सोमवार, 11 मई 2020

काहे का लॉक डाउन, काहे की सोशल डिस्टेंसिंग

काहे का लॉक डाउन, काहे की सोशल डिस्टेंसिंग

समाचार देखना और पढ़ना दोनों का अब अलग अलग अर्थ रह गया है, देखने वाले समाचार अब मात्र समय बिताने का माध्यम रह गये हैं, समाचार चैनल्स की विश्वसनीयता की भी संदेह के घेरे में आ चुके हैं, समाचार चैनल्स के मालिक कितनी बार फेक न्यूज दिखाने की वज़ह से पब्लिक में माफी माँग चुके हैं, प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता में अभी भी सब निःसंदेह हैं, प्रिंट मीडिया के आंकड़े विश्वास करने योग्य हैं, वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया की राम कहानी तो अविश्वास पर टिकी हुई हैं, मुद्दों को ट्रोलिंग, कट्टर पंथी और कम्यूनिस्ट के नाम से बंटे यूजर्स अपने अपने चश्में से जूतम पैजार करने में लिप्त पाए जाते हैं। आपको लगता होगा कि मै कहाँ की बात लेकर बैठ गया, टाइटल कुछ और हैं बाते कुछ और शुरू हुई, किंतु ऐसा नहीं है मीडिया का लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग को जन जन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम है। 
सरकारों और प्रशासन का अपना मत है, लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर, उद्योगपतियों और पूंजी पतियों का अपना मत है। विभिन्न देशों का अपनी अर्थ व्यवस्था के अनुरूप अलग अलग विचार है इस मुद्दे पर, लेकिन वर्तमान में सबसे ज्यादा पीडित, पलायन कर रहे मजदूर, घर बैठे वर्क फ्राम होम कर रहे नौकरी पेशे से जुड़े हुए लोग हैं, मानसिक दबाव बढ़ रहा है, सरकारों की घॊषणाओं को ना पूँजीपति पालन कर रहे हैं, मध्यमवर्ग की जमा पूँजी खत्म होने को है, कई लोगों को प्राइवेट नौकरियों से निकाल दिया गया, या घर बिठा दिया गया, सरकारों को उन सबके लिए कोई फुरसत नहीं है, ये लोग ना ही सड़कों में खाना मांग सकते हैं और ना ही राशन की दुकानों में खड़े होकर गल्ला इकट्ठा कर सकते हैं, सरकारी आर्थिक मदद इन लोगों के लिए नहीं होती, ये बीच के समाजिक कुनबे से ताल्लुकात रखने वाले लोग हैं। इसलिए इनकी मरन सबसे ज्यादा है, दिखावे की जिंदगी में मसगूल ये लोग अपने जीवन यापन के लिए नौकरी खोजने या काम में लौटने का इंतजार कर रहे हैं।
विभिन्न माध्यमों से जब सुनने में आता है, कि लॉक डाउन बढ़ेगा तो आशाएँ समाप्त होने लगती हैं, वजह यह है कि हमारी पहचान में देश के विभिन्न प्रदेशों से पुलिस, चिकित्सा वर्ग के लोग हैं, और उनकी स्थिति सुनकर ऐसा लगता है कि वो अब ऐसा युद्ध कर रहे हैं जहाँ पर उनके पास अस्त्र शस्त्र हैं ही नहीं, सब थक चुके हैं, हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी और अन्य मंत्री, मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री और अन्य मत्री अपनी घोषणाएँ कर रहे हैं, आश्वासनों की बाढ़ आ रही हैं, पर यह सब कहाँ विनमय किया जा रहा है, इनकी घॊषणाओं के बाद विभिन्न प्रदेशों से मजदूर घर लौट रहे हैं, भूखे, प्यासे, लुटे हुए, ठगे हुए, बेबस ये लोग मक्कार लोगों, पूँजीपतियों की वजह से लाचार होकर अपनी माटी की ओर लौट रहे हैं, सरकारों की योजनाएँ, सुविधाएँ भोजन, आर्थिक मदद क्या इनके लिए नहीं हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है, वहीं दूसरी तरफ सरकार पचास दिन होने के बाद अब होश में आकर ट्रेनों, बसों और विभिन्न माध्यमों से बच्चों और मजदूरों को भूसे की तरह भरकर गंतव्य में पहुँचाने का स्वांग भर रही है। यह काम लॉक डाउन के पहले क्यों नहीं किया गया। इसका जवाब किसी के पास नहीं है, और जिसके पास है वो चुप बैठा है।
लॉक डाउन का मजाक बनकर रह गया है, जो दिखाया जा रहा है, वो सच कितना है यह कोई नहीं जानता, घोषणाए नाम भर की हो रही हैं, व्यवस्थाएँ संतोषप्रद नहीं हैं, देवालय से ज्यादा महत्ता आबकारी और शराब के ठेकों को दी जा रही है, उद्योगों से मजदूरों को भगा दिया गया है, अब उद्योग या मशीनों को कौन चलाएगा इस का जवाब किसी के पास नहीं है, किसानों की फसलें बारिस आंधी पानी में खराब हो रही हैं इसका कोई उत्तरदायित्व नहीं ले रहा है, मेडिकल स्टाफ और सुविधाएँ अस्त व्यस्त हैं इसका जवाब किसी के पास नहीं है, बस लॉक डाउन  की गिनती, १.०, २.०, ३.०, ४.० गिनवाया जा रहा है, हाथ धुलवाने, एक मीटर की दूरी बनाने की बातें की जा रही हैं, और इन सब नियमों की धज्जियाँ खुद ब खुद उड़ाई जा रही हैं, जिसके लिए कोई भी सवाल जवाब पूँछना बताना गलत माना जाता है। हम संक्रमण की तीसरी स्टेज में प्रवेश कर चुके हैं, हमारे निर्णय बहुत देर से जनता के सामने आ रहे हैं, रिजर्व बैंक और सरकार के कर्जे से जनता अनजान हैं, पीएम केयर्स में सब उलझ कर रह गए हैं, इन सबके बीच में यदि जनता को खुद को बचाना है तो खुद ही हाथ पैर मारना होगा, यही शास्वत सत्य है।
मौतें बढ़ रही हैं, दवाएँ हम खोज नहीं पाए हैं, हम अपनी गल्तियों से बहुत देर के बाद सीख लेते हैं, सरकारे इसके लिए उत्तर दायी हैं, सरकारे सिर्फ एलिट वर्ग के लिए उत्तरदायी हैं, आम जन, मजदूर किसान के लिए कोई उत्तरदायी क्यों नहीं है, ट्रैक पर उनकी मौतें हों, सडक हादसों पर उनकी मृत्यु का भी मीडिया उत्सव मना रही है। सरकार के हाथ से नियंत्रण निकलता जा रहा है। ऐसा सबको महसूस होता है। हास्पीटल्स और वहाँ काम करने वाले लोगों की दुर्गति को हम नजरंदाज नहीं कर सकते। प्रशासन के द्वारा बनाई गई सारी व्यवस्थाएँ धीरे धीरे अव्यवस्थित हो रही हैं, क्वारेंटाइन सेंटर्स की स्थिति, सोशल डिस्टेंसिंग को मानना, ग्रीन सिटी अब धीरे धीरे रेड़ जोन में बदल रहे हैं, इन सबके बीच में कड़े नियमों में ढील देना, शराब की दुकानें खोलना, भीड़ जुटाने की सरकारी व्यवस्था क्यों की जा रही हैं, रोज जहाँ मौतों का आंकड़ा सैकडो़ं से पार है, संक्रमण का आंकड़ा हजारों में हैं उन सबके बीच लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग का मखौल उडाया जा रहा है। मीडिया जागरुक करने की बजाय, धर्म और जातिगत बहसों, प्रायोजित कार्यक्रमों में व्यस्त है, चैनल्स न्यूज को न्यूड कर के तमाशा दिखा रहे हैं।
हम सबको यह स्वीकार कर लेना चाहिए लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द अब अपने अर्थ की खोज में लग गए हैं, सरकारों के पास मात्र यह आदेश हैं, प्रशासन के पास लोगों को घर पहुँचाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है, मेडिकल फील्ड के डाक्टर्स और अन्य स्टाफ मजबूर बन चुका है, क्वारेंटाइन सेंटर्स अजायब घर बनकर रह गए हैं, इस मर्ज की कोई दवा हम खोज नहीं पाए हैं, योजनाओं से और घोषणाओं से आप इस महामारी से खुद को नहीं बचा सकते हैं, जीवन यापन करना है तो निश्चित ही हमें काम के लिए निकलना पड़ेगा, हम चाँदी की चम्मच लेकर तो पैदा नहीं हुए जिसके लिए सरकारे नतमस्तक हैं। हम अपना काम करे सरकार और प्रशासन को अपना काम करने दें, क्योंकि वो हमारे पीछॆ डंडा लेकर नहीं दौड़ सकते हैं।
हमें अपनी सुरक्षा, अपने परिवार की रक्षा, उनके लिए रोटी कपड़ा मकान की व्यवस्था खुद करना है, सरकार मजबूर होकर अब हम सबको सतर्क कर सकती है, हम सबको घर पर नहीं बिठा सकती, हम सबका स्वविवेक है कि लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्दावली को समझने की बजाय आवश्यकतानुसार अपने बचाव के लिए उपयोग करे और सांप भी मर जाए लाठी भी न टूटे वाली कहावत को चरितार्थ करें, इतने लॉक डाउन  देखने के बाद हम सबको मान लेना चाहिए कि हमारी सुरक्षा और बचाव के लिए हम जिम्मेदार है, और हमारे पहल करने से ही हम बच सकते हैं, क्योंकि आने वाले समय में सरकारें जिस तरह की छूट दे रही हैं वो हमारे लिए और घातक है। इसलिए अपने प्रति जागरुक बनें और हम अपनी सुरक्षा खुद करें, सरकार को अपना काम करने दें। 

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