रविवार, 24 मई 2020

लॉक डाउन में फंसे मास्साहब

लॉक डाउन में फंसे मास्साहब
मार्च के अंतिम सप्ताह से लॉक डाउन प्रारंभ हो गया था, आज इस का 4.0 संस्करण समाप्त होने की कगार में है, आगे अभी कितनी अवधि के लिए यह आपातकालीन व्यवस्था बढ़ेगी कोई नहीं जानता, इस समय पर सभी ने भरपूर संघर्ष किया, खुद को बचाने, समाज को बचाने, सभी को जागरुक बनाने के लिए भरसक प्रयास किये गये, और उसी का परिणाम था कि हम सब अपने आप को सुरक्षित रह पाये, लॉकडाउन प्रारंभ होना ही था कि परीक्षाएँ बच्चों के सिर पर थी, महाविद्यालय, प्रवेश परीक्षा, बोर्ड परीक्षाएँ सिर पर खड़ी थी, इसकी घोषणा के चलते अधिक्तर परीक्षाएँ स्थगित कर दी गई, कक्षा नौंवी तक जनरल प्रमोशन देकर पास कर दिया गया। उच्च शिक्षा जगत, और स्कूल शिक्षा जगत पूरी तरह से सकते में आ गया, लगभग पचहत्तर दिनों का यह दौर मार्च से जून तक का जो होता है वह स्पष्ट रूप से शिक्षक, शिक्षा, विद्यालय, बच्चों और अभिभावकों के लिए बहुत दुख दायी रहा। बीच मझधार में फंसी ट्रेन का ना कोई सिग्नल था और ना ही कोई स्टॆशन, क्योकि स्टेशन मास्टर ही बैरी पिया बन गये, आपातकाल की इस तिमाही में आर्थिक टूटन से ग्रसित होने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं की पीड़ाओं को समझने वाले ना संगठन थे, ना निदान करने वाले प्रशासनिक कदम उठ सके।
इस अवसाद से बचने के विद्यालयों और महाविद्यालयों में वैकल्पिक संसाधन खोजे गये ताकि बच्चों को बाँधे रखा जा सके, इसके लिए सिपाहियों के रूप में शिक्षा के सिपेहसालार शिक्षक और शिक्षिकाओं को काम सौंपा गया, ताकि वो बच्चों से संपर्क साध सकें, ताकि ये तीन महीने कहीं विद्यालयों और महाविद्यालयों के लिए पतझड़ ना बन जाये, बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि परीक्षाओं के बीच मझधार में फंसे ये तीन महीने की छुट्टियाँ न मरने देने वाली ना मोटाने वाली शाबित हुई, स्कूल काँलेज सब बंद होने की वजह से सही मार्गदर्शन मिलना कठिन हो गया, इन सबके बीच सरकार और शिक्षा मंत्रालय ने बहुत सी एडवाइजरी जारी की ताकि बच्चों को परीक्षाओं के भय से दूर रखा जा सके, बच्चों के अभिभावक सुख चैन से बच्चों की परवरिश कर सकें, उधर दूसरी तरफ स्कूल कालेज बंद होते ही इस प्रवेश के मौसम में सूखा  पड़ गया, सब जब घरों में कैद हो गये उस बीच में स्कूल में किस बात का एडमीशन, बच्चों के इस अकाल उत्सव  में स्कूल कालेज ने बच्चों के संपर्क सूत्र खोजकर व्हाट्स ऐप समूह बनाये गये, उसमें लाइव क्लासेस के लिए जूम ऐप का उपयोग किया, सरकार ने जूम ऐप को गैरकानूनी करार कर दिया तो भी शासकीय और प्राइवेट स्कूल कालेज और अन्य संस्थानों ने इसका खूब प्रयोग किया। कुल मिलाकर घर बैठे शिक्षक और शिक्षिकाओं को बच्चों को व्यस्त रखने के लिए दिन रात लाइव क्लासेस लगाने का स्वांग रचना पड़ा, जिन मोबाइल्स का उपयोग करना शिक्षक शिक्षिकाओं को वर्जित था, बच्चों को इसकी वजह से सजा मिलती थी उसी को सशक्त माध्यम बनाकर विरोधाभाष खड़ा कर दिया गया। कोचिंग और ट्यूशन तक बंद करने की दशा में शिक्षक शिक्षिकाओं के घर में आर्थिक अकाल और आपातकाल की स्थिति बन गयी।स्कूल और कालेज प्रबंधन के पास तो इतनी भी समाइत नही थी कि इनके बदले वो इन शिक्षक शिक्षिकाओं को कम से कम कुछ ज्यादा वेतन मान दे सकते, और तो और उनके वेतनमान से भी कटौती करने की नौटंकी शुरू हो गयी। 
विद्यालयों और महाविद्यालयों ने भी आधी अधूरी तन्ख्वाह देकर एक सुंदर सा संदेश दे दिया कि इस आपातकाल में हमारे पास धन का अकाल आ गया है, आप शिक्षा दान देते रहो और विद्यालय महाविद्यालय परिवार की निस्वार्थ भाव से सेवाकरते रहो, हम आपको वेतन का कुछ प्रतिशत देकर उपकृत करते रहेंगें, लाइव वीडियो, आनलाइन क्लासेस, सोशल मीडिया समूह में बच्चों को पकड़ने की यह कोशिश स्कूल जिन शिक्षक शिक्षिकाओं के माध्यम से जारी रख रहा है उनके परिवार के प्रति इस तरह का ओछा व्यवहार यह बता दिया कि संकटकाल में शिक्षकों का हुनर ही उनका सहारा है, चाहे स्कूल हो या घर हो, शासकीय शिक्षक शिक्षिकाओं का तो हाल इसलिए ठीक था कि वेतन से एक दिन का वेतन सरकार ने अनुदान के रूप में नहीं दिया, प्राइवेट स्कूल कालेज में तो अप्रैल तो अप्रैल, मई जून भी पूरा अकाल ही अकाल और भयंकर सूखा दिखाया जा रहा है, उपकृत करने वाली धनराशि जो स्कूल कालेज के द्वारा शिक्षक शिक्षिकाओं के खाते में बतौर आपातकाल का वेतन भेजा जाता है वह तो ऊँट के मुंह में जीरा की तरह होता है। इस आपातकाल में चालाक किस्म के विद्यालयों और महाविद्यालयों ने अपने संगठनों की बैठकें आयोजित करके सरकार और प्रशासन तक को अपने वश में कर लिया कि ये संगठन अतिगरीब हैं, जो वेतन दे पाने में असमर्थ हैं, सोचने वाली बात है कि साल भर की फीस ये स्कूल कालेज अभिभावकों से लेते हैं, या तो आनलाइन फीस जमा करवाते हैं, तब बसंत होता है, और नब्बे दिन का आपातकाल आ गया तो धन का अकाल हो गया, समय समय का फेर देखिये देश के अनेक शहरों के विद्यालय महाविद्यालय के मैनेजमेंट जो आज तक इस तरह के संगठनों की बैठकों में जाना खुद की तौहीन समझते थे वो भी इसलिए बैठकों में शामिल हो रहे हैं कि इसी बहाने संगठन में शक्ति का प्रयोग करके शिक्षक शिक्षिकाओं का वेतन पूरा न देना पड़े।
आपातकाल में जब हर वर्ग संकट में है उस बीच में शिक्षा जगत के ये नुमांइदे बहुत ही शालीन और संकोची होते हैं, किसी से मांग नहीं सकते, राशन की दुकान में खड़े नहीं हो सकते, मैनेजमेंट से वेतन के बारे में पूछ नहीं सकते, भले ही नमक रोटी खा लें, जमा पूंजी खर्च कर दें, पर रहेंगें संस्था के प्रति समर्पित ही, कई सकूल कॉलेज के मैनेजमेंट ने ऐसा कहर ढ़ाया कि स्टाफ की छटनी कर दी क्या टेम्प्रेरी क्या पर्मानेंट, कई शिक्षक शिक्षिकाओं को प्रमोशन का लॉली पाप थमाकर अचानक की झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया, शिक्षा के सिपेहसालारों के गाल पर। इन सब परिस्थितियों में को देखकर ऐसा लगा कि शिक्षक शिक्षिकाएँ अगर मजबूरीवश नंगे हुए सालीनता से भिखारी बने तो दूसरी तरफ स्कूल और कॉलेज तो शौकियन ही नंगे हो गये, और भिखारी बनकर धन अकाल का प्रदर्शन करने लगे। शिक्षक शिक्षिकाएँ इस पूरी माहौल में असहाय इसलिए भी हैं क्योंकि उन्हें यदि बेरोजगार नहीं होना है तो भागे भूत की लंगोटी मिल तो रही हैं, वो इसी बात पर खुद को भाग्यवान समझ रहे हैं,जिन बच्चों और शिक्षक शिक्षिकाओं की वजह से स्कूल कालेज अपने शिखर तक पहुँचते हैं, उन मास्साहबों और मास्टरी साहिबाओं के परिवारों की इस दुर्गति के लिए कौन जिम्मेवार है प्रश्न यह नहीं है, किंतु इस तरह बीच मझधार में अकेला छॊड़ देना शिक्षा जगत की माफियागिरी नहीं तो और क्या है, अपने हिसाब से काम करने वाले और नये रास्ते प्रतिपादित करने वाले ये प्राइवेट विद्यालय और महाविद्यालय शिक्षा के बाजार में झंडावरदार बने बैठे हैं और इन प्राइवेट विद्यालयों और महाविद्यालयों के संगठन हैं तो इन मास्साहबों के संगठन अगर हैं तो इस अत्याचार को क्यों बर्दास्त कर रहे हैं। सरकार के पास इन बेसहारों के लिए कोई सहायता है भी या नहीं इस का उत्तर किसी के पास नहीं है, संबंधित शिक्षा बोर्ड़ के पास इस समस्या का निदान क्या हो सकता है शिक्षा विभाग और संबंधित विभागों और मंत्रालयों के पास शिक्षा के इन सुपात्रों के भविष्य के लिए कोई योजना नहीं है, इन परिस्थितियों में जब इनका ना कोई बीमा, ना कोई आर्थिक पैकेज, ना कोई आर्थिक मदद, ना कोई नेतृत्व हैं उन परिस्थितियों के बीच इनके पालन हार कौन बनकर इनको कौन उबारेगा यह सवाल पूरे समाज को खोजना होगा।

अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

सोमवार, 11 मई 2020

काहे का लॉक डाउन, काहे की सोशल डिस्टेंसिंग

काहे का लॉक डाउन, काहे की सोशल डिस्टेंसिंग

समाचार देखना और पढ़ना दोनों का अब अलग अलग अर्थ रह गया है, देखने वाले समाचार अब मात्र समय बिताने का माध्यम रह गये हैं, समाचार चैनल्स की विश्वसनीयता की भी संदेह के घेरे में आ चुके हैं, समाचार चैनल्स के मालिक कितनी बार फेक न्यूज दिखाने की वज़ह से पब्लिक में माफी माँग चुके हैं, प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता में अभी भी सब निःसंदेह हैं, प्रिंट मीडिया के आंकड़े विश्वास करने योग्य हैं, वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया की राम कहानी तो अविश्वास पर टिकी हुई हैं, मुद्दों को ट्रोलिंग, कट्टर पंथी और कम्यूनिस्ट के नाम से बंटे यूजर्स अपने अपने चश्में से जूतम पैजार करने में लिप्त पाए जाते हैं। आपको लगता होगा कि मै कहाँ की बात लेकर बैठ गया, टाइटल कुछ और हैं बाते कुछ और शुरू हुई, किंतु ऐसा नहीं है मीडिया का लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग को जन जन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम है। 
सरकारों और प्रशासन का अपना मत है, लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर, उद्योगपतियों और पूंजी पतियों का अपना मत है। विभिन्न देशों का अपनी अर्थ व्यवस्था के अनुरूप अलग अलग विचार है इस मुद्दे पर, लेकिन वर्तमान में सबसे ज्यादा पीडित, पलायन कर रहे मजदूर, घर बैठे वर्क फ्राम होम कर रहे नौकरी पेशे से जुड़े हुए लोग हैं, मानसिक दबाव बढ़ रहा है, सरकारों की घॊषणाओं को ना पूँजीपति पालन कर रहे हैं, मध्यमवर्ग की जमा पूँजी खत्म होने को है, कई लोगों को प्राइवेट नौकरियों से निकाल दिया गया, या घर बिठा दिया गया, सरकारों को उन सबके लिए कोई फुरसत नहीं है, ये लोग ना ही सड़कों में खाना मांग सकते हैं और ना ही राशन की दुकानों में खड़े होकर गल्ला इकट्ठा कर सकते हैं, सरकारी आर्थिक मदद इन लोगों के लिए नहीं होती, ये बीच के समाजिक कुनबे से ताल्लुकात रखने वाले लोग हैं। इसलिए इनकी मरन सबसे ज्यादा है, दिखावे की जिंदगी में मसगूल ये लोग अपने जीवन यापन के लिए नौकरी खोजने या काम में लौटने का इंतजार कर रहे हैं।
विभिन्न माध्यमों से जब सुनने में आता है, कि लॉक डाउन बढ़ेगा तो आशाएँ समाप्त होने लगती हैं, वजह यह है कि हमारी पहचान में देश के विभिन्न प्रदेशों से पुलिस, चिकित्सा वर्ग के लोग हैं, और उनकी स्थिति सुनकर ऐसा लगता है कि वो अब ऐसा युद्ध कर रहे हैं जहाँ पर उनके पास अस्त्र शस्त्र हैं ही नहीं, सब थक चुके हैं, हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी और अन्य मंत्री, मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री और अन्य मत्री अपनी घोषणाएँ कर रहे हैं, आश्वासनों की बाढ़ आ रही हैं, पर यह सब कहाँ विनमय किया जा रहा है, इनकी घॊषणाओं के बाद विभिन्न प्रदेशों से मजदूर घर लौट रहे हैं, भूखे, प्यासे, लुटे हुए, ठगे हुए, बेबस ये लोग मक्कार लोगों, पूँजीपतियों की वजह से लाचार होकर अपनी माटी की ओर लौट रहे हैं, सरकारों की योजनाएँ, सुविधाएँ भोजन, आर्थिक मदद क्या इनके लिए नहीं हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है, वहीं दूसरी तरफ सरकार पचास दिन होने के बाद अब होश में आकर ट्रेनों, बसों और विभिन्न माध्यमों से बच्चों और मजदूरों को भूसे की तरह भरकर गंतव्य में पहुँचाने का स्वांग भर रही है। यह काम लॉक डाउन के पहले क्यों नहीं किया गया। इसका जवाब किसी के पास नहीं है, और जिसके पास है वो चुप बैठा है।
लॉक डाउन का मजाक बनकर रह गया है, जो दिखाया जा रहा है, वो सच कितना है यह कोई नहीं जानता, घोषणाए नाम भर की हो रही हैं, व्यवस्थाएँ संतोषप्रद नहीं हैं, देवालय से ज्यादा महत्ता आबकारी और शराब के ठेकों को दी जा रही है, उद्योगों से मजदूरों को भगा दिया गया है, अब उद्योग या मशीनों को कौन चलाएगा इस का जवाब किसी के पास नहीं है, किसानों की फसलें बारिस आंधी पानी में खराब हो रही हैं इसका कोई उत्तरदायित्व नहीं ले रहा है, मेडिकल स्टाफ और सुविधाएँ अस्त व्यस्त हैं इसका जवाब किसी के पास नहीं है, बस लॉक डाउन  की गिनती, १.०, २.०, ३.०, ४.० गिनवाया जा रहा है, हाथ धुलवाने, एक मीटर की दूरी बनाने की बातें की जा रही हैं, और इन सब नियमों की धज्जियाँ खुद ब खुद उड़ाई जा रही हैं, जिसके लिए कोई भी सवाल जवाब पूँछना बताना गलत माना जाता है। हम संक्रमण की तीसरी स्टेज में प्रवेश कर चुके हैं, हमारे निर्णय बहुत देर से जनता के सामने आ रहे हैं, रिजर्व बैंक और सरकार के कर्जे से जनता अनजान हैं, पीएम केयर्स में सब उलझ कर रह गए हैं, इन सबके बीच में यदि जनता को खुद को बचाना है तो खुद ही हाथ पैर मारना होगा, यही शास्वत सत्य है।
मौतें बढ़ रही हैं, दवाएँ हम खोज नहीं पाए हैं, हम अपनी गल्तियों से बहुत देर के बाद सीख लेते हैं, सरकारे इसके लिए उत्तर दायी हैं, सरकारे सिर्फ एलिट वर्ग के लिए उत्तरदायी हैं, आम जन, मजदूर किसान के लिए कोई उत्तरदायी क्यों नहीं है, ट्रैक पर उनकी मौतें हों, सडक हादसों पर उनकी मृत्यु का भी मीडिया उत्सव मना रही है। सरकार के हाथ से नियंत्रण निकलता जा रहा है। ऐसा सबको महसूस होता है। हास्पीटल्स और वहाँ काम करने वाले लोगों की दुर्गति को हम नजरंदाज नहीं कर सकते। प्रशासन के द्वारा बनाई गई सारी व्यवस्थाएँ धीरे धीरे अव्यवस्थित हो रही हैं, क्वारेंटाइन सेंटर्स की स्थिति, सोशल डिस्टेंसिंग को मानना, ग्रीन सिटी अब धीरे धीरे रेड़ जोन में बदल रहे हैं, इन सबके बीच में कड़े नियमों में ढील देना, शराब की दुकानें खोलना, भीड़ जुटाने की सरकारी व्यवस्था क्यों की जा रही हैं, रोज जहाँ मौतों का आंकड़ा सैकडो़ं से पार है, संक्रमण का आंकड़ा हजारों में हैं उन सबके बीच लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग का मखौल उडाया जा रहा है। मीडिया जागरुक करने की बजाय, धर्म और जातिगत बहसों, प्रायोजित कार्यक्रमों में व्यस्त है, चैनल्स न्यूज को न्यूड कर के तमाशा दिखा रहे हैं।
हम सबको यह स्वीकार कर लेना चाहिए लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द अब अपने अर्थ की खोज में लग गए हैं, सरकारों के पास मात्र यह आदेश हैं, प्रशासन के पास लोगों को घर पहुँचाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है, मेडिकल फील्ड के डाक्टर्स और अन्य स्टाफ मजबूर बन चुका है, क्वारेंटाइन सेंटर्स अजायब घर बनकर रह गए हैं, इस मर्ज की कोई दवा हम खोज नहीं पाए हैं, योजनाओं से और घोषणाओं से आप इस महामारी से खुद को नहीं बचा सकते हैं, जीवन यापन करना है तो निश्चित ही हमें काम के लिए निकलना पड़ेगा, हम चाँदी की चम्मच लेकर तो पैदा नहीं हुए जिसके लिए सरकारे नतमस्तक हैं। हम अपना काम करे सरकार और प्रशासन को अपना काम करने दें, क्योंकि वो हमारे पीछॆ डंडा लेकर नहीं दौड़ सकते हैं।
हमें अपनी सुरक्षा, अपने परिवार की रक्षा, उनके लिए रोटी कपड़ा मकान की व्यवस्था खुद करना है, सरकार मजबूर होकर अब हम सबको सतर्क कर सकती है, हम सबको घर पर नहीं बिठा सकती, हम सबका स्वविवेक है कि लॉक डाउन और और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्दावली को समझने की बजाय आवश्यकतानुसार अपने बचाव के लिए उपयोग करे और सांप भी मर जाए लाठी भी न टूटे वाली कहावत को चरितार्थ करें, इतने लॉक डाउन  देखने के बाद हम सबको मान लेना चाहिए कि हमारी सुरक्षा और बचाव के लिए हम जिम्मेदार है, और हमारे पहल करने से ही हम बच सकते हैं, क्योंकि आने वाले समय में सरकारें जिस तरह की छूट दे रही हैं वो हमारे लिए और घातक है। इसलिए अपने प्रति जागरुक बनें और हम अपनी सुरक्षा खुद करें, सरकार को अपना काम करने दें। 

मंगलवार, 5 मई 2020

"शांति के पुजारी हम, जगत को बुद्ध देते हैं"

बुद्ध जयंती ७ मई पर विशेष-

"शांति के पुजारी हम, जगत को बुद्ध देते हैं"
हम भारत देश के रहवासी हैं इस बात का गर्व होता है हमें इसके पीछे कई कारण और गौरव की बातें हैं, उसमें से एक प्रमुख कारण हमारी धरती पर महात्मा बुद्ध का जन्म लेना भी रहा है। छतरपुर के श्रीप्रकाश पटेरिया,वरिष्ठ साहित्यकार लिखते हैं, मिलावट कुछ नहीं करते जो देते  शुद्ध देते हैं, शांति के पुजारी हम, जगत को बुद्ध देते हैं" हमारे देश ने विश्व को सिद्धार्थ के रूप में पैदा हुए गौतम बुद्ध दिया।" बुद्ध होना आसान नहीं है, उनके बारे में दलाई लामा का विचार है कि हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है। बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म को जानना है।
यह संयोग ही है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के ‍नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में अलविदा कह गए। वो अपनी पत्नी यसोधरा को को छोड़े तो उनके ऊपर निश्चित ही बहुत से सवाल खड़े किये गए, बहुत सी अंगुलियाँ उठी किंतु वो अपने ज्ञान के खोज को पूरा करने के पश्चात हमारी धरा में अपनी विचारधाराओं को स्थापित करने वाले नये धर्म को स्थापित करके गए जिसे बौद्ध धर्म कहा गया और उनके विचारों की बहने वाली धारा को बुद्ध दर्शन का नाम दिया गया। इस बुद्ध दर्शन के मुख्‍य तत्व : चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटकों का एक भाग है धम्मपद। प्रत्येक व्यक्ति को तथागत बुद्ध के बारे में जानना चाहिए। यह तीन मूल सिद्धांत पर आधारित माना गया है- अनीश्वरवाद .अनात्मवाद .क्षणिकवाद। यह दर्शन पूरी तरह से यथार्थ में जीने की शिक्षा देता है।
अनीश्वरवाद में बुद्ध ईश्वर की सत्ता नहीं मानते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद के नियम पर चलती है। प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात कारण-कार्य की श्रृंखला। इस श्रृंखला के कई चक्र हैं जिन्हें बारह अंगों में बाँटा गया है। अत: इस ब्रह्मांड को कोई चलाने वाला नहीं है। न ही कोई उत्पत्तिकर्ता, क्योंकि उत्पत्ति कहने से अंत का भान होता है। तब न कोई प्रारंभ है और न अंत। अनात्मवाद का यह मतलब नहीं कि सच में ही 'आत्मा' नहीं है। जिसे लोग आत्मा समझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। यह प्रवाह कभी भी बिखरकर जड़ से बद्ध हो सकता है और कभी भी अंधकार में लीन हो सकता है।स्वयं के होने को जाने बगैर आत्मवान नहीं हुआ जा सकता। निर्वाण की अवस्था में ही स्वयं को जाना जा सकता है। मरने के बाद आत्मा महा सुसुप्ति में खो जाती है। वह अनंतकाल तक अंधकार में पड़ी रह सकती है या तक्षण ही दूसरा जन्म लेकर संसार के चक्र में फिर से शामिल हो सकती है। अत: आत्मा तब तक आत्मा नहीं जब तक कि बुद्धत्व घटित न हो। अत: जो जानकार हैं वे ही स्वयं के होने को पुख्ता करने के प्रति चिंतित हैं।क्षणिकवाद के अनुसार  स ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ परिवर्तनशील है। यह शरीर और ब्रह्मांड उसी तरह है जैसे कि घोड़े, पहिए और पालकी के संगठित रूप को रथ कहते हैं और इन्हें अलग करने से रथ का अस्तित्व नहीं माना जा सकता।
बुद्ध जब अपने ज्ञान पुंज से विश्व प्रकाशवान करने का उद्देश्य बनाये तब हम पाते हैं कि बुद्ध के अनुयायी दो भागों मे विभाजित थे भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन लोगों ने संयास लिया उन्हें भिक्षुक कहा जाता है उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासक कहते हैं. इनकी न्यूनत्तम आयु 15 साल है. इसके अलावा इस धर्म में बौद्धसंघ में प्रविष्‍ट होने को उपसंपदा कहा जाता है.प्रविष्ठ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं- बुद्ध,धम्म,संघ। हर धर्म विभाजित हो जाता है और यह धर्म भी दो भागों में विभाजित हो गया जो 
हीनयान और महायान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धार्मिक जुलूस सबसे पहले बौद्ध धर्म में ही निकाला गया था.बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है.बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया है, दुख,  दुख समुदाय
दुख निरोध, दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा। बुद्ध ने इससे दूर होने के लिए अष्टांगिक मार्ग की बात कही जिसमें म्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प,
सम्यक वाणी, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि।बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्गों के पालन करने के उपरांत उसे निर्वाण प्राप्त होता है. अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, किसी भी प्रकार की संपत्ति न रखना, शराब का सेवन न करना, असमय भोजन करना, सुखद बिस्तर पर न सोना, धन संचय न करना, महिलाओं से दूर रहना नृत्य गान आदि से दूर रहना. आज के समय पर यह बहुत कठिन हो गया धारण करना।
अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्धधर्म और जैन धर्म में समानता है। गौतम बुद्ध को भी हिन्दुओं के वैष्णव सम्प्रदाय में को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। दशावतार में वर्तमान में ९वाँ अवतार बुद्ध को माना जाता है। बुद्ध, विष्णु के अवतार के रूप में बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख पुराणों तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- कलयुगीय अधर्म की स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा।  कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है, हरिवंश पर्व, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, गरुड़ पुराण, अग्निपुराण, नारदीय पुराण, लिंगपुराण, पद्म पुराण आदि।  हिन्दू ग्रंथों में जिन बुद्ध की चर्चा हुई है वे शाक्य मुनि (गौतम) से भिन्न हैं-तथापि हिन्दू ग्रंथों में जिन बुद्ध की चर्चा हुई है वे शाक्य मुनि (गौतम) से भिन्न हैं- बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति (श्रीमद्भागवत) इस भागवतोक्त श्लोकानुसार बुद्ध के पिता का नाम 'अजन' और उनका जन्म 'कीकट' (प्राचीन उड़ीसा?) में होने की भविष्यवाणी की गयी है। 
बुद्ध ने कुछ बातें हिंदु धर्म के विरोध में भी प्रचारित की जैसे गौतम बुद्ध ने ब्रह्म को कभी इश्वर नहीं माना। ब्रह्मा की आलोचना खुद्दुका निकाय के भुरिदत जातक कथा में कुछ इस तरह मिलती है: "यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का "ईश्वर" है और सब प्राणियों का स्वामी हैं, तो उसने लोक में यह माया, झूठ, दोष और मद क्यों पैदा किये हैं? यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का "ईश्वर" है और सब प्राणियों का स्वामी है, तो हे अरिट्ठ! वह स्वयं अधार्मिक है, क्योंकि उसने 'धर्म' के रहते अधर्म उत्पन्न किया।" बुद्ध ने आत्मा को भी नकार दिया है और कहा है कि एक जीव पांच स्कन्धो से मिल कर बना है अथवा आत्मा नाम की कोई चीज़ नहीं है। बुद्ध ने वेदों को भी साफ़ तौर से नकार दिया है। इसका उल्ल्लेख हमे तेविज्ज सुत्त और भुरिदत्त जातक कथा में मिलता है। बुद्ध, अरिट्ठ को सम्भोधित करते हुए कहते है : "हे अरिट्ठ ! वेदाध्ययन धैयेवान् पुरुषों का दुर्भाग्य है और मूर्खो का सौमाग्य है। यह (वेदत्रय) मृगमरीचिका के संमान हैं। सत्यासत्य का विवेक न करने से मूर्ख इन्हें सत्य मान लेते हैं। हिन्दू धर्म जहा चार चार वर्ण में भेद बताता है तो वही बुद्ध ने सभी वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) को समान माना। अस्सलायान सुत्त इस बात की पुष्टि करता है कि सभी वर्ण सामान है। [9] बुद्ध का वर्ण व्यवस्था के खिलाफ एक प्रसिद्ध वचन हमें वसल सुत्त में कुछ इस प्रकार मिलता है :"कोई जन्म से नीच नहीं होता और न ही कोई जन्म से ब्राह्मण होता है। कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से ही कोई ब्राह्मण होता है।"
बुद्ध के जन्म दिवस के अवसर जब हम बुद्ध को याद कर रहे हैं तो यह जरूरी है कि महात्मा बुद्ध अपने परिवार और समाज से जिस प्रकार छोड़कर अपने ज्ञान विवेक और धर्म का मोहपाश तैयार किया वह भारत में आज भी मौजूद है यह पाश आज भी समाज को एकैक की भावना को बनाये हुए हैं, विश्व में तो बुद्ध को स्थापित करने के लिए विभिन्न देश बौद्ध धर्म और महात्मा बुद्ध को अपना आराध्य मानते हैं वैश्विक धर्मों में बौद्ध धर्म आज भी शीर्ष में बना हुआ है। यह सिद्ध करता है बुद्ध कालखंडीय नहीं है बल्कि वैश्विक, सर्वकालिक और चिरकाल तक मानव सभ्यता में वास करने वाले हैं, यहीं उनकी श्रेष्ठता और महानता को परिभाषित करता है।

अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७