रविवार, 1 जनवरी 2017

अखिलेश अनुपस्थित, टिकट व्यवस्थित

अखिलेश अनुपस्थित, टिकट व्यवस्थित
बुधवार को मुलायम सिंह ने अंततः तीन सौ पच्चीस सीटों में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुके हैं. अभी भी अठहत्तर प्रत्यासियों की सूची के जारी होने का इंतजार किया जा रहा है.अखिलेश का झांसी में उसी दिन प्रचारप्रसार करना और उनकी अनुपस्थिति मे टिकट वितरण की घोषणा करना.समाजवादी पार्टी के पुराने समाजवाद के नये रूप का संखनाद है.जिसमें इतना सब कुछ होने के बाद भी मुलायम सिंह ने खुद को केंद्र में बनाये रखा है.चुनाव होने को अभी कुछ महीने शेष हैं.किंतु सुप्रीमों का विश्वास उन उम्मीदवारों में अधिक दिखा है जिनका अपराध जगत से ज्यादा सरोकार रहा है.अतीक अंसारी और रामपाल यादव प्रमुखता के साथ शामिल कियेगये. इतना ही नहीं उन लोगों को भी सम्मानित स्थान मिला है.जिसको अखिलेश ने सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.हालां कि यह तो तय है कि जब अखिलेश विधान परिषद के सदस्य हैं जिसका कार्यकाल २०१८ तक है. तो उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति ज्यादा मायने एक दृष्टिकोण से नहीं रखती किंतु अगर हम और दृष्टिकोणों से देखें तो समझ में आयेगा कि अखिलेश सरकार का पांच साल और उसके बाद मुलायम सिंह जी का सत्ता मोह समाजवाद की नई अवधारणायें गढने में कामयाब हो रहाहै. दोनों में एक समानता यह है कि दोनों ने गठबंधन का विरोध किया और बहुमत के लिये एक मत हैं. किंतु सवाल यह है कि बहुमत किन उम्मीदवारों का होगा.क्या आपराधिक नेतृत्व का वर्चश्व होगा.क्या उस समाजवादी गुट का वर्चश्व होगा जिसका मतभेद अखिलेश सरकार से है.क्या अखिलेश का चेहरा अब समाजवादी पार्टी के लिये हानिकारक है.ये गूढ प्रश्न गर्भ में छिपे हुये हैं.
हमारे सतना से चुनाव प्रसार के लिये युवा प्रतिनिधियों का जाना और चुनाव प्रभारी के दायित्व को प्रापत करना यह साबित करता है कि मुलायम सरकार की तरफ झुकाव अधिक है.अखिलेश सरकार के वैचारिक विरोध का प्रचार प्रसार अन्य राज्यों के साथ मिल बैठकर बांटा जा रहा है.बहर हाल इस सूची का प्रभाव मायावती और भाजपा के उत्तरप्रदेशियों पर ज्यादा पडेगा.सभी दलों को यह पता है कि उत्तरप्रदेश का यह चुनाव हर दल के लिये वर्चश्व की लडाई है.इस राज्य में अपने दल की सत्ता हर राजनैतिक दल देख रहा है. किसी दल का वास्तविक बहुमत प्राप्त कर पाना आग के दरिया को डूबकर पार करने की तरह होगा.समाजवाद ने जिस तरह पिता और पुत्र के वैचारिक कलह को अपने अंदर पिरोया है वह राजनीति के लिये हानिकारक है.उपचुनावों के माध्यम से अखिलेश की वापसी.सूची में खुद अखिलेश का नाम ना होना.अपराधिक राजनैतिक लोगों को चुनाव में सम्मानित उम्मीदवारों की सूची में शामिल करके मुलामय सिंह ने समाजवादी पुराने रूप को नये लबादे में लपेटने का काम किया है.अखिलेश क्या अब पार्टी के नाम पर उन उम्मीदवारों के प्रचार में जायेंगें जिनसे उनका धुर विरोध रहा है.क्या वो अपने पिता के नक्शेकदम में चलने के लिये विवश होंगें मात्र पार्टी की सफलता के लिये. यह अंतर्दवंद जरूर इस चुनाव में नया मोड लायेगा.जिस तरह का रुख पिता ने पुत्र के विरोध में पार्टी के मंच के माध्यम से अपनाया है और उन लोगों का टिकट काट दिया है जो अखिलेश के खास हैं। वह यह संकेत तो दे रहा है.कि सत्ता अगर सपा की आती है तो निश्चित ही मुख्यमंत्री के चेहरे में बदलाव लहर जरूर दिखाई देगी.अब यह लहर पार्टी के लिये लाभदायक होगा या हानिकारक।
समाजवादी पारटी की पहले से ही यह नीति रही है कि वो पुराने चावलों पर ज्यादा यकींन करती रही है.जिनके पास से दल बल आने वाले कल में दिखाई देगा.और जीत की महक आयेगी.समाजवाद के नाम पर पुराने चावलों की टीम किस स्तर से यह चुनाव लडेगी यह आने वाला वक्त बतायेगा क्योंकि इस बार भाजपा का केंद्र में होना समाजवादी पार्टी के लिये नाकों चने चबवाने वाली स्थिति पैदा करेगा.अंतःकलह पार्टी की वैचारिक बुनियाद को वैसे भी हिला चुका है.वर्तमान के उन विधायकों का टोला जिनकों टिकट नहीं मिला है.वह किस ओर मुंह मारता है वह जरूर विदूषक की भूमिका निभायेगा.कुल मिलाकर विदूषक के रूप में उत्तर प्रदेश के अंदर हर उस पार्टी की भूमिका है, जिसका काम जनता को वैचारिक मोह से पाश में बांध सके।जो बांध ले जायेगा.वो वोट की गणित को अपने हवाले करने में कामयाब होगा.एक तरफ हर हर मोदी घर घर मोदी वाले भाजपाई हैं और दूसरी तरफ तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार वाली बहन जी है। इस बीच में ये पिता पुत्र एक मोड लाने के लिये आतुर दिखाई पड रहे हैं। दृश्य जरूर दिलचश्प होने वाला है,
अनिल अयान
सतना
९४७९४११४०७
ayaananil@gmail.com

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