रविवार, 16 अक्तूबर 2016

"मोदी-पुतिन" के मजबूत रिश्तों के ब्रिक्स

 "मोदी-पुतिन" के मजबूत रिश्तों के ब्रिक्स
गोवा को जब आठवें ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी का अवसर सौंपा गया तब वह भाग्यशाली उतना नहीं हुआ होगा जितना कि ब्रिक्स सम्मेलन के इतर भारत और रूस के प्रतिनिधि अर्थात मोदी और पुतिन के रिश्तों की मजबूती के लिये रखे गये नीव के पत्थर के लिये भाग्यशाली सिद्ध हुआ. चीन की हरकतों के बाद उसका बायकाट करने के बाद रूस और फ्रांस का भारत के प्रति नजदीकी भारत की रक्षा शक्ति को सुदृढ बनाने के लिये बहुत जरूरी था. वैसे तो ब्राजील रूस भारत चीन और साउथ अफ्रीका  के संयोजन के बीच भारत और रूस के बीच की नजदीकियां अन्य देशों के लिये सबक बनी हैं.इस सम्मेलन में आतंकवाद को लडने के लिये जिसतरह भौगोलिक सीमाओं को परे रखने की बात की गई है वह भारत की पैरवी और चीन के द्वारा पाकिस्तान सहित आतंकवादी देशों के लिये सबक भी है. ब्रिक्स सम्मेलन में जहां महत्वपूर्ण रूप से  जीडीपी और अर्थव्यवस्था के विकास के लिये जोर दिया जाता है वहीं दूसरी ओर आपसी सौहार्द और भाईचारे को बनाये रखने के लिये भारत की पहल के लिये विश्व परक सम्मान की नजर देश को गौरव प्रदान करता है.साउथ अफ्रीका से शुरू हुआ सफर भारत के हाथों में जब पहुंचा तो देश की सरकार वाकयै इसका लाभ लेने के लिये लालायित नजर आई. भारत का मेजबान के रूप में शामिल होने के अलावा.देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की पहल काबिले तारीफ थी.भारत को पता था कि एशिया के अलावा देशों के साथ अपने रिश्तों की पहल को आगें मंजिल तक पहुंचाना है.इस लिये भारत को रूस का साथ और हाथ थामना पडा. हमे यह स्वीकार करना होगा कि रूस से पांच सूत्रीय करार और इसके पूर्व फ़्रांस से राफेल फाइटर प्लेन का करार देश की सुरक्षा को मजबूत करना ही है.
      ब्रिक्स सम्मेलन के बहाने भारत ने रूस को अपना निर्यातक बनाने के लिये कोई कसर नहीं छोडा. इसके पीछे हमारे प्रधानमंत्री जी की पहल रक्षा मसौदों को मजबूत बनाती है.इसके पहले हमारे देश में रक्षा के बडे बडे घोटाले हुये हैं जिन्हें हम नजरंदाज नहीं कर सकते हैं किंतु यह कोशिश भारत जैसे विकासशील देश की विकसित सोच को विश्व में प्रदर्शित करता है. एक माह में दो मसौदों को वास्तविक रूप से जमीन देना भारत की प्रगति की निशानी ही है.रूस वैसे भी भारत की सैन्य आपूर्ति वाला देश रहा है परन्तु यह भरोसा भारत की आयातक व्यवस्था को तकनीकि रूप से मजबूत करता है.राफेल प्लेन के बाद फाइव एस डिफेंस सिस्टम जो दो हजार बीस तक भारत के सुपुर्द रूस करेगा.इतना ही नहीं के ए २२६ जैसे नई तकनीकि वाले हेलीकाप्टर के निर्माण के लिये रोस्टेक एयरोनाटिक्स लिमिटेड के साथ संयुक्त निर्माण और आयात दोनो मारक छमता को बढाने और मजबूत करने के लिये महत्वपूर्ण समझौता है.एफडीआई जैसे मुद्दे भारत को स्वदेशी के खिलाफ जाने के लिये विवश करती है.मेड इन इंडिया जैसी पालिशी को निस्तोनाबूत करने वाली इस योजना के चलते भारत को पेट्रोलियम क्षेत्र में भी रूस की मदद मिलेगी.जो भारत की आंतरिक पालिसी जो परिवर्तित करने जैसा ही होगा.इस पर सरकार के विषय विशेषज्ञों को विचार करना चाहिये.सितंबर और अक्टूबर के बीच में दो मजबूत और परिणामजन्य समझौतों की जमीन तैयार हो चुकी है.अब यह देखना है कि भारत और रूस के रिश्तों को सुरखाब के पंख लगाने में मोदी और पुतिन कितने सफल सिद्ध होते हैं. विदेशी संबंधों को मजबूत करने की पहल मोदी जी की पहचान बनी हुई है परन्तु देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के तले इसमें भी कमियां निकल ही आती हैं.संसद के सांसदों और जिम्मेवार राजनैतिक पार्टियों को यह चाहिये कि इस प्रकार के मसौदों को देश हित के लिये सकारात्मक रूप से देखें और सरकार को तटस्थ होकर कामकरने के लिये स्वतंत्र करें बस सरकार की स्वतंत्रता घोटाला ना बनने पाये इस बात का अवलोकन करना भी संसद के तत्वों का प्रमुख दायित्व होगा.
      भारत में रहते हुये प्रधानमंत्री जी के द्वारा यह कहा जाना कि एक पुराना दोस्त दो नये दोस्तों से बेहतर होता है,किस वैश्विक नीति को विश्वपटल पर प्रदर्शित करती है यह विचार करने का विषय है.ब्रिक्स के बहाने कई निशाने साधने की नीति कहां तक अंजाम तक पहुंचती है यह तो भविष्य बतायेगा.परन्तु भारत जैसे उपमहाद्वीप में पाक की कमर के नीचे रूस को पुराना दोस्त बनाना. उधर अमेरिका में ट्रंप का मोदीमय होजाना. रूस और फ्रांस की भारत के प्रति नजदीकी,सार्क सम्मेलन का पाकिस्तान से कैंसिल होना,ब्रिक्स में आतंकवाद का मुद्दा आर्थव्यवस्था के मुद्दे के बराबर उठना और इस मसले में चीन के मौन को एक त्रिकोण के रूप में देख सकते हैं जिसमें भारत दुश्मन के दोस्त को भी अपने साथ रखा है और एशिया के परे युरोपीय देशों को मिलाना जिसमें फ्रांस और रूस प्रमुख हैं एक चक्र्व्यूह की तरह है आतंक वाद  के लिये.,रूस जिसने युरोपियन रिपब्लिक के मुख्य देश है उसका सहयोग देश की लडाई के लिये मजबूत और महत्वपूर्ण पक्ष होगा.भारत की आंतरिक विद्वेश्वता को छोड देंतो इस बार का ब्रिक्स सम्मेलन भारत के लिये रक्षा मसौदों का वैदिक मंत्र बनकर उभरा है.एशिया के आतंकपरस्त देशों को यह सम्मेलन कहीं ना कहीं कुरेदा जरूर.अब देखना यह है कि करार और डील के प्रभाव से आतंवादी देश और संगढन क्या फील करते हैं.और भारत इन डील्स को कहां तक अपने फायदे और सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिये उपयोग कर पाता है.
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

      

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