रविवार, 17 मार्च 2013

बेबुनियादी मुद्दों का पीछा करती व्यवस्था

बेबुनियादी मुद्दों का पीछा करती व्यवस्था
आज के समय मे ना जाने इस व्यवस्था को क्या हो गया है कि सब बेबुनियादी मुद्दों के पीछे ही ये भाग रही है. उन मुद्दों मे वो सारे विषय आते है जिनका विकास से कोई ताल्लुकात नहीं है. पहले के समय में यह काम कुछ साम्प्रदायिक संगठन किया करतेथे . पर आज के समय पर यह कार्य व्यवस्था और सरकार कर रही है. आजादी के पहले से यह सिलसिला चला आ रहा है कि आम जनता को कभी एमरजेंसी के नाम से. कभी जातिगत मुद्दों के नाम से , कभी धर्म के नाम से कभी जाति और वोट के नाम से बरगलाया जाता रहा है. जब भी आतंकवाद का मुद्दा भारत के सामने आया ,दिल्ली मे बैठी कोई भी सरकार हो अपना वोट बैंक सम्हालने के लिये हमेशा दोगला चेहरा दिखाया है.इसी समय देखिये. अवैध बाग्लादेशियों की घुसपैठ ,, अफ़जल गुरू की फ़ाँसी के पूर्व और पश्चात का घटनाक्रम कहीं ना कहीं जनता को झगझोडने वाला रहा है. फ़िर आया पाकिस्तानी हुक्मरानों का भारत दौरा और उसके बाद का आतंकी हमला. और अब सेक्स संबंध के उमर को लेकर बवाल और तमाशा. मेरे यह नहीं समझ मे आता है सरकार जितने भी काम करती है क्या उससे व्यव्स्था सुधरी है. जी नहीं सिर्फ़ व्यवस्था में टूटन उत्पन्न हुयी .पूरी व्यवस्था ही इस तरह से फ़र्जी मुद्दों में लोगों ओ पंजे मे लेने मे लगी हुयी है .सच यह है इस पूरे गेम मे सह प्रकार से सहयोग करने वाले सरकारी और गैर सरकारी तंत्र शामिल है जो व्यवस्था को गर्त मे लेजाने के लिये जुडे हुये है. पहले प्रधान मंत्री जी को लगता था की परिस्थितियाँ देश के विकास के लिये अनुकूल थी. दामिनी रेप केस .... उसके बाद हो रहे लगातार इस तरह के अपराधों की बढोत्तरी के चलते अब उम्र कम करके इस तरह के अपराधों में लगाम कसना चाहतें है. जो सरासर गलत होगा और इस तरह से भारतीय संस्कृति के विरोधी रवैये के धनी होते जा रहे है. वो और उनकी सरकार शायद यह नहीं जानती है कि इस तरह के अपराध उमर पर जितने आधारित होते है उससे कहीं ज्यादा हमारी मानसिकता की विकृति भाव से होती है. और उमर कम करके सरकार और व्यवस्था इस प्रकार के मानसिक विकृतिपूर्ण कार्य को बढावा दे रहे है. उमर चाहे १६ करे या १४ क्या फ़र्क पडता है. इस तरह के अपराधों को छूट देने का काम हमारी न्याय व्यवस्था और कार्यपालिका कर रही है. जहाँ पर इस तरह के अपराधों के लिये जल्द न्याय और कडी सजा का प्रावधान होना चाहियें उसकी बजाय सेक्स की उमर कम करके शर्म और लिहाज दोनो को हमारी आने वाली पीढी को सौपने की तैयारी कर रही है हमारी केन्द्र सरकार. ये भी हम नजरंदाज कैसे कर सकते है की सरकार का नजरिया धीरे धीरे इटली , अमेरिका, और अन्य विदेशी संस्कृति वाले पाश्चात देशों की संस्कृति के हवाले हो गया है. जिसमे कानून १३ साल के बाद ओपेन सेक्स की भी छूट देदेगी. और इसमे साथ देने वाले सभी दल साथ इसलिये देगें ताकि वोट और पद लोलुपता की माया से सब वशी भूत हो चुके है. तब तो फ़िर विवाह जैसे बंधनों की भी आवश्यकता महसूस नहीं होगी इस समाज में. और सरे आम लीव इन रेलेशनशिप का कान्सेप्ट आजाएगा. और यही तो सरकार भी चाहती है. मेरे यह समझ मे नहीं आरहा है कि बलात्कारियों को सजा सम्बंधित कानून बनाने की बजाय ,, आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों ,, पडोसी देशो के साथ सम्बंधों की समीक्षा करने के बजाय बेबुनियादी मुद्दों मे अपना सिर खपा रही है यह व्यवस्था और और इसको सम्हालने वाली सरकार.
वैसे ज्यादातर नेता कौन से दूध के धुले हुये है. ये सब आसमान से गिरने के बाद खजूर मे लटके हुये खुश हो लेते है. दर असर यह पूरी व्यवस्था ही आज भी फ़र्जी मुद्दों पर टिकी हुयी है ना किसी को गरीबी की फ़िक्र है ना बेरोजगारी की. ना किसानो की आत्महत्याओ का भय और ना आतंकी हमलों की समीक्षा करने की फ़ुरसत. इस देश का सबसे बडा सच यह है कि आज हमारे जन प्रतिनिधियों में इतन दम है ही नहीं की वो बुनियादी मुद्दे और विकास के मुद्दो को उठा सकें वो इसकी आवश्यकता है समझते ही नहीं है. मुझे तो लगता है की जब फ़र्जी मुद्दो से ये सब देश चला रहे है और काम चल रहा है तो फ़िर कौन मुसीबत मे पडे, है...ना,, सब अपनी धुन रमाये है और देश को बेबुनियादी मुद्दों के पीछे पीछे व्यवस्था को फ़िराकर खुश हो रहे है. यह भी सच है कि इस तरह के मुद्दे यदि अरब देशों मे उठा होता तो अरब सीरत के मुताबिक मुद्दे उठाने वालों के सर कलम कर दिये जाते, और उनकी उमर जरूर खत्म हो जाती .

कोई टिप्पणी नहीं: