रविवार, 22 मई 2016

कमलनाल में समाता कांग्रेसी पंजा

कमलनाल में समाता कांग्रेसी पंजा
अभी आये परिणामों से यह तो स्पष्ट हो गया कि राजनीति में कांग्रेसी पंजा अपनी चारो अंगुलियों की ताकत खो चुका है,और अंगूठा भी कांग्रेस को ठेंगा दिखा रहा है. बिहार में कुछ सीटों से खुश होने वाली कांग्रेस ने जिस प्रकार महागठबंधन का साथ दिया. अब इन राज्यों के चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त होता जा रहा है.जनता ने अपने मताधिकार से यह बता दिया कि कांग्रेस के किसी भी प्रतिनिधि को कोई भी बहुमत नहीं देना चाहता है.सवाल यह नहीं है कि कि कांग्रेस के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. सवाल यह है कि कांग्रेस अपनी वर्तमान स्थिति के लिये किसे दोषी मानती है और इस प्रकार के राजनैतिक स्तर के बाद उसमें सुधार कैसे आ सकता है. इस बार भी पिछली बार की भांति कांग्रेस ने अपनी दुर्गति के लिये खुद को जिम्मेवार नहीं मानती है. वो यह स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है कि जनता उनको नापसंद करने लगी है. कांग्रेस की आलाकमान तक इस बात से कोई सरोकार नहीं रखती कि चुनावों की हार के बाद उन्हें सबक सीखते हुये कुछ बुनियादी फैसले बिना व्यक्तिगत स्वार्थों को किनारे करके लेना पडेगा. हमेशा से देखता आ रहा हूं कि जब भी हार होती है तो कांग्रेस में राहुल गांधी को कमान सौंपने की बात पुरजोर पकडती है. जितनी तेजी से यह बात उठती है उसके कुछ सप्ताह के बाद वर्तमान अध्यक्ष पे पुनः विश्वास दिखाने की बात परिणाम निकाल कर खत्म भी हो जाती है. क्या है यह संगठनात्मक द्वंद और यह भी इस कांग्रेसी हार के लिये कम जिम्मेदार नहीं है.
कर्नाटक,गोवा,उत्तर प्रदेश और कुछ दक्षिणी राज्यों सहित कांग्रेस के पास कुछ नहीं बचा है. भाजपा तो पूरे देश की राजनीति में अपने रंग से रंगीन बना दिया है.कांग्रेस को यह स्वीकार करना होगा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी पार्टी का आधार उसको प्राप्त होने वाले मत हैं.भाजपा के खाते में चुनाव जीतने का प्रतिशत जितना बढा है उतना ही तेजी से कांग्रेस के जनाधान घटा है. कांग्रेस का आधार पानी के जल स्तर की तरह गिर रहा है. अब यह देखना है कि कौन सी बारिस इस जल स्तर को बढा कर कांग्रेस को अपने पायदान में दोबारा खडा कर देती है.ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह बयान देना कि भाजपा कांग्रेस की साख गिराने का झूठा प्रचार कर रही है, कितना औचित्यहीन है.यह तो सिर्फ एक बयान है ऐसे बयानों के चलते काग्रेस की साख में गिरावट आयी है. उन्हें किसी मंथन की जरूरत महसूस हो रही है तो अपने संगठन से वो गुजारिश करें परन्तु मंथन से अमृत निकले यह आवश्यक है.सिर्फ विष ही विष यदि निकलता है तो कोई औचित्य नहीं है.जिस समय सोनिया गांधी को राजनीति में अपना भाग्य आजमाना था उस समय तो वो नेपथ्य में खडी होकर तमाशा देखने वाली दर्शक बनी रहीं. कठपुतली चलाने वाली बन कर कठपुतली का खेल दिखाने में व्यस्त थी. अब जब उनकी उम्र हो चुकी है तब वो अपने उत्तराधिकारी राहुल गांधी को कांग्रेस की गद्दी सौंपने के सपने देखने में लगी हुई हैं. दिग्विजय सिंह जी द्वारा बार बार युवा नेतृत्व की शिफारिस करने को लेकर मै भी सहमत हूं परन्तु युवाओं की शक्ति को किसी एक वैचारिक दृढ नेतृत्व की आवश्यकता है.मेरे बहुत से मित्र कांग्रेस में हैं और युवा सोच के धनी भी हैं किंतु उनकी उपस्थिति सिर्फ कार्यकर्ता के रूप तक ही सीमित रही है. निर्णायक की भूमिका के रूप में गांधी परिवार पर पूरी की पूरी कांग्रेस विरादरी केंद्रित हो चुकी है.
राहुल गांधी के नेतृत्व में विश्वास रखना कोई गलत नहीं है परन्तु जिस तरह से अन्य राजनैतिक पार्टियां अपना वर्चश्व बढा रही हैं उसके चलते अब राहुल गांधी के अलावा दूसरा भामाशाह खोजने की आवश्यकता है. पूर्वी इलाकों और दक्षिणी इलाकों की पडताल करने पर पता चलेगा कि कांग्रेस में राजनैतिक घाघ आज भी मौजूद हैं.सिर्फ दृष्टि और चश्मा बदलने की देर है.कांग्रेस के पास प्रियंका गांधी नाम का एक अस्त्र भी मौजूद है जो उप्र की राजनीति में खल बली मचा सकती है.दूसरे रणनीतिकारों के दम पर चुनाव जीतने के सब्जबाग देखना छॊडकर खुद के रणनीतिकारों की सुनने की कोशिश कांग्रेस को करना चाहिये. आज आवश्यकता है कि काग्रेस को जय श्री राम कहने के साथ साथ हे राम कहने की क्योंकि बापू गांधी ने भी जीवन भर हे राम के नाम को जप कर स्वतंत्रता संग्राम और  भारतीय राजनीति की नींव रखी थी जिसमें नेहरू जैसे तथाकथित कांग्रेसी चाणक्य अपनी सत्ता चलाते रहे.कांग्रेस को अपने अंदर ही एक नेहरू खोजने की पहल करनी होगी. शायद यही सबसे बडा मंथन अमृत होगा.आने वाले विधानसभा चुनावों में दूसरों पर कींचड उछालने की बजाय खुद के लिवाज में लगे कींचड को धोने से शायद बची कुची इज्जत बची रह जाये.समय सबका बदलता है अब देखना यह है कि क्या समय रहते कांग्रेस का समय बदलेगा कि नहीं.अपने अपने स्वार्थी प्रवृत्ति के विचारों को त्यागकर संगढन का भला यदि आलाकमान सोचे तो शायद आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होने का सम्मान बचा ले जाये.
अनिल अयान सतना
९४७९४११४०७

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