रविवार, 29 मई 2016

जनता पडी घूरे, हुये दो साल पूरे

जनता पडी घूरे, हुये दो साल पूरे
दो साल पूरे होने पर मोदी जी ने एक गीत ट्वीटर में मेरा देश बदल रहा है,मेरा देश बढ रहा है... लगातार अपडेट हो रहा है. जिसमें सरकार के दो साल पूरे होने पर जितनी भी योजनायें चलाई गई हैं उसको गुनगुनाया जा रहा है. अब सरकार के नुमांइदें जनता को सरकार की उपलब्धियां गिनवा रहे हैं. वो भूल चुके हैं कि सरकार को संसद तक पहुंचाने में जितना हाथ पूंजीपतियों का रहा है उतना ही हाथ तथाकथित समझदार जनता का भी रहा है.दो साल पहले आकर्षक नारों,यूपीए सरकार की अकर्मण्यता और एक बुनियादी परिवर्तन की खातिर भाजपा को केंद्र की सत्ता सौंपी गई.यह उम्मीद की गई कि जनता का भविष्य सुनहरे आखरों से यह सरकार लिख देगी. परन्तु जब एक साल पूरे हुये तो यह कहा गया कि अभी तो शुरुआत है आगे आने वाले समय में अच्छे दिन आने वाले है. हर हर मोदी घर घर मोदी, अच्छे दिन आने वाले है, जैसे मोहित करने वाले नारों ने वाकयै देश की जनता को खूब मोहित किया परन्तु मोहभंग होने में भी यही दो सालों का वक्त लगा. पहले साल के पहले महीने से ही इस टाइटेनिक में लगातार छॆद करने वाले लोग शामिल होते चले गये. टाइटेनिक की भव्यता को समय दर समय डीढ लगती चली गई. विदेश भ्रमणॊं में हमारे प्रधानमंत्री जी ने तो रिकार्ड ही टॊड दिया. पूरे विश्व का लगभग ७० प्रतिशत का आंकडा उन्होने महज दो वर्षों में ही पूरा कर लिया. ऐसा लगा जैसे मंत्रिमंडल में विदेश भ्रमण के लिये अब विदेश मंत्रियों की टॊली की कोई जरूरत नहीं रही.या फिर उनके मंत्री अब उस लायक नहीं बचे. विदेश यात्राओं में जितने वादे किये गये वो सब फाइलो तक ही सीमित रहे.चीन जैसे दुश्मन को दोस्त बनाने की पहल नाकामयाब रही और नेपाल जैसे हिंदू राष्ट्र वाले दोस्त को दुश्मन बनाने के लिये भी यही यात्रायें दोषी रही.अन्य देशों में विदेशॊं में बसे भारतीयों के बीच मोदी किसी राकस्टार से कम नहीं नजर आये,उन्होने कई देशों में गीता का वितरण किया किन्तु गीता के बहाने विपक्ष की खिंचाई करना खटास जरूर पैदा कर दिया
      सरकार की आदत रही कि सभी अच्छी उपलब्धियों को उन्होने अपने नाम करने की पुरजोर कोशिश की और गल्तियों की तुलना साठ साल पुरानी सरकारों के कामों से करके परदा डाल दिया.सरकार यह भूल गई कि पूर्ववत सरकारों में उनकी भाजपा की भी सरकार का कार्यकाल शामिल रहा.खैर मामला यह रहा कि इस भव्य सरकार के टाइटेनिक में छेद करने वालों में मंत्रिमंडल के मंत्रीगण वैचारिक ड्रिल मशीन से ऐसे छेद किये की विरोध का जल भरता चला गया.हिंदूवादी विचार के धने साधू संतो के चोले वाले मंत्रियों ने सरकार की तरफ से अल्पसंख्यकों,और राष्ट्रवाद को लेकर इतना हंगामा किया कि असहिष्णुता,बीफ के चलते दादरी और धर्म के चलते बाबरी, बेकाबू नजर आई. सरकार की तरफ से इस मामले में कोई भी स्थित बयान नहीं आया.अफसोस तो इस बात का रहा कि लोगों ने गाय और भैस के मांस के अंतर को भी खत्म कर दिया. मोदी जी के गुजरात से पैदा हुये पाटीदार आंदोलन से लेकर जाट आंदोलनों की आग पूरे देश को आरक्षण की लपटों से जला कर राख कर दिया.सरकार के पास तब भी आश्वासनों की मिठाई के अलावा कुछ भी नहीं था इसलिये यह मामला आज तक कोर्ट में लंबित है. ये मामले अभी शांत नहीं हुये थे कि पानसरे दाभोलकर और कलबुर्गी जैसे वामपंथी विचारकों की हत्या ने सरकार की छवि में दो बारा धावा बोला. कमलकारों और कलाकारों ने इस विरोध के चलते पुरुस्कार वापसी का रास्ता अख्तियार कर यह शाबित कर दिया कि सरकार बैकफुट में ही है.रोहित वेमुला की हत्या,जे एन यू विवाद, देश भक्ति,वंदेमातरम ना कहने वालों को देश निकाला,योग दिवस में संस्कृत के मंत्रों के उच्चारण की प्रतिबद्धता,जैसे मुद्दे भी सरकार को विवादों के केंद्र में रखने के लिये इन दो वर्षों के लिये काफी रहे. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों पर केंद्र के अनापेक्षित वर्चश्व ने, न्यायपालिका के प्रभावी कांग्रेस मुक्त भारत जैसे नारों ने सरकार के संकीर्ण वैचारिक पक्ष को सामने रखा.ऐसा लगा जैसे सरकार को पांच साल पूरे करने की फिक्र कम और कांग्रेस को सफायाकरने की फिक्र ज्यादा सता रही है.योजनाओं के हाल यह है कि विज्ञापनों में गैस सब्सिडी छोडने की बात तो आम जन से की जाती है परन्तु विधायकों,सांसदों और मंत्रियों से यह अपील कभी नहीं की गई,पेंशन योजनाओं के बीमा योजनाओं के नाम पर कुछ रुपये जमा करने के लिये अप्रैल से अबतक मैसेज मोबाइल्स में भेजे जा रहे हैं किंतु परिपक्वता संबंधी कोई जानकारी बैंकों के पास नहीं है. जनता से मन की बात तो की जाती है परन्तु जनता के मन का काम नहीं किया जाता है.जनता को जनधन योजना के खातों के लिये आंदोलित तो किया जाता है परन्तु उसके क्रियान्वयन के लिये जनता को दर दर भटकने के लिये छॊड दिया जाता है.
      सरकार ने अर्थव्यवस्था को अपनी मुट्टी से खुद सत्यानाश कर दिया. बढती मंहगाई,अडानी और अंबानी के भंडारों में बढत, आम जनता के करों और ब्याज दरों में बढॊत्तरी,रुपये की कीमत में गिरावट,सकल घरेलू उत्पाद की दर में उठापटक, माल्या की सरकार को मुंह चिढाती फरारी, जीएसटी बिल और भूमि अधिग्रहण बिल को ठंडे बस्ते में डालना,रामदेव की स्वदेशी सम्राज्य को सरकारी हरी झंडी,रविशंकर महराज के आर्ट आफ लिविंग के सम्राज्य को बढावा,व्यावसायिक घरानों को छ करोड रुपये तक की कर और अन्य मामलों मे छूट,रिजर्व बैंक पर द्बाव बनाना कि वो अन्य बैंकों की ब्याज दरें कम करे,आदि मामले सरकार की कमजोर आर्थिक नीतियों को हमारे सामने रखती हैं. योजना आयोग को नया नामांकरण देना, भाजपा समर्थित लोगों को देश के बडॆ बडे पदों में बिठाना,प्रोटोकाल टॊड कर पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के जन्मदिन में शामिल होना,एयरबेस हमले के बाद पाकिस्तान के दोगले रवैये में चुप रहना,चीन के दोगले पन को मात्र कुछ बयान बाजी तक सीमित कर देना, सरकार के कमजोर पक्ष को उजागर करता है. महाराष्ट्र मे शिवसेना,जम्मू में पीडीपी,और असम में ऐसा लगा जैसे भाजपा क्षेत्रीय दलों के सामने कुर्सी की खातिर घिघियाती रही. और अपने वैचारिक पक्ष को गिरवी रखकर सत्ता में काबिज होगई.
      अब सरकार दो वर्षों के पूरे होने पर बडा उत्सव इंडियागेट में करने जा रही है. सरकार का २०१९ तक की नीतियों में अस्पष्ट होना, और २०२०-२२ के सब्जबागों को बुनना कतई सही नहीं है.सरकार दो सालों में सिर्फ योजनाओं के इवेंट्स आयोजित करती रही,श्र्मेव जयते,स्टैंड अप स्टार्ट अप,डिजिटल इंडिया, जैसी कई योजनाएं जनता के सामने रखी परन्तु जनता आज भी राख के ढेर (घूर) में पडी हुई है. सरकार का बार बार कांग्रेस की सरकारों से तुलना करने पर ऐसा महसूस होता है कि यह इंतजार कर रही है कि जिस तरह कांग्रेस का हाल हुआ है वैसा ही जनता इसका भी करे.सरकार को यह नहीं भूलना चाहिये कि यह वह देश है जहां प्याज की कीमतों से एक ओर सरकार गिरती है तो गरीबी हटाओ के नारे से सरकार बनती भी है. सरकार के पास अभी भी तीन साल है.सरकार को यह नहीं भूलना चाहिये कि शेरों की कमान यदि किसी गीदड के हाथ में हो तो युद्ध में शेर भी गीदड की मौत मारे जाते हैं. और यदि गीदडॊं की कमान शॆर के हाथ में हो तो युद्ध में गीदड भी शेर की तरह लडते हैं. सरकार को अति उत्साहवादिता से बचकर,जमीनी काम करने की आवश्यकता है. भारत में हाईटेक सरकारें जल्दी ध्वस्त होती हैं।
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

रविवार, 22 मई 2016

कमलनाल में समाता कांग्रेसी पंजा

कमलनाल में समाता कांग्रेसी पंजा
अभी आये परिणामों से यह तो स्पष्ट हो गया कि राजनीति में कांग्रेसी पंजा अपनी चारो अंगुलियों की ताकत खो चुका है,और अंगूठा भी कांग्रेस को ठेंगा दिखा रहा है. बिहार में कुछ सीटों से खुश होने वाली कांग्रेस ने जिस प्रकार महागठबंधन का साथ दिया. अब इन राज्यों के चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त होता जा रहा है.जनता ने अपने मताधिकार से यह बता दिया कि कांग्रेस के किसी भी प्रतिनिधि को कोई भी बहुमत नहीं देना चाहता है.सवाल यह नहीं है कि कि कांग्रेस के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. सवाल यह है कि कांग्रेस अपनी वर्तमान स्थिति के लिये किसे दोषी मानती है और इस प्रकार के राजनैतिक स्तर के बाद उसमें सुधार कैसे आ सकता है. इस बार भी पिछली बार की भांति कांग्रेस ने अपनी दुर्गति के लिये खुद को जिम्मेवार नहीं मानती है. वो यह स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है कि जनता उनको नापसंद करने लगी है. कांग्रेस की आलाकमान तक इस बात से कोई सरोकार नहीं रखती कि चुनावों की हार के बाद उन्हें सबक सीखते हुये कुछ बुनियादी फैसले बिना व्यक्तिगत स्वार्थों को किनारे करके लेना पडेगा. हमेशा से देखता आ रहा हूं कि जब भी हार होती है तो कांग्रेस में राहुल गांधी को कमान सौंपने की बात पुरजोर पकडती है. जितनी तेजी से यह बात उठती है उसके कुछ सप्ताह के बाद वर्तमान अध्यक्ष पे पुनः विश्वास दिखाने की बात परिणाम निकाल कर खत्म भी हो जाती है. क्या है यह संगठनात्मक द्वंद और यह भी इस कांग्रेसी हार के लिये कम जिम्मेदार नहीं है.
कर्नाटक,गोवा,उत्तर प्रदेश और कुछ दक्षिणी राज्यों सहित कांग्रेस के पास कुछ नहीं बचा है. भाजपा तो पूरे देश की राजनीति में अपने रंग से रंगीन बना दिया है.कांग्रेस को यह स्वीकार करना होगा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी पार्टी का आधार उसको प्राप्त होने वाले मत हैं.भाजपा के खाते में चुनाव जीतने का प्रतिशत जितना बढा है उतना ही तेजी से कांग्रेस के जनाधान घटा है. कांग्रेस का आधार पानी के जल स्तर की तरह गिर रहा है. अब यह देखना है कि कौन सी बारिस इस जल स्तर को बढा कर कांग्रेस को अपने पायदान में दोबारा खडा कर देती है.ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह बयान देना कि भाजपा कांग्रेस की साख गिराने का झूठा प्रचार कर रही है, कितना औचित्यहीन है.यह तो सिर्फ एक बयान है ऐसे बयानों के चलते काग्रेस की साख में गिरावट आयी है. उन्हें किसी मंथन की जरूरत महसूस हो रही है तो अपने संगठन से वो गुजारिश करें परन्तु मंथन से अमृत निकले यह आवश्यक है.सिर्फ विष ही विष यदि निकलता है तो कोई औचित्य नहीं है.जिस समय सोनिया गांधी को राजनीति में अपना भाग्य आजमाना था उस समय तो वो नेपथ्य में खडी होकर तमाशा देखने वाली दर्शक बनी रहीं. कठपुतली चलाने वाली बन कर कठपुतली का खेल दिखाने में व्यस्त थी. अब जब उनकी उम्र हो चुकी है तब वो अपने उत्तराधिकारी राहुल गांधी को कांग्रेस की गद्दी सौंपने के सपने देखने में लगी हुई हैं. दिग्विजय सिंह जी द्वारा बार बार युवा नेतृत्व की शिफारिस करने को लेकर मै भी सहमत हूं परन्तु युवाओं की शक्ति को किसी एक वैचारिक दृढ नेतृत्व की आवश्यकता है.मेरे बहुत से मित्र कांग्रेस में हैं और युवा सोच के धनी भी हैं किंतु उनकी उपस्थिति सिर्फ कार्यकर्ता के रूप तक ही सीमित रही है. निर्णायक की भूमिका के रूप में गांधी परिवार पर पूरी की पूरी कांग्रेस विरादरी केंद्रित हो चुकी है.
राहुल गांधी के नेतृत्व में विश्वास रखना कोई गलत नहीं है परन्तु जिस तरह से अन्य राजनैतिक पार्टियां अपना वर्चश्व बढा रही हैं उसके चलते अब राहुल गांधी के अलावा दूसरा भामाशाह खोजने की आवश्यकता है. पूर्वी इलाकों और दक्षिणी इलाकों की पडताल करने पर पता चलेगा कि कांग्रेस में राजनैतिक घाघ आज भी मौजूद हैं.सिर्फ दृष्टि और चश्मा बदलने की देर है.कांग्रेस के पास प्रियंका गांधी नाम का एक अस्त्र भी मौजूद है जो उप्र की राजनीति में खल बली मचा सकती है.दूसरे रणनीतिकारों के दम पर चुनाव जीतने के सब्जबाग देखना छॊडकर खुद के रणनीतिकारों की सुनने की कोशिश कांग्रेस को करना चाहिये. आज आवश्यकता है कि काग्रेस को जय श्री राम कहने के साथ साथ हे राम कहने की क्योंकि बापू गांधी ने भी जीवन भर हे राम के नाम को जप कर स्वतंत्रता संग्राम और  भारतीय राजनीति की नींव रखी थी जिसमें नेहरू जैसे तथाकथित कांग्रेसी चाणक्य अपनी सत्ता चलाते रहे.कांग्रेस को अपने अंदर ही एक नेहरू खोजने की पहल करनी होगी. शायद यही सबसे बडा मंथन अमृत होगा.आने वाले विधानसभा चुनावों में दूसरों पर कींचड उछालने की बजाय खुद के लिवाज में लगे कींचड को धोने से शायद बची कुची इज्जत बची रह जाये.समय सबका बदलता है अब देखना यह है कि क्या समय रहते कांग्रेस का समय बदलेगा कि नहीं.अपने अपने स्वार्थी प्रवृत्ति के विचारों को त्यागकर संगढन का भला यदि आलाकमान सोचे तो शायद आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होने का सम्मान बचा ले जाये.
अनिल अयान सतना
९४७९४११४०७

शनिवार, 7 मई 2016

दलाली में जुगाली करती सियासत

दलाली में जुगाली करती सियासत
कांग्रेस का लोकतंत्र बचाओं का स्टंट उस समय पर निकल कर सामने आ रहा है जब इटली की अदालत ने गांधी परिवार को अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर की खरीदी में दलाली का मामला हावी हो चुका है. यूपीए सरकार के समय पर इस डील के अब पर्दाफाश होने से एक लाभ तो भाजपा को मिल रहा है कि बिना कुछ किये कांगेस अपने में उलझ चुकी है. अभी संसद के सत्र में इसके चलते कई बार बैठकें बाधित भी हुई.रक्षामंत्री बार बार इस बात का दिलाशा देते नजर आते हैं कि इस सौदे में हुई कांगेसी दलाली की गडबडी की जांच तेजी से कराई जा रही है. किंतु इस जांच की अंतिम रिपोर्ट के बारे में वो मौन धारण किये हुये हैं. इधर ज्योतिरादित्य सिंधिया जी का सोनिया गांधी को शेरनी कहता और राहुल गांधी का यह बयान देना कि जब भी उन्हे निशाना बनाया जाता है तो उन्हे खुशी होती है सबसे बडे बचकानेपन का जीता जागता उदाहरण है. इस सब घटनाक्रम को देखकर महसूस होता है कि यदि राहुल गांधी को इतनी ज्यादा खुशी है तो भिर वो लोकतंत्र बचाओ की रैली में शामिल होकर कपास औटने का काम कर रहे थे. कांगेसी नेता एक तरफ तो जनता की सहानुभूति लेने की सोच रहे हैं और दूसरी तरफ लोकतंत्र बचाओ के नाम पर अपने ऊपर पडे इटालियन सरकार के छीटों को साफ करने का समय भी खोज रहे है।
      अफसोस तो तब होता है जब भाजपा और कांग्रेस के अलावा भी जनतादल के नेता त्यागी जी और सपा के नेता रापगोपाल यादव जैसे राजनीतिज्ञ भी इस मसले को कोई बहुत बडा मसला स्वीकार करने को तैयार नहीं है उनके बयान तो भारत की व्यवस्था को कांग्रेस के हांथों में कसने की पैरवी करते अधिक नजर आते हैं.हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि बोफोर्स मामले का अंततः परिणाम बहुत सुखद नहीं रहा. इतिहास में झांकें तो समझ में आता है कि राजीव गांधी के सगे संबंधियों और करीबियों की तरफ जांच कमेटी की सुई घूमने के बावजूद भी उन्हें बोफोर्स घोटाले में सजा नहीं मिल सकी थी. सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि अगस्ता का हाल भी बोफोर्स की तरह ना हो जाये. यदि हम दलगत राजनीति को कुछपल के लिये एक किनारे रख दें तो हमें पता चलेगा कि इस दलाली में ए के एन्थोनी,मनमोहन सिंह सहित नामी गिरामी नाम साथ ही साथ सेना के उच्चपदाधिकारी भी सिकंजे में फंस चुके हैं. जिसकी पडताल भारत की जांच एजेंसियों को करनी हैं. दोषियों की शक्ल और नाम हमारे सामने है परन्तु देखना यह है कि कैसे यह सजा प्राप्त कर पाते हैं. आज के समय पर मीडिया की पहुंच जितनी ज्यादा तीव्र हुई है और दखल भी राजनीति में बढा है उससे कहीं ना कहीं यह मुद्दा और सुर्खियों में बने रहने की संभावना अधिक है. भारत की राजनीति में यह देखा गया कि. भारत की कोर्ट में मुकदमें चलते रहते हैं और राजनीतिज्ञ अपनी कुर्सी पाने के लिये दोबारा चुनाव लडता है और सत्ता में काबिज हो जाता है. अगस्ता वेस्टलैंड का मामला जितना कांग्रेस सरकार को घेरने का काम करता है उतना ही भाजपा की अग्नि परीक्षा के रूप में इस शासन काल में आया है. यह यदि कांग्रेस के कैरियर को डुबो सकता है तो भाजपा की कुर्सी को भी खतरे में डाल सकता है. हमें यह नहीं भूलना होगा कि यूपीए शासनकाल में यह मामला कांग्रेस के दबाव के चलते सीबीआई ने लगभग एक साल तक अपने पास दबाकर रखा उसके बाद प्रवर्तन निदेशालय को सुपुर्द किया. जांच एजेंसियों की संदिग्ध भूमिका, उनकी लचर व्यवस्था के साथ उन पर सत्तारूढ दल का अनावश्यक हस्ताक्षेप भी इस प्रकार की जांच प्रक्रियाओं की देरी का मुख्य कारण बनती हैं.
      इस बार पंद्रह दिन से ऊपर का समय गुजर चुका है.तस्वीर सरकार के सामने साफ हो चुकी है, परन्तु सरकार की तरफ से कोई ठोस और मजबूत कार्यवाही निकल कर जनता के सामने नहीं आ पाई है. सरकार की तरफ से सिर्फ छीछालेदर करने का काम किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि भाजपा भी इस मुद्दे को कुछ लंबा खींचने की फिराक में है ताकि उसका लाभ विधानसभा चुनावों में वो ले सके.भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह से विपरीत विचारधारा के राजनैतिक दल हैं भाजपा जब छोटी छोटी कांग्रेसी गल्तियों में मीनमेख निकालना और टांग खींचना नहीं छोडती तो फिर इस दलाली के मामले को इतनी आहिस्ता से क्यों धीमी गति से हैंडल किया जा रहा है.इसका कोई जवाब सरकार के पास नहीं है। यह जवाब ना होना भाजपा के लिये दलाली में जुगाली करने की तरह ही है. भाजपा मुद्दे को चब चबा कर कमजोर करने की जुगत में लगी है.जनता को यह गवारा नहीं है। जनता इस मामले में भोलेपन से नहीं समझना चाहती है.वो ना कांग्रेसी लोकतंत्र बचाओं की रैलियों से प्रभावित होने वाली है और ना ही काले धन को और अच्छे दिन के नाम पर ठगी को भूलने वाली है. यह मुद्दा रक्षा मंत्रालय,सरकार और काग्रेस सहित देश की आंतरिक व्यवस्था को ठेंगा दिखाता नजर आ रहा है
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७