बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

नोटों-वोटों की दीवाली में छिपा राजनैतिक डर

नोटों-वोटों की दीवाली में छिपा राजनैतिक डर
सन दो हजार चौदह के चुनाव में मोदी सरकार का चुनावी मुद्दा अगर काला धन था तो दूसरा मुद्दा जीएसटी था, इसके साथ दुश्मनों को धूलचटाने की बात तो हम सबको भूली ना होगी। इसके साथ एक देश एक टैक्स का नारा देकर जिस तरह जीएसटी की शुरुआत हुई वो काबिले तारीफ थी। इस काबिले तारीफ काम को भाजपा ने मूल मंत्र मान कर देश में खूब प्रचार प्रसार किया। दिवाली के पहले तोहफा दे कर माननीय ने गुजरात की चांदी कर दी। और अन्य राज्यों को यह सोचने में मजबूर कर दिया कि जरूर यह दिवाली नहीं गुजरात के चुनाव का प्री गिफ्ट हैं। खाखरा और गुजराती पांपड जैसे उत्पाद में तो जिस तरह से जीएसटी में कटौती किया गया है वह वाकायै जबरजस्त निर्णय था। एक तरफ राहुल गांधी ने नवसर्जन यात्रा में जामनगर और गुजरात को फोकस करके व्यापारियों का कंधा थामा है वह भी भाजपा के लिये चिंता का विषय बना हुआ है। इसका परिणाम भी कहीं ना कहीं यह प्री गिफ्ट है। अरुण शौरी , यशवंत सिन्हा, और शत्रुधन सिन्हा जैसे मुखर नेताओं ने इन ढाई कदम वाले व्यक्तियों को केंद्र में रखकर कठघरे में खडा करने का कोई मौका हाथ से नहीं छोडे।
भाजपा की मजबूरी है कि  इन तीनों महारथियों को निंदक के रूप रखे हुए हैं।  सरकार को नोट बंदी में मनी लांडरिंग  स्कीम बताया इन न्होने। अरुण शोरी ने  जीएसटी मामले में कांग्रेसियों जैसी राय रखी। अरुण जेटली ने तो उन्हें यहां तक कह दिया कि पी चितंबरम के पीछे पीछे नहीं चलना चाहिये। यशवंत और शत्रुघन सिन्हा ने तो सरकार को हर कदम में आइना दिखाया है। अपने ही घर में सरकार से बगावत के लक्षण इनमें दिखने लगे हैं। यह बात अलग है कि इनकी बातें भी अधिक्तर काम की हो जाती है।  शिवसेना ने तो इस मुद्दे में कूद कर यहां तक बयान बाजी कर दी कि यह अब व्यापारियों का भाजपा के अंदर डर का परिणाम है। पेट्रोल की कीमतों में बढोत्तरी और जीएसटी दरों में बढोत्तरी भी गुस्से का प्रमुख वजह मानी गई। जीएसटी की मूल समस्या साफ्टवेयर भी है। इन्फोसिस को इसका प्रयोग कर पुष्टि करने से पहले ही सरकार ने रातो रात एक कर लागू तो कर दिया अब यथार्थ को भोग रही है। नोट बंदी के समय पर  दो लाख तक का सोना खरीदने के लिये पहले पैन की अनिवार्यता और अब उसके नियम में बदलाव करके जरूरत को खत्म करना कहां की बुद्धिमत्ता है यह समझ के परे है। उस समय  नोटबंदी के प्रभाव से काले धन को सोने में बदलने के लिये यह कदम उठाया गया था। क्या अब वह काला धन इस निर्णय को वापिस लेने से रुक जाएगा। अब तो ऐसा लग रहा है कि काले धन को पीला करने का रास्ता खोल दिया गया है। छ अक्टूबर के पहले वित्त मंत्री यह कह  रहे थे कि जीएसटी की वर्तमान व्यवस्था में कुछ गलत है। दीवाली के एक सप्ताह पहले ऐसा क्या हुआ कि इस इसमें खामी नजर आने लगी। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। जिस ईबिल के लिए इतनी मसक्क्त करनी पडी उसको अभी फिलहाल टाल दिया गयाहै। ई वे बिल की व्यवस्था लागू करने के बाद ही जी एसटी का असली प्रभाव समझ में आएगा।
जनवरी में खत्म होने वाली गुजरात विधानसभा का असली तोहफा तो भाजपा को क्या मिलेगा यह तो आने वाला दो हजार अठारह साल बताएगा। नोटबंदी, जीएसटी, और मंहगाई वो जहरीले नाग हैं जो निगल चुके हैं मंहगाई लगातार बढ रही है। चुनाव के चलते  जिस तरह से भाजपा सकते में है वह जीएसटी के सूत्र को बदलाव करने के अलावा कोई रास्ता मुहैया नहीं कराता है। सूरत अहमदाबाद, जैसे औद्योगिक शहर के वोट बैंक भाजपा के लिये ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके जैसे कई शहर विधानसभा में समीकरण बदल सकते हैं। छॊटे और मध्यम उद्योगों के प्रति भाजपा की नीतियां जिस तरह विरोधी होती जा रही है वो भी कहीं ना कहीं पर डर का प्रमुख कारण है। विधानसभा चुनाव के फायदे के लिए कई सत्ताइस प्रकार के उत्पादों में परिवर्तन किया गया है। दूसरी तरफ पेट्रोलियम  बिजली और रियल स्टेट पर जीएसटी का कोई रोडमैप सरकार के पास नहीं है।
खेतीकिसानी वाले उत्पादों पर जीएसटी को लागू करना कपडा उद्योग को लाभ ना देना भी सरकार की कमजोरी है जो विधान सभा चुनाव में मुख्य मुद्दा बनने वाला है। जब अरुण शौरी कहते हैं कि केंद्र में गुजरात के ढाई लोगों की सरकार है तो गुजरात से मोदी सरकार और मोदी शाह की प्रीति जग जाहिर हो जाती है। गुजरात के स्टेट  ब्रेकफास्ट में जीएसटी को अठारह से पांच प्रतिशत तक लाना भी इसी गुजरात एफिनिटी का उदाहरण है। एक तरफ पटाखों को जलाने से रोकना, पटाखों पर जीएसटी को अट्ठाइस प्रतिशत करना और दूसरी तरफ दीवाली के पहले ही  जीएसटी की दरों को कम करके दीवाली का उपहार देने का ढिंढोरा पीटना । जनता सब जानती है इन सब शतरंज की चालों को। सन एकसठ की फिल्म नजराना का गीत एक वो भी दीवाली थी और एक ये भी दीवाली है उजडा हुआ गुलशन है रोता हुआ माली है। कितना मौजूं है हम सब समझ सकते हैं।
गुजरात को केंद्र मान कर जिस तरह के मूल चूल परिवर्तन किये गए हैं जीएसटी में वह तो पूराने जुमलों के प्रभाव पर पानी फेरने वाले है। पहले जो भी वायदे किये गए वो चूल्हे में चले गए। एक बार फिल चुनावी बिगुल में आम जनता को छला गया और व्यापारियों को लाभ देकर वोट बैंक को बचाने और वोट बैंक में छिपे काले धन को सफेद करने का प्रयास किया जा रहा है। नोटबंदी के बाद जीएसटी का प्रभाव सरकार और भाजपा के लिए अपेंडिक्स बन गई है। ऊपर के गाने में माली के पास ना बगीचे में आने वाली तितलियों  के लिए खाना तक नहीं है। दीवाली के जशन में पटाखों की खुशी को ग्रहण तो लगाया जा सकता है किंतु चीनी सामानों को प्रचार प्रसार करने वाले आइकान के लिए कोई प्रतिबंध सरकार के पास नहीं है। ना ही कोई दूसरा विकल्प देशज रूप से हैं। चुनावी भाषणॊं के आईकान बन चुके हमारे प्रधानमंत्री जी विकास को इतना दौडाए कि अब वह बौरा गया है। चुनाव के लिए रातोरात किए गए एक टैक्स नीतियों को परिवर्तन कर दिया गया है। नुकसान जो व्यापारियों को हुआ वह भी अब तक अंधेरे में छिपा हुआ है। सरकार के पास इन सब के लिए कोई शब्द नहीं है। परन्तु इस बात को सुनकर मन गदगद हो जाता है कि सरकार अब कृषि प्रधान देश को व्यापारी प्रधान देश मानकर उनकी दीवाली मनाने के लिए चुनावी आतुरता जिस तरह से आम जनता के सामने दिखा दी है वह वाकायै यह शाबित करता है कि दीवाली में धन वैभव उलूक वाहन के जरिए ही आती है। चाहे वह उलूक नीति ही क्यों ना हो।
अनिल अयान ,सतना
९४७९४११४०७

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