रविवार, 25 जून 2017

एक देश-एक टैक्स के साथ जीएसटी का आगमन

एक देश-एक टैक्स के साथ जीएसटी का आगमन
सुना है जीएसटी को १५ अगस्त १९४७ से जोड कर देखा जा रहा है। जिस तरह उस समय जश्न मनाया गया था उसी तरह जीएसटी के आगमन का स्वागत किया जायेगा। एक समान टैक्स व्यवस्था को लागू करना ही देश का प्रमुख लक्षय होगा। तीस जून को जीएसटी काउसिंल की की बैठक होना तय हुआ है।अभिताब बच्चन को इस कार्यक्रम का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया है। चालीस सेकेंड का वीडियो इस संदर्भ में पहले से ही जन मानस में जारी किया जा चुका है। यह तो तय है कि जीएसटी एक ऐतिहासिक टैक्स रिफार्म के रूप में व्यवसाइयों के सामने आयेगा। जीएसटी के चलते सभी व्यवसाइयों का पंजीकरण अनिवार्य हो जायेगा। सेवा क्षेत्र में काम करने वालों का भी इसमें पंजीकरण सुनिश्चित किया गया है। परन्तु इसमें भी जीएसटी परिषद ने इस गुड्स और सर्विसेस टैक्स को तीन भागों में बांट दिया है पहला टैक्स सीजीएसटी है जहां केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जायेगा। एसजीएसटी जहां पर बिक्री हेतु राज्य सरकारें राजस्व एकत्र करेंगी। आईजीएसटी इसके अतर्गत अंतर्राज्यीय बिक्री के लिये केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जायेगा। इस व्यवस्था में यहां तक प्रावधान है कि इसमें ना पंजीयन कराने वाले व्यवसाइयों को टैक्स तो है ही साथ ही साथ टैक्स का भुगतान ना करने वाला या कम भुगतान करने वाला भी अपराधी माना जायेगा जिसके चलते उसे दस प्रतिशत से १०० प्रतिशत तक सशर्त जुर्बाना देना होगा और सजा का प्रावधान भी होगा। इस व्यवस्था से पूरा का पूरा व्यापारी जगत सदमें में हैं।
सेल टैक्स विभाग ने हर जगह पर अपने जागरुकता शिविर लगाकर जीएसटी के बारे में जागरुकता फैलाने का काम कर रहा है। किंतु व्यापारियों के मन में अब भी बहुत से संसय बरकरार है। उन्हें इस बात का संतोष है कि अब उन्हें कर पर कर की प्रथा से मुक्ति मिलेगी।उन्हें सत्रह प्रकार के टैक्स से निजात मिल जायेगी। लेकिन अगर इसका उल्टा प्रभाव बाजार में पडा तो व्यापारियों का संचित धन भी सरकार जब्त कर लेगी। व्यापारियों का मानना है कि जीएसटी में बदलाव करना चाहिये। इसमें सजा की बजाय पेनाल्टी बढाने पर विचार करना चाहिये। क्योंकि उनका मानना है कि बाजार में जिस तरह की गला काट कांपटीशन चल रहा है वह व्यापारियों को गल्ती करने के लिये मजबूर कर देता है। परन्तु इस गल्ती के लिये अगर सरकार और न्यायालय और प्रशासन से लडकर सजा को बचाने के लिये वो संघर्ष करेंगें तो अपना व्यापार कब करेंगें। व्यापारी वैसे भी देश की जीडीपी बढाने में अपना अहम योगदान देता है और इस योगदान के बदले सजा की शिफारिस सरासर गलत है। देश के अर्थ विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि देश में जीएसटी लागू करना अपने में एक जटिलतम काम होगा इस सरकार के लिये। क्योंकि नोट बंदी की तरह इसके परिणाम अगर निकल आये तो देश की व्यवस्था और कर प्रणाली को सम्हालना बहुत ही मुश्किल हो जायेगा।
जीएसटी के लिये अब भी एक दर्जन से ज्यादा नियमावलिया अधिसूचित करना है। इससे संबंधित साफ्टवेयरों की तैयारी जिससे यह व्यवस्था सुचारु रूप से संचालित की जायेगी। मानव संसाधनों को नियुक्त करना उन्हें सही तरीके से प्रसिक्षित करना। करों के रिटर्न भरने के लिये विषय विशेषज्ञों की टीम तैयार करना। जैसी अनेकानेक प्रायोगिक चुनौतियां हैं जिसको अभी पूरा होना बांकी है। प्रशासन का माने तो यह सुनने में आता है कि जीएसटी का बैक इंड साफ्टवेयर अब तक पूरी तरह से तैयार नहीं हो सका है। विभागीय अधिकारी इसी के द्वारा इस व्यवस्था को नियंत्रित करेंगें। इसके अभाव में पूरा सिस्टम कैसे काम करेगा। नियमावलियों  की सूचियां अब तक देश भर के प्रोफेशनल लोगों संबंधित संगढनों को नहीं पंहुचाया गया है। टैक्स प्रोफेशनल्स की उलझन और व्यापारियों की उलझन के बीच में सरकार जिस तरह से इस व्यवस्था को लागू करने की जल्दबाजी कर रही है वह मात्र अपने कार्यकाल में इस व्यवस्था को अपने खाते में जमा करने की कोशिश मात्र है। वित्त मंत्री भले ही दो टूक  कह दें कि एक जुलाई से जीएसटी लागू पूरे देश में लागू होगा। और सभी को अपना पूर्णतः सहयोग करना होगा। किंतु इस सब के बीच सरकार की आंतरिक तैयारियां भी अपूर्ण हैं। एसोचैम और अखिलभारतीय व्यवसायी संघ की माने तो तो वो और सरकार पूरी तरह से इस व्यवस्था के लिये तैयार नहीं हैं। राजनैतिक श्रेय लेने की होड में सरकार  व्यवहारिक जटिलताओं  को पूरी तरह से नजरंदाज कर चुकी है। इंटरनेट कनेक्टिविटी भी अधिक्तर व्यापारियों और टैक्स प्रोफेशनल्स के लिये सिरदर्द है। इसी से जीएसटी में टैक्स रिटर्न फार्म भरे जाने की राह सुनिश्चित होगी। इन सब के बीच सरकार का मानना है कि जीएसटी सुव्यवस्थित अर्थव्यवस्था को प्रदान करेगी। परन्तु यह सुनिश्चित तब होगा जब इससे जुडे अंग सुचारू रूप से काम करेंगें।अब तो आने वाला समय बतायेगा कि जुलाई की बरसात सरकार के लिये फायदे की सौगात लेकर आयेगी या व्यवसाइयों और देश की आम जनता को भी इसकी फुहारों में भीगकर खुशियां मनाने का मौका मिलेगा।
अनिल अयान,सतना


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