रविवार, 1 जनवरी 2017

"राजनैतिक चंदा" फायदे का धंधा

"राजनैतिक चंदा" फायदे का धंधा
हमारे देश में राजनीति के लाडले दल खूब मौज उडा रहे हैं.आजकर नोट बंदी के चलते "अज्ञात स्त्रोत" दलों का मालिश पुराण लिखने में व्यस्त हैं। भारत में इस दिनों जिस तरह राजनैतिक चंदे की रकम में इजाफा हुआ है.वह सरकार के लिये चिंता का विषय होना चाहिये.एक तरफ आम जन को नकेल कसने का दायित्व अगर सरकार निर्वहन कर रही है तो दूसरी तरफ अपनी ही विरादरी के साथ पट्टीदारी निभाने की रीति समझ के परे है।कहने को हर दल देश को पारदर्शी और निष्पक्ष सरकार देने का दावा करता है.किंतु सत्ता में आने के बाद उसकी भाई पट्टीदारी अन्यदलों के साथ ऐसे प्रारंभ होजाती है, जैसे चोर चोर मौसेरे भाई हो गए हों.दिल्ली में आप सरकार के द्वारा अपने वार्षिक चंदे का व्योरा अपनी वेबसाइट से हटाने का निर्णय कहीं ना कहीं चोर की दाडी में तिनके का संकेत हैं.ऐसा नहीं है इसमें सरकार के रूप में काबिज भारतीय जनता पार्टी दूध की धुली हुई है.आकडे बताते हैं. कि दो हजार तेरह से दोहजार सत्रह तक भाजपा के राजनैतिक चंदे में अन्य दलों की तुलना में तीन गुना ज्यादा बढोत्तरी हुई है. और एक सौ छप्पन प्रतिशत तक दलगत बढोत्तरी हुई हैऔर कांग्रेस भी एक सौ पैतीस प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है..मोदी सरकार ने दो हजार पंद्रह सोलह में इस चंदे की आवक को चौरासी प्रतिशत तक कम करने का संकेत दिया है.राजनैतिक चंदे का अज्ञात स्त्रोत वाकयै सरकार के लिये और भारत की अर्थव्यवस्था के लिये गले की हड्डी बन चुके हैं.वास्तविकता यह है कि एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ने राजनैतिक दलों को चंदा देने वाले चुनावी ट्रस्टों को आडे हाथों इस लिये लिया क्यों कि ये चुनावी ट्रस्ट राजनैतिक दलों और कंपनियों के बीच के संगढन के रूप में काम करने के साथ साथ दोहजार तेरह से आजतक लगभग पौने दो करोड चंदे के रूप में कंपनियों के द्वारा कमाकर नब्बे प्रतिशत राजनैतिक दलोंमें वितरित कर भी दिये.परन्तु चुनाव आयोग के पास इन ट्रस्टों की कोई साफ सुथरी रिपोर्ट नहीं है.पारदर्शिता के लिये बनाये गये ये ट्रस्ट बनाये तो गये थे लाभकारी परिणाम देने के लिये परन्तु ये राजनैतिक दलों के लाभ के अड्डे बन गये.
एडीआर अब इस बात पे अड गया कि ये ट्रस्ट मूल कंपनियों में बने,एक घटना जिसमें अमुक कंपनी ने दो हजार चौदह पंद्रह और सोलह के दरमियान एक सौ बत्तीस करोड चंदे में रेवडी बांट दी.और चुनाव आयोग के पूंछने में इस कंपनी का नाम कागजातों में ही बस दिखाई पडा।अब तो स्थितियां यह है कि नोट बंदी के बाद इस तरह के केश लाजमी से हो चुके हैं.कोई चाहकर भी फिराक लेने की नहीं सोचता क्योंकि भाजपा की स्थिति अन्य राजनैतिक दलों की तुलना में सूची में सबसे आगें है.कहने को चुनाव आयोग में अठारह सौ दल पंजीकृत हैं किंतु उसमें से लगभग पांच सौ दल तो आज तक चुनाव में प्रतिभागी तक नहीं खडा करे.सरकार क्यों नहीं इन दलों और इनकी आय के स्रोत को सूचना के अधिकार के तहत नहीं ला पा रही.यह समझ के परे हैं.चुनाव आयोग ने एक सिफारिश में चंदे की रकम को बीस हजार से करके दो हजार तक करने की अनुशंसा की जनप्रतिनिधि अधिनिय उन्नीस सौ इक्यावन को भी संसोधित करने की सिफारिश की.आयकर अधिनियम उन्नीस सौ एक्सठ की धारा तेरह ए के अनुरूप जिस छूट के लालच में ये अज्ञात स्त्रोत राजनैतिक चंदे का अप्रत्याशित लाभ उठा रहे हैं.वो देश को गर्त में ले जा रहा है और दलों को अर्श में ले जा रहा है.बीस हजार से कम के चंदे में स्त्रोत की जानकारी को ना बताने वाले नियामक का लाभ लेते हुये.एक मुस्त काले धन को कई काल्पनिक नामों के खातों में वितरित करके सफेद धन में बदल कर मजे कर रहे हैं.इनकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है.सांसदों ने जिस तरह चुनाव आयोग की सिफारिशों को नक्कारखाने में तूती की आवाज बनाकर अनसुना कर दिया.उसके चलते चाहिये कि अब आयोग ऐसे नाकारा दलों और जन प्रतिनिधियों की छटनी की प्रक्रिया शुरू करे.ताकि इनको भी आटे दाल का भाव समझ में तो आये.
क्या देश की आवाम को यह जानने का अधिकार या सूचना प्राप्त करने का अधिकार नहीं है कि जिन लायक दलोंपर विकास लोक कल्याण और प्रजातंत्र को मजबूत करने का दायित्व है.वो किन लक्ष्मी पुत्रों के अज्ञात चेहरों के दम पर एकाएक चंदा प्राप्त करते हैं.और जो सरकार जनता को ईमानदार और पारदर्शिता की नसीहत का पाठ मन की बात में पढाती नजर आती है.खुद को आरटीआई के दायरे में लाने में कतराती क्यों है और अन्य दलों के साथ भाई चारा निभाने में इतनी मसगूल क्यों है.सब दल जानते हैं कि अगर चुनाव आयोग इनका पंजीयन समाप्त कर दे तो इनको प्राप्त होने वाली आयकर छूट सुविधा समाप्त हो जायेगी.चुनाव आयुक्त नसीम जैदी कहते हैं कि डमी राजनैतिक दल और राष्ट्रीय दलों की क्षेत्रीय शाखाये.सरेआम काले धन को सफेद करने की जुगत भिडाये बैठीहै. देश के अधिकतर राजनैतिक दल दूसरे दलों की जेब टटोलने में जितनी तेजगी दिखाते हैं उतनी ही तेजगी से अपने खजाने को छिपाने की फिराक में होते हैं.मोदी सरकार से हम सबकी यह उम्मीद तो है.कि नोटबंदी की तरह दृढता दिखाकर जनप्रतिनिधिकानून के संसोधन का प्रस्ताव आवाम के हित में संसद में लाये और  सूचना के अधिकार के तरह आवाम को सुकून देने का काम करे।अज्ञात स्त्रोत की इस फैक्ट्री जिसमें काले धन के अनाज को सफेद आटे में बदलने का काम जारी है उसमें भी लगाम लगाकर देश की अर्थव्यव्स्था को सुदृण करने में कदम बढाये जब जनता को लाइन में लगाने में कोई गुरेज नहीं था तो अब अपने साथियों को लाइन में लगाने में देरी समझ के परे है।

अनिल अयान,सतना

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