बुधवार, 6 अप्रैल 2016

शराबबंदी की राजनैतिक मंदी

शराबबंदी की राजनैतिक मंदी
कुछ दिन पूर्व बिहार सरकार ने शराब बंदी का ऐलान कर,शाबासी का तमगा अपने सुपुर्द कर लिया. शराब को लेकर राजनैतिक पहल पहली बार देश में इसके पहले देखने को नहीं मिली. इसके पूर्व भी शराब को बंद करने का ऐलान कई राज्यों की सरकारों ने किया और अंततः उन्हें उस फैसले पर पछतावा करना पडा या फिर वो सरकार चलाने लायक नहीं दो बारा खडे हो पाये. जब मेरे कानों तक यह खबर लगी तो मुझे बहुत पुराना एक गाना याद आ गया. सब मिला के पीते हैं जवानी शराब में, हम मिला के पी गये जवानी शराब में. थोडी देर के लिये मै सोचता रहा कि आखिरकार शराब बंदी का नियम कायद बनाकर सरकार बिहार में कौन सा सामाजिक कार्य करने की पहल कर रही है. सरकार चाह क्या रही है. क्या दूर दृष्टि से सरकार इसी बहाने कोई वोट बैंक बनाने के पक्ष में सोच रही है. सरकार को शराब बंदी से क्या लाभ होने वाला है. क्या सरकार इससे अपने आर्थिक पहलू में कमजोर तो नहीं हो जायेगी. गाहे बगाहे मुझे यह भी याद आया कि यदि शराब बंदी हो जायेगी. आबकारी वालों की ड्यूटी सरकार जनगणना में लगायेगी. या फिर और कुछ बेगारी करवाने का काम करवायेगी. वैसे सरकारे अपने वोट बैंको ले लिये लम्पटो के फायदे की बात तो कर ही जाती है. परन्तु इस बार तो पांसा उल्टा ही पड गया. इस प्रकार की छद्म क्रांति से जनता का भला तो नहीं हो सकता है हो सकता है कि सरकार का भला हो जाये. या जनता देशी की जगह अन्य प्रकार की वस्तुओं से नशा करना जारी रखे.
      इस बार पाबंदी भी लगाई गई तो देशी शराब में. ऐसा लगा कि जैसे सरकार को लग रहा है कि देशी में लोगों को ज्यादा नशा होता है और सस्ती भी मिलती है. इस लिये देशी ठेकों के पर कतर दिये गये अब अंगूरी और गुलाबी पानी का मजा आम जनता नहीं ले पायेगी. क्या सरकार को नहीं लगता कि अंग्रेजी शराब का सेवन हानिकारक है. क्या वह स्वास्थ्य बनाने के लिये पिलाना चाहिये. सरकार यह तथ्य दे सकती है कि इसी लिये तो हम सेना में शराब को नियमित किये हुये है. परन्तु देखा जाये तो शराब का सेवन करने वाला अधिक्तर तबका आज के समय में अंग्रेजी का सेवन खूब करता है. देशी तो आज कर तज्य किस्म के शराबी और बेवडे सेवन करते हैं. शराब बंदी का विधेयक पढने और सुनने से ऐसा महसूस होता है कि सरकार अपनी आमदनी वाली अंग्रेजी शराब को ही बेचने का नया रास्ता निकालने का मजेदार काम किया. जब देशी बंद हो जायेगी तो आम या खास कोई भी हो अंग्रेजी को पीकर अपनी प्यास बुझायेगा. सरकार भले ही भोली भाली जनता को सदाचार का पाठ पढा रही हो. परन्तु शराबबंदी के रास्ते उसने अपना आबकारी का रेव्यन्यू प्रतिशत अप्रत्यक्ष रूप से बढा लिया है. संसद में शराब को ना छूने की कसम खाने वाले अधिक्तर लोग चोरी चोरी चुपके चुपके शराब को गटकने की क्रिया तो करते ही हैं, राजनेता वो हाथी है जिसके दिखाने के दांत और खाने के दांत और होते हैं. शराब बंदी के पीछे सरकार एक कारण बताये कि वो क्या चाहती है. क्या वो नशाखोरी कम करना चाहती है. क्या जनता को शराब से मुक्त करा कर अपने काम की वाहवाही लेना चाहती है या कोई इतर वजह. नशे की प्रवृत्ति से जनता को बचाने का उद्देश्य के अंतर्गत यदि यह काम किया जा रहा है तो. गुटखा, तम्बाखू,सिगरेट, के साथ साथ और भी ज्यादा नशीली दवाये, ड्र्ग्स,गांजा,अफीम,हीरोइन, को क्यों खुले आम या चोरी छिपे व्यापार करवाया जाता है. क्या ये व्यापारी चुनावों के समय पर ज्यादा सक्रिय नहीं होते हैं. क्या इनका सरकार बनवाने और वोट बैंक को बढवाने के लिये राजनेता बिहार उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों के चुनावों में असंवैधानिक तरीके से उपयोग नहीं करते हैं. तो फिर दिखावटी मुखौटे लगाने की क्या आवश्यकता है. बिहार के पूर्व भी जिन राज्यों में इस तरह के ढकोसलों की पहल हुई उन्हें उन्ही के विरोधी दलों ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव के जरिये कुर्सी से नीचे उतार दिया.
      सरकार चाहे किसी भी राज्य की हो,वो चाह कर भी शराब और साथ ही अन्य नशे की सामग्रियों पर रोक नहीं लगा सकती है. इसके पीछे छिपा प्रमुख कारण है कि चुनावों के समय,उत्सवों के समय हर राजनेता का छद्म हथियार यही रहा है. यदि वाकयै सरकारें नशायुक्त सामग्रियों में रोक लगाना चाहती हैं तो उन्हें शराब के साथ हर उस वस्तु पर रोक लगानी होगी जिसकी वजह से समाज मे नशा की गिरफ्त में लोग आजाते हैं. और तो और युवा पीढी शराब के साथ कई ऐसे माध्यम है जिसमें वो नशॆ की गिरफ्त में हैं. इन सब नशीली वस्तुओं और दवाओं की बिक्री बस में रोक नहीं लगे बल्कि इनके उत्पादन में भी रोक लगाने से ही जनता का भला होगा. हां यह तो तय है कि इससे अप्रत्यक्ष समर्थन जो इस व्यवसाय से जुडे उद्योगपति हैं, खत्म होने लगेगा, आबकारी विभाग की आवश्यकता में कमी आजायेगी, और तो और बियर बार, शराब के ठेके से होने वाली आमदनी पर भी असर होगा ही. आधी अधूरी शराबबंदी से सिर्फ राजनैतिक स्टंट ही बन सकता है. मूल उद्देश्य तो कहीं ना कहीं भटक जायेगा. यह तो तय है कि नशॆ को रोकने के लिये कानून के साथ साथ खुद इंशान की इच्छाशक्ति ही प्रमुख भूमिका अदा करती है.उसके बिना कोई दबाव इस आदत को नहीं छुडा सकता. सरकार को चाहिये कि नशामुक्ति का अभियान शराबबंदी के साथ साथ व्यापक स्तर पर चलाये ताकि इससे लोग लाभान्वित हो सकें. देशी और विदेशी शराब के बीच फर्क करके और पक्षपात करके सरकार सिर्फ अपना रेवेन्यू बढाने, अंग्रेजी के प्रति लोगों को मजबूर करने की पहल कर रही है. इससे हर राज्य के प्रशासन को बचना चाहिये. यदि यह जन आंदोलन बने जिसमें शराब के साथ साथ हर नशे के वस्तुओं पर रोक लगे तो शायद इसकी सार्थकता ज्यादा मजबूत होगी.
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

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