सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

उत्तर भारतीयों की महाराष्ट्र सरकार से अपेक्षा

उत्तर भारतीयों की महाराष्ट्र सरकार से अपेक्षा

देवेन्द्र फडनवीस महाराष्ट्र के नव मुख्यमंत्री के रूप में उभर कर सामने आने वाले है।पिछले एक पखवाडे से ज्यादा समय महाराष्ट्र की राजनैतिक रामलीला का मंचन टीवी चैनलो से लाइव प्रसारित किया गया था।अब चुनाव भी अपने परिणाम के साथ हम सबके सामने खडा हुआ है।अब सोचने की बात है कि इस राजनीति का भविष्य क्या होगा।यदि हम राजनीति के महाराष्ट्र संस्करण का जिक्र करें तो हम सब जानते है कि किस तरह सीट के लिये दोनो पार्टियों के बीच में वैचारिक और बौद्धिक कुरुक्षेत्र हुआ और आज दोनो मिल कर सरकार बना रहें है।और इसका प्रतिनिधित्व देवेंद्र फडनवीस ने करने जा रहे है।
महाराष्ट्र, शिवसेना के उदय,विकास और प्रचार-प्रसार का जीता जागता उदीयमान राज्य है।यह वही महाराष्ट्र है जहाँ मुम्बई के समुद्र तट के किनारे पर्यटकों के समूह देखे जा सकते है।यहीं पर बालीवुड फिल्म इडस्ट्री से इफरात धन और वैभव भारत के हिस्से मे आती है। बाम्बे स्टाक एक्सेंच जैसे मुद्रा स्पीथि को मजबूत करने वाले संस्थान भी महाराष्ट्र राज्य के खाते में आते है।आई.आई.टी जैसे तकनीकि से पारंगत संस्थान भी महाराष्ट्र में आते है।महाराष्ट्र भारत के सर्वांगीण विकास के लिये रीड की हड्डी का काम करता नजर आ रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुरूप महाराष्ट्र के कई शहरों का अर्थव्यवसथा के विकास में महती भूमिका है।महाराष्ट्र समुद्र तटीय राज्य होने के कारण व्यापार का अच्छा माध्यम बनकर पूरे देश में उभरा है।विभिन्न प्रकार के बंदरगाह भी आयात और निर्यात की बढोत्तर करते है।जल और वायुमार्ग की मौजूदगी का ही परिणाम है कि देश की तरक्की का ज्यादा दारोमदार दिल्ली की बजाय महराष्ट्र के महानगरों और बडे नगरों के कंधों में अधिक है.पूरा देश इस बात से वाकिफ है कि महाराष्ट्र की सत्ता जिस दल के पास होगी वह दल भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।यही वजह रही है कि भारतीय जनता पार्टी ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश की भांति महाराष्ट्र के चुनाव को सफल बनाने की बागडोर सौंपी. भाजपा को पूर्ण बहुमत की आशा थी ।परन्तु कहीं ना कहीं मोदी का नमों नमों उतना कारगर साबित नहीं हुआ ।इसी वजह से उसे गठजोर करने की आवश्यकता महसूस हुई.इस राजनीति यह इंद्र धनुष था जिसके चलते राजनीति के साम दाम दंड भेद के रंग हमें इस विधानसभाचुनाव में स्पष्ट दिखाई पडा।भाजपा को पूर्ण बहुतमत की आशा थी ।
हम सब जानते है कि महराष्ट्र जैसे मराठी भाषा बाहुल्य राज्य पर आज भी बाला साहब ठाकरे, और उनके उत्तराधिकारी,उद्धव ठाकरे एवं राज ठाकरे की तूती बोलती है।यही वजह है कि भारत में वो समय आ चुका है जब महाराष्ट्र के कई महानगरों में गैर मराठी भाषियों को बहुत बडे विरोधात्मक आंदोलनों और अराजकता का सामना करना पडा था।इसको लेकर सबसे ज्यादा उत्पात,भाषावाद,क्षेत्रवाद फैलाने वाले दल के रूप में शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख थी।एक वो समय था जब महाराष्ट्र में इन्ही दोनो राजनैतिक दलों का राज चलता था।मराठी ना बोलने में अंग्रेजों जैसे सजा देने के लिये इन पार्टियों के गुर्गे उत्तर भारतीयॊं पर धावा बोल देते थे। अब जब वहाँ पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार वानखेडे स्टेडियम में शपथ लेने जा रही है।इस अवसर मे भारतीय जनता पार्टी में राजनैतिक चक्रव्यूह को भेद रही है।यह वही पार्टी है जिसने चुनाव के पहले सीटों के बटवारे से खफा होकर शिवसेना के हाथ मिलाने से साफ तौर से इंकार कर दिया था।और किसी हालत में गठबंधन के लिये गोहार लगाने से परहेज करने का वचन देश वासियों को दिया था.और उसका परिणाम हम सबके सामने है।
इस मौके में उत्तर भारतीयों को एक संबल मिला ।जिसके अंतर्गत उत्तर भारतीय नागरिक इस बात से आस्वस्त हों कि वो महाराष्ट्र से संबंधित महानगरों में अपने भविष्य को उज्जवल बनाने की रेस में अपनी जिंदगी की रेस को भाषावाद और क्षेत्रवाद के तले खत्म ना कर पायेंगें।उन्हें भी वहाँ जीवन यापन करने और धनोपार्जन करने का उतना ही अधिकार होगा जितना की मराठी बोलने वाले नागरिकों को है। यह विडंबना आज की नहीं परन्तु पहले भी कई बार देखने को मिली है कि महाराष्ट्र में भाषावाद का जहर घोल कर संप्रदायिकता को मराठियों की नशों में टीकाकरण किया जाता रहा है और इसका लाभ इन पार्टियों को चुनाव में मिला भी है।अप भाजपा को देखना है कि वो अपना स्वार्थ साध कर अपने गठबंधन बचाने के लिये शिवसेना के विधायकों का साथ देती है।या अपने निर्णयों में अन्य दलों की सहमति बनाकर क्षेत्रवाद और भाषावाद को खत्म करने की मुहिम छेडती है।जिससे उत्तरभारतीयों को कुछ नहीं तो मुम्बई जैसे महानगरों में चैन की सांस लेने का अवसर मिलेगा।
अनिल अयान . 

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