मंगलवार, 11 अगस्त 2020

शायरी का अज़ीम चित्रकार "राहत"

शायरी का अज़ीम चित्रकार "राहत"

दो गज ही सही मेरी मिल्कियत तो है।
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।।।

इंदौर की धरती और अदब आज उदास है, रेख़्ता मायूसी से घिरा हुआ है, हिंदवी अपनी गंगा जमुनी विरासत को सहेजने सहेजते असहज सी हो रही है। कवि सम्मेलन और मुशायरों की शान में जैसे मावस की स्याह गहरी रात आ चुकी है, जबसे सबने सुना की कोरोना ने इंदौर के अज़ीम शायर, चित्रकार और  अदब के खिदमतगार जनाब राहत कुरैशी, यादि कि जाने माने शायर राहत इंदौरी साहब नहीं रहे। राहत तो न हिंदी अदब में है न ही उर्दू अदब में क्योंकि दोनों ने एक कलम का सिपाही को दिया।
राहतुल्ला कुरैशी उर्फ बचपन के कामिल भाई सन पचास के दशक में इस दुनिया में आए, प्रारंभिक शिक्षा के बाद  के वो उर्दू की शिक्षा ग्रहण किए,देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय में उर्दू के प्राध्यापक भी रहे, लेकिउनका मिजाइस अकादमिक दुनिया में नहीजमा, यही वजह रही कि उनके अंदर छिपा कलाकाऔर कलमकार ने पूरी दुनिया को अपने ख्याल का मुरीबना दिया।
अपने विशेष अंदाज से दर्शकों और श्रोताओं को अपनी शेरों शायरी तथा गीत ग़ज़लों नज़्मों में वो सम्मोहन ही बस नहीं पैदा किए, बल्कि जम्हूरियत, मुल्क, ग़रीबी, मजहब, भाईचारे, विश्वबंधुत्व की बात भी करके गए। पेशे से प्राध्यापक रहने की वजह से उनकी शायरी का मयार मुशायरों और कवि सम्मेलनों में अलग अंदाज लिए होता था।
उन्होंने अपने हुनर को भारत के विभिन्न प्रदेशों, देश की उर्दू अकादमी और तो और विश्व के हिंदी और उर्दू जानने वाले मुल्कों तक उन्होंने इंदौर मध्यप्रदेश और भारत का नाम रोशन किया। कोरोना काल साहित्य जगत के लिए काल बनकर आया और की कलमकारों को अपने आगोश में ले लिया।
राहत इंदौरी ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने अदब के साथ साथ फिल्म जगत में अपना सिक्का जमाया, उनके अनुभव और अदब की खिदमत का ही परिणाम था कि फिल्म जगत में उनकी भूमिका बतौर गीतकार रही वो कई फिल्मों में गीत लिखे और वो लोगों की जुबानों में सुमार रहे। वो जिन 11 फिल्मों में गीत लिखे उसमें से प्रमुख मुन्ना भाई एमबीबीएस, करीब, खुद्दार, बेगम जान, प्रमुफिल्में रहीं। उनके गीत शेरों शायरी, नज़्में, और ग़ज़लें आम दर्शकों की जुबान में रहे, वो आम बोलचाल की भाषा में शायरी करते थेउनकी भारी बुलंद आवाज़ श्रोताओं के दिलों में राज करती रही। उन्होंने अपनी विरासत अपने दोनों बेटों फैज़ल राहत और सतलज राहत को सौंप कर गए। किसी इंटर व्यू में वो एंकर से यह कहते नजर आए कि यदि मैं शायर ने होता तो चित्रकार होता या फुटबॉल और हाकी का खिलाड़ी होता। इससे यह भी बात साफ हो जाती है कि वो अपने कालेज के समय पर इन दोनों खेलों में माहिर थे।
राहत इंदौरी भी अपनी बेबाकी और इस राजनैतिक वातावरण के बीच की बार कैमरे और मीडिया के सामने आडे हाथों आए,,क्योंकि कहीं न कहीं उनका लहजा राजनैतिक परिदृश्य और परिवेश को पंच नहीं पाया। कभी शायरी का मिज़ाज ज्यादा तल्ख हुआ तो उनकी पंक्तियां पेपर और मीडिया में टीआरपी बढ़ाने का काम कर गईं। पर यह भी सच था कि राहत इंदौरी में इंदौर मध्यप्रदेश की जान बसती थी, उन्होंने कभी भी अपनी सर जमीं को जलील नहीं किया, अदब को शर्मिंदा नहीं किया। व्यक्तिगत रुप को एक किनारे रखें तो राहत इंदौरी मध्य प्रदेश ही नहीं देश के उर्दू अदब की रूह बने रहे मध्य प्रदेश में मंज़र भोपाली, कैफ भोपाली, राहत इंदौरी जैसे शायरों से मुशायरे रोशन होते रहें। आज जब राहत इंदौरी साहब अदब को छोड़कर गए, तब उनके मुद्दों को उछालने की संकीर्णता यदि मीडिया औश्र सोशल मीडिया में चलाया जा रहा है वह अदब की बेइज्जती ही है। एक रचनाकार को रचनाकार ही समझ सकता है।।। राहत साहब के जाने से रेख़्ता और हिंदवी अदब में खाली जगह है। वो कभी नहीं भर पाएंगी। राहत साहब के कलाम इस फिज़ा में गूंजते रहेंगे और हर मुशायरे में उनकी रिक्तता का अहसास कराते रहेंगे। अंत में उनके कलाम के कुछ मिसरे उनकी खिराजे अकीदत में पेश हैं।
सभी का खुश हैं शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है।
मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना।
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना।

लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।

अनिल अयान
सतना
संपर्क 9479411407

रविवार, 9 अगस्त 2020

आप ज्ञानार्थ बुलाइए तो, वो सेवार्थ जाएगें।

आप ज्ञानार्थ बुलाइए, वो सेवार्थ जाएगें

राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की जा चुकी है, शिक्षाकाल अब पंद्रह वर्ष का हो चुका है, जनसंख्या बढ़ रही है, शिक्षा की मांग‌ बढ़ रही है, आपूर्ति विद्यालय घटाकर  पूरी करने का मन सरकार ने बना दिया है। विगत दिनों मध्य प्रदेश सरकार ने बारह हजार से ऊपर विद्यालय बंद करने के लिए आदेश जारी कर चुकी है। सबसे ज्यादा सतना के क्षेत्र में विद्यालय बंद करने की रूपरेखा तैयार हो गई है। माध्यमिक शिक्षा मंडल भोपाल से संबंधित ये विद्यालय निश्चित ही प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक होंगें जिसमें छात्र संख्या कम है, माध्यमिक विद्यालय और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय शायह ही इस विभीषिका से गुजर रहें हों। विद्यालयों का सूत्र वाक्य होता है ज्ञानार्थ आइए सेवार्थ जाइए। पर जब ज्ञानार्थ बच्चों को प्रारंभ से विद्यालय नहीं बुलाया जाएगा तो वो सेवार्थ कैसे जाएगें।यह यक्ष प्रश्न का उत्तर सरकार और विभाग को खोजने की जरूरत है। बनाना जितना कठिन है, मिटाना उतना ही सरल।
सरकार ने यह जानने की कोशिश करती तो होगी कि आखिर सरकारी विद्यालयों में प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालय क्यों बीमार हैं। इसकी प्रमुख वजह इस विद्यालय परिसर में पूर्व प्राथमिक अर्थात खेलकूद वाले विद्यालय, किंडरगार्टन वाले शिक्षा के केंद्र नहीं हैं, पर आंगनबाड़ी केंद्र जरूर हैं जिसमें मां और बच्चे का पहले से पंजीकरण होता है। विद्यार्थियों को प्रारंभ से ही विद्यालय की आदत डालने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि सरकार प्राथमिक विद्यालय परिसर में आंगनबाड़ी केंद्रों को बतौर किंडरगार्टन स्कूल के रूप में विकसित करें ताकि कक्षा पहली से उसी आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों का प्रवेश प्राथमिक विद्यालय में सीधे कर लिया जा सके। सरकार को इससे किंडरगार्टन स्कूल अलग से नहीं खोलना पड़ेगा और उसे छात्र संख्या भी मिलेगा। इस माध्यम से आंगनवाड़ी केन्द्रों में आने वाली सुविधाओं का लाभ बच्चों को जन्म से लेक‌र प्राथमिक शिक्षा तक‌ मिलेगा। स्वास्थ्य परीक्षण भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता के द्वारा नियमित होता रहेगा। मध्यान भोजन में अलग अलग व्यय भी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र के लिए नहीं करना पड़ेगा।
महिला बाल विकास और शिक्षा विभाग को इस बारे में संयुक्त पहल कर कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि परिवार, प्री प्राइमरी विद्यालय, के बाद बच्चा प्राथमिक विद्यालय में पहुंचता है। सरकार की नाकामी इसी में है कि उनके पास प्री प्राइमरी विद्यालय नहीं हैं इसलिए विद्यालय बंद होने की कगार में हैं। शिक्षा का अधिकार बेमानी क्यों हो रहा है। सरकार प्राइवेट विद्यालयों को अपनी नज़र के सामने रखती तो है पर वहां की अच्छी बातें अपने शासकीय विद्यालयों में उपयोग नहीं करती, एक मोहल्ले में चार कमरों का प्राइवेट  विद्यालय खुलता है और पहले ही साल वहां 50 संख्या तो गिरी दशा में हो जाती है क्योंकि वहां पर मैनेजमेंट, शिक्षक और प्रिंसिपल पूरी कोशिश करते हैं, संपर्क करते हैं, उसी के आधार पर उनकी वेतन वृद्धि होती है, शासकीय विद्यालयों में हेडमास्टर और शिक्षिकाओं को छात्र संख्या से लेना देना नहीं है, वो संपर्क अभियान नहीं करते, और तो और मध्यान भोजन में 20 की जगह पचास की इंट्री जरूर हो जाती है।। हर प्राइवेट प्राइमरी विद्यालय में नर्सरी, प्रेप वन, प्रेप टू कक्षाएं कक्षा एक के पहले होती हैं, शासकीय विद्यालयों में इन गतिविधियों को लागू करना चाहिए, तो छात्र संख्या बढ़ेगी, शासन के मद में विद्यालय के लिए बजट आता है, कभी भी वह बजट विद्यालय के बच्चों की पब्लिसिटी, प्रवेश के समय प्रचार के लिए पंपलेट, परिणामों का समाचार समाचार पत्रों में नहीं भेजा जाता, प्राइवेट विद्यालयों में बिना बजट के भी यह सब काम मीडिया के माध्यम से जन जन तक पहुंचा दिए जाते हैं ताकि अभिभावकों की नजर में विद्यालय का कद बढ़े, शासन को विद्यालय के प्रचार प्रसार के बारे में भी आगे आना होगा। अभिभावकों को यही नहीं पता कि शासन की योजनाओं, बच्चों को लाभ और कौन सी छात्रवृत्ति शासकीय विद्यालयों में मिलती है। अभिभावकों को शासकीय विद्यालयों की गुणवत्ता और निशुल्क सुविधाएं पता चलेगी तो निश्चित है कि गरीब और अति गरीब परिवार अपने बच्चों को भेजेगा। शासकीय विद्यालयों में यदि प्राइवेट विद्यालयों की दस प्रतिशत भी पढ़ाई  और सही मूल्यांकन हो, तो बच्चे उसी तरह जुड़ेंगे जैसे माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में संघर्ष करके जुड़ते हैं। इसके लिए 40 हजार पा रहे हेडमास्टर और 25 हजार पा रही शिक्षिकाओं को  विद्यालय की छात्र संख्या और गुणवत्ता के बारे में पहले करने से यह बात बनेगी।।।
सरकार यदि समय से शिक्षक शिक्षिकाओं की भर्ती करें, विद्यालयों मे दी जानेवाली निशुल्क सुविधाएं और योजनाओं को जन साधारण तक गांवों में प्रचार प्रसार करवाए तो आंगनवाड़ी केन्द्रों से दलिया और खीर खाने वाले बच्चे सीधे प्राथमिक विद्यालय ही पहुंचने लगेंगे। आईएएस ब्यूरोक्रेट्स की रिपोर्ट के आधार पर विद्यालयों को बंद करने या स्थानांतरित करने का कदम संबंधित विद्यालयों और गांवों के लिए कितना हानिकारक है यह समझना जरूरी है, आप संबंधित गांवों में बच्चों को न खोज पाने की असफलता का सही निदान खोजने की बजाय, एक आदेश और मंत्री जी के एक हस्ताक्षर से उस स्थान को बंजर भूमि घोषित कर रहे हैं जहां आने वाले होनहार बालक बालिकाओं का चंद्रयान निर्मित किया जा सकता है। उन छात्रविहीन विद्यालयों के उन्नयन और विकास की बात करने की बजाय अपने खर्चों को कम करने के लिए पूरे क्षेत्र को शिक्षा विहीन बनाने की कोशिश करना बच्चों के साथ अन्याय नहीं तो और क्या है। आप सभी तरीके से निदान करें, विद्यालयों को आगे बढ़ाने का कदम बढ़ाएं वहीं के बच्चों के द्वारा भविष्य में प्रावीण्य सूची में ताकि स्थान सुनिश्चित हो सके। एक गांव में एक विद्यालय खोलने के लिए वहां के सरपंच और ग्रामपंचायत के कर्मचारियों , गांववासियों को कितना मशक्कत करना पडता है, विधायक, सांसद, शिक्षा अधिकारी, जनपद जिला प्रशासन के अधिकारियों के पीछे लगे रहने के बाद कहीं विद्यालय खोलने का आदेश मिलता है, फिर बनने में की साल लगते हैं, फिर शिक्षा विभाग से नियुक्ति होते होते सालों लग जाते हैं। तब कहीं जाकर विद्यालय चलना प्रारंभ होते हैं। इन सबके बीच शिक्षा के इन अंगों को यदि बीमार हैं तो काटने की बजाय उपचार कराया जाए। शासन प्राइवेट विद्यालयों की टांग खिंचाई के लिख एक पटांग बोलने की बजाय यदि जमीनी बातों को विद्यालयों में लागू करें तो निश्चित है विद्यालयों को बंद करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह नोटबंदी और शराबबंदी नहीं है कि घोषणा हुई और विद्यालय बंद,, सरकार और प्रशासन से यही कहना चाहूंगा कि सही तरीके आप बच्चों को ज्ञानार्थ बुलाइए तो निश्चित ही वो पंद्रह साल के बाद सेवार्थ समाज में जा पाएंगे।
यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं

अनिल अयान
संपर्क-9479411407