सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

कट्टर संघर्ष बनाम गुर्जर आंदोलन

कट्टर संघर्ष बनाम गुर्जर आंदोलन
गुर्जर वो जाति जो आजादी के कई वर्ष पूर्व से ही राजस्थान के अधिक्तर क्षेत्र ,मध्यप्रदेश के मालवा और भोपाल के आसपास और छत्तीसगढ के कुछ इलाकों में फैल चुकी थी। इनका कोई विशिष्ट इतिहास नहीं मिलता परन्तु यह तय रहा कि ये अपने आप को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में मानते रहे हैं। विगत दिनों जिस तरह का कट्टर संघर्ष राजस्थान के जयपुर से अन्य रेलमार्ग के ट्रैक में दिखा वह देश के लिये आने वाले समय में चिंता का विषय बन चुका है। इस तरह का जातिवाद अन्य राज्यों के लिये भी सिरदर्द बन सकता है। विशेष कर उनराज्यों में जहाँ पर भाजपा की सरकार मौजूद है। विगत एक पखवाडे से इस वर्ष चर्चा का विषय बन चुका गुर्जर आंदोलन किस तरह आरक्षण के लिये कट्टर संघर्ष को चुना वह अपने ध्येय के प्रति एकात्म दृढ विश्वास को हम सबके सामने रखा है। इस पूरे आंदोलन के दौरान देखा गया कि केंद्र और राज्य सरकार का कोई भी इनके विरोध में बयान नहीं आया, और ना ही इनके विरुद्ध किसी कार्यवाही की मांग की गई।
कविता श्रीवास्तव,जनरल सेक्रेटरी, पीपल यूनियन फोर सिविल अफेयर्स, राजस्थान ने २०११ में गुर्जर आंदोलन के बारे में  १०० पृष्ठों की विशेष रिपोर्ट में बताया कि १९४० से निवास कर रहे गुर्जर जाति के लोग १९८० तक अपने अधिकारों के लिये जागरुक हुये और गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के रूप में नेतृत्व राज्य स्तर तक पहुँचाया। इतना ही नहीं, कट्टर संघर्ष का रूप २००५ से २००८ के मध्य राजस्थान के पीपलखेडा , दौसा , किशनगढ और अन्य आस पास के इलाकों में चक्काजाम और हिंसात्मक रवैये के साथ उग्र हुये। हमारे लिये ये भी जानना आवश्यक है कि १९९४ में राजस्थान के तत्कालिक मुख्यमंत्री श्री भैंरों सिंह शेखावत के द्वारा गुर्जर समेत पांच जनजातियों को जिसमें गुर्जर ,रैका ,बंजारा ,गढियालोहार ,गरडिया को ८ अगस्त १९९४ को ओबीसी कोटे में शामिल करने के लिये विधेयक प्रस्तावित किया गया। परन्तु आरक्षण की आग को हवा देने का काम गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय सचिव किरोडी सिंह बैसला के द्वारा और २००३ के विधानसभा चुनावों मे अपनी वोट बैंकिंग को मजबूत करने के उद्देश्य से भाजपा की उम्मीदवार वसुंधरा राजे सिंधिया के द्वारा किशनगढ की परिवर्तन यात्रा के दौरान किया गया। जिसमें उन्होने कहा कि वो इन जातियों को अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत लाने के लिये मोर्चा सम्हालेंगी। सत्ता में आने के बाद वो ५ प्रतिशत तक आरक्षण इन्हें प्रदान करेंगी। श्री मती श्रीवास्तव के अनुसार इस जाति को आरक्षण प्रदान करने का कोई भी नियम और कायदा कानून नहीं है। परन्तु राजस्थान में भाजपा की सरकार आने के बाद इन्हें विशेष पिछडा वर्ग-एसबीसी वर्ग का निर्माण कर ५ प्रतिशत आरक्षण की बात को विधानसभा से हाँ की मोहर लग गई।
आरक्षण पर नजर डालें तो सीट रिजर्वेशन फ़ोर एडूकेशनल इस्टीट्यूट्स ऐंड पब्लिक सेक्टर एक्ट २००८ ले अनुसार पढाई और नौकरी के लिये किसी भी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश में ५० प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। राजस्थान में अभी २१ः ओबीसी, १६ः एससी, और १२ः एसटी को प्राप्त है। अब यदि ये ५ः और जुडते हैं तो यह बढकर ५४ः हो जायेगा। यह आंकडा कानूनन रूप से गलत है। और जयपुर हाई कोर्ट की सीनियर वकील इंदिरा जय सिंह ने जब २००८ में इस संदर्भ में  पीटीशन दाखिल की तो जयपुर हाईकोर्ट के एन. के. सिंह और जे. के. रंका न्यायपीठ ने तुरंत स्टे लगा दिया और अगली सुनवाई के लिये फरवरी २०१९ का समय चुना। एक वो समय था और एक आज का समय।इतना सब कुछ होने के बाद गुर्जरों की महत्वाकांक्षायें इतनी ज्यादा विस्तार ले चुकी हैं कि वो अब सरकार की अनुसूचित जनजाति मे शामिल होकर आरक्षण के नियमों को सिथिल कर निर्णय पाने के लिये कट्टर संघर्ष कर रही है। अब सोचने की बात यह है कि यदि इस जाति को एसटी कोटि में शामिल किया जाता तो ८२ अन्य पिछडा वर्ग की जातियाँ भी परिवर्तन के लिये संघर्ष करेंगी।और देश में एक नया जातिगत संघर्ष की स्थिति निर्मित हो जायेगी।
भाजपा के शासन काल मे अधिक्तर इस प्रकार की सहप्राप्त जातिगत आरक्षण संघर्ष का पूर्णविराम कैसे होगा यह अब तक सरकार तय नहीं कर पाई है।मई के इस संघर्ष के बाद जयपुर हाईकोर्ट ने तो गुर्जर समुदाय के वकील की दलील तक सुनने से इंकार कर दिया।और इस संघर्ष को तुरंत खत्म करने के लिये एसटीएफ और अन्य पैरा मलेट्री सेना की टुकडियो को भेजा। परन्तु क्या इस काम को अंजाम देने के लिये राजस्थान सरकार और पुलिस बल निष्क्रिय और बेजार हो चुका है या यह सब भाजपा सरकार की सहपर हुआ। कुछ भी हो परन्तु इस आरक्षण की जातिवादी आग से पूरा देश,इस राजमार्ग और रेलमार्ग प्रभावित रहा।कई ट्रेनें रद्द हो गई,राजमार्ग-८,११,१२ पूरी तरह से बंद रहे। कार्यपालिका को चाहिये कि इस तरह के जातिवादी संघर्षों को जड से उखाड फेंकने के लिये कडे से कडे नियम कानून बनाकर पालन करना चाहिये।वरना यह आग अन्य गुर्जर बाहुल्य राज्यों में फैलने से रोकने के लिये हमारी भाजपा सरकार को नाकों चने चबाने पड जायेंगें।
अनिल अयान,सतना

कोई टिप्पणी नहीं: