मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

वर्ग संघर्ष और आगामी चुनाव

वर्ग संघर्ष और आगामी चुनाव

एससी और एसटी के अत्याचार रोकथाम कानून मे मूल चूल परिवर्तन के विरोध में जिस तरह उत्तर भारत में दलित समूहों के द्वारा हिंसक घटनाएं हुई वह हमारे देश और समाज के लिए बहुत ही चिंता जनक होने के साथ साथ यक्ष प्रश्न खड़ा करता है। दस से अधिक राज्यों में हिंसक प्रदर्शन के माध्यम से आरक्षण नीति और उससे जुडे हुए जितने भी एक्ट है उसके परिवर्तन का परिणाम हमारे सामने था। खुद मध्य प्रदेश में इससे कई जिलो में कर्फ्यू का ऐलान करना पड़ा। भारत में बीस प्रतिशन से अधिक दलित समुदाय के वोटों की चिंता हर राजनैतिक पार्टी को हो रही है। इस प्रकार के दंगों से राजनैतिक व्यूह रचनाओं को बल मिला है। उधर दूसरी तरह दलित आंदोलन को मरहम लगाते राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी नजर आई जो कई मायनों में वर्ग संघर्ष को बढाने का काम किया है। अब सवाल यह उठता है कि लोकसभा और विधान सभा की सीटों में आरक्षण के लिए निर्धारित सीटों की सुरक्षा के लिए ही ये वर्ग संघर्ष फैलाए जा रहे हैं। वर्तमान सरकार के लिए दलित रिसाव उनके चुनाव के लिए घातक सिद्ध होने वाला है। दलितों को यह अहसास हो चुका है कि मौजूदा सरकार ने उनके जीविकोपार्जन से लेकर सुनवाई तक के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। भीम सेना और बजरंग दल के सीधे टकराव की स्थिति जातिगत समीकरण को और कट्टर बना दिये हैं। और मध्य प्रदेश ही क्यों राजसथान के अंदर उत्तर प्रदेश के अंदर जिस तरह की राजनैतिक उछल कूद की स्थिति बनी है और इस उछल कूद के बीच जिस तरह से सामाजिक वर्ग और वर्ण को घसीटा जा रहा है वह समाज की सुख शांति को भंग करने के लिए आग में घी का काम कर रहा है। हर जगह लोक तंत्र रूपी द्रौपदी का चीरहरण राजनैतिक पार्टीयां जी खोल कर कर रही हैं।
इस सरकार के कार्यकाल में यह देखा गया है कि  आरक्षण को लेकर दलित आंदोलन के खिलाफ सरकार बैकफुट पर जा रही है। हिंसा , संघर्ष, विरोध , और विद्रोह की स्थितियों सरकार के पास कोई कारगर रास्ता नहीं रहा है। यदि हम पुराने पन्ने पलटें तो  ऊना से लेकर रोहित वेमुला की घटनाए हों, हरियाणा से फरीदा बात की घटनाएं हों, या फिर महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव की घटना हो सभी घटनाओं में केंद्र में दलित ही रहे, समय स्थान और राजनैतिक परिदृश्य बस बदले बांकी सब घटनाओं में दलित ही मोहरे के रूप में उपयोग किये गए। यदि हम इस कानून के बदलाव के बारे में देखें तो इस कानून के तहत शिकायत के तुरंत बाद गिरफ्तारी पर रोक लगाने और आरोपी को अग्रिम जमानत देने का मौका देने वाले इस फैसले ने इन आरक्षित वर्ग को सुलगा दिया। इस सुलगते वर्ग संघर्ष का परिणाम ही यह आदोंलन रहा। इस परिवर्तन के बाद सवर्ण और अवर्ण दोनों सकते में हैं अवर्ण को यह चिंता है अब इस एक्ट के तहत वो आरोपी को  सीधे जेल नहीं भेज पाएगें, परन्तु दुरुपयोग करने वालों पर होने वाली कार्यवाही का कोई मानदंड़ नहीं है। सवर्ण जो इस तरह के न्यायिक मामलों में सीधे जेल की हवा खाते थे उनके लिए यह खबर अच्छी है कि अब उन्हें मामले के अंदर खुद के बचाव के लिए काफी समय मिल जाएगा। किंतु वोट बैंक के चलते कोई भी दल इस बात को कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। उपयोग और दुरुपयोग के अनुपात को देखें तो इस एक्ट के तहत दोनों तरह के मामले समाज में देखने को मिले हैं।
इस तरह के मामलें में प्रशासन का कोई कारगर उपाय सामने नहीं आता है। सुप्रीम कोर्ट ने अभी फिलहाल इस तरह की सुनवाई को जल्द चालू करने से इंकार कर दिया है। साथ ही राजनैतिक दल अपने अपने बिलों में घुस कर नौटंकी का गुणा भाग लगा रहे हैं। आरक्षित वर्ग के माई बाप कहे जाने वाले राजनैतिक दल भी खुल कर विरोध का समर्थन नहीं कर रहे क्योंकि उनका ध्येय आगामी चुनाव और उसके परिणामों पर है। सरकारों के पास पेपर लीक का निदान, पेट्रोल और डीजल के दामों की कमी, आन लाइन डाटा लीक के अपराधों पर लगने वाली नकेल नहीं हैं। उनके पास इन मुद्दों से भटकाने वाली नीतियां, डा अम्बेडकर के पिता जी के नाम को जोड़ने के लिए जग्दोजहद, विदेशी निवेश की चिंता और संसद सत्रों में सरकार की पैरवी पर ध्यान लगा हुआ है। सेवानिवृति की आयु को बढ़ाकर बेरोजगारी के ग्राफ को बढ़ाना, दिन प्रतिदिन सरकार के द्वारा नये नवेले आश्वासन वायदे, नई नियुक्तियों की घोषणाएं, समर्थन मूल्यों की आस, जल प्रदाय की उम्मीद दिखाने में व्यस्त प्रशासन चुनावी आहटों में मसगूल हो चुका है। तराजू के दो पल्ले समाजिक ढ़ांचे के अनुरूप कभी आरक्षित वर्ग की मुनादी करते हैं, कभी अनारक्षित वर्ग की मुनादी करते हैं, परन्तु तटस्थ होकर कोई भी परिणाम नहीं निकलता है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण मात्र और मात्र सत्ता की पंचवर्षीय दुधारू गाय है जिसका सब स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। चुनावी दंगल के लिए समाजिक वर्गों को आपस में भिड़ाने की बजाय हिंसात्मक रवैये को खत्म करने की कोशिश दलों को करना चाहिए।
अनिल अयान सतना
९४७९४११४०७ 

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