सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

मरीज बेहाल, बीमार अस्पताल


मरीज बेहाल, बीमार अस्पताल
इस समय डेंगू का प्रकोप सर्वाधिक देश में फैला हुआ है। और इस बीमारी ने कहीं ना कहीं स्वास्थ्य महकमें और लचर स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी है। हमेशा से होता आया है कि जब भी मरीज बीमार होता है और वह असहाय हो जाता है तो वह सरकारी अस्पताल की बाट जोहता है। समान्यत ऐसे मरीजों के लिये अस्पताल एक मंदिर हो जाता है और डाक्टर भगवान जहाँ पर उसे अपने इलाज रूपी वरदान की आशा होती है,परन्तु ऐसा होता नहीं है। वह लाचार,अपनी किस्मत से बेहाल जब अपने इलाज के लिये अस्पताल आता है तो उसे अपनी बीमारी ही बिसर जाती है विशेषकर तब, जब अस्पताल में अराजगता,अव्यवस्था,और भर्रेशाही की स्थिति देखता है। ऐसा उसे महसूस होने लगता है कि वो किस बीमार मंदिर में आगया है जिसमें पुजारी भी बीमार और भगवान भी बीमार हैं,और मिलने वाला प्रसाद भी बीमार ही होता है। इस समय डेंगू के मरीजों की सरकारी स्वास्थ्य केंद्रो और शासकीय अस्पतालों में यही स्थिति बनी हुई है।आलम यह है कि मरीज को इलाज तो दूर की बात सही ढंग से सलाह तक नहीं मिल पाती है। अधिक्तर देखा जाता है कि इस प्रकार की व्यवस्थाओं के लिये डाक्टर्स को आडे हाथों लिया जाता है परन्तु यह सच नहीं है।शासन की लचर व्यवस्थाओं के चलते डाक्टर्स ही इतने लाचार हो जाते हैं। क्योंकि उनकी विभागीय व्यस्तताओं को इतना बढा रखा है शासन ने कि वो मरीजों को देखने के बजाय विभागीय काम को पूरा करने और आंकडे पूरे करके विभाग के गुड लिस्ट में आने का प्रयास ज्यादा करते हैं। मरीज चाहे मरे या जिये इसकी जिम्मेवारी उनकी नहीं होती है।शासन की विशेष व्यवस्थाओं के चलते हर अस्पताल में डेंगू के लिये विशेष वार्ड बनाने की बात कही गई और डाक्टरों के विशेष दलों की नियुक्ति इसी काम को करने के लिये मंत्रालय की तरफ से बात उठी परन्तु लचर व्यवस्थाओं के चलते यह भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई। जिले के अस्पतालों का हाल यह है कि अधिक्तर जाँच केंद्रों में तकनीकि खराबी हमेशा बनी रहती है। अस्पताल की व्यवस्थायें बद से बदतर हो चुकी है। विधायक और सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र में रहने वाले वोटर्स के स्वास्थ्य के हाल चाल को जानने की भी फुरसत नहीं है। वो सिर्फ मंचों से घोषणा तो करते हैं परन्तु इस बीमारी की भयावह स्थिति के निराकरण के लिये यह जानने की कोशिश नहीं करते की उनकी घोषणाओं का अनुपालन क्यों नहीं हुआ,वार्ड क्यों नहीं बनाये गये,डाक्टर्स क्यों नहीं नियुक्त किये गये। ग्रामीण और कस्बाई अस्पतालों का हाल यह है कि वहाँ तो पैरा मेडिकल डाक्टर्स ही सब व्यवस्थायें देख लेते हैं।डाक्टर्स नहीं भी जाते तो भी मरीज विरोध नहीं कर पाते हैं। सामन्य जनता इन सब के लिये भले ही डाक्टर्स को दोषी मानते हों परन्तु सबसे बडी बीमारी तो स्वास्थ्य महकमें को है। अधिकारी से लेकर विभाग सब एक लंबी जेनेटिक बीमारी से ग्रस्त हैं यहि वो अपना इलाज नहीं कर पा रहें तो मरीजों का इलाज कहाँ से होगा।
प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम्स का खुलना, सरकारी डाक्टर्स का नर्सिंग होम्स का मोह,और सरकारी नौकरी में डाक्टर्स का अकाल,अस्पताओं की इसी दीर्घ कालिक बीमारी का परिणाम है। हम इस बात को नहीं नकार सकते कि सरकारी डाक्टर्स प्राइवेट नर्सिंग होम्स खोल कर या सेवायें देकर मरीज बीमारी और दवाओं का एक बहुत बडा दीर्घकालिक बाजार समाज को परोस रहें हैं। जिसमें फार्मा कम्पनीज,मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स,मेडिकल स्टोर्स,और समाज पर बाजारीकरण का प्रभाव पडता है। सरकारी अस्पतालों में वही जाता है जो गरीब है,या जिसे शासकीय योजनाओं का लाभ मिलने वाला होता है। आज के मरीजों की स्थिति यह है कि पैसा लग जाये परन्तु इलाज अच्छा हो जो सरकारी अस्पतालों में अनुपस्थित नजर आता है। यही परिस्थितियाँ डेगू के मरीजों की भी है। डाक्टर्स के लिये बहुत से मरीज हो सकते है और मरीजों की कई जिंदगियाँ हो सकती है। परन्तु मरीज के लिये एक ही जिंदगी है और वो किसी भी हालत में जिंदगी को रोग मुक्त रखना चाहता है चाहे उसके लिये कितने ही डाक्टर्स और अस्पताल बदलने पडे। इस समय की माँग हैं कि समय रहते विभाग जागकर सही सुविधायें मुहैया कराये,अलग वार्ड बनाये और दल की नियुक्ति करें। ताकि सरकारी अस्पताल में ही मरीज की बीमारी सही हो सके। डाक्टर्स पर भी लगाम लगाने की आवश्यकता है कि वो डेगू जो आज के समय में स्वास्थ्य महकमे के लिये बडा सिर दर्द बन चुकी है,के लिये सरकारी अस्पतालों में इलाज को प्राथमिकता दें ना कि नर्सिंग होम्स की। एमबीबीएस डाक्टर्स के साथ-साथ अन्य स्ट्रीम के डाक्टर्स की भी सहायता लेने पर विचार स्वास्थ्य विभाग को करना चाहिये। इतना ही बस नहीं अस्पताओं के रखरखाव और स्थापित यूनिटों में लगे आधुनिक चिकित्सा उपकरणों को भी हर समय टेक्नीशियन के द्वारा संचालित करने पर विचार करना चाहिये। डेंगू बुखार जैसे वायरल बुखारों के लिये उचित और तेजी से असर करने वाली दवाओं को हर अस्पताल में मुहैया कराने की जरूरत चिकित्सा विभाग को सबसे अधिक है। डाक्टर्स के माथे ठीकरा फोडने से सिर्फ समस्यायें और हो रही मौतों को खत्म नहीं किया जासकता .सक्रिय होकर विभाग को भी तत्परता दिखाने और सरकार को इस के प्रति सजग होने की आवश्यकता है। टीवी चैनल्स में विज्ञापन देकर लोगों को जागरुक करने के बहाने पैसा बहाना अलग बात है और सही सुविधाओं वाले सरकारी अस्पतालों को स्थापित करना जिसमें सरकारी मेडिकल आफीसर सही ढंग से सरकारी सुविधाओं का लाभ मरीजों को दे सकें दूसरी बात है। सरकार को दोनो बातों के बीच सामन्जस्य बनाने की नितांत आवश्यक है।

अनिल अयान,सतना
संपर्कः9479411407
युवा साहित्यकार एवं फ्रीलांसर लेखक ,सतना

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