रविवार, 6 अगस्त 2017

पनामा भूचाल में धरासाई शरीफ

पनामा भूचाल में धरासाई शरीफ
भारत की तीन चिंतायें और बढ गई है पनामा पेपर्स में नवाज शरीफ की ताजपोशी खत्म होने से भारत की तीन चिंतायें और बढ गई है। पहली पाक सेना का मेजर बाजवा की अगुआई में मजबूती। दूसरी भारत विरोधी आतंकी संगढनों को बढाने वाली छूट और तीसरी भारत के काश्मीर में पाक सेना का बढता हस्ताक्षेप। शाहिद अब्बासी भले ही पाकिस्ता के अंतरिम प्रधानमंत्री बन गये हैं किंतु निर्धारित समय के बाद तो पाक प्रधानमंत्री पद पर कोई और शक्श बैठेगा। जो भारत के साथ मजबूत रिश्तों को टोडने का प्रयास करेगा। पाकिस्तान में शरीफ को भारत का हमदर्द माना गया। लाहौर निमंत्रण से पाक सेना और सैनिक सकते में थे।  यह सभी को पता है कि पाकिस्ता की विदेश नीति रावलपिंडी में तैयार की जाती है विदेश मंत्रालय तो इसे अमल में लाता है। नवाज शरीफ के प्रयासो को कट्टरपंथी ताकतों के द्वारा और पाकिस्तानी सेना के द्वारा हमेशा ही खत्म किया जाता रहा है। पनामा पेपर्स तो मात्र बहाना था जिसके चलते पाकिस्तान की सत्ता डगमगा गई। ऐसा पहला मौका नहीं था जब शरीफ की शराफत को पाकिस्तानियों ने आडे हाथों किया हो। दो बार इसके पूर्व भी पाकिस्तान ने शरीफ की शराफत के चलते कुर्सी से उतार कर जमीं में बैठा दिया था। हालांकि शरीफ इसके लिये पहले से तैयार थे। पनामा तो उनका तीसरा अनुभव था। उनके बाल यूं ही धूप में सफेद नहीं हुये थे। उन्हें यह पदवी राजनैतिक विरासत में अता हुयी थी। हां इस बार ना को कोई जनता थी ना कोई परवेज थे था तो न्यायालय के जज और उनका फैसला।
बीते साल ब्रिटेन में पनामा की ला फर्म के सवाकरोड टैक्स डाक्यूमेंट्स लीक हो गये थे जिसमें पुतिन, नवाज शरीफ, शी जिनपिंग और मैसी ने कैसे अपनी बडी दौलत टैक्स हैवन देशों में जमा की थी। वो बस नहीं एक सौ चालीस नेताओं और सैकडों के सेलीब्रेटीज के खातों के नाम खाते एमाउंट और इन्वेस्टमेंट के बारे में जानकारी थी। टैक्स हैवन वो देश हैं जहां पर इनवेस्टमेंट करने के बाद व्यक्ति की पहचान का खुलाशा नहीं किया जाता है। इसमें विश्व की चार लाख सीक्रेट इंटरनेशनल कंपनीज के भी आंकडे थे। सन सतहत्तर में बनी मोसेक फोंसेक कंपनी के हेड क्वार्टर पनामा में होने की वजह से इस कंपनी से अधिक्तर पेपर्स गायब हुये। ऐसा नहीं है कि इसमें सिर्फ पुतिन से लेकर शरीफ बस शामिल हैं। इसमें भारतीय नाम भी शामिल हैं। पांच सौ से ज्यादा नाम भारतीय है। मोदी सरकार ने सेंट्रल बोर्ड आफ डायरेक्ट टैक्सेस को यह जिम्मा सौंपा जिसके चलते आयकर विभाग ने इस पर नोटिस भी भेजी थी। अभी तक इन पेपर्स के रसूखदारों पर निर्णय अधूरा है। एक तरफ सरकार ब्लैक मनी अर्थात काला धन वापिस लाने के लिये प्रतिबद्धता शामिल करती है। अब देखना है कि पनामा पेपर्स से कितने चेहरे सामने आते हैं। पाकिस्तान के प्रधान का इस तरह से देश के न्यायालय के द्वारा कुर्सी से नीचे भेजने का संकेता पनामा की महत्ता को भी विश्व में और बढा देता है। अन्य संबंधित देशों में भी इस निर्णय का प्रभाव देखने को मिलेगा।
पाकिस्तान की इस अस्थिरता का भारत पर क्या प्रभाव पडेगा यह देखने और जानने का विषय है।राजनैतिक अस्थिरता के इस दौर में पाकिस्तान की सेना किस ओर करवट लेती है यह भी भारत के लिये भविष्य के गर्त में छिपा प्रश्न है। पिछले साल से शरीफ की शराफत पर जिस तरह से शवाल उठाये जा रहे थे उससे तो यह तय हो चुका था कि एक ना एक दिन शरीफ को जमीं में आना पडेगा और इस बार कोई मुशर्रफ नहीं होगें इस बार उनका कोर्ट ही उन्हें गुनहगार कुबूल कर लेगा। राजनीतिक अस्थिरता के चलते सेना के हौसले और बढेंगें। आतंकी संगठनों को राजनीतिक बंधनों से मुक्ति मिलेगी। पठानकोट और ऊडी हमलों के बाद जिस तरह की तल्खी बढी थी वह और ज्यादा गहरी होती चली जायेगी। इस सब रूझानों के चलते पाक सेना के साये में भारत पाक के रिश्ते सुधारने की बजाय बिगाडने की स्थिति ज्यादा निर्मित होगी। कहा जाता है कि कट्टरता के पैमाने में शाहिद अब्बासी जो पेट्रोलियम मंत्रालय सम्हाल रहे थे वो आगामी डेढ महीने में इस रिश्ते को और आग के हवाले करने के लिये दिन रात एक कर देगें। उसके बाद शरीफ के भाई शहबाज शरीफ के चुनाव लडकर पाकिस्तान की कुर्सी में काबिज होने की खबर है। पाकिस्तान की जनता और सेना नहीं चाहती है कि सन अठारह के चुनाव में भारत की तरफ झुकने वाला व्यक्ति सत्ता में काबिज हो।  भविष्य में माहौल कुछ भी पैदा हो परन्तु भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी का दौर और बढेगा और साथ ही साथ इस दौर में दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष तीव्रता के साथ अपने पैर पसारेगा।

अनिल अयान,सतना

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