शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

अतिक्रमण जरूर हटाओ , पर खुद को तटस्थ बनाओ.

अतिक्रमण जरूर हटाओ , पर खुद को तटस्थ बनाओ.
नगरनिगम हो या नगर पंचायत हो इन संस्थाओं के पास अतिक्रमण विरोधी दस्तों का इंतजाम जरूर होता है.दस्ता,दस्ते के कर्मचारी,और वाहन व्यवस्था सर्व सुविधा युक्त युक्त होती है.ये संस्थायें सतना में नहीं वरन रीवा,सीधी पन्ना और भी अन्य जिलों में यह कार्यवाही साल भर में दो तीन बार नियमित रूप से करती है.और यदि कोई राजनैति शक्सियत आने वाली होती है तब यह कार्यवाही तेज हो जाती है.सरकार को यह दिखाने का प्रयास किया जाता है कि यहाँ की सुंदरता में कोई ग्रहण नहीं लगा हुआ है.एक दो दिन पूर्व सतना शहर में एक दो स्थानों से अतिक्रमण हटाया गया,इस बार अतिक्रमण हटाने के केंद्र बिंदु थे आई.जी. महोदय जिनके नेतृत्व में नगर निगम को यह सफलता हाथ लगी.पर क्या वजह है कि अतिक्रमण हटाने की आवश्यकता बार बार नगर निगम को पडती है. कितना समय,श्रम,और अर्थ पानी की तरह हर बार बहा दिया जाता है इन प्रश्नो का जवाब किसी के पास नहीं है.शहर कोई भी हो परन्तु महानगरों की बात छोड दें तो सबकी कहानी एक जैसे है. हर बार जो दस्ता इस कार्यवाही को अंजाम देता है उसके ऊपर लाखों रुपये खर्च होता है. परन्तु एक सप्ताह के बाद उसका परिणाम शून्य ही नजर आता है.
            अतिक्रमण का मूल अर्थ है किसी की सम्पत्ति पर गैरकानूनन रूप से कब्जे की प्रक्रिया,आज अतिक्रमण करना और करवाना दोनो बायें हाथ का खेल हो गया है.फुटपाथियों और गरीब तबके का दुकानदार अपनी मजबूरी और रोटी ,कपडा, मकान के लिये किसी शासकीय भूखंड का इस्तेमाल अपना व्यवसाय करने के लिये करता है. परन्तु शाम होते ही वह उस जगह को खाली करके चला जाता है और सुबह फिर उसी जगह पर अपना सामान बेंचने के लिये गावों से आता है.शासन की दृष्टि में यह अतिक्रमण किरकिरी की तरह चुभता है.अधिकारियों को यह अतिक्रमण दिन रात परेशान करके रखता है. अतिक्रमण का दूसरा भी प्रकार है जिसका उपयोग बडे व्यवसायी,उद्योगपति,और माफिया वर्ग करता है शासन के भूखंड में गैरकानूनन रूप से कब्जा करते है उसको धार्मिक रूप से प्रचारित प्रसारित करते है. वहाँ या तो खदानें,या कालोनियाँ , बहुमंजिली इमारतों के पास की सुंदरता बढाने के लिये उपयोग करते है.राजनेता इस प्रकार के अतिक्रमण का इस्तेमाल आज के समय पर मैरिज गार्डन और अन्य प्रकार के ओपन कैंपस पैलेस खोलने के लिये करते है.इस प्रकार के अतिक्रमण कभी आदतन और बंदूख की नोंक पर होते है.या कभी सुविधा शुल्क का उपयोग कर अधिकारियों की सेवा करके किया जाता है.इस प्रकार के अतिक्रमण के लिये ना ही नगर निगमों के पास कोई दस्ता होता है और ना ही शासन के पास कोई अमला होता है. यह प्रश्न भी उठता है कि प्रशासन  इस अतिक्रमण को हटाने के लिये कौन से मुहुर्त का इंतजार कर रहा है.क्या इससे शासकीय राजस्व का नुकसान शासन के कुछ कमाऊखोर अधिकारी नहीं कर रहे है.इसको देखने के लिये कौन सी कमेटी है.क्या वह भी इन दस्तो की तरह तटस्थ रूप से काम करना बंद कर चुकी है.कौन जवाब देगा इन सब प्रश्नों के,शायद अभी उत्तर निरुत्तर है.आज के समय पर अतिक्रमण हटाने का काम हमेशा चेहरा ,पावर,राजनैतिक पहुँच देख कर किया जाता है.इस कार्यप्रणाली में सुधार करने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है.

            जगह कोई भी हो,शहर कोई भी हो, परन्तु शासकीय जमीन में कुछ समय बिता कर, अपना व्यवसाय कर,रोजी रोटी कमाने की स्वतंत्रता हर रहवासी को है.ये अतिक्रमण कारी जो फुटपाथ में बैठ कर ,सडक के किनारे दुकान लगाकर अपनी रोजी रोटी कमाते है वो खुद इस बात को स्वीकार करते है कि यदि शासन गलत काम करने की बजाय हमें कोई जगह निर्धारित कर दे तो हम वहीं व्यवसाय करेंगें.परन्तु नगर निगम और नगर पंचायत के कुछ ऐसे भी कर्मचारी है जो इनको निर्वासित करने की पहल तो करते है परन्तु इन्हे एक स्थाई स्थान प्रदान करने की पहल नहीं कर सकते है.प्रशासन बडे उद्योगपतियों के अतिक्रमण को भूल जाता है और इन फुटपाथियों के अतिक्रमण का स्थाई इलाज नहीं खोज पाया है.इनसे नगर निगम की वसूली की जाती है.बिजली का टी.सी. बिल वसूला जाता है.पुलिस के द्वारा दादागिरी दिखाई जाती है. और ऐन मौके पे इनका ठेला,बोरिया बिस्तर उठाकर जब्त भी कर लिया जाता है.मुझे लगता है कि अतिक्रमण करने वाले जितने दोषी है उससे कहीं ज्यादा दोषी प्रशासन के ये लोग भी है.यदि अतिक्रमण कारियों को सजा दी जाती है तो इन अधिकारियों और विभागों पर भी कार्यवाही होना चाहिये. यह सब तो एक तरफा बात है बडे कदवार अतिक्रमणकारियों से शासन की जमीन अथवा भूखंड को अतिक्रमण मुक्त करना चाहिये.अतिक्रमण करना गुनाह है परन्तु अतिक्रमण कारियों को शासकीय सह देना उससे बडा गुनाह है. यह भी सच है कि यदि मंडियों ,के लिये,मीट मार्केट के लिये ,सब्जी वालों के लिये,दूधवालों के लिये स्थान निर्धारित है तो इन ठेलेवालो और गुमटी वालों के लिये कटराबाजार की व्यवस्था क्यों नहीं है.यदि इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया और आर्थिक मदद शासन प्रदान करे तो शासन को इस प्रकार के अतिक्रमण से राहत तो मिलेगी ही साथ में उसका इस पर खर्च होने वाला अर्थ,श्रम,और समय भी बचेगा.अब शासन को बडे अतिक्रमण कारियों की ओर रुख करना होगा साथ ही साथ इसके लिये नियम ,कानून और सजा को और कडी करने की आवश्यकता है.शासन के हर इस तरह के कामों में यदि तटस्थता होगी तो किसी को नुकसान और पीडा नहीं होगी.

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