बुधवार, 25 मार्च 2020

जैविक आपातकाल के बीच हमारे कर्तव्य


जैविक आपातकाल के बीच हमारे कर्तव्य
आज जब पूरा विश्व कोविड़-१९ से लड़ रहा है, और हमारे देश में प्रधानमंत्री जी ने जनता कर्फ्यू और फिर पूरे देश को इक्कीस दिन के लिए लॉक  डाउन करने की घोषणा कर दिया है, इन परिस्थितियों के बीच मे पूरा देश एक आपातकाल और अनुशासन की महीन रेखा में खड़े होने के लिए मजबूर हो चुका है, देश और राज्य हो या फिर समाजिक ढाँचा हो किंतु आज के समय की माँग है कि हम खुद को इस महामारी के तीसरे चरण के दौर में एक दूसरे से अलग कर लें, इन सबके बीच यह देखा जा रहा है, सोशल मीड़िया में जबर्जस्त रूप से अफवाहों का दौर चल रहा है, लोग सोचे समझे बिना ही एक दूसरे की पोस्ट्स और बातों को आने वाले परिणामों के बिना ही साझा करने से परहेज कर रहे हैं, भारत में रह रहे लोगों को विश्वभर की बातों को भावनात्मक जुड़ाव के साथ साझा किया जा रहा है और साथ में आगे भी शेयर करने की अपील की जा रही है, हम अपने देश के हालातों पर चर्चा नहीं करना चाह रहे हैं, हमारे पास इस महामारी से लड़ने के लिए क्या सुविधायें हैं इस पर हम बात नहीं करना चाह रहे हैं, हमारे देश में आज के समय में जितने भी कोविड़-१९ के केसेस सामने आये हैं, उनसे लड़ने और बचने के लिए क्या रास्ते अपनाने होंगे उन सब बातों को साझा करने की बजाय अफवाओं के बहाव में बहना बिल्कुल भी उचित नहीं हैं,
      भारत में जब यह वाइरस अपने पहले स्टेज में था, उस समय देश दुनिया से बेखबर हम अपने में व्यस्त थे, स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय इस बात से अनभिग्य था कि हमारे देश के पास इस महामारी से लड़ने के लिए क्या सुविधायें उपलब्ध थी, जनता कर्फ्यू के दिन भी हमारी मूर्खता एक नमूने जग जाहिर हुए, हमने कई निर्णयों का खूब विरोध किया, सरकारों को खूब गालियाँ दी, निर्णयों की खूब अबाही तबाही की, जनता कर्फ्यू के दिन हमारे देश में कई जगह लोग सड़कों पर अपनी वाहवाही का प्रदर्शन करते हुए दिखे। जब धीरे धीरे देश लॉक डाउन होते दिखा तो भी हम सतर्क नहीं हुए, प्रधानमंत्री जी जब पूरे देश को लॉक डाउन करने की घॊषणा किए तब समझ में आया कि देश के पास पर्याप्त सुविधायें नहीं हैं, और मेडिकल क्राइसिस के बीच में सुरक्षा और सावधानी ही बचाव है, हमारे देश के विभिन्न अस्पतालों के डाक्टर्स का ट्वीट आने लगा उच्च स्तरीय मास्क और सुरक्षात्मक उपकरणों का देश में कमी हो रही है, इसलिए जनता खुद को बचाने के लिए खुद ही सावधानी बरते और एकांतवास के चली जाए, किंतु इन सबके बीच मध्य प्रदेश में नई सरकार का निर्माण हो गया, आपात कालीन सत्र में बहुमत सिद्ध हो गया, और सपथ ग्रहण समारोह भी हो गया, इन सबके लिए बचाव के किस स्तर के उपायों का उपयोग किया गया, इस पर भी मंथन होना चाहिए, राजनीतिज्ञों के लिए क्या आइसोलेशन और क्वार्टराइन के उपाय जरूरी नहीं, बातें अधिक्तर हाथ धोने से घर से बाहर न निकलने तक आ पहुँची, पर पूरा विश्व इसके उपचार के लिए कोई दवा नहीं खोज पाया, एक वायरल हुए वीडियों में सुरजेवाला जी ने सरकार की सबसे बड़ी गलतियों को उजागर करते हुए स्वास्थ्य और मेडिकल उपकरणों के निर्यात को मार्च तक जारी रखने की बात करते हैं जिसकी वजह से आज डाक्टर्स और हास्पीटल स्टाफ के लिए संकटकाल उत्पन्न हो चुका है।
      हम सबको यह स्वीकार करना होगा कि, चीन के वूहान से प्रारंभ हुए इस वाइरस का प्रभाव, चीन के सहयोगी रूस और उत्तरी कोरिया में बहुत कम रहा, इतना ही नहीं चीन के वूहान के अलावा बीजिंग और संघाई जैसे शहरों में इसका क्या प्रभाव रहा इस पर किसी की नजर नहीं गई, यदि हम चीन के विरोधी देशों की बात करें तो यूएसए, दक्षिण कोरिया, यूके, फ्रांस, इटली, स्पेन, एशिया के विभिन्न देश विभिन्न रूप से प्रभावित हो गए, और वहां की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से पिट गई। वैश्विक विरोधाभाषों के चलते चीन और विभिन्न विरोधी देशों के बीच में चल रहे विद्वेश का आपातकालीन प्रभाव पूरे विश्व के अधिक्तर देश भोग रहे हैं। विकसित देशों की स्थिति जब हमारे सामने हैं, बीबीसी लंदन, और एएनआई न्यूज चैनल्स इन सब समाचारों से भरे पड़े हैं तब यह जरूरी हो गया है कि हम जैसे विकासशील देश मानवधर्म का परिचय देते हुए, स्वानुशासन का परिचय देते हुए ही खुद को और अपने देश की मानव प्रजाति को बचा सकते हैं। हमें समझना होगा कि यहाँ हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बने सभी अब भाई भाई के संदेश को हृदय से पालन करना होगा। आइसोलेशन और क्वार्टराइन से ही हम खुद को बचा पाएगें, हमें अपने सरकार और मंत्रिमंडल से उम्मीदों की आशा करने का हक तो बनता है।
      जब हमारे प्रधानमंत्री जी इक्कीस दिन के लिए जब पूरे देश को लॉक डाउन की घोषणा किए तब पूरे देश में विभिन्न प्रकार के आर्थिक आय वाले मजदूरों, दिहाड़ी करने वाले कामगारों और खेतिहर किसानों के लिए क्या व्यवस्था है, इस पर भी बात होनी चाहिए, दिहाड़ी मजदूर कैसे घर चलायेगें, रोज कमाने खाने वाले क्या करेंगें, सड़क पर दुकान लगाने वाले, फुटपाथी कारोबारी क्या करेंगें, देश में इतने उद्योगपति हैं, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले इवेंट और ब्रांड एम्बेस्डर हैं, विधायिका के जन प्रतिनिधि और शासकीय सेवा में इन्कम टैक्स देने वाले करोड़पति परिवार के लोग हैं, जो इनकी मदद के लिए आगे आएं, डाक्टर्स और हास्पीटल्स को मेडिकल उपकरणों, मास्क, और ग्लव्स की खेप देकर मदद कर सकते हैं, इतना ही नहीं सरकारें आर्थिक जनगणना के अनुसार आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों के लिए आर्थिक मदद के रूप में मासिक सहयोग राशि और दैनिक उपयोग  के लिए राशन उपलब्ध करायें, यदि हम अपने क्षेत्र की बात करें तो सीमेंट फैक्ट्रियाँ, मंदिर ट्रस्ट, सामाजिक संगठन और आर्थिक संगठनों के पदाधिकारिगण इन तबकों का पूरा सहयोग करें। इन सबके अलावा विभिन्न राज्यों की सरकारों और प्रशासनिक अधिकरियों को शासकीय अस्पतालों को सक्षम और सभी उपकरणों से लैस बनाने के लिए सरकारी खरीद के लिए विशेष फंड़ उपलब्ध कराये। अतिरिक्त बजट उपलब्ध कराने के लिए गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को सक्रिय कदम उठाए। जिला पंचायत जनपद पंचायतों, और ग्राम पंचायतों, खाद्य विभाग के अधिकारियों को एपीएल और बीपीएल के घरों में, मनरेगा मजदूरों, को कम से कम दो माह का राशन ईधन दवा सुविधाये उपलब्ध कराएं, आगनवाड़ी के माध्यम से, उचित मूल्य की दुकानो से महिलाओं, बच्चियों, और बस्तियों में इसका वितरण सुनिश्चित किया जाए। हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि जब आस्ट्रेलिया और आसपास के देशों में भयावह आग का कहर बरपा था तब प्रार्थनाएँ ही बरसात लाने के लिए कारगर सिद्ध हुई थीं, ऐसी ही प्रार्थनाओं की आवश्यता आज भी है  ताकी चीन की इस मूर्खता का, विश्व में मानव प्रजाति के उत्थान एवं सुरक्षा हेतु आशा और उम्मीद से कोई नया रास्ता सुनिश्चित किया जा सके।
      विभिन्न स्थानों पर रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों,  और असहाय लोगों, भिक्षुकों को बसेरा, या विभिन्न शासकीय स्थानों में सुरक्षित किया जाए उनके जीवन यापन की व्यवस्था की जाए। केंद्र सरकार ने इस हालात के लिए जिस पंद्रह हजार करोड़ का इंतजाम किया है उसके अतिरिक्त विधायक निधियाँ, सांसद निधियों को भी इसी कार्य के लिए उपयोग करने के लिए निर्देशित किया जाए, देश के पाश कार्पोरेटरों, जैसे अम्बानी ग्रुप, अडानी ग्रुप, टाटा ग्रुप, बिड़ला ग्रुप, बड़ी मेडिकल फार्मा कंपनियां अपने मुनाफे, वार्षिक लाभांश का कुछ प्रतिशत  जन सहयोग के लिए खर्च करें और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों के लिए सहायता का हाथ बढ़ाएँ। इतना ही नहीं देश में विभिन्न आश्रम, मठ, मंदिर, चर्च, मस्जिदों की कमेटियाँ, गुरुद्वारा समिति भी इस काम में आगे आकर जन समान्य का सहयोग करके देश को आर्थिक और समाजिक रूप से मजबूत बना सकते हैं, तभी देश की असमानता की खाई को पाटते हुए इस वैश्विक जैविक महामारी के आपातकाल से लड़ सकेंगे।जहाँ पूरा विश्व इस महामारी से जूझते हुए अपनी जान की बाजी लगा रहा है इस संकट के समय में निश्चित ही उदारता और जागरुकता का परिचय देते हुए ज्यादा कुछ नहीं तो अपने आसपास के सहायतार्थ लोगों को सहयोग कर सकते हैं। जन जन के सहयोग, जन जन के साथ से हम अपनी दृढ इच्छा शक्ति का प्रदर्शन करते हुए निश्चित ही इस आपातकाल से लड़कर खुद को, अपने परिवार को देश को बचा सकते हैं।
अनिल अयान, सतना
९४७९४११४०७
     
 

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