बुधवार, 6 अप्रैल 2016

आपके बीच "आप" के एक साल

आपके बीच "आप" के एक साल
देश में यूं तो बहुत से राज्य है।जिनकी राज्य सरकारे साल दर साल अपना कार्यकाल पूरा कर लेती हैं परन्तु विवादास्पद स्थिति पैदा नहीं होती है।परन्तु नई दिल्ली ऐसा राज्य है जिसकी सत्ता सही मायनों में उलट फेर की सुनामी को भोग चुकी है। शीला दीक्षित से जब कडी अरविंद केजरीवाल तक आती है तो ऐसा महसूस होने लगता है कि वो कहां दो साल पहले एक आंदोलन से उपजे और आज इतने कम समय में मुख्यमंत्री की कुर्सी में काबिज हो गये। महत्वाकांक्षाओं के धनी पूत ने लोकपाल की नाव में बैठ कर राजनैतिक सफर शुरू किया और पहले चुनाव में दिल्ली के उनचास दिनों के अनुभव और मिले ज्ञान के दम पर इस बार एक साल तक का सफर गिरते पडते पूरा करने में आप को सफलता दिला दी। आम आदमी पार्टी के नाम से पैदा हुआ राजनैतिक दल आज दिल्ली की कमान को सम्हाल रहा है। ऐसा नहीं है कि आम लोगों के मुख्य मंत्री नहीं हुए पर दिल्ली से दूरी का खामियाजा उनकी प्रसिद्धि की राह में हल्का फुल्का बाधक बना। जिसमें पर्रिकर,माणिक जैसे धुरंधर इसके पर्याय रहे हैं।
      एक विमान यात्रा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई से हुई वर्तमान रक्षा मंत्री श्री पर्रिकर की अनौपचारिक मुलाकात का उल्लेख करना यहां जरूरी हो जाता है जब उन्होने सरदेसाई जी से हंसते हंसते कहा कि आप सबको लगता है कि अरविंद केजरीवाल ही आम आदमी के मुख्यमंत्री हैं।हम जैसे लोग भी सादगी भरा जीवन जीते हैं लेकिन दिल्ली से गोवा की दूरी इतनी है कि आपकी नजर हम तक जाती ही नहीं है। यह बात सच है मित्रों कि केजरीवाल जी की पडोसी है मीडिया इसलिये कभी इसका लाभ उन्हे मिला तो कभी हानि भी हुई। कभी मेनीपुलेशन से उनको प्रसिद्धि भी मिली और कभी बदनामी भी उनके दामन को दागदार बना गई। कभी मफलर मैन ,कभी चेंज एजेंट,कभी मिस्टर जल्दबाज के नाम से लतीफों में छाये रहने वाले मिस्टर सीएम अपने अजीबो गरीब फैसलों के चलते चर्चा में बने रहे।
      चेंज एजेंट के रूप में दिल्ली की जनता ने दो बार उन्हे सत्ता सुख देने का कार्य किया परन्तु पहली बार उन्होने मिस्टर जल्दबाज बनकर दिल्ली में काम करने की बजाय लोकसभा चुनाव में जीतने के शेखचिल्ली वाले सपने के पीछे भागने की पगलई करना शुरू कर दिया। अब उनका ध्यान पंजाब के विधान सभा चुनावों में फिर से भौंरे की तरफ मंडराने में लग गया है। एक स्टार्ट अप दल को इस तरह के काम करने से परहेज तो करना ही चाहिये। केंद्र और उनका कुरुक्षेत्र तो ऐसा रहा जैसे जन्म जन्मांतर से वो दोनो इसी लिये मिले हों। कभी उन्होने उपराज्यपाल को अपशब्द कहें कभी प्रधानमंत्री को मनोरोगी कहकर जनता से मजा लिये। अब सोचने वाली बात यह है कि इस तरह के विवाद  तालाब में रहकर मगरमच्छ से बैर वाली परिस्थिति को जन्म देती रही।आज भी एक सवाल हर व्यक्ति के मन में उठ सकता है कि क्या केजरीवाल राजनैतिक विमर्श को सार्थक ढंग से अपने तरफ मोड सके या वो अपना साम्राज्य खडा करने में सत्ता के भूखे एक और नेता बन गये।आज भी उन्हे बढती अराजकता का जोखिम केजरीवाल सरकार के सामने मुंह बाये खडा हुआ है। शुरुआत में मुफ्त बिजली और पानी से प्रारंभ हुये राजनैतिक सफर एमसीडी के साथ अन्य शासकीय कर्मचारियों की हडताल तक का सफर तय करना पडा और सडक में सियासत के कूडे की बू भी आती नजर आयी।ऐसा महसूस हुआ कि दिल्ली की सडकों में सियासत का कूडा,दलदल में खिले कमल के सामने झाडू बिखर सी गई। झाडू की सींक को दोबारा एक जुट होकर काम करने की आवश्यकता है।उन्हें यह भी समझने की आवश्यता है इले मिले साथी होते है और अकेला बटा चोर होता है।
      केजरीवाल जी के आड ईवन फार्मूल्या के उद्देश्य वाकयै जनमानस के समझ में आया।उन्होने प्रदूषण को मुख्य एजेंडा बनाकर  महानगरों की विवशता को जाने अनजाने जनता के सामने रखने का सकारात्मक कदम उठाया परन्तु लोक परिवहन के कमजोर ढांचे के बदौलत उसे शार्ट कट के नाम से बदनाम होना पडा। ब्यूरेकैट्स के मुद्दे की बात करें या महानगरीय पुलिस की कार्यप्रणाली की बात करें कहीं ना कहीं विवाद आप की सरकार के साथ बना ही रहा। योगेंद्र यादव,प्रशांत भूषण और जितेंद्र तोमर को बाहर का रास्ता दिखाना मुझे यह सोचने में मजबूर कर दिया कि आप अब  उच्च नैतिकता की मुद्रा को खोखला साबित करती है। रामलीला मैदान की घटना ने इस सरकार को सत्ता विरोधी स्ट्रीटफाइटर और तथाकथित जेहादी बना दिया जिसको संतुलन बनाना नहीं आता बल्कि टकराव बढाना आता है। सत्ता की अन्य राज्यों के लिये उपजी भूंख को दबाकर दिल्ली के लिये काम करके दिखाना इस सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में पहले साल का रिटर्न गिफ्ट मिल चुका है।आने वाले समय में केजरीवाल सरकार के लिये गली क्रिकेट वाली सोच को पीछे छोड कर इटरनेशनल क्रिकेट के टेस्ट मैच वाली रणनीतिकार के रूप बनकर काम करने की चुनौती होगी। अपने ऊपर लगे धरना पार्टी के मोनो को हटाकर दोबारा  चेंज एजेंट के तमगे को दोबारा पाना होगा। पहली वर्षगांठ में विज्ञापनों की बौछार को रोककर खास आदमी की पार्टी बनने से रोकना भी इस सरकार आगामी चुनौती होगी।


कोई टिप्पणी नहीं: