रविवार, 2 जुलाई 2017

दुश्मनी के बीच दोस्ती

दुश्मनी के बीच दोस्ती

विगत दिनों रूस में आयोजित एक कार्यक्रम में जब भारत के पीएम मोदी जी ने यह कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद होने के बावजूद पिछले ४०-५० साल से बार्डर पर एक भी गोली नहीं चली है। इस बयान के आने पर चीन और वैश्विक जगत में खूब प्रशंसा हुई भारत की उदारता की। दुनिया भर को यह लगने लगा कि भारत चीन अपने विवादों को बातचीत से निपटाने में सक्षम हो चुका है। इस बात को लेकर हमारे पीएम मोदी जी की खूब पीठ थपथपाई गई। परन्तु भारत और चीन सिक्किम सीमा पर सोलह जून से आमने सामने है। सिक्किम भूटान और तिब्बत के जंक्शन में सिलीगुडी के चिकन नेक एरिया को चीन की सेनाओं ने अपने कब्जे में लेने की कोशिश की। इस इलाके को चंबी घाटी कहा जाता है जो भारत को तिब्बत और भूटान से जोडने का काम भी करता है। इस पहाडी इलाके को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत चलती रही है और २४ दौर की बातचीत के बाद भी यह मुद्दा अभी अनसुलझा रहा। सोलह जून के बाद इस इलाके में रोड का काम शुरू कर दिया था भूटान और भारत के सैनिक इसका विरोध किये भी किंतु चीन की ताकत अधिक होने की वजह से यह विरोध असफल रहा है। वास्तविकत यह है कि भारत के सिलीगुडी कारीडोर में भारत के पूर्वोत्तर राज्य अन्य देशों के साथ जुड जाते हैं
उधर दूसरी तरफ चीन इस क्षेत्र को  सडक मार्ग से जोडकर  भारत के पूर्वोत्तर को घेरना चाहता है। इसी बात का विवाद जारी है। जो भारत के चीन विवाद को और बढाता है। इसके पूर्व में सिक्किम में नाथुला के रास्ते से जाने वाली मान सरोवर यात्रा को इसलिये रोक दिया क्योंकि सीमा विवाद दोबारा अपने चरम पर रहा था।
यह तो कुछ उदाहरण हैं किंतु सबसे बडे विवाद तिब्बत क्षेत्र जो एक बफर जोन का काम करता है। अक्साई चिन रोड जो लद्दाख इलाके में बन रही है इसमें वो जम्मू काश्मीर के उस इलाके को अपने कब्जे में रखना चाहताहै जो वो अपना मानने की कोशीश कर रहा है। अगला विवाद तो सीमा है जिसमें तीन हजार किलोमीटर की सीमा पर स्पष्ट मत नहीं है। अरुणाचल प्रदेश पर भी वो दावा जताता चला आया है और भारत के साथ उसकी इस मामले में एक भी नहीं बैठती।  ब्रह्म्पुत्र पर बना चीन का बांध और हिंद महासागर में पाकिस्तान म्यामार और श्रीलंका के साथ साझेदारी में प्रारंभ हुई परियोजनायें भारत के लिये सिर दर्द बन चुकी हैं। पाक अधिकृत काश्मीर और गिलगित बालटिस्तान में चीन की गतिविधियां तेज हुई है। चीन में साउथ चाइला सी इलाके में भी अपना वर्चश्व जारी रखा है यहां उसे म्यामार जापान और फिलीपींस से चुनौती मिली भी परन्तु सब व्यर्थ का मामला ही शाबित हुआ। इस तनाव पर असम के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने अपने बयान में यह भी जता दिया कि भारत से चीन कई मामलों में ज्यादा ताकतवर है। इस बात की सत्यता भी है कि भारत से चीन की सैन्य शक्ति ज्यादा मजबूत है। हमारे पीएम चाहे जितना भी कोशिश कर लें खुद को सौहार्द के प्रतिमान बनने की परन्तु जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है।
समय रहते अगर हमारा देश अपने निर्णय नहीं लेता तो यह स्थान चीन के कब्जे में चला जायेगा। हमारे पीएम सिर्फ विदेशों में इसी बात का दंभ भरते रह जायेगें कि। हमारा पाक और चीन के साथ सौहार्द पूर्ण संबंध हैं। इस तरह की उदारबादिता का अस्तित्व क्या है वह समझ के परे है। हम सबको पता है कि हमारे संबंध पाकिस्तान और चीन के साथ कैसे हैं। हमारा इन देशों के साथ ऐतिहासिक रूप से किस तरह के विवाद रहे हैं जो आज भी नहीं सुलझ सके हैं। इसके बावजूद हम तिब्बत और भूटान के साथ खडे होने के साथ साथ चीन की तारीफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करते हैं और यह सोचते हैं कि इसी बहाने चीन हमारी पीठ थपथपायेगा जो सरासर दोमुही राजनीति है। इससे हम भले ही उदारवाद के मसीहा बन जायें किंतु हमारी सेना और उनका संघर्ष शून्येत्तर हो जायेगा।इस लिये आज आवश्यकता है कि चीन की विरोधी ताकतों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जवाब देना और दोटूक तरीके से सीमा के विवादों में अपने को स्थापित करना बिन पेंदी के लोटे की तरह अगर चीन की तरफ और अन्य देशों की तरफ एक ही तरह की हिमाकत होती रहेगी तो अपना अस्तित्व खतरे में होगा। चाइना को आइना दिखा अति आवश्यक है।
अनिल अयान,सतना

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