बुधवार, 25 मार्च 2020

जैविक आपातकाल के बीच हमारे कर्तव्य


जैविक आपातकाल के बीच हमारे कर्तव्य
आज जब पूरा विश्व कोविड़-१९ से लड़ रहा है, और हमारे देश में प्रधानमंत्री जी ने जनता कर्फ्यू और फिर पूरे देश को इक्कीस दिन के लिए लॉक  डाउन करने की घोषणा कर दिया है, इन परिस्थितियों के बीच मे पूरा देश एक आपातकाल और अनुशासन की महीन रेखा में खड़े होने के लिए मजबूर हो चुका है, देश और राज्य हो या फिर समाजिक ढाँचा हो किंतु आज के समय की माँग है कि हम खुद को इस महामारी के तीसरे चरण के दौर में एक दूसरे से अलग कर लें, इन सबके बीच यह देखा जा रहा है, सोशल मीड़िया में जबर्जस्त रूप से अफवाहों का दौर चल रहा है, लोग सोचे समझे बिना ही एक दूसरे की पोस्ट्स और बातों को आने वाले परिणामों के बिना ही साझा करने से परहेज कर रहे हैं, भारत में रह रहे लोगों को विश्वभर की बातों को भावनात्मक जुड़ाव के साथ साझा किया जा रहा है और साथ में आगे भी शेयर करने की अपील की जा रही है, हम अपने देश के हालातों पर चर्चा नहीं करना चाह रहे हैं, हमारे पास इस महामारी से लड़ने के लिए क्या सुविधायें हैं इस पर हम बात नहीं करना चाह रहे हैं, हमारे देश में आज के समय में जितने भी कोविड़-१९ के केसेस सामने आये हैं, उनसे लड़ने और बचने के लिए क्या रास्ते अपनाने होंगे उन सब बातों को साझा करने की बजाय अफवाओं के बहाव में बहना बिल्कुल भी उचित नहीं हैं,
      भारत में जब यह वाइरस अपने पहले स्टेज में था, उस समय देश दुनिया से बेखबर हम अपने में व्यस्त थे, स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय इस बात से अनभिग्य था कि हमारे देश के पास इस महामारी से लड़ने के लिए क्या सुविधायें उपलब्ध थी, जनता कर्फ्यू के दिन भी हमारी मूर्खता एक नमूने जग जाहिर हुए, हमने कई निर्णयों का खूब विरोध किया, सरकारों को खूब गालियाँ दी, निर्णयों की खूब अबाही तबाही की, जनता कर्फ्यू के दिन हमारे देश में कई जगह लोग सड़कों पर अपनी वाहवाही का प्रदर्शन करते हुए दिखे। जब धीरे धीरे देश लॉक डाउन होते दिखा तो भी हम सतर्क नहीं हुए, प्रधानमंत्री जी जब पूरे देश को लॉक डाउन करने की घॊषणा किए तब समझ में आया कि देश के पास पर्याप्त सुविधायें नहीं हैं, और मेडिकल क्राइसिस के बीच में सुरक्षा और सावधानी ही बचाव है, हमारे देश के विभिन्न अस्पतालों के डाक्टर्स का ट्वीट आने लगा उच्च स्तरीय मास्क और सुरक्षात्मक उपकरणों का देश में कमी हो रही है, इसलिए जनता खुद को बचाने के लिए खुद ही सावधानी बरते और एकांतवास के चली जाए, किंतु इन सबके बीच मध्य प्रदेश में नई सरकार का निर्माण हो गया, आपात कालीन सत्र में बहुमत सिद्ध हो गया, और सपथ ग्रहण समारोह भी हो गया, इन सबके लिए बचाव के किस स्तर के उपायों का उपयोग किया गया, इस पर भी मंथन होना चाहिए, राजनीतिज्ञों के लिए क्या आइसोलेशन और क्वार्टराइन के उपाय जरूरी नहीं, बातें अधिक्तर हाथ धोने से घर से बाहर न निकलने तक आ पहुँची, पर पूरा विश्व इसके उपचार के लिए कोई दवा नहीं खोज पाया, एक वायरल हुए वीडियों में सुरजेवाला जी ने सरकार की सबसे बड़ी गलतियों को उजागर करते हुए स्वास्थ्य और मेडिकल उपकरणों के निर्यात को मार्च तक जारी रखने की बात करते हैं जिसकी वजह से आज डाक्टर्स और हास्पीटल स्टाफ के लिए संकटकाल उत्पन्न हो चुका है।
      हम सबको यह स्वीकार करना होगा कि, चीन के वूहान से प्रारंभ हुए इस वाइरस का प्रभाव, चीन के सहयोगी रूस और उत्तरी कोरिया में बहुत कम रहा, इतना ही नहीं चीन के वूहान के अलावा बीजिंग और संघाई जैसे शहरों में इसका क्या प्रभाव रहा इस पर किसी की नजर नहीं गई, यदि हम चीन के विरोधी देशों की बात करें तो यूएसए, दक्षिण कोरिया, यूके, फ्रांस, इटली, स्पेन, एशिया के विभिन्न देश विभिन्न रूप से प्रभावित हो गए, और वहां की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से पिट गई। वैश्विक विरोधाभाषों के चलते चीन और विभिन्न विरोधी देशों के बीच में चल रहे विद्वेश का आपातकालीन प्रभाव पूरे विश्व के अधिक्तर देश भोग रहे हैं। विकसित देशों की स्थिति जब हमारे सामने हैं, बीबीसी लंदन, और एएनआई न्यूज चैनल्स इन सब समाचारों से भरे पड़े हैं तब यह जरूरी हो गया है कि हम जैसे विकासशील देश मानवधर्म का परिचय देते हुए, स्वानुशासन का परिचय देते हुए ही खुद को और अपने देश की मानव प्रजाति को बचा सकते हैं। हमें समझना होगा कि यहाँ हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बने सभी अब भाई भाई के संदेश को हृदय से पालन करना होगा। आइसोलेशन और क्वार्टराइन से ही हम खुद को बचा पाएगें, हमें अपने सरकार और मंत्रिमंडल से उम्मीदों की आशा करने का हक तो बनता है।
      जब हमारे प्रधानमंत्री जी इक्कीस दिन के लिए जब पूरे देश को लॉक डाउन की घोषणा किए तब पूरे देश में विभिन्न प्रकार के आर्थिक आय वाले मजदूरों, दिहाड़ी करने वाले कामगारों और खेतिहर किसानों के लिए क्या व्यवस्था है, इस पर भी बात होनी चाहिए, दिहाड़ी मजदूर कैसे घर चलायेगें, रोज कमाने खाने वाले क्या करेंगें, सड़क पर दुकान लगाने वाले, फुटपाथी कारोबारी क्या करेंगें, देश में इतने उद्योगपति हैं, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले इवेंट और ब्रांड एम्बेस्डर हैं, विधायिका के जन प्रतिनिधि और शासकीय सेवा में इन्कम टैक्स देने वाले करोड़पति परिवार के लोग हैं, जो इनकी मदद के लिए आगे आएं, डाक्टर्स और हास्पीटल्स को मेडिकल उपकरणों, मास्क, और ग्लव्स की खेप देकर मदद कर सकते हैं, इतना ही नहीं सरकारें आर्थिक जनगणना के अनुसार आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों के लिए आर्थिक मदद के रूप में मासिक सहयोग राशि और दैनिक उपयोग  के लिए राशन उपलब्ध करायें, यदि हम अपने क्षेत्र की बात करें तो सीमेंट फैक्ट्रियाँ, मंदिर ट्रस्ट, सामाजिक संगठन और आर्थिक संगठनों के पदाधिकारिगण इन तबकों का पूरा सहयोग करें। इन सबके अलावा विभिन्न राज्यों की सरकारों और प्रशासनिक अधिकरियों को शासकीय अस्पतालों को सक्षम और सभी उपकरणों से लैस बनाने के लिए सरकारी खरीद के लिए विशेष फंड़ उपलब्ध कराये। अतिरिक्त बजट उपलब्ध कराने के लिए गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को सक्रिय कदम उठाए। जिला पंचायत जनपद पंचायतों, और ग्राम पंचायतों, खाद्य विभाग के अधिकारियों को एपीएल और बीपीएल के घरों में, मनरेगा मजदूरों, को कम से कम दो माह का राशन ईधन दवा सुविधाये उपलब्ध कराएं, आगनवाड़ी के माध्यम से, उचित मूल्य की दुकानो से महिलाओं, बच्चियों, और बस्तियों में इसका वितरण सुनिश्चित किया जाए। हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि जब आस्ट्रेलिया और आसपास के देशों में भयावह आग का कहर बरपा था तब प्रार्थनाएँ ही बरसात लाने के लिए कारगर सिद्ध हुई थीं, ऐसी ही प्रार्थनाओं की आवश्यता आज भी है  ताकी चीन की इस मूर्खता का, विश्व में मानव प्रजाति के उत्थान एवं सुरक्षा हेतु आशा और उम्मीद से कोई नया रास्ता सुनिश्चित किया जा सके।
      विभिन्न स्थानों पर रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों,  और असहाय लोगों, भिक्षुकों को बसेरा, या विभिन्न शासकीय स्थानों में सुरक्षित किया जाए उनके जीवन यापन की व्यवस्था की जाए। केंद्र सरकार ने इस हालात के लिए जिस पंद्रह हजार करोड़ का इंतजाम किया है उसके अतिरिक्त विधायक निधियाँ, सांसद निधियों को भी इसी कार्य के लिए उपयोग करने के लिए निर्देशित किया जाए, देश के पाश कार्पोरेटरों, जैसे अम्बानी ग्रुप, अडानी ग्रुप, टाटा ग्रुप, बिड़ला ग्रुप, बड़ी मेडिकल फार्मा कंपनियां अपने मुनाफे, वार्षिक लाभांश का कुछ प्रतिशत  जन सहयोग के लिए खर्च करें और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों के लिए सहायता का हाथ बढ़ाएँ। इतना ही नहीं देश में विभिन्न आश्रम, मठ, मंदिर, चर्च, मस्जिदों की कमेटियाँ, गुरुद्वारा समिति भी इस काम में आगे आकर जन समान्य का सहयोग करके देश को आर्थिक और समाजिक रूप से मजबूत बना सकते हैं, तभी देश की असमानता की खाई को पाटते हुए इस वैश्विक जैविक महामारी के आपातकाल से लड़ सकेंगे।जहाँ पूरा विश्व इस महामारी से जूझते हुए अपनी जान की बाजी लगा रहा है इस संकट के समय में निश्चित ही उदारता और जागरुकता का परिचय देते हुए ज्यादा कुछ नहीं तो अपने आसपास के सहायतार्थ लोगों को सहयोग कर सकते हैं। जन जन के सहयोग, जन जन के साथ से हम अपनी दृढ इच्छा शक्ति का प्रदर्शन करते हुए निश्चित ही इस आपातकाल से लड़कर खुद को, अपने परिवार को देश को बचा सकते हैं।
अनिल अयान, सतना
९४७९४११४०७
     
 

रविवार, 15 मार्च 2020

"आप" की सरकार बनाम आज के सरोकार

"आप" की सरकार बनाम आज के सरोकार 

विगत रविवार को अरविंद केजरीवाल जी दिल्ली के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, एक आई.आई.टियन से अपना कैरियर की शुरुआत करने वाले अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से वाणिज्यकर में सेवाएँ देते हुए समाज को सूचना कानून और सूचना के अधिकार के लिए जन जागरुकता लाने का काम किया, तथा अन्ना हजारे के आंदोलन में खुद की सहभागिता को मजबूत करते हुए आम आदमी पार्टी की स्थापना की और दिल्ली के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी को भारी मतों से हराकर अप्रत्याशित जीत दर्ज की, दिल्ली की जनता को आमजन के सरोकारों से जॊड़ते हुए उनका प्रचंड मत प्राप्त करके विगत दो बार मुख्य मंत्री के रूप में सेवाए दिया। शुरुआती दौर में आपको जनजागरुकता, और सूचना के अधिकार के लिए कई पुरुस्कारों से नवाजा गया, रमन मैग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित केजरीवाल को पहले तो राष्ट्रीय पार्टियाँ कुछ समय का कुकुरमुत्ता छाप कुछ समय हेतु उगी पार्टी मानकर खूब मजाक उड़ाया, और ना जाने कितने चुटकुले, कितने वीडियों कितने कार्टून अरविंद केजरीवालपर केंद्रित रहे, अरविंद केजरीवाल की अनय राज्यों में रैलियों में थप्पड़, और काली स्याही फेंकने की घटनाएँ उनके साथ उनके दृढ़ संकल्प को और बढ़ाने का काम किया। जिन पार्टियों ने आप पार्टी का मजाक बनाया और उसके ऊपर आरोप लगाए उन्ही पार्टियों को हराकर आपने तीसरी बार सरकार बनाने में खुद को सफलता दर्ज की। कई पार्टियाँ यह जोड़ घटाना करने में लग गई कि उनके पार्टियों के राजनेताओं के परिवार के वोट तो आप में नहीं चले गए। आम आदमी पार्टी ने कहीं आम आदमी की दुखती नब्ज को तो नहीं सहला दिया।
अरविंद केजरीवाल जो पूर्व से आईआईटी और ब्यूरोक्रेट के रूप में देश की मशीनरी को समझकर फूंक फूंककर कदम रखा, अन्ना आंदोलन के दम पर लोकपाल की नाव के सहारे विरोध का सागर पार करने की कोशिश की और आज अपने अनुभव, राजनैतिक समझ और संदर्भों को सही तरीके से देश में उपयोग करने में माहिर रहे, इसी का परिणाम है कि इस बार केजरीवाल ६०+ सीट के साथ कई राजनैतिक दलों की जमानत जब्त करवा दी और वर्तमान देश में सत्तारूढ़ भाजपा की बोलती बंद करने में सफलता प्राप्त की। स्टिंग आपरेशन, मंचीय चैलेंज, आतंकवाद और आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच में अरविंद केजरीवाल के उम्मीदवारों ने क्रिकेट के मैच के अंतिम ओवर्स में कंट्रोल योर नर्व्स को फालो किया और अपने जनविकास के मुद्दों से खुद को भटकने नहीं दिया। भाजपा के ट्रोल सिस्टम को ध्वस्त करते हुए, कांग्रेस के विरोध का सामना करते हुए आप पार्टी ने अपने किए गए कामों को जनता और देश के सामने रखा और खरीदे हुए न्यूज चैनल्स के लगातार बिकाऊ प्रसारणॊं और फरेबी एग्जिट पोल्स की पोल खोलकर रख दिया। जनता को राष्ट्रीय मुद्दों के पीछॆ भागने के बजाय, उनके रोटी कपड़ा और मकान, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, परिवहन, और आर्थिक सुदृढ़ता की नींव को मजबूत करने का काम किया और प्रचार प्रसार भी इन्हीं बातों का किया। सी.ए.बी की रिपोर्ट के अनुसार अगर दिल्ली को फायदे की सरकार का तमखा मिला तो क्यों मिला इस बात का प्रचार प्रसार अपनी खर्च सीमा के अंदर रहते हुए किया। अरविंद केजरीवाल ने हर प्रचार प्रसार में कम खर्च, सुलझी हुई रणनीति, मुफ्त बिजली, पानी, यातायात, महिलाओं को दी जाने वाली सुविधाओं को गिनवाया, तो क्या आने वाले समय में अन्य राज्यों को इससे सीख लेने के लिए आगे आना चाहिए। अन्य राज्यों और पार्टियों के लिए यह भी चिंतन विमर्श का मुद्दा बनेगा।
अरविंद केजरीवाल अब जब मुख्यमंत्री बन ही गए हैं तो उन्होन सौम्य रूप से राष्ट्रवाद को स्वीकार करते हुए देश की सेवा करने का फैसला किया है, आप सरकार की पुरानी गल्तियाँ जिसकी वजह से उनको मुँह की खानी पड़ी, अब न दोहराई जाए इस बात का उन्हें ध्यान रखना होगा, यह सच है कि केजरीवाल सरकार ने अपने कार्यकाल में काफी गल्तियाँ भी की, जिसमें डिक्टेटरशिप, सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँगना, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास जैसे आप के पुराने नीव के पत्थरों को पूरी तरह से वर्तमान आप से हटा देना, राष्ट्रीय मुद्दों पर मौन धारण कर मौनी बाबा की तरह व्यवहार करना, अब चुनाव के बाद कितना सही और कितना गलत निर्णय था यह जरूर आप की सरकार और केजरीवाल को सोचना होगा, दिल्ली विश्वविद्यालय, जे एन यू, जामिया इस्लामिया वि वि, गार्गी कालेज, श्री राम इस्टीट्यूट में हुई घटनाओं पर दिल्ली के राज्य सरकार की चुप्पी अब जनता को खल सकती है, शिक्षा की बात अगर हो रही है, तो उच्च शिक्षा में उठ रहे हाथ और हिंसा को दर्शक बने देखना आप की सरकार को शोभा नहीं देता, इतना ही नहीं शाहीन बाग का विरोध, दिल्ली के विभिन्न मुद्दों जिसमें आप का कोई राजनैतिक वैचारिक बिंदु निकल कर नहीं सामने आया उस पर भी अब बात करने की आवश्यकता है, अभी तक तो चुनाव की कसमकस और जीत हार के परिणाम की चिंता थी किंतु अब तो खुद पार्टी की सरकार है। जन सरोकारों के साथ साथ आज के राजनैतिक सरोकारों, राष्ट्रीय मुद्दों में दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री क्या सोचते हैं किसका पक्ष लेते हैं इसका भी पूरे देश को इंतजार है, यहाँ पर बात हिंदू और मुस्लिम की नहीं बल्कि सही पक्ष को सामने लाने की है, उदाहरण के लिए अगर दिल्ली मे महिला वर्ग को निशुल्क आवागमन की सुविधा देकर खुद को उनके बेटे के रूप में प्रतिस्थापित करते हैं तो गार्गी कालेज में हुए बच्चियों के साथ बर्बरता और जामिया में हुई हिंसा के संदर्भ में तो आप के विचार जनता और मीडिया तक आने की उम्मीद तो की जाती है। निर्भया कांड में डॆथ वारेंट, अपने पूर्व के कारनामों की भांति सत्तारूढ़ पार्टी के भ्रष्टनेताओं की पोल खोल अभियान की शुरुआत, दिल्ली के सेना के शहीदों के लिए दी जाने वाली सुविधाए और सम्मान राशि, दिल्ली में विभिन्न त्योहारों के दौरान पर्यावरण प्रदूषण के लिए और कारगर कदम, ब्यूरोक्रेसी और न्यायालयों पुलिस महकमे की कार्य प्रणाली को दुरुस्त करने की मुहिम और अन्ना हजारे जैसे मार्गदर्शन को मुख्यधारा से जोड़ने की कवादय में आम आदमी पार्टी कितनी कूबत रखेगी यह भी आने वाले सालों में देखना है।
यह निश्चित है कि नई सरकार नये पाँच साल, नये राजनैतिक और आर्थिक लक्ष्य सरकार के सामने होंगे,  नई योजनाओं से जनता जनार्दन की उम्मीदों में खरे उतरने की आशा केजरीवाल सरकार को सच्चे और अच्छे जननायक के रूप में आगे बढ़ने के लिए उर्जा का काम करेगी, लेकिन इन सबके बीच दिल्ली अपने राजकुमार को उन विभिन्न मुद्दों पर भी मुखर देखना चाहती है जिसमें उनकी खाँसी, उबासी, उनकी चुप्पी प्रश्नचिन्ह लगाकर किनारा कर लेती है, उच्चशिक्षा, महिला और बेटियों के मुद्दे, केंद्र और राज्य के बीच में असमान्जस्य के बीच, निर्भया कांड में डेथ वारेट में में पीडिता की माँ का सहयोग और सार्थक मदद करना तो भी उनका ही दायित्व बनता है।हमारे देश में बालक बालिकाओं का अनुपात किस तरह दिल्ली में बराबर रहे इस बात पर भी राज्य सरकार को सोचना चाहिए, आर्थिक मुद्दे के साथ साथ पारिवारिक और समाजिक मोर्चे पर भी आप सरकार को बेटियों, उनके परिवार और माता पिता को आर्थिक मजबूती प्रदान करने की पहल करना होगा। मुख्य मंत्री का अब विगत वर्षों की भाँति आंदोलन करना, अपने अधिकारों को केंद्र सरकार से न प्राप्त होने पर हो गया, कहकर आगे बढ़ जाना आदि क्रियाकलापों के अतिरिक्त भी अधिकार की लड़ाई लड़ने की योजना बनानी होगी, अरविंद केजरीवाल आने वाले दशकों में इस देश में एक नये व्यक्तित्व के रूप में स्थापित होने वाले राजनेता बनेगें, उनकी आम आदमी पार्टी आम आदमी की पीड़ा का निदान करने वाला अनुभवी वैद्य बनकर अपना नाम सार्थक करेगी इस हेतु उनको आज के मुद्दों पर चुप्पी तोड़ना होगा। तभी तीसरा कार्यकाल इस देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

ध्रुवीकरण व विकेंद्रीकरण के खेल में उलझी सियासत

"कमलनाथ" बनाम "कमलनाल" की राजलीला

ध्रुवीकरण व विकेंद्रीकरण के खेल में उलझी सियासत


मार्च का पहला सप्ताह मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के लिए हाई टेक ड्रामा लिए रहा, विधायकों के अपहरण की घटनाओं में कथित रूप से गुनहगार बनी भाजपा ने अपने कमल दल की पंखुडियों को समेट करके रख लिया है। राज्य में स्थापित कांग्रेस सरकार को खुद के हाथों के पंजे लड़ाने से फुर्सत नहीं हैं, सरकार बनने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्य मंत्री की दावेदारी को जिस तरह कमलनाथ जी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के लि सुयोग्य बताकर काबिज किया, इसी का परिणाम है कि विरोध की उस समय दबाई गई चिंगारी आज तेज लपटों के साथ कुर्सी की महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित कर रही है, सरकार के द्वारा लगातार बयान देना, सरकार के मंत्रियों के द्वारा सामूहिक स्तीफा, विधायकों को भाजपा की सह में पकड़ में लेना, रातो रात कांग्रेस की कैबिनेट बैठक, ज्योतिरादित्य जी का दिल्ली में भाजपा और प्रधानमंत्री जी से मिलना आदि कितनी ही घटनाएँ हैं जो मध्य प्रदेश सरकार को खतरे में डाल दी है। मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित वयोवृद्ध राजनेता कमलनाथ अपने पत्तों को इस खेल में सम्हालपाने में नाकामयाब हो रहे हैं, कांग्रेस की आंतरिक कलह हमेशा से उनके लिए सिर दर्द बनी हुई हैं, विधायकों की हार्स ट्रेडिंग करने के मामले में भाजपा पुरानी खिलाड़ी रही है, इसके पहले के अन्य राज्यों के चुनाव इस बात की गवाही देते रहे हैं।
इस खेल में माहिर भाजपा पहले तो असंतुष्ट विधायकों के विश्वास को अपने कबजे में लेकर सेंध मारी करती हैं, इसी खेल में कांग्रेस के असंतुष्ट विधायक और मंत्री भी फंस गए। भले ही कांग्रेस ने इतने महीने मध्य प्रदेश की सरकार को घटीस लिया हो किंतु राह इतनी सरल नहीं है जितनी की दिख रही है, सरकार बनाने के लिए लालची किस्म के विधायकों की गद्दारी, संगठन में वरिष्ठ और पावरफुल नेताओं का निरस्तीकरण, करोड़ों में बिक जाने वाले बिन पेंदी के विजेता राजनीतिज्ञ, पूरी तरह से सरकार के साथ विभीषणगिरी करते नज़र आए। अपने ही क्षेत्र की बात की जाए हमारे विधायक ही कांग्रेस से खफा होकर भाजपा का प्रचार करने उतरे, अजय सिंह राहुल, राजेंद्र सिंह, और अन्य कदवार नेताओं के बीच की फूट कांग्रेस में साफ दिखाई दी, विगत महीनों में हुए कमलनाथ जी के दौरे में ये स्थिति साफ दिखाई दी। इस तरह का भितरघात, और आंतरिक फूट कांग्रेस सरकार के लिए गढ़ को ढाने के लिए काफी थी। कांग्रेस को इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि कांग्रेस को इस लिए जीत नहीं मिली क्योंकि वो सत्ता में काबिज होने के लिए सर्व श्रेष्ठ थे, बल्कि कांग्रेस को इसलिए जीत मिली क्योंकि भाजपा की तीन पंचवर्षीय सरकार को ज्यादा ही अहंकार हो गया था, वो आरक्षण, घोटालों में लिप्त हो गई थी, उसने अनारक्षित आम जनमानस को चुनौती दी थी, जनता सब जानती है और उसी का परिणाम भाजपा ने मध्य प्रदेश में भोगा। इतने महीनों में भाजपा ने सिर्फ मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सियासी नौटंकी के देखा उनकी गल्तियों को नोट डाउन किया।
भाजपा की हाई कमान में कांग्रेस की मध्य प्रदेश सरकार पहले से निशाने में थी, दिल्ली चुनावों के बाद के नंबर में खड़ी मध्य प्रदेश की सत्ता उसकी पारखी नजरों के सामने दिन रात झूल रही थी, कई महीनों से लिखी पटकथा का रंगमंचन आखिरकार होली के अवसर पर ही प्रारंभ हुआ। मार्च की क्लोजिंग के बीच किरकिरी बनी मध्य प्रदेश सरकार अल्पमत में आने लगी, यदि इस पंचवर्षीय सरकार को कांग्रेस नहीं सम्हाल सकी तो उसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की आंतरिक पंजा लड़ाओ भागमभाग, मंत्री पद की विधायकों की लोलुपता, और अपने अपने स्वार्थ में आंतरिक पिसाव में चकनाचूर होता कांग्रेस का आंतरिक ढांचा माना जाएगा। कांग्रेस का ग्राफ जिस तरह पूरे देशा में अन्य राज्यों में गिर रहा है, वह कांग्रेस को दम तोड़ने भी न देगा, दम लगाकर हुंकार भरने भी न देगा, आजादी के पहले से स्थापित कांग्रेस को उन्हीं के भितघातियों ने नैया डुबाने वाली स्थिति पैदा कर दी है। राजशाही, जमींदारी, राजघराने वाले नेताओं से भरी कांग्रेस, आज भी अपने अपने पावर और अपने अपने गुटों में बटी कांग्रेस को एक जुट होकर राजनीति में उतरने की आवश्यता है, टुकड़े टुकड़े गैंग बनाने वाली कांग्रेस, परिवारवाद के चक्रव्यूह में घिरी कांग्रेस को चक्रव्यूह भेदन करने के लिए खुद का अभिमन्यु खोजना होगा, सर्व सम्मति से उसे सर्वाधिकार प्रदान करना होगा, राहुल गांधी जी को जिस उम्मीद के साथ कांग्रेस की कमान सौंपी गई वह तो पानी फेर गए, मीड़िया ने वैसे भी कांग्रेस की छीछालेदर की हुई है, कांग्रेस में संयोजन करने वाले कदवार राजनीतिज्ञों का अकाल इस बात का संकेत हैं, कांग्रेस को आगे बढ़ना है और सरकार बचाने की अग्नि परीक्षा में पास होना है तो निश्चित ही उसे अपने पंचत्त्वों को समाविष्ट करते हुए एक होना पडेगा पंजे को बंद करके मुट्ठी में बदलना पड़ेगा। तभी कमलनाथ सरकार बचेगी। कांग्रेस को समझना होगा कि अब युवा नेतृत्व को सत्ता में स्थापित किया जाए, विकेंद्रीकरण को ध्रुवीकरण में बदलने की आवश्यकता है।
भाजपा तो अपना खेल खेल रही है, वह खेल जो अन्य राज्यों में खेला गया, यदि यह खेल न खेला गया, तो मध्य प्रदेश की पूर्वभाजपा के नेताओं मंत्रियों के द्वारा फैलाए गए रायते की कढ़ी कमलनाथ सरकार बनाने की तैयारी कर रही है, राजनीति में सब जायज है, वो सब कुछ जो सत्ता पाने के लिए सही हो, इस में गिरावट का कोई मापदंड़ नहीं है, कोई भी नहीं, चाणक्य, और हिटलर की कही बातों को शब्दशः अपनाने वाले वर्तमान भाजपाई हर राज्य को भगवा रंग में रंगने के लिए युद्ध स्तर की तैयारी किए हुए हैं, मीडिया से लेकर, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तक नतमस्तक हो चुकी है, ऐसे विश्वविजेता भाजपा के विजय रथ के सामने घोड़े बेंचकर सोने वाली कांग्रेस कितना मजबूती से सामना कर मध्य प्रदेश के छत्रप को बचापाती है। यह तो आने वाला समय बताएगा, आज की राजनीति, किताबों की राजनीतिशास्त्र नहीं रह गई, बल्कि सामदाम दंड भेद वाली राजनीति हो गई हैं, जिसके केंद्र में पंचवर्षीय सरकार है, और इस केंद्र लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक गिरना पड़े तो गिरो। विभीषणों को अपने साथ मिलाते चलो तो विजय अपनी होगी वाले सिद्धांत को मानती भाजपा निश्चित ही मध्य प्रदेश की सत्ता के निकट हम सबको महसूस हो रही है, शह और मात के इस खेल में कांग्रेस अपनी फौज की वजह से कमजोर पड़ती जा रही है, और भाजपा कांग्रेस की फौज को मिलाकर खुद को मजबूत महसूस कर रही है। आने वाला भविष्य कमलनाथ है या कमलनाल का यह तो आने वाला भविष्य का अप्रैल बताएगा।

अनिल अयान

मंगलवार, 3 मार्च 2020

डॆथ वारेंट से उत्पन्न जनमानस पर प्रभाव

डॆथ वारेंट से उत्पन्न जनमानस पर प्रभाव
 निर्भया कांड के आरोपियों की फांसी का निर्णय वारेंट, डेथ वारेंट तीसरी बार निरस्त कर दिया गया, पहला वारंट सात जनवरी, को दूसरा वारेंट सत्रह जनवरी को और तीसरा वारंट सत्रह फरवरी को आदेशित किया गया।  दया याचिकाओं को जो दौर इस केस में देखने के लिए मिला वह अप्रत्याशित रहा। पटियाला हाउस के जज का यह कहना कि गुनहगारों को कोर्ट जब तक जीने का अधिकार देता है तब तक फांसी देना पाप है। दोषियों के वकील सिंह साहब कहते हैं कि मै दावे के साथ कह रहा हूँ कि तीन मार्च को फाँसी नहीं होगी।नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का के आकड़े बताते हैं कि इस तरह के मामले में छः से अधिक ड़ेथ वारेंट दिखावे के लिए जारी हुए किंतु फांसी नहीं दी गई, बस समय दर समय टलती रही। इन सभी तथ्यों से कुछ तस्वीर इस बात के लिए निश्चित हो जानी चाहिए कि अब उम्रदराज होती बेटी के माता पिता के लिये क्या बचता है यदि उनकी बेटी के साथ ऐसी कोई दुर्घटना भारत देश में हो जाये। निर्भया मामले में जिसमें इतना मीडिया, एनजीओ, और तात्कालीन प्रशासन और सरकार में परिवार का जो सहयोग किया उसका क्या औचित्य निकलता है जिसमें दोषियों को दोषी करार देने के बावजूद दया याचिकाओं के भंवर जाल में सुरक्षित रखा जा रहा है। क्या ऐसे तरीकों से फास्ट ट्रैक न्यायालयों के बारे में सोचना व्यर्थ हो जायेगा। क्या न्याय की उम्मीद करना छोड़ देना होगा।
      यह सोचने की आवश्यकता है कि आरोपियों के वकील किस पावर का इस्तेमाल करके फांसी ना होने का दावा कर रहे हैं, न्यायाधीश किस आईपीसी की धारा के अंतर्गत इस तरह के गैरमानवीय जघन्य अपराध में लिप्त आरोपियों को भगवान की दुहाई देकर डेथवारेंट निरस्त करने की घोषणा कर देते हैं। क्या राष्ट्रपति जी को जिस अधिकार के तहत दया याचिका में दया दिखाने का अधिकार है, तो ऐसे मामलों में दया निरस्त करके तुरंत फांसी देने के लिए न्यायालय को आदेशित करने का अधिकार नहीं है, यदि नहीं है तो क्या सरकार संसद में यह प्रस्ताव लाकर संविधान के अनुच्छेदों में बदलाव करने के लिए विशेष सत्र नहीं बुला सकती। परंतु सरकार यह काम क्यों करेगी, राष्ट्रपति जी, न्यायाधीश महोदय, यह काम क्यों करेंगें, सबके पास आईपीसी, संवैधानिक अनुच्छेदों की दुहाइयाँ हैं, सबके पास मजबूरियों का पोथन्ना है, किंतु रास्ता निकालने की राह के बारे में सोचने के लिए समय शासन प्रशासन और सरकार के पास नहीं है, सरकार के पास तो शाहीन बाग, दिल्ली विधान सभा चुनाव, ट्रंप यात्रा की तैयारियाँ और उपद्रवी आंदोलनकारियों को देखकर गोली ना मारा जाए इसके लिए कारण खोजने से फुरसत ही कहाँ है। न्यायालय महामहिम राष्ट्रपति और सरकार इन दोषियों को ससम्मान बरी करके समाज के लिए मिशाल कायम करने का काम करना चाहिए, जब फांसी नहीं दे पा रहे हैं, दोषियों के सामने और उनके वकील के सामने कानून, कायदा, संविधान सब बौने हैं तो किस तरह यह माना जाये कि हमारा देश बड़ा है, संविधान बड़ा, न्यायालय में तुरंत फुरंत न्याय होता है, इतना समय तो पावरफुल नेताओं के दोषियों को सजा सुनाने में भी न्यायालय को नहीं लगता है।
      जनमानस इस तरह की राजनैतिक नौटंकी को देख भी रहा है और समझ भी रहा है, कि अब अपने ही देश में ऐसे रैपिस्ट और उनके व्यवसायी वकील डंके की चोंट में न्यायालय के निर्णयों को चुनौती देगें और देश में रेप बढेगें, बदले में जनता के हाथों पर आने पर रैपिस्ट को सरे राह और सरे चौराहे पर पुलिस और जनता मौत के घाट उतार कर भीड़ में तब्दील हो जाएगी, और न्यायव्यवस्था और संविधान के लिए भी एक शब्द रहेगा, स्थगित। क्योंकि जब सरकारें अपने देश की बहन बेटियों की आबरू से खेलने वाले गुनहगारों के लिए फांसी के निर्णयों के लिए दया याचिकाओं पर विचार मंथन करने लगेगी तो निश्चित ही न्याय करने के लिए आम जनता ही कानून अपने हाथ में  लेगी। सरकार को इस समय अपनी आबरू बचाने के लिए सोचना पड़ रहा है, सरकार के लिए जब खुद नुमांइंदों के द्वारा काला अक्षर इतिहास के पन्नों में लिखा जा रहा हो तब इस बेगैरत व्यवस्था में आम जन और बेटियों के माता पिता को संघारक का रूप लेना ही पड़ेगा, कोर्ट कचेहरी के चक्कर से दूर खुद का न्याय करना ही पड़ेगा, अन्यथा देश की पालिकाओं, कार्यपालिका, न्यायपालिका, और विधायिका को अपने मूल कार्य को बिना एक दूसरे के दखल से करना पड़ेगा, जनता का टूटा हुआ विश्वास सत्ता में काबिज राजनेताओं के लिए आने वाले चुनावों में खतरनाक परिणाम दे सकता है। धर्म, और राजनीति के पाखंड के अलावा जनमानस में न्याय और कानून का ड़र बना होना देश के हित में होगा।
अनिल अयान, तना
९४७९४११४०७