शनिवार, 26 अगस्त 2017

देश के लिये सिर दर्द बना बाबावाद

देश के लिये सिर दर्द बना बाबावाद
भारत को हरि भूमि कहा जाता है। यहां लोग साधू संतों महात्माओं को जी भर के पूजते हैं। जी भर के पूजने के चक्कर में इन बाबाओं और साधू संतों के हाथों में अपने घर की इज्जत को भी सौंप देते हैं। दान दक्षिणा का तो कोई पैमाना ही नहीं होता। बाबाओं के तथाकथित भक्तों को वोट बैंक बनाकर राजनैतिक पार्टियां भी मजे लूटती हैं। सरकार की तरफ से भी इनकी खूब खातिर दारी होती है। इसी लिये तो सरकार भी मौनी बाबा बन जाती है जब इन बाबाओं और साधू संतों को न्यायालय और जेल  की राह दिखाई जाती है। अपराधों की फेहरिस्त बढने के बावजूद सरकार और प्रशासन मौन हो जाता है। इससे बडे सम्मान की बात इन बाबाओं के लिये क्या हो सकता है। इन बाबाओं को पहले पाला पोशा जाता है। कुकुरमुत्तों की तरह जब इनके सम्राज्य का विकास हो जाता है तब इनकी फसल को काटने में सरकार और प्रशासन को पसीना आ जाता है। विगत बाबा और साध्वियों ने तो देश में भयंकर उत्पात मचाया है। हर जाति के लोग तो साधू और संत बन जाते हैं। और अपना दरबार लगा लेते हैं। हमारे भक्त तो अंधभक्त होते हैं जहां देखा कि पंडाल लगा है और प्रवचन चल रहा है वहीं जाकर शामिल हो गये। इनके दरबार में तो सिनेमा और हस्तियों का जमावडा लगने लगता है। इन्हीं दरबारों से आश्रमों को चंदा मिलता है। आश्रमों में मुफ्त की रोटी खाने और राम राम गाने के लिये ये लोग बाबाओं के पक्के चेले बन जाते हैं। और फिर धीरे धीरे बाबा और उनके डेरे विवादित होते चले जाते हैं। चेलों और चेलियों की सेवा में बाबा मलाई चाटते रहते हैं। इसके चलते बाबाओं का बाबावाद चरम सीमा पर होता है।
इस समय पर राम रहीम,आसाराम, रामपाल, राधे मां जैसे लोग इसी का उदाहरण है। हमारी अंध भक्ति और अंधभक्ति का समर्पण का परिणाम होता है कि ये बाबा ज्ञान देने के साथ साथ अस्मिता लेने का भी काम करते हैं। यह हाल पूरे देश में चल रहा है। जहां जहां मठ और आश्रम बने हैं वहां वहां जिस्म का खेल खुले आम कोड वर्ड के जरिये चरम पर हैं। यह हाल सिर्फ हिंदुओं के डेरे का बस नहीं है। बल्कि हर धर्मों में अपना अपना रंग दिखाता यह अपराध फलता फूलता है। हमारे देश में हिंदू बाहुल्य देश होने की वजह से बाबाओं का प्रचार प्रसार होजाता है जबकि मौलवियों , काजियों, पारसियों, फादरों को मीडिया का कैमरा भुला देता है। इन बाबाओं के खाते में मर्डर केश, भक्तों को नपुंसक बनाने का केश, मीडिया को खरीदने का केश, सत्तापक्ष के नेताओं को राजनीति में धन धान्य की मदद करने का मुद्दा घेरे रहताहै। इनका परिधान भी चर्चा का विषय बना होता है। इन बाबाओं को जेल में विशेष परिधान भी तो चर्चा का विषय बना होता है।
इन बाबाओं और साधुओं का हिंदु धर्म संस्कृति के साथ कोई लगाव नहीं होता। इनके अनुयायी भक्त कम और उपद्रवी ज्यादा होतेहैं। जो लोग इनके भक्त होते है सजा होने के बाद लोग इनके नाम से अपना मुंह छिपाते फिरते है। सरकारें चाहे कहीं की भी हो, किसी भी पार्टी की हो बाबाओं को उनके प्रभाव से समाप्त करने के लिये पसीने छूट जाते हैं। उनके उपद्रवी  सरकार तो सरकार पुलिस तक के पसीने छूट जाते हैं। सेना को युद्ध का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें भी बाबाओं के लिये जब ड्यूटी में बुलाया जाता होगा तो उनका भी आत्म सम्मान कहीं ना कहीं झुक जाता होगा। पडोसी देश इस बात पे हंसते हैं कि भारत भी अपनी बाह्य सुरक्षा को भुला कर आंतरिक सुरक्षा के लिये परेशान है। हां यह तो तय है कि ये बाबा उन बाबाओं और साधुओं से कुछ अलग होते हैं जो नागा होजाते हैं। जो  गंगा और यमुना के तीर में भभूत लगाये दिन रात तपस्या में लीन रहते हैं। जिनकों किसी मठ, किसी आश्रम, किसी डेरे की आवश्यकता नहीं होता। जिनका प्रवचन से कोई लेना देना नहीं है। भारत ऐसे बाबाओं के लिये जाना जाता है। ये बाबा तो ढपोरशंखी हैं। और हमारे देश के राजनीतिज्ञ  इन्हीं ढपोरशंखियों के चरणों में गिर कर अपनी सत्ता के लिये भीख मांगते हैं। इसके लिये जितना ये बाबा जिम्मेवार हैं। उससे कहीं ज्यादा हमारी अंधभक्ति भी दोषी है। हमारी अंध भक्ति हमें विवेकहीन बना देती है। हम अपने गलत कामों को छिपाने के लिये और काला धन बचाने के लिये ये बाबा ही एक मात्र चारा नजर आता है।
धर्म और संस्कृति वह साधन बन चुका है कि जो चाहे वो इसके अंदर प्रवेश करके इसका दोहन कर सकता है। खुद को भगवान मानने का दंभ पालने वाले ये लोग देश की आस्था को बेचने वाले होते हैं। हमारा देश इन्हें पूजता है और सिर आखों में बैठाता है। अंततः इन्हीं के द्वारा देश की इज्जत को सरे राह नीलाम कर दी जाती है। सरकारें तक इन बाबाओं के भक्तजनों में सुमार होते हैं। इस वजह से देश जलता है, लोग मरते हैं, कत्ल होते हैं पर हमारे देश के मंत्री और प्रशासन मौन धारण करके मूक दर्शक बन जाते हैं। यही मौन इन ढोंगियों को सातवें आसमान में बैठाने के लिये एक वरदान के समान होता है। और यही वरदान मानवता के लिये श्राप बन जाता है। इसका दंश हम सब आम जन भोगते हैं। इस सिरदर्द का इलाज भी हम ही हैं और दवा भी हम ही है। बस हमें इस सिरदरद को पालने से रोकना होगा।
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७


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