रविवार, 24 मई 2020

लॉक डाउन में फंसे मास्साहब

लॉक डाउन में फंसे मास्साहब
मार्च के अंतिम सप्ताह से लॉक डाउन प्रारंभ हो गया था, आज इस का 4.0 संस्करण समाप्त होने की कगार में है, आगे अभी कितनी अवधि के लिए यह आपातकालीन व्यवस्था बढ़ेगी कोई नहीं जानता, इस समय पर सभी ने भरपूर संघर्ष किया, खुद को बचाने, समाज को बचाने, सभी को जागरुक बनाने के लिए भरसक प्रयास किये गये, और उसी का परिणाम था कि हम सब अपने आप को सुरक्षित रह पाये, लॉकडाउन प्रारंभ होना ही था कि परीक्षाएँ बच्चों के सिर पर थी, महाविद्यालय, प्रवेश परीक्षा, बोर्ड परीक्षाएँ सिर पर खड़ी थी, इसकी घोषणा के चलते अधिक्तर परीक्षाएँ स्थगित कर दी गई, कक्षा नौंवी तक जनरल प्रमोशन देकर पास कर दिया गया। उच्च शिक्षा जगत, और स्कूल शिक्षा जगत पूरी तरह से सकते में आ गया, लगभग पचहत्तर दिनों का यह दौर मार्च से जून तक का जो होता है वह स्पष्ट रूप से शिक्षक, शिक्षा, विद्यालय, बच्चों और अभिभावकों के लिए बहुत दुख दायी रहा। बीच मझधार में फंसी ट्रेन का ना कोई सिग्नल था और ना ही कोई स्टॆशन, क्योकि स्टेशन मास्टर ही बैरी पिया बन गये, आपातकाल की इस तिमाही में आर्थिक टूटन से ग्रसित होने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं की पीड़ाओं को समझने वाले ना संगठन थे, ना निदान करने वाले प्रशासनिक कदम उठ सके।
इस अवसाद से बचने के विद्यालयों और महाविद्यालयों में वैकल्पिक संसाधन खोजे गये ताकि बच्चों को बाँधे रखा जा सके, इसके लिए सिपाहियों के रूप में शिक्षा के सिपेहसालार शिक्षक और शिक्षिकाओं को काम सौंपा गया, ताकि वो बच्चों से संपर्क साध सकें, ताकि ये तीन महीने कहीं विद्यालयों और महाविद्यालयों के लिए पतझड़ ना बन जाये, बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि परीक्षाओं के बीच मझधार में फंसे ये तीन महीने की छुट्टियाँ न मरने देने वाली ना मोटाने वाली शाबित हुई, स्कूल काँलेज सब बंद होने की वजह से सही मार्गदर्शन मिलना कठिन हो गया, इन सबके बीच सरकार और शिक्षा मंत्रालय ने बहुत सी एडवाइजरी जारी की ताकि बच्चों को परीक्षाओं के भय से दूर रखा जा सके, बच्चों के अभिभावक सुख चैन से बच्चों की परवरिश कर सकें, उधर दूसरी तरफ स्कूल कालेज बंद होते ही इस प्रवेश के मौसम में सूखा  पड़ गया, सब जब घरों में कैद हो गये उस बीच में स्कूल में किस बात का एडमीशन, बच्चों के इस अकाल उत्सव  में स्कूल कालेज ने बच्चों के संपर्क सूत्र खोजकर व्हाट्स ऐप समूह बनाये गये, उसमें लाइव क्लासेस के लिए जूम ऐप का उपयोग किया, सरकार ने जूम ऐप को गैरकानूनी करार कर दिया तो भी शासकीय और प्राइवेट स्कूल कालेज और अन्य संस्थानों ने इसका खूब प्रयोग किया। कुल मिलाकर घर बैठे शिक्षक और शिक्षिकाओं को बच्चों को व्यस्त रखने के लिए दिन रात लाइव क्लासेस लगाने का स्वांग रचना पड़ा, जिन मोबाइल्स का उपयोग करना शिक्षक शिक्षिकाओं को वर्जित था, बच्चों को इसकी वजह से सजा मिलती थी उसी को सशक्त माध्यम बनाकर विरोधाभाष खड़ा कर दिया गया। कोचिंग और ट्यूशन तक बंद करने की दशा में शिक्षक शिक्षिकाओं के घर में आर्थिक अकाल और आपातकाल की स्थिति बन गयी।स्कूल और कालेज प्रबंधन के पास तो इतनी भी समाइत नही थी कि इनके बदले वो इन शिक्षक शिक्षिकाओं को कम से कम कुछ ज्यादा वेतन मान दे सकते, और तो और उनके वेतनमान से भी कटौती करने की नौटंकी शुरू हो गयी। 
विद्यालयों और महाविद्यालयों ने भी आधी अधूरी तन्ख्वाह देकर एक सुंदर सा संदेश दे दिया कि इस आपातकाल में हमारे पास धन का अकाल आ गया है, आप शिक्षा दान देते रहो और विद्यालय महाविद्यालय परिवार की निस्वार्थ भाव से सेवाकरते रहो, हम आपको वेतन का कुछ प्रतिशत देकर उपकृत करते रहेंगें, लाइव वीडियो, आनलाइन क्लासेस, सोशल मीडिया समूह में बच्चों को पकड़ने की यह कोशिश स्कूल जिन शिक्षक शिक्षिकाओं के माध्यम से जारी रख रहा है उनके परिवार के प्रति इस तरह का ओछा व्यवहार यह बता दिया कि संकटकाल में शिक्षकों का हुनर ही उनका सहारा है, चाहे स्कूल हो या घर हो, शासकीय शिक्षक शिक्षिकाओं का तो हाल इसलिए ठीक था कि वेतन से एक दिन का वेतन सरकार ने अनुदान के रूप में नहीं दिया, प्राइवेट स्कूल कालेज में तो अप्रैल तो अप्रैल, मई जून भी पूरा अकाल ही अकाल और भयंकर सूखा दिखाया जा रहा है, उपकृत करने वाली धनराशि जो स्कूल कालेज के द्वारा शिक्षक शिक्षिकाओं के खाते में बतौर आपातकाल का वेतन भेजा जाता है वह तो ऊँट के मुंह में जीरा की तरह होता है। इस आपातकाल में चालाक किस्म के विद्यालयों और महाविद्यालयों ने अपने संगठनों की बैठकें आयोजित करके सरकार और प्रशासन तक को अपने वश में कर लिया कि ये संगठन अतिगरीब हैं, जो वेतन दे पाने में असमर्थ हैं, सोचने वाली बात है कि साल भर की फीस ये स्कूल कालेज अभिभावकों से लेते हैं, या तो आनलाइन फीस जमा करवाते हैं, तब बसंत होता है, और नब्बे दिन का आपातकाल आ गया तो धन का अकाल हो गया, समय समय का फेर देखिये देश के अनेक शहरों के विद्यालय महाविद्यालय के मैनेजमेंट जो आज तक इस तरह के संगठनों की बैठकों में जाना खुद की तौहीन समझते थे वो भी इसलिए बैठकों में शामिल हो रहे हैं कि इसी बहाने संगठन में शक्ति का प्रयोग करके शिक्षक शिक्षिकाओं का वेतन पूरा न देना पड़े।
आपातकाल में जब हर वर्ग संकट में है उस बीच में शिक्षा जगत के ये नुमांइदे बहुत ही शालीन और संकोची होते हैं, किसी से मांग नहीं सकते, राशन की दुकान में खड़े नहीं हो सकते, मैनेजमेंट से वेतन के बारे में पूछ नहीं सकते, भले ही नमक रोटी खा लें, जमा पूंजी खर्च कर दें, पर रहेंगें संस्था के प्रति समर्पित ही, कई सकूल कॉलेज के मैनेजमेंट ने ऐसा कहर ढ़ाया कि स्टाफ की छटनी कर दी क्या टेम्प्रेरी क्या पर्मानेंट, कई शिक्षक शिक्षिकाओं को प्रमोशन का लॉली पाप थमाकर अचानक की झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया, शिक्षा के सिपेहसालारों के गाल पर। इन सब परिस्थितियों में को देखकर ऐसा लगा कि शिक्षक शिक्षिकाएँ अगर मजबूरीवश नंगे हुए सालीनता से भिखारी बने तो दूसरी तरफ स्कूल और कॉलेज तो शौकियन ही नंगे हो गये, और भिखारी बनकर धन अकाल का प्रदर्शन करने लगे। शिक्षक शिक्षिकाएँ इस पूरी माहौल में असहाय इसलिए भी हैं क्योंकि उन्हें यदि बेरोजगार नहीं होना है तो भागे भूत की लंगोटी मिल तो रही हैं, वो इसी बात पर खुद को भाग्यवान समझ रहे हैं,जिन बच्चों और शिक्षक शिक्षिकाओं की वजह से स्कूल कालेज अपने शिखर तक पहुँचते हैं, उन मास्साहबों और मास्टरी साहिबाओं के परिवारों की इस दुर्गति के लिए कौन जिम्मेवार है प्रश्न यह नहीं है, किंतु इस तरह बीच मझधार में अकेला छॊड़ देना शिक्षा जगत की माफियागिरी नहीं तो और क्या है, अपने हिसाब से काम करने वाले और नये रास्ते प्रतिपादित करने वाले ये प्राइवेट विद्यालय और महाविद्यालय शिक्षा के बाजार में झंडावरदार बने बैठे हैं और इन प्राइवेट विद्यालयों और महाविद्यालयों के संगठन हैं तो इन मास्साहबों के संगठन अगर हैं तो इस अत्याचार को क्यों बर्दास्त कर रहे हैं। सरकार के पास इन बेसहारों के लिए कोई सहायता है भी या नहीं इस का उत्तर किसी के पास नहीं है, संबंधित शिक्षा बोर्ड़ के पास इस समस्या का निदान क्या हो सकता है शिक्षा विभाग और संबंधित विभागों और मंत्रालयों के पास शिक्षा के इन सुपात्रों के भविष्य के लिए कोई योजना नहीं है, इन परिस्थितियों में जब इनका ना कोई बीमा, ना कोई आर्थिक पैकेज, ना कोई आर्थिक मदद, ना कोई नेतृत्व हैं उन परिस्थितियों के बीच इनके पालन हार कौन बनकर इनको कौन उबारेगा यह सवाल पूरे समाज को खोजना होगा।

अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

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