सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

अच्छे दिन बनाम मँहगे दिन

अच्छे दिन बनाम मँहगे दिन
बजट आने के बाद तस्वीर काफी कुछ साफ हो गई है।आम जनता को समझ में आने लगा है कि यह बजट सिर्फ उद्योगपतियों की चाटुकारिता करने वाला है।यह बजट यह बताता है कि किस तरह उद्योगपतियों और करोडपतियों से अरब पतियों की फिक्र सरकार को आम जन से ज्यादा है।आम जन तो सिर्फ ढेंगा देखने के लिये मजबूर है।बजट से पहले यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि शायद वित्त मंत्री जी आम जन की जेब का ध्यान रख कर कुछ रियायत देगें परन्तु उन्होने सीधे सीधे अपने भाषण में यह कह दिया कि आम जन अपना ध्यान खुद रखे।हम सिर्फ उनके जीवन को इंस्योर्ड करेंगे।सरकार शायद भूल चुकी है कि आम जन से किये वायदे इस बजट में धूल फाँकते नजर आये हैं।वोट के लिये किये गये झूटे वादों के ढोल की पोल खुलने लगी है।
सरकार ने आम दैनिक उपभोग की वस्तुओं को मँहगा कर आम जन की कमर टोड दी है।सरकार ने उन वस्तुओं के दाम को कम करने का ऐलान किया है जिसका आम जन से कम और खास वर्ग से अधिक ताल्लुकात है।सरकार ने मनरेगा और निर्भया के फंड में बढोत्तरी कर मन मोहने का प्रयास तो किया परन्तु वहीं दूसरी सबसे बडी चपत सर्विस टैक्स को १४ः करके लगा दिया है।इस बढोत्तरी से हर वस्तु और सेवा क्षेत्र का मूल्य अधिक्तम हो जायेगा।हम सब जानते हैं किं उत्पादन से ज्यादा बाजार सर्विसिंग के बूते पे चल रहा है।जहाँ पर आपको रसीद की बात याद आयेगी वहीं पर टैक्स आपको अदा करना होगा।आमजन का रोटी कपडा मकान इतना मँहगा हो गया है कि वो कई प्रकार के टैक्स देकर अपने जीवन को सिर्फ सुरक्षित ही कर सकता है।लोन की बात की जाय तो ब्याज दर मँहगी होने से लोगों का मोह भंग होना तय ही है। बाजार का ध्यान रखना,अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना,देश का विदेशों से संबंध मजबूत करता,और जनता के अच्छे दिन की परिकल्पना को जनता के सामने रखने का जो कार्य सरकार ने इस बजट के माध्यम से किया है वह मंच से सुनने में प्रभावी और आकर्षक लगता है और कानों को बहुत सुकून देता है परन्तु आज जब सामने खडा है तो मँहगाई वाले ये दिन जेब और आम जन की दैनिक अर्थव्यवस्था को टोडने का काम अधिक कर रहा है।अब समझ से परे है कि जब आम जन की अर्थव्यवस्था ही डगमगाई हुई नजर आयेगी तो क्या पूँजी पतियों के उद्योगों के दम से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो पायेगी।आम जन का उसमें कोई योगदान सरकार नहीं चाहती है क्या।
अन्य बजट की स्थित पे नजर डाला जाये तो समझ में आता है कि रेल बजट से जनता को कोई रियायत नहीं मिली है।ना किराया घटा है और ना ही कोई नई ट्रेन चलाने का प्रावधान और घोषणा की गई है।इस क्षेत्र में भी सर्विस और यातायात टैक्स बढने से जनता के जेब को नजरंदाज कर दिया गया है।सरकार का मध्य प्रदेश में भी यही हाल रहा है।कर्ज पर लदे होने के बाद भी वित्त मंत्री जी ने वो वायदे किये जिससे मध्य प्रदेश की जनता असंतुष्ट नजर आयी है।वायदों से आमजन की पेट पूजा तो होती नहीं है।सत्ता के मठाधीशों से जनता को अपेक्षा होती है कि वो उनके प्रतिनिधि है तो उनका भरपूर ख्याल रखेगें।परन्तु यहाँ तो दूसरा ही राग अलापा जा रहा है अच्छे दिन का राग अब मँहगे दिन की ओर बढ रहा है।बजट की उपलब्धि यही देखी जा सकती है कि इससे सेनसेक्स की बढोत्तरी ज्यादा नहीं आपायी ।उद्योगपतियों के बयान बजट को देश की अर्थव्यवस्था के अनुकूल बताया वहीं दूसरी ओर राजनेताओं ने इसे विकास दर को १०ः से ज्यादा ले जाने के लिये भागीरथ प्रयास का पहला चरण बताया।आम जन के मुँह से सिर्फ निराशावादी वि़चार ही निकल कर सामने आये।
अब तो ऐसा लगने लगा है कि सरकार का हर जन प्रतिनिधि मंत्री बनने के बाद प्रति जन निधि संचय करने की स्कीम चलाकर जनता की प्राप्त राशि को सरकार के खाते में पहुँचाने की कवायद में लगा हुआ है।क्या अच्छे दिन सिर्फ उद्योग पतियों और अरब पतियों के लिये बस सरकार देना चाहती है या अच्छे दिन का तात्पर्य मँहगे दिन से था। जो सुनने में तो बहुत मधुर था परन्तु जब सामने आया तो उतना ही कडवा होगया।अच्छे दिन का यह प्रथम बजट जनता का सरकार से मोहभंग करने वाला रहा।बजट के बाद पेट्रोल और डीजल का तीन रुपये बढ जाना कहीं ना कहीं व्यापार और बाजार को और ऊँचाई पर पहुँचा देगा। इन बजटों के बाद जनता के लिये अच्छे दिन की परिभाषा बदल चुकी है। ऐसे अच्छे दिन का परिणाम जनता की जेब से से निकलता नजर आयेगा।इंस्योरेंस के दम पर जीवन यापन करने की इस पहल में सरकार बहुत खुश हो सकती है परन्तु जनता दुखी है।
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४0७

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