ष में मै नहीं हूँ पर इस कदर से एकदम फर्श से अर्श तक पहुँचा देना जनता और औसतन रूप से लोगों की जेब में डाँका डालने से कम भी नहीं है. दोगला चरित्र दिखाने वाले जन प्रतिनिधि विपक्ष में बैठने पर बढोत्तरी की तीखी आलोचना करते है और अब सत्ता में है तो अमृत का रूप देकर रेल मंत्रालय के विकास  लबादा उठा कर कर्मचारियों की सहानुभूति लेकर जनता को पिलाना चाहते है.इस तरह की परिस्थितियों में जनता की आवश्यकता को बट्टा ही लगा है.बेबस जनता को हर सामान जिसका परिवहन रेल मंत्रालय के द्वारा किया जाता है मँहगा ही मिलेगा.यह तो प्रस्तावना है मँहगाई की अभी तो आम बजट और रेल बजट का आना बाकी है.एनडीए सरकार के अच्छे दिन की प्रस्तावना इस तरह से जनता को प्रथम उपहार के रूप में मिलेगी. इसके बारे में मध्यमवर्गीय और सर्वहारा वर्ग के लोग सोचे भी नहीं थे. सरकार के इतने दिन होने को आये है परन्तु अभी तक आम जन के पक्ष में सिर्फ वादे ही हुये है.इसका कार्य रूप में रूपांतरण अब तक तो नहीं हुआ है.और पहला निर्णय भी आया तो आर्थिक सुनामी लाकर पूरे देश में रख दिया है.कुछ वर्ष पहले एक फिल्म आई थी पीपली लाइव,जिसका एक गीत था. मँहगाई डायन खाये जात है. तो क्या इस डायन को पोषण का कार्य मोदी सरकार कर रही है.यदि आम जनता की जेब पर डाँका डाल कर ही मँहगाई को बढाने के लिये कदम उठाये जायेंगे तो जनता के द्वारा किये गये सत्ता परिवर्तन का परिणाम बहुत दुखद होगा.क्योंकि जनता के सामने मँहगाई चिल्लाते हुये कह रही है कि रोक सको तो रोक लो मोहि कहाँ विश्राम.१९८९ में बने रेलवे एक्ट में बदलाव की आवश्यकता है जिसके अंतर्गत रेलवे डेवलेपमेंट अथारटी को स्वायत्ता पर गंभीरता से विचार और विमर्श करना होगा.

हम सब जानते है कि भाडे से हर सामान मँहगा होगा, अमीर और अमीर होते चले जायेंगे और  गरीब तथा मध्यम वर्गीय जनता और गरीब होती चली जायेगी.और अर्थशास्त्र के अनुसार माँग बढेगी ,बाजार में आपूर्ति इस लिये कम हो जायेगी क्योंकि विभिन्न टैक्स से सामान मँहगा होगा . यह कदम  कालाबाजारी के लिये भी व्यवसाइयों को नई राह खोल दिया है.कुल मिला कर मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भी जनता को अप्रत्यक्ष रूप से कडा संघर्ष करना होगा.क्योंकि जब बजट जनता के सामने आयेगा तो सरकार इसी भाडे से उत्पन्न मँहगाई की दुहाई देकर पल्ला झाड लेगी. अभी भी २५ जून के लिये समय है. हम सब जानते है कि किराये का बजट से कोई ज्यादा संबंध नहीं है. यदि हमारा रेल मंत्रालय गरीब हो गया है. और संकट में है तो उसे और अधिक बजट मिलना चाहिये.राज्यों  से मदद लेना चाहिये. ना कि जनता के आवागमन और दैनिक उपयोग के सामान के भाडे में बढोत्तरी कर कमर टॊड देना चाहिये.नई सरकार से बहुत उम्मीदे है मतदाताओं को.इस तरह के तात्कालिक निर्णय कहीं ना कहीं सरकार के पंचवर्षीय रिपोर्टकार्ड में लाल चिन्ह लगा सकते है, २५ जून के पहले यदि जनता को कारगर छूट मिलती है तो कुछ तो जेब को राहत मिलेगी.वरना मँहगाई डायन अपने भोजन में रेल की गति से आम जनता का सुकून और विकास निगलती रहेगी.जनता को जिस नारे के तहत अच्छे दिन आने वाले है के स्वप्न लोक में सरकार ने बैठाया हुआ है उस लोक से हर परिस्थिति में जनता को सरकार से अपने पक्ष में निर्णयों की उम्मीद है और यदि अपेक्षायें अधिक की जाने लगे तो पूरी होने पर सरकार को जितना लाभ होगा,वहीं दूसरी ओर ना पूरी होने पर सरकार अधिक हानि होगी क्योंकि यह पब्लिक है यह सब जानती है सबका हिसाब रखती है और निर्णय समय आने पर जब देती है तो राजनैतिक पार्टियों के रोंगटे खडे नजर आते है.जनता को सीधी बातें जल्दी समझ में आती हैं. अर्थशास्त्र,विकास दर,मुद्रा स्फीति दर आदि परिभाषाये और दलीलें जनता की सोच से परे है. सरकार को अब यह सोचना होगा कि उसके वादे और विकास  मंत्र किस तरह जनता को संतुष्ट करते है और मँहगाई से निजात दिलाते है.
अंत में
मँहगाई को देख कर जनता हुई अधीर.
अच्छे दिन के पहले ही बढ गई है पीर.
भाडे से मँहगा हुआ जरूरत का हर सामान.
किराये ने धीमा किया आगमन और प्रस्थान.


अनिल अयान,
सतना, म.प्र.
९४०६७८१०४०

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