मंगलवार, 5 मई 2020

"शांति के पुजारी हम, जगत को बुद्ध देते हैं"

बुद्ध जयंती ७ मई पर विशेष-

"शांति के पुजारी हम, जगत को बुद्ध देते हैं"
हम भारत देश के रहवासी हैं इस बात का गर्व होता है हमें इसके पीछे कई कारण और गौरव की बातें हैं, उसमें से एक प्रमुख कारण हमारी धरती पर महात्मा बुद्ध का जन्म लेना भी रहा है। छतरपुर के श्रीप्रकाश पटेरिया,वरिष्ठ साहित्यकार लिखते हैं, मिलावट कुछ नहीं करते जो देते  शुद्ध देते हैं, शांति के पुजारी हम, जगत को बुद्ध देते हैं" हमारे देश ने विश्व को सिद्धार्थ के रूप में पैदा हुए गौतम बुद्ध दिया।" बुद्ध होना आसान नहीं है, उनके बारे में दलाई लामा का विचार है कि हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है। बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म को जानना है।
यह संयोग ही है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के ‍नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में अलविदा कह गए। वो अपनी पत्नी यसोधरा को को छोड़े तो उनके ऊपर निश्चित ही बहुत से सवाल खड़े किये गए, बहुत सी अंगुलियाँ उठी किंतु वो अपने ज्ञान के खोज को पूरा करने के पश्चात हमारी धरा में अपनी विचारधाराओं को स्थापित करने वाले नये धर्म को स्थापित करके गए जिसे बौद्ध धर्म कहा गया और उनके विचारों की बहने वाली धारा को बुद्ध दर्शन का नाम दिया गया। इस बुद्ध दर्शन के मुख्‍य तत्व : चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटकों का एक भाग है धम्मपद। प्रत्येक व्यक्ति को तथागत बुद्ध के बारे में जानना चाहिए। यह तीन मूल सिद्धांत पर आधारित माना गया है- अनीश्वरवाद .अनात्मवाद .क्षणिकवाद। यह दर्शन पूरी तरह से यथार्थ में जीने की शिक्षा देता है।
अनीश्वरवाद में बुद्ध ईश्वर की सत्ता नहीं मानते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद के नियम पर चलती है। प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात कारण-कार्य की श्रृंखला। इस श्रृंखला के कई चक्र हैं जिन्हें बारह अंगों में बाँटा गया है। अत: इस ब्रह्मांड को कोई चलाने वाला नहीं है। न ही कोई उत्पत्तिकर्ता, क्योंकि उत्पत्ति कहने से अंत का भान होता है। तब न कोई प्रारंभ है और न अंत। अनात्मवाद का यह मतलब नहीं कि सच में ही 'आत्मा' नहीं है। जिसे लोग आत्मा समझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। यह प्रवाह कभी भी बिखरकर जड़ से बद्ध हो सकता है और कभी भी अंधकार में लीन हो सकता है।स्वयं के होने को जाने बगैर आत्मवान नहीं हुआ जा सकता। निर्वाण की अवस्था में ही स्वयं को जाना जा सकता है। मरने के बाद आत्मा महा सुसुप्ति में खो जाती है। वह अनंतकाल तक अंधकार में पड़ी रह सकती है या तक्षण ही दूसरा जन्म लेकर संसार के चक्र में फिर से शामिल हो सकती है। अत: आत्मा तब तक आत्मा नहीं जब तक कि बुद्धत्व घटित न हो। अत: जो जानकार हैं वे ही स्वयं के होने को पुख्ता करने के प्रति चिंतित हैं।क्षणिकवाद के अनुसार  स ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ परिवर्तनशील है। यह शरीर और ब्रह्मांड उसी तरह है जैसे कि घोड़े, पहिए और पालकी के संगठित रूप को रथ कहते हैं और इन्हें अलग करने से रथ का अस्तित्व नहीं माना जा सकता।
बुद्ध जब अपने ज्ञान पुंज से विश्व प्रकाशवान करने का उद्देश्य बनाये तब हम पाते हैं कि बुद्ध के अनुयायी दो भागों मे विभाजित थे भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन लोगों ने संयास लिया उन्हें भिक्षुक कहा जाता है उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासक कहते हैं. इनकी न्यूनत्तम आयु 15 साल है. इसके अलावा इस धर्म में बौद्धसंघ में प्रविष्‍ट होने को उपसंपदा कहा जाता है.प्रविष्ठ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं- बुद्ध,धम्म,संघ। हर धर्म विभाजित हो जाता है और यह धर्म भी दो भागों में विभाजित हो गया जो 
हीनयान और महायान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धार्मिक जुलूस सबसे पहले बौद्ध धर्म में ही निकाला गया था.बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है.बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया है, दुख,  दुख समुदाय
दुख निरोध, दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा। बुद्ध ने इससे दूर होने के लिए अष्टांगिक मार्ग की बात कही जिसमें म्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प,
सम्यक वाणी, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि।बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्गों के पालन करने के उपरांत उसे निर्वाण प्राप्त होता है. अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, किसी भी प्रकार की संपत्ति न रखना, शराब का सेवन न करना, असमय भोजन करना, सुखद बिस्तर पर न सोना, धन संचय न करना, महिलाओं से दूर रहना नृत्य गान आदि से दूर रहना. आज के समय पर यह बहुत कठिन हो गया धारण करना।
अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्धधर्म और जैन धर्म में समानता है। गौतम बुद्ध को भी हिन्दुओं के वैष्णव सम्प्रदाय में को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। दशावतार में वर्तमान में ९वाँ अवतार बुद्ध को माना जाता है। बुद्ध, विष्णु के अवतार के रूप में बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख पुराणों तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- कलयुगीय अधर्म की स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा।  कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है, हरिवंश पर्व, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, गरुड़ पुराण, अग्निपुराण, नारदीय पुराण, लिंगपुराण, पद्म पुराण आदि।  हिन्दू ग्रंथों में जिन बुद्ध की चर्चा हुई है वे शाक्य मुनि (गौतम) से भिन्न हैं-तथापि हिन्दू ग्रंथों में जिन बुद्ध की चर्चा हुई है वे शाक्य मुनि (गौतम) से भिन्न हैं- बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति (श्रीमद्भागवत) इस भागवतोक्त श्लोकानुसार बुद्ध के पिता का नाम 'अजन' और उनका जन्म 'कीकट' (प्राचीन उड़ीसा?) में होने की भविष्यवाणी की गयी है। 
बुद्ध ने कुछ बातें हिंदु धर्म के विरोध में भी प्रचारित की जैसे गौतम बुद्ध ने ब्रह्म को कभी इश्वर नहीं माना। ब्रह्मा की आलोचना खुद्दुका निकाय के भुरिदत जातक कथा में कुछ इस तरह मिलती है: "यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का "ईश्वर" है और सब प्राणियों का स्वामी हैं, तो उसने लोक में यह माया, झूठ, दोष और मद क्यों पैदा किये हैं? यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का "ईश्वर" है और सब प्राणियों का स्वामी है, तो हे अरिट्ठ! वह स्वयं अधार्मिक है, क्योंकि उसने 'धर्म' के रहते अधर्म उत्पन्न किया।" बुद्ध ने आत्मा को भी नकार दिया है और कहा है कि एक जीव पांच स्कन्धो से मिल कर बना है अथवा आत्मा नाम की कोई चीज़ नहीं है। बुद्ध ने वेदों को भी साफ़ तौर से नकार दिया है। इसका उल्ल्लेख हमे तेविज्ज सुत्त और भुरिदत्त जातक कथा में मिलता है। बुद्ध, अरिट्ठ को सम्भोधित करते हुए कहते है : "हे अरिट्ठ ! वेदाध्ययन धैयेवान् पुरुषों का दुर्भाग्य है और मूर्खो का सौमाग्य है। यह (वेदत्रय) मृगमरीचिका के संमान हैं। सत्यासत्य का विवेक न करने से मूर्ख इन्हें सत्य मान लेते हैं। हिन्दू धर्म जहा चार चार वर्ण में भेद बताता है तो वही बुद्ध ने सभी वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) को समान माना। अस्सलायान सुत्त इस बात की पुष्टि करता है कि सभी वर्ण सामान है। [9] बुद्ध का वर्ण व्यवस्था के खिलाफ एक प्रसिद्ध वचन हमें वसल सुत्त में कुछ इस प्रकार मिलता है :"कोई जन्म से नीच नहीं होता और न ही कोई जन्म से ब्राह्मण होता है। कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से ही कोई ब्राह्मण होता है।"
बुद्ध के जन्म दिवस के अवसर जब हम बुद्ध को याद कर रहे हैं तो यह जरूरी है कि महात्मा बुद्ध अपने परिवार और समाज से जिस प्रकार छोड़कर अपने ज्ञान विवेक और धर्म का मोहपाश तैयार किया वह भारत में आज भी मौजूद है यह पाश आज भी समाज को एकैक की भावना को बनाये हुए हैं, विश्व में तो बुद्ध को स्थापित करने के लिए विभिन्न देश बौद्ध धर्म और महात्मा बुद्ध को अपना आराध्य मानते हैं वैश्विक धर्मों में बौद्ध धर्म आज भी शीर्ष में बना हुआ है। यह सिद्ध करता है बुद्ध कालखंडीय नहीं है बल्कि वैश्विक, सर्वकालिक और चिरकाल तक मानव सभ्यता में वास करने वाले हैं, यहीं उनकी श्रेष्ठता और महानता को परिभाषित करता है।

अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

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