बुधवार, 29 जून 2016

ब्रिटेन के निर्णय से प्रभावित होगा भारत



ब्रिटेन के निर्णय से प्रभावित होगा भारत
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सन १९५० में बने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन अलग हो चुका है. पिछले दिनों हुए जनमत संग्रह से अधिक्तर मत विरोध में डाले गये जिससे कहीं ना कहीं ब्रिटेन को अलग होना पडा. हालांकि ब्रिटिश सरकार ने पहले भी यह घोषणा कर दी थी कि सन दो हजार सत्रह तक वो यूरोपीय संघ से अलग हो जायेगी.इसके पीछे सबसे बडा मुद्दा जो था वह एकल बाजार के तहत सामान प्रशासनिक प्रणाली से यूरोपीय संघ का काम करना जिसमें सिंगल करेंसी यूरो का लागू होना, फ्री ट्रेड के अंतर्गत किसी भी देश का व्यवसाय संघ के किसी भी देश में प्रारंभ करना,प्रवासियों के झमेले में ब्रिटेन के मूल निवासियों के लिये अवसरों की कमी,सालाना मेंबरशिप फीस के निन्यान्वे हजार करोड बचाव,आदि प्रमुख मुद्दे रहे,अब इस निर्णय के बाद यूनाइटेड किंगडम के तीन प्रांत अपनी आजादी के लिये जनमत संग्रह करवाने के लिये पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.जिसमें स्काटलैंड,इंग्लैंड और वेल्स प्रमुख हैं इनका यूरोपीय संघ की ओर झुकाव इनकी आजादी के लिये मूल मंत्र शाबित होगा, अर्थात ग्रेट ब्रिटेन को दोबारा आंतरिक बंटवारे के लिये मन बनाना पडेगा, ब्रिटेन को अपना भविष्य कितना उज्जवल दिखाई पडता है यह तो प्रधानमंत्री कैमरून के निर्णय से जग जाहिर हो रहा है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री के राज्य से ही उनके विचारों के विरोध में जनमत होने से वो खासा दुखी दिखाई पडे क्योंकि वो चाहते थे कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य बना रहे,उन्होने जनमत के लिये अपने दूसरे चुनाव प्रचार के दौरान जनता से वादा किये थे और वादे के अनुरूप जनमत संग्रह में उनकी विचारधारा ही खतरे में पहुंच गई, उन्होने नैतिकता के चलते अपने पद से स्तीफा दे दिया और किसी नये नेतृत्व का आह्वान किया,जो पूरे विश्व में काफी सराहा गया,उन्होने राजनीतिक स्वार्थ के को नैतिकता से ज्यादा बडा नहीं होने दिया.
     ब्रिटेन के विलगन से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था डगमगायेगी.इसका असर भारत में भी देखने को मिला है और भविष्य में भी देखने को मिलेगा.अर्थव्यवस्था में शेयर मारकेट के हिसाब से यह घाटे का निर्णय हुआ है. आने वाले वक्त में व्यापार के नये रास्ते खुल भी सकते हैं और बंद भी हो सकते हैं.इस निर्णय से पाउंड की स्थिति डालर के मुकाबले कमजोर हो गई. डालर जितना मजबूत होगा कच्चा तेल भी उतना ही मजबूत हो जायेगा जिससे पेट्रोलियम उत्पाद मंहगे हो जायेगें. ब्रिटेन में लगभग एक हजार भारतीय कंपनिया हैं जिसके व्यवसाय पर काफी गहरा असर पडेगा.टाटा मोटर्स,एयरटेल,फार्मा कंपनियां इसका सबसे प्रभावी उदाहरण हम सबके सामने हैं.एक परिस्थिति यदि ब्रिटेन का विभाजन होता है तो भारत के लिये इंगलैंड और ब्रिटेन आमने सामने वाले देश होंगे जिनके यहां व्यवसाय करने की खातिर उनकी आपसी जग्दोजहद को भी ध्यान में रखना होगा, साथ में ब्रिटेन के अलावा भारत को अन्य देशों से भी यूरोपीय संघ के अनुसार करार करना पडेगा,अगर संघ भारत को ब्रिटेन में व्यवसाय करने से रोकता है तो भारत के ब्रिटेन के साथ रिस्ते खराब होंगे,भारत में चल रहे आई उद्योग की दस से पंद्रह प्रतिशत का लाभ जो ब्रिटेन से हो रहा था वह भी कहीं ना कहीं प्रभावित होगा,भारत के लिये सबसे बडी चुनौती रुपये को पाउंड और डालर के मुकाबले सम्मान जनक स्तर पर बनाये रखना जिसका प्रभाव पेट्रोलिम मंत्रालय में सबसे अधिक देखने को मिलेगा,
     भारत के बहुत से युवा वर्ग यूरोप में अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. जिसमें यूके,ब्रिटेन इंगलैंड,स्काटलैंड आदि,इनकी नौकरियां भी खतरे में पड सकती है, ब्रिटेन में गोवा और अन्य लगभग तीस हजार दक्षिण भारतीय लोग काम कर रहे हैं जिनके लिये मुसीबतें बढेंगी,इस विलगन का असर शिक्षा में भी देखने को मिलेगा अभी तक यूरोपीय युनियन के समझौतों की वजह से ब्रिटेन के स्कूल और प्रोफेशनल कालेजों में भारत के बच्चे दाखिला लेते थे और वहां से भी स्कालरशिप में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विदेशी बच्चे अध्ययन करते थे जो अब कठिनतम हो जायेगा, खास ब्रिटेन के लिये यदि पढाई के अवसर बढेगें तो अन्य देशॊं के लिये भारत को अलग से समझौते करना पडेगा, इस प्रकार का विलगन अल्प समय के लिये नुकसानदेह होगा लेकिन लंबे समय के लिये कहीं ना कहीं फायदेमंद जरूर शाबित होगा.रही बात भारत की तो भारत को ब्रिटेन और अन्य देशॊं के साथ मित्रता के लिये अलग अलग नीतियां बनाना होगा,यदि यूरोपीय यूनियन के देश भारत के सामने यदि ब्रिटेन का साथ छोडने की बात करते हैं तो भारत की स्थिति एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाईं वाली होगी, भले ही वित्त मंत्री अरुणजेटली ने आश्वासन दिया हो कि उनकी तरफ से हर संकट से निपटने के लिये नीतियां मौजूद हैं.परन्तु यह विलगन भारत की अर्थव्यवस्था को अल्पकालिक हानि पहुंचाने के लिये काफी है.अब हमारी सरकार इसके लिये कितनी तैयार है यह आने वाला वक्त बतायेगा,
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

मंगलवार, 21 जून 2016

"राजन" के बाद कौन?

"राजन" के बाद कौन?
कुछ समय पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी शासकीय सेवा से निर्वासन की घोषणा की.कुछ समय पहले तक रिजर्व बैंक के गवर्नर की पहचान नोटों में दस्तखत करने वाले प्राधिकारी तक सीमित थी.परन्तु रघुराम राजन ने पहली बार इस दायरे को टॊड कर काम दिये.राजन में लोगों की लोकप्रिय दिलचस्पी शुभ संकेत है कि लोग अब देश की आर्थिक और राजनैतिक समझ को बढाना चाहते हैं.रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन की पारी सामाप्ति की घोषणा पर राजनैतिक और आर्थिक विश्व की प्रतिक्रियाओं के अलग और आगे आम जनता में पनपा अनमनापन और असमति का भाव किसी भी अर्थशास्त्री के लिये अभूतपूर्व हो स्कता है. भारत देश में रिजर्व बैंक  अस्सी साल पुराना हो चुका है. अस्सी साल पुराने इस बैंक में जितने भी गवर्नर रहे किंतु फायनेंस और एकानामिक्स के गूढ और दुरूह दुर्गम अक्षर विश्व से दूर फासले पर खडे समाज की अनगढ और अनपढ ढेहरी पर रघुराम राजन की अलग पहचान बनी. इसका प्रमुख कारण यह भी था कि वो जनता के हक में खुल कर मीडिया से बातें करते थे और बेबाकी से रूबरू होते थे. उनका यह कहता कि लोगों को रास आया कि भारतीय अर्थव्यवस्था अंधों में काने राजा जैसी है. मोदी सरकार को लोग अडानी और अम्बानी की मित्र सरकार मानते हैं.रघुराम राजन सरकार और जनता के बीच की एक आर्थिक कडी के रूप में खुद को स्थापित करने का काम किया.ऐसा नहीं है कि मैने इस बहाने कांग्रेसी विचार धारा को यहां पर उठाया है किंतु यह भी सच है कि रघुराम राजन जैसे लोग अपनी विवेक शीलता के परे आम जनता के हित की बात बेबाकी से अपने लेक्चर्स में कई बार कह चुके हैं.
      रघुराम राजन के बारे में अमर्त्य सेन जो जाने माने अर्थशास्त्री हैं साथ में नोबल पुरुस्कार विजेता भी रहे, ने कहा राजन के जाने के मायने यह है कि भारत एक आर्थिक विचारक खो रहा है.उन्होने अपने विभिन्न तर्कों के आधार पर सिद्ध कर दिया कि भारत सरकार का फैसला दुखद क्यों है. पर अफसोस कि भारत की आम जनता जिसके पास राजन के बने रहने या ना रहने का कोई ठोस तर्क नहीं है वह भी उनके जाने में राजनैतिक षडयंत्र महसूस कर रही है.राजन के अचानक अपने पद से निर्वासन की घोषणा किसी हैरत कर देने वाली बात से कम नहीं है. उनके इस फैसले से सरकार भी असमंजस में थी कि राजन के बारे में क्या फैसला लिया जाये. जिस जल्द बाजी में अरुण जेटली जी ने राजन की पेशकश पर ट्वीट करके आभार व्यक्त किया उससे तो यही महसूस हुआ कि सरकार राहत महसूस कर रही है. राजन के निर्वासन से कहीं ना कहीं स्वदेशी दस्ता बहुत खुश है. क्योंकि वो ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने ने सरकारी पद में रहते हुये सरकार के कार्यों और आर्थिक दृष्टि के समीक्षा करके चेताया कि सरकार किस दिशा में भारत की अर्थव्यवस्था को लिये जा रही है. अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्री जब राजन के जाने का शॊक व्यक्त किये तो हम सब समझ सकते हैं कि देश को वर्तमान आर्थिक संकट के दौर में उनके जैसे गवर्नर की बहुत आवश्यकता है. इतना ही नहीं इन्फोसेस के को फाउंडर एन आर नारायण मूर्ति ने कहा कि मुझे भरोसा है कि राजन के जाने का यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिये कि अमेरिका और अन्य देशों में बसे भारतीय मूल के अन्य ग्रीन कार्ड होल्डर्स अब भारत के लिये अविश्वसनीय हैं. राजन के जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था से जुडे अर्थ जगत के लोग खुश नहीं हैं.केंद्र सरकार के लिये राजन जैसे छमताओं वाला गवर्नर ढूंढना सरल नहीं होगा.
      सरकार बनने के प्रारंभ से ही राजन के द्वारा मुद्रा स्फीति,रिजर्व बैंक के रैपो और रिवर्श रैपो रेट्स,मंहगाई दर,आदि विषयो पर सरकार कई बार आमने सामने हुई. भारतीय रुपये की अन्य देश की मुद्राओं की तुलना में गिरावट भी कहीं ना कहीं उनके लिये चिंता का विषय रहा. उनके रहने से यह महसूस हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था कम से कम सरकार की कठपुतली तो नहीं है. कोई तो है जो एकला चलो रे की सोच को आंगे बढा रहा है. इसलिये चुनावी दौर के प्रारंभ में मुद्रास्फीति के सवाल पर मोदी जी ने सीधे रिजर्व बैंक और यूपीए सरकार को आडे हाथों लिये थे.हम सभी को ध्यान होगा कि राजन के कार्यकाल के अंतिम समय पर विरोधी सुर पहले सुब्रमण्ड्यम स्वामी और बाद में एस गुरुमूर्ति के एक समय पर खूब उठाया. इन लोगों ने उनके मूल रूप से भारतीय होने पर संदेह व्यक्त किया. और उन्हें मानसिक रूप से विरोधी दर्शाया.किन्तु वास्तविकता यह है इस समय सरकार के लिये  रिजर्व बैंक का गवर्नर ढूंढना आसान नहीं है.अब देखना यह है कि क्या सरकार दूसरा राजन खोज पाती है या फिर वही पुराने ढर्रे पर रिजर्व बैंक के गवर्नर की पहचान नोटों में दस्तखत करने वाले प्राधिकारी तक सीमित रखने वाला गवर्नर नियुक्त किया जाता है. फैसला कुछ भी हो किंतु इसका संबंध कहीं ना कही जनता की जेब और भूख से जरूर संबंधित होगा.जिसका प्रभाव भारतकी अर्थव्व्यवस्था पर अच्छा या बुरा पडेगा ही. क्योंकि जिन बैंको में जनता का धन सुरक्षित है उसको शरण देने वाला रिजर्व बैंक के माई बाप जनता के भी रिश्तें में कुछ तो लगेगें ही.
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

मंगलवार, 7 जून 2016

कांक्रीट बनते जंगल..कैसे मनाये मंगल

कांक्रीट बनते जंगल..कैसे मनाये मंगल
आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवसूनिचे।
ब्रहं प्रज्ञा च मेघां च त्वयं नो देहि वनस्पते।
स्कंध पुराण का यह श्लोक हमारी पर्यावरण की चिंताओं को मुक्ति प्रदान करने का हल सुझाता है।इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है कि हे वनस्पते! आप मुझे आयु, बल, यश, तेज, वैज्ञानिक ज्ञान प्रज्ञा और धारण शक्ति प्रदान करें! वनस्पति को पालन पोषण करने से वो हमे पूर्णांक से भर देगी।जब कभी यह सुनने में आता है कि पर्यावरण का संतुलन बिगड रहा है, असंतुलन का प्रतिशत लगातार बढ रहा है. तो महसूस होने लगता है कि तटीय इलाकों के डूबने का वक्त आगया है. आज नहीं तो कल यह होना ही है. सत्तर प्रतिशत के ऊपर का भाग जब जल से पर्याप्त हो तो हम धरती वासी जलमग्न होने से कौन बचा सकता है. ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव लगातार धरती को गर्म कर रहा है. औसतन धरती का तापमान पांच से सात डिग्री सेल्सियस लगातार बढ रहा है.तब हमारा खेवनहार कौन होगा. क्या ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा हम सब लील लिये जायेगें, तो हमारे पास एक ही उत्तर मिलता है जिस प्रकार आशोक सम्राट अंततः बुद्ध की शरण में जाना उचित समझा था उसी तरह हम मनुष्यों को वृक्ष की शरण में जाना होगा. और यह वृक्ष समुदाय ही हमारे पालनहार बनेंगें.वन संरक्षण से हमें पर्यावरण के साथ साथ चौतरफा सुधार महसूस होगा. वन संपदा जीवन को विकसित और बेहतर बनाने के लिये कारगर अस्त्र बनकर हमारा साथ देगी.
       सन उन्नीस सौ बहत्तर में स्टाकहोम में जब पर्यावरण सम्मेलन हुआ तो उस समय ही इसे संरक्षित करने की पहल पूरे विश्व में प्रारंभ की गई.उस सम्मेलन से आज तक लगभग इक्कीस सम्मेलन हो चुके हैं परन्तु आज तक ना पर्यावरण को एक यूनिट माना गया. ना ही पर्यावरण को बचाने के लिये पूरे विश्व में संयुक्त प्रयास किये गये. जब अंतिम बार पेरिस में दिसम्बर दो हजार पंद्रह को सम्मेलन हुआ तो भी इस बात से पूरी दुनिया को चेताया गया कि हम ग्लोबल वार्मिंग के प्रथम चक्र में प्रवेश कर चुके हैं. विकसित देशों के पास हमारे पर्यावरण के वसीहत बपौती के रूप में गिरवी रखी हुई है. इनकी आवाज बैठकों में एक तूती की तरह होती है परन्तु दीर्घकालिक परिणाम देने में ये विकसित देश कई गुना पीछे होते जा रहे हैं. उदाहरण के लिये भारत को कोयले के उत्पादन में रोक लगाने और उपयोग में पाबंदी लगाने की बात पर्यावरण सम्मेलनों में विकसित देशों के द्वारा की जाती है. वही दूसरी तरफ अमेरिका हमें थर्मल उर्जा  टेक्नालाजी को खरीदने का दबाव बनाता है. विकसित देशों की यही गाथा हमारे साथ चली आ रही है. उनका दोगला व्यवहार कहीं ना कहीं गरीव और मध्यम श्रेणी के देशों में लगातार जारी है. दोगला चरित्र रखने वाले देश कहीं ना कहीं पर्यावरण की विश्वव्यापी मुहिम को बट्टा लगाने में लगे हुये हैं.हम कांक्रीट के जंगल बना रहे हैं. हरे पेड पौधों की जगह हम कांक्रीट बिछाते जा रहे हैं. कांक्रीट का मकडजाल हम सबको चक्रव्यूह में फंसाता जा रहा है. उद्योगों में पर्यावरण प्रदूषण जन्म ले रहे हैं पर्यावरण विभाग का प्रदूषण मानक जंग खा रहा है. जंगलों की स्थिति और दयनीय होचुकी है.हम इस मुहिम के लिये विदेशों पे निर्भर हो रहे हैं और अपने देशज उपायों को भूल चुके हैं. हमारे देश में ही पर्यावरण को बचाने के कई दॆशज रास्ते विद्यमान हैं हमें बस खुली आंखों से इन्हें पहचानने की आवश्यकता है.
      आज विश्व में कार्बन भंडारण और कार्बन फूटप्रिंट की नई अवधारणा चलन में आ चुकी हैं परन्तु हमारे देश में पीपल,बरगद,नीम जैसे पेड इसी काम को वर्षों से करते चले आ रहे हैं.पीपल और बरगद का एक पेड दो से तीन टन कार्बन का भंडारण करता है जो कार्बन डाई आक्साइड की दस गुना अधिक मात्रा को वातावरण में जाने से रोकता है.इस तरह हम कार्बन डाई आक्साइड को ग्रीन हाउस प्रभाव उतपन्न करने से जाने अनजाने रोक लेते हैं. पूर्व काल में इसीलिये वन देवी के रूप में पीपल, नीम ,बरगद की पूजा की जाती रही है और हर गांव में इसको विकसित करने की प्रथा प्रारंभ किये हुये थे.हमारे धर्म ग्रंथों में भी वृक्षॊं के महत्व के बारे में विस्तृत वर्णन देखने, पढने, और सुनने को मिलता है, हमें सिर्फ अनुशरण करने की आवश्यकता है.शासन प्रशासन के साथ मिल कर यदि हमे यदि पर्यावरण को बचाना है और संतुलित करना है तो हम सबको अनवरत वृक्ष लगाना होगा.जंगलों के कांक्रीटीकरण को प्रतिबंधित करना होगा. हमें नहीं भूलना चाहिये कि हमें या तो जंगलों में जीवन को संरक्षित करना होगा या फिर जंगली जीवन के लिये तैयार होना पडेगा. हमें पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने के लिये वृक्षं शरणं गच्छामि के मूल मंत्र को गांठ बांधना होगा. तो फिर चलों पौधे लगाये अपने आसपास ही सही.
अनिल अयान सतना

९४७९४११४०७