सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

लाचार मैगी बन गई अछूत

लाचार मैगी बन गई अछूत
पिछले कई दिनों से मैगी जैसे फटाफट खाद्य पदार्थ पर काफी विवाद गर्माया हुया है। जिससे पूरे देश में अच्छी खासी बहस छिड गई है।और तो और इस खाने को लेकर फिल्मी सितारे माधुरी प्रीति और अभिताब भी सरकार की गिरफ्त में आगये है। उनके ऊपर कई राज्यों में आईपीसी के सेक्शन 420,272,273,और 109 के तहत केस फाइल हो चुके हैं।उनके ऊपर जहरीले खाद्य पदार्थ की ब्रांड पब्लिसिटी का आरोप लगाया गया है। भारत से उठा यह विवाद भारत ही नहीं वरन अन्य विकसित देशों में मैगी के लिये गले की हड्डी बन गया है। यह खाने की वस्तु आम जन की आदत बन गई है। इसके लाभ और हानि के बारे में कोई नहीं सोच रहा है। इसके पीछे इसका स्वादिष्ट होना और अन्य खाद्य पदार्थ की तुलना में जल्दी तैयार होना भी है। देश के प्रधानमंत्री कार्यालय से भारत के 80 प्रतिशत राज्यों  मे मैगी नाम का उत्पाद प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब देखना यह है कि लोकतंत्रात्मक देश में जहाँ भी सरकार भी जनता निर्धारित करती है वहाँ मैगी और इससे मिलते जुलते उत्पाद के साथ न्याय हो पायेगा भी कि नहीं। क्योंकि अभी मैने मैगी जैसे उत्पादो का जिक्र किया अर्थात जब गाज गिरी तो मैगी ही क्यों अन्य मैगी तरह अर्थात नूडल्स के उत्पादक कम्पनियों के सैंपल की जांच होनी चाहिये।
नेसले के अलावा नूडल्स जैसे उत्पाद बनाने वाली 10 कम्पनीज अपना उत्पाद बेंच रही है जो बाजार में ग्राहकों के द्वारा खरीदे जा रहे है और मैगी के प्रतिस्पर्धी बन चुके है। परन्तु वो इस विवाद के बाद भी सेफ हैं। इसकी वजह क्या मानी जाय,क्या उनका टर्न ओवर नेसले के बराबर नहीं  है या फिर उसका प्रचार प्रसार कोई बालीवुड की सेलीब्रेटी की बजाय टीवी के एक्टर कर रहे हैं। या सरकार से उनका कोई विवाद नहीं हुआ। खैर जो भी हो लेकिन वो भी इस संदेह के घेरे में आते है।पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते हुये भारत में फास्ट फूड के नाम से जो व्यापार चल रहा है वो  भारत के आर्थिक विकास में जितना लाभकारी है उतना ही स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भी है।साफ्ट ड्रिंक्स, तम्बाखू उत्पाद, और कैनिंग के नाम पर पैकेजिंग किये जाने वाले लंबे समय तक चलने वाले उत्पाद भी खाद्य सुरक्षा के घेरे में आते है। विभिन्न प्रकार की वाइन, देशी और विदेशी शराब भी इस घेरे में आती है। परन्तु इन उत्पादों को सैंपलिंग करने का समय किसी के पास नहीं है। ना ही इनके बारे में खोज खबर लेने का प्रावधान है।
फ्रांस में हेनरी नेसले द्वारा 1866 में गठित हुई नेसले कंपनी आज के समय में 150 से अधिक उत्पाद भारत के अलावा 20 अन्य देशों में चला रही है जिसका व्यापार वार्षिक आय व्यय हजार मिलियन का होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि 1980 के बाद भारत में आयी मैगी नाम की नूडल्स आज तीन दशक के ऊपर की हो गई है तब सरकार के खाद्य विभाग को होश आया कि इसमें भी लेड और एमएसजी मोनोसोडियम ग्लूटामेट की अधिक मात्रा 2.5 से 3.5 तक की बजाय 5.3 से 8.4 तक हो सकती है। एक बात यह भी मानी जा रही है कि कम्पनी की तरफ से सरकार का यथोचित सहयोग ना करने की वजह से उसे ही सिर्फ फास्टफूड उद्योग में निशाना बनाया गया। भारत में नेसले के प्रमुख इस बात को हर बार कहते आये है कि कुछ सैंपल्स को छोड कर मैगी में खराबी नहीं   है। कम्पनी ने यह भी माना है कि की एमएसजी एक एमीनो एसिड है जो टेस्ट इनहैंसर के लिये उपयोग किया जाता है। कभी कभी तो अन्य कंपनियाँ पीजा बर्गर और अन्य फास्ट फूड में स्वाद को बढाने के लिये  बैक्टोसोफ्टोन नाम का रसायन भी मिलाते है जो सुअर की आंत से स्त्रावित होने वाले पोर्साइन नाम के रसायन से बनता है। परन्तु उनको जाँच के दायरे में नहीं लिया गया।
इस सब विवाद होने के बाद सरकार ने कभी अपने काम की जाँच क्यों नहीं करायी और उसके खिलाफ केस क्यों नहीं चला उदाहरण के लिये स्कूलों में जाने वाले मध्यान भोजन की सामग्री में और पकाने में बहुत से स्वास्थ्य संबंधी गडबडी पाई गई परन्तु सरकार का रवैया उसके लिये उदासीन है। शराब से संबंधित सरकार का आबकारी विभाग फलफूल रहा है उस संदर्भ में स्वास्थ्य विभाग मौन है। हर जगह तम्बाखू उत्पाद और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन,उपभोग और व्यापार सरकार के आदेश के विरोध में ढंके की चोंट में चलाया जा रहा है परंतु सरकार ने उन उद्योगों का कुछ नहीं कर पायी या करना नहीं चाह रही है। यह बात भी सत्य है कि आज के समय में जो पानी हम पीते है उसमें भी लेड,सल्फर और कैल्शियम की सीमा से अधिक मात्रा मिली हुई है।और जिस सफाई प्लांट की बात की जाती है उसमें ऐलम,क्लोरीन और ब्लीचिंग की मात्रा भी क्वालटी के अनुसार अनियमित है फिर भी स्वास्थ्य मंत्रालय,और संबंधित विभाग, एफडीए फूड एंड ड्रग एडमिनेसट्रेशन कुछ नहीं कर पा रही है।
पूरी विवाद को समझने के बाद लगता है कि फास्टफूड उद्योग और जंक फूड उद्योग इस घेरे में आता है। इनको भी सैंपलिंग की जानी चाहिये। पूरे बाजार में स्वदेसी का यह सीतयुद्ध का प्रारंभ है जो कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष ऐजेंडा भी है यह नेसले और आईटीसी के बीच सरकार के घनिष्ट होने के प्रदर्शन का आगाज भी है। क्योंकि आईटीसी वह उत्पादक कंपनी है जो भारत के इन उत्पादों के बाजार में नेसले के टक्कर की भारतीय कंपने है जिसका २५० से भी अधिक उत्पाद बाजार और घरों की शोभा बढा रहे हैं। पूरे विवाद में नूडल्स उत्पादक कंपनियों में नेसले की मैगी को अछूत की तरह अपने समाज से बहिस्कृत कर दिया गया है। और इस काम में भारत के सभी राज्यों ने भरपूर सहयोग दिया है। रही बात स्वास्थ्य की दुहाई देने की तो अन्य हानिकारक उत्पादों,उसके उत्पादक उद्योगों और ब्रांड पब्लिसिटी करने वालों के खिलाफ भी कार्यवाही होनी चाहिये। जो हमारे लिये कैंसर की तरह हैं। तभी मैगी के साथ हुये इस अछूत रवैये के खिलाफ और स्वास्थ्य के पक्ष में सही न्याय हो पायेगा। यदि मैगी हानिकारक है तो उसके साथ साथ जहर परोस रहे उद्योगों और उनके उत्पादों के साथ भी   मैगी की तरह व्यवहार होना चाहिये।

अनिल अयान सतना

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