सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

योग में भिड़ा धार्मिक जोग

योग में भिड़ा धार्मिक जोग
२१ जून को मनाये जाने वाले  अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के पूर्व ही योग को लेकर एक बडी बहस शुरू हो गई है। योग के नाम पर हिंदू संगढन और मुस्लिम संगठन योग की पैरवी करने में लग गये हैं। योग को धर्म से जोडने के लिये राजनीति के स्टंट किये जा रहे हैं। मुस्लिम संप्रदाय के राजनैतिक मठाधीश योग को नकार रहे हैं क्योंकि योग के अंतर्गत सूर्य नमस्कार में आने वाले संस्कृत के श्लोकों में हिंदू देवी देवताओं की अराधना की गई है। जो मुस्लिम समुदाय के लिये धार्मिक रूप से गलत होगा। इस विवाद में  जिस प्रकार आल इंडिया मजलिस ए एत्तेहाद उल मुस्लमान सबसे ज्यादा विरोध दर्ज कर किया है वो कितना सच है इस बात को जानने की आवश्यकता है कि क्या सूर्य नमस्कार में वाकयै देवी देवताओं की उपासना है या फिर मामला कुछ और है।इधर आयुष मंत्री श्री पद नायक ने बार बार इस बात को स्पष्ट किया है कि मुस्लिम समुदाय के लिये योग के अंतर्गत सूर्य नमस्कार के समय सभी मुस्लिम भाई अल्लाह का नाम ले सकते हैं। एक तरफ सुषमा स्वराज का यह कहना कि योग में सरल आसनों के जरिये योग दिवस मनाया जाना चाहिये।  लोगों को सूर्यनमस्कार करने के लिये प्रतिबंधित नहीं करना चाहिये। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह योग के विरोध में धार्मिक जोग भिडाना सही नहीं है। हम सब जानते है कि योग,प्राणायाम,और सूर्यनमस्कार कहीं ना कहीं हमारे स्वास्थ्य से भी जुडे हुये हैं और आवश्यकता पडने पर हर धर्म के लोग मेडीटेशन के नाम पर योगासनों को कर के जीवन में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं। बाबा रामदेव का यह बयान देना कि योग का एक रूप मुस्लिम समुदाय में नमाज अदा करना भी है। यह बात सभी के गले से नहीं उतरती है।
योग जो वैदिक कालीन परंपरा से उत्पन्न हुआ है। जिसका जिक्र हिंदू धर्म के उपनिषद और बौद्ध धर्म पाली में सर्वाधिक मिलता है। बाद में पतंजलि ने योग शूत्र की रचना कर के योगविद्या को जन जन तक पहुँचाया है। अस्सी के दसक से योग को योग गुरुओं के द्वारा सर्वाधिक प्रचार प्रसार किया गया। आठ आर्थोडाक्स स्थितियों के द्वारा योग को फिजिकल एक्सरसाइज के अलावा भी मेंटल और स्प्रिचुअल मेडिटेशन का माध्यम बनाया। संस्कृत शब्द युज से बना योग का शाब्दिक संसकृत अर्थ जोडने से लेकर है। हिंदी में योग को गणित के जोड से मिलान किया गया है। चक्रयोग ,क्रियायोग ,मनयोग ,राजयोग और हठयोग आदि कई प्रकार के योग अलग अलग प्रकार के स्वास्थ्य से जुडे हुये हैं। बारह आसनों में किया जाने वाला सूर्य नमस्कार वास्तव में सूर्य की आराधना है। सूर्य नमस्कार मुख्य रूप से हठयोग का भाग है जिसमें आसन ,उपासन ,मंत्रोचारण, प्राणायाम से बना हुआ है। पुरातन काल में इस योग से व्यक्ति सूर्य और उसमें निहित उर्जा को स्वयं में समाहित करने का प्रयास किया करता था जो हिंदु धर्म के अनुसार सूर्य सहित प्रकृति के अन्य तत्व भी देवताओं के रूप में पूजे जाते थे। रही बात नमाज़ की तो वह मुस्लिम संप्रदाय का प्रार्थना का स्वरूप है। सलत और सलह अरबी लफ़्ज है जो इस्लाम में आवश्यक नमाज़ के रूप में हर व्यक्ति को अदाकरनी होती है।पांच वक्त की नमाज़ और उसके सभी नियम का जिक्र सुरा जो कि क़ुरआन का प्रथम अध्याय में मिलता है जिसमें अपनी दुआ खुदा तक पहुचाना है। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि इस प्रार्थना में कहीं भी मेडीटेशन का जिक्र नहीं मिलता है।
योग,सूर्य नमस्कार के संदर्भ में यदि  इतिहास में नजर डालें और धार्मिक दृष्टि से देखा जायेगा तो उपनिषदों से उतपन्न हुआ योग वाकयै ही हिंदू धर्म की संपत्ति है। यह बात और है कि इस क्रिया को आज बौद्ध, जैन,सिक्ख,इसाई धर्म के लोग अपने स्वास्थ्य लाभ के लिये कर रहे है। परन्तु योग गुरु का यह कहना भी गलत है कि नमाज़ में योग समाहित है। क्योंकि कहीं भी इसकी पुष्टि नहीं मिलती है। इस प्रक्रार के प्रलाप धार्मिक विद्वेश पैदा करते है। वास्तविकता तो यह है कि योग के सूर्यनमस्कार भाग में बिना श्लोकों के यह पूर्ण नहीं होता है। समय सापेक्ष इसमें बदलाव किये गये है। परन्तु इसके लिये पूरे देश में प्रोटोकाल लाना भी सही नहीं है। क्योंकि अपने धर्म के अनुसार हर व्यक्ति हो यह अधिकार है कि वो सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपनी इच्छाअनुसार भाग लेकर लाभ प्राप्त करें। इसे ऐच्छिक रूप से जनता के लिये मनाना चाहिये। क्योंकि प्रोटोकाल से जनता में तानाशाही शासन का संदेश जाता है जो लोकतंत्रात्मक प्रणाली की सरकार के लिये सही नहीं होगा। परन्तु विगत कुछ समय से सरकार ने हमेशा ही प्रोटोकाल के जरिये सभी धर्मों को एक कार्य के बहाने एकत्र करने का काम किया है। अब धर्म के तथाकथित ठेकेदारों को समझना है कि क्या वो धर्म के नाम पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का विरोध करते हैं। या फिर स्वास्थ्य लाभ के नजरिये से इसका फायदा उठाते है। क्योंकि सत्ता में बैठे लोग प्रोटोकाल में सूर्य नमस्कार में मंत्रों की जगह पर अल्लाह का नाम लेने की छूट दे दी है। जिसका जिक्र उपनिषद के अनुसार पूरी तरह से गलत है। सूर्यनमस्कार बिना मंत्रोच्चारण के पूर्ण होता ही नहीं है।
अनिल अयान,सतना

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