बुधवार, 6 अप्रैल 2016

स्टार्ट अप हम, स्टैंड अप सरकार

स्टार्ट अप हम, स्टैंड अप सरकार
अच्छे उद्दमी बनाने के लिये हमारे प्रधानमंत्री जी ने स्टार्ट अप स्टैंड अप योजना का प्रारंभ किया है।गणतंत्र दिवस वाले इस महीने में और सन दो हजार सोलह की बानगी के रूप में प्रधानमंत्री जी ने एक और तोहफा भारत के युवाओं को प्रदान किया है जिससे यह उम्मीद लगाई जा रही है कि युवा वर्ग उद्यमित के दरवाजे खटखटाकर अपनी बेरोजगारी को दूर करेगा।सरकार की मंशा को पूरा करने वाली यह योजना भी भविष्य की गहराई में युवाओं को उठाने का स्वर्णिम अवसर प्रदान करेगी।युवा वर्ग खुश होगा और अपनी बेरोजगारी  समाप्ति पर हिप हिप हुर्रे की खुशी जाहिर करेगा।सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता प्रदान करने का पूरा खाका तैयार किया जा चुका है। हर युवा उद्दमी को उसकी छमता के अनुसार लोन भी देने का इंतजाम कर लिया गया है।आगामी तीन साल तक कुछ भी कर लगाने का भी निर्णय लिया जा चुका है। क्या उद्यमिता का असर हमारे देश में इतना ज्यादा प्रभावी है कि इसके दम पर अपना व्यवसाय आसानी से चलाया जा सकता है।सरकार युवा और इस योजना को ध्यान से आपस में मिलायें तो समझ में आता है कि व्यवसाय को स्टार्ट करने के लिये, अंगुली थामने से लेकर युवा को राह में चलना सिखाने का जिम्मा सरकार का ही है और वो इस पालक धर्म को हर युवा के साथ निभायेगी। परन्तु जब इस योजना के ताजमहल में बने ऊपर की ओर झरोखे से अंदर झांके तो समझ में आता है कि यह कहीं ना कहीं लक्ष्मी पुत्रों के लिये ज्यादा फायदे मंद होगी।
      सोचने की बात यह है कि भारत में निम्न वर्गीय ,मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यमवर्गीय युवा की शिक्षा दीक्षा पर नजर फेरें तो इनकी शिक्षा दीक्षा सिर्फ इन्हें नौकरी पेशा वाला ही बना सकती है। विद्यालय से महाविद्यालय तक किशोर से लेकर युवा सिर्फ उन विषयों का रट्टा मानता है जिसको पढकर कांपटीशन निकाल सके और सरकारी नौकरी पा सके,सरकारी नहीं तो प्राइवेट तो मिल ही जाये। तब यह योजना कैसे इन युवाओं पर अपना प्रभाव छोड पायेगी। इस योजना में युवाओं को प्रशिक्षित करने का कोई प्रावधान है ही नहीं। किसी अनपढ को यदि सभी सुविधायें दी जायें और उसे रुपयों का बोरा रख दिया जाये तो वो उद्योगपति कैसे बन सकता है। अपना व्यवसाय शुरू करने के लिये उन युवाओं की भीड से जरा पूछिये जो औद्योगिक प्रशिक्षण प्राप्त करके जिला उद्योग कार्यालय और बैकरों के दरवाजे में आर्थिक मदद के लिये अपनी एडी रगड देते हैं परन्तु उन्हे लोन के नाम पर या तो ठेंगा दिखा दिया जाता है या फिर आरक्षित वर्ग के युवाओं से मिलने वाली सब्सिडी को इन कार्यालयों के अधिकारी और बैंक मैनेजर बतौर रिस्वत टेबल के नींचे से लेने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। युवा वर्ग इस लिये चुप हो जाता है कि शासन के द्वारा मिलने वाली सब्सिडी यदि घूस के नाम पर दे भी दी गई तो उनके घर का क्या गया लोन तो सरकार दे ही रही है। परन्तु सच्चाई तब सामने आती है जब औद्योगित प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास केंद्रों से प्रशिक्षण प्राप्त युवा अपना रोजगार शुरू करते है और असफल होने में सरकार के धन के साथ अपने घर की गृहस्थी भी शासन को दक्षिणा के रूप में देने को मजबूर हो जाते हैं।शासन को अपने लोन के साथ युवाओं के घर की जागीर भी चक्रवृद्धि ब्याज में मिल जाती है। यही हाल स्वरोजगार योजनाओं का भी समाज में देखने मिल जाता है।बेबस युवाओं की बेरोजगारी को लालच देकर उनके वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिये इस तरह के स्टंट को हर युवा बखूबी समझता है।वो जानता है कि स्टार्ट अप तो वो करेंगें परन्तु स्टैंड अप सरकार हो जायेगी।
      इन सबके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है स्टार्ट अप-स्टैंड अप योजना के खाके में युवाओं को लाभ अवश्य मिल सकता था परन्तु स्वरोजगार और उद्यमिता के लिये आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण,व्यावसायिक मार्ग दर्शन और आर्थिक मदद के लिये क्रमानुसार बैंकरों और स्थानीय स्तर पर सुपीरियर एथार्टी की कार्ययोजना का कोई जिक्र नहीं मिलता है। निम्न वर्गीय ,मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यमवर्गीय युवाओं को इस तरह का कैरियर गत संस्कार नहीं दिया जाता वो साहस करके सरकार की योजनाओं के पीछे भाग कर अपने स्वरोजगार के अवसर को छीन सके।वह शासकीय कार्यालयों,प्रशिक्षण संस्थानों,बैंकरों की सेवा करके मेवा प्राप्त कर सकें। इसके पूर्व में भी सरकार के द्वारा उद्यमिता को विकासगति प्रदान करने के लिये मेड इन इंडिया और श्रमेव जयते जैसी योजनायें चलाई गई परन्तु परिणाम  युवाओं की तरफ से संतोष जनक रूप से प्राप्त नहीं हो सके। स्वरोजगार की योजनाओं  का सच यह है कि यदि सब्सिडी समाप्त कर दी गई तो युवा अपने मरते दम तक सरकारी कर्ज चुका नहीं पाता है। इस प्रकार की योजनायें लक्ष्मी युवा पुत्रों के लिये बहुत ही ज्यादा लाभकारी सिद्ध होगी जिसके दम पर वो अपने मजबूत आर्थिक रीड की हड्डी के सहयोग से सरकार से इस योजना के सहारे लाभ लेंगें उद्योग शुरू करेंगें और घाटा दिखाकर  आगामी तीसरे साल में स्वरोजगार बंद करके दूसरा रास्ता अपना लेंगें। क्योंकि हमने अपने युवाओं को नौकरी में चयन के लिये मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया है। हमें उन्हें कांप्टीटिव क्लासेस का नशेडी बना दिया है। हम अभिभावक अपने बेटे को अच्छे पैकेज की नौकरी में देखना चाहता है ना कि अपने रोजगार के लिये शासन के हर दफ्तर के चक्कर लगाते और ऐडियां घिसते देखना चाहता है। सरकारी योजनायें जब तक गीली मिट्टी जैसे हरवर्ग के युवाओं के अनुकूल नहीं बनेंगी तब तक इसका लाभ लक्ष्मी पुत्रों के बैंक खातों को ही प्राप्त होता रहेगा।
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७ 


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