बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

समिट के करार पर नतीजा बेकार

समिट के करार पर नतीजा बेकार

सन दो हजार दस से ग्लोबल इंनवेस्टर मीट का सफर खजुराहो से प्रारंभ होकर इस साल तीसरी किस्त अदा की जारही है.अनुदान के पीले चावल इंनवेस्टरों को वितरित करवा दिया गया है.मखमली जाजम दो साल के बाद दोबारा निकाल कर बिछा दी गई है. ऐसा लग रहा है कि मध्यप्रदेश राज्य के व्यापारिक नगरी इंदौर की तस्वीर बदलने वाली है और अन्य शहर भी उद्योगों की आवक की रेवडी खाकर ही रहेंगें.सन दस, बारह और चौदह के बाद इन्वेस्टरोम की आवक फिर से इंदौर की चकाचौध बढायेगी.हमारे मुख्यमंत्री जी नये दिवास्वप्न देख रहें है.विदेशों में अध्ययन करने गये ब्यूरोक्रेट्स वापिस लौट चुके हैं.मध्यप्रदेश को देश की अर्थव्यवस्था का स्वर्ग बनाने के लिये कोई कसर नई छोडी जा रही है.परन्तु क्या इस बार भी पिछली बैठकों की भांति निर्णय सिफर होगा,इंनवेस्टर्स के हाथ में अच्छे खासे कार्यक्रम और मीट के बाद सिर्फ कपिल शर्मा के वचनों के अनुरूप बाबा जी का ठुल्लू ही हाथ लगेगा.पिछली मीटिंग्स का परिणाम देखें तो हवाई सपने देखने वाले इन्वेस्टर्स नंगे हाथों को निहारते रह गये, और जमीनी तौर पर प्रतिशत के नाम पर शून्य इतरा रहा था.शासन भले ही कोई भी आंकडे दिखाये परन्तु हकीकत कुछ और ही रही.हम उम्मीदें लगाये रहे और राजनीति और ज्यादा परिपक्व होती चली गई.सहारा से लेकर टाटा तक मध्य प्रदेश को टाटा बाय बाय करके चलते बने और हमारी सरकार कुछ भी ना कर सकी.खजुराहो से शुरू हुआ यह सफर बीच के ब्रेकर्स में ऐसा उलझा कि अपनी स्पीड को पैसेंजर्स गाडी की तरह कर लिया. कभी इस आफिस कभी उस आफिस.कभी इस विभाग कभी उस विभाग,कभी इस मंत्रीऔर कभी उस मंत्री के यहां से लेट लतीफी का ऐसा ब्रेकर्स लगा कि इन्वेस्टर्स का घोडा रास्ता ही भूल गया.
            आंकडों के अनुसार पिछले तीन मीटिंग्स में तीन सौ निन्न्यानवे परियोजनाओं में से लगभग ढाई सौ परियोजनाये हकीकत में काम नहीं शुरू कर सकी.वजह समय से शासन की तरफ से जमीनी कार्यवाही ना करने की वजह से उनकी लागत में बढोत्तरी हो जाना जो मध्यप्रदेश में शुरु करने का मतलब उनका घाटा ही था. दो हजार बारह में सहारा का एमओयू,फ्यूचर ग्रुप का फूड पार्क निर्मित करने के सपने,महिंद्रा का आटोमोबाइल्स प्लांट जो भोपाल में निर्मित करना,इजराइल की दवा कंपनी टेवा का मेडिकल प्लांट जो पीथमपुर में बनना तय हुआ.जी ग्रुप के एस्सेल ब्रांच का सर्विस कालोनीज का प्लान,सब धरा का धरा रह गया.इतना ही नहीं अंबानी,अडानी,पतंजलि,टाटा के आने वाले समय में प्लांट डालने की बात किये परन्तु इनके साथ मध्यप्रदेश के मंत्रियों और अधिकारियों ने कोई इच्छा नहीं दिखाई.इस समिट में शायद इनकी तरफ से कोई पहल की जाये.एसोशियेटेड चैबर्स कामर्स एंड इडस्ट्रीज आफ इंडिया के अनुसार मध्यप्रदेश में देरी की वजह से इन तीनों इस्वेस्टर्स मीट में  लगभग लगभग एक लाख करोड ली लागत बढी और इसकी वजह से लगभग ३०० इन्वेस्टर्स ने अपने हाथ खींच लिये और उसमें से ५० से ज्यादा फीसदी इन्वेस्टर्स अन्य राज्यों में अपना इन्वेस्टमेंट करने में कामयाबी हासिल की.जिसकी वजह से मध्यप्रदेश आर्थिक रूप से अन्य राज्यों की तुलना में पांच दर्जा नीचे खिसक गया.मध्य प्रदेश में हुये घोटाले और देरी की वजह से इन्वेस्टर्स के दिलो दिमाग में एक गहरी दुविधा पैदा कर दी है.वो चाहकर भी खुद को यह नहीं समझा पा रहे हैं कि क्या इस बार कुछ चमत्कार हो पायेगा. या पिछली बार की तरह आर्थिक बलात्कार ही उन्हें भोगना पडेगा.
            इस सब रामलीला का मंचन तो सफल होता है किंतु इसमें कभी फूड पार्क के सुनहरे सपने दिखाये जाते हैं.कभी पांच मिलियन टन का दूध उत्पादन करके हरियाणा जैसे राज्यों को पीछे करने का सफेद झूठ बोला जाता है.कभी सर्विस कालोनीज के सपने दिखाये जाते हैं कभी आटोमोबाइल्स इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में इनवेस्टमेंट के चलते एक बार में एक लाख से अधिक युवाओं को रोजगार दिलाने के रोचक और आभासी डायलाग इसी रामलीला के मंच से बोले जाते हैं.किंतु परिणाम सिफर होता है.इसके पीछे हमारे सरकारी दफ्तरों में जिस लालफीताशाही की परंपरा वाली रावणीय विचारधारा पोषित हो रही है.मंत्रियों की नजर राज्य के फायदे की बजाय खुद के फायदों पर अधिक हो जाये तो.सरकारी कामों में लेट लतीफी,एक विभाग से अन्य विभागों का सामन्जस्य ना स्थापित हो पाना,आदि प्रमुख कारण है जो लाल जाजम बिछाने के बाद भी मध्यप्रदेश के उद्योगों में इन्वेस्टर्स अपना अनुदान करने के लिये अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं.यही तो सबसे बडी कमी है जिसे हम पिछली तीन बैठकों में दूर नहीं कर पाये.शायद इस बार भी इन्ही कारणों से बहुत कुछ प्रभावित होने की संभावना इंदौर सम्मिट की अधिक है. मध्य प्रदेश को चाहिये कि यदि उसे इस क्षेत्र में आगे बढना है तो अपनी लेट लतीफी को इससे दूर ही रखना होगा.वायदे तो बहुत किये जाते हैं परन्तु तीन चार दिन की सम्मिट के बाद जब एमओयू जमीनी रूप से अपने जूते रगडना शुरू करता है वो इन्वेस्टर्स को गंवारा नहीं होता.इसलिये इस बार सरकार को ध्यान में रखना होगा कि अपने इन्वेस्टर्स को भगवान के दर्जे के अनुसार लेकर उनका स्वागत करें.उनका साथ योजनाओं के चालू होने तक बस नहीं बल्कि योजनाओं के फलीभूत होने तक प्रदान करें.
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७



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