सोमवार, 8 जुलाई 2019

बढती जनसंख्या- घटते संसाधन ; संघर्षशील आगामी पीढ़ी

विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष (11 जुलाई)

बढती जनसंख्या- घटते संसाधन ;  संघर्षशील आगामी पीढ़ी 

विश्व पूरी तरह से जनसंख्या विस्फोट का सामना करने की दहलीज में खड़ा है, और तो और जिस रफ्तार से भारत कि आबादी बढ़ रही है, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2030 तक वो चीन को भी पीछे छोड़ देगा साल 2017 के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की आबादी 1.34 अरब है. हर साल अन्य देशों के मुकाबले भारत में जन्म दर ज्यादा है. विश्व की 17.85 प्रतिशत आबादी अकेले भारत की है. भारत की ‘पॉपुलेशन ग्रोथ रेट’ 1.2 प्रतिशत है जिससे ये अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि 2030 तक भारत की आबादी 1.53 अरब हो जायेगी. इन सब आंकड़ों के बीच यह जरूरी हो जाता है कि भारत ही नहीं बल्कि विश्व व्यापी अभियान की परिकल्पना को साकार किया जाए ताकि कुछ हद तक तो इस मानव महासागर की वृद्धि पर लगाम लगाया जा सके। इस हेतु विश्व जनसंख्या दिवस एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान है, जिसे पूरे विश्व में मनाया जाता है ताकि लोगों को इस मंच पर हर साल जनसंख्या बृद्धि के कारण बताये जा सके, साथ ही साथ पूरे मानव समुदाय के साथ मिल कर इस समस्या को हल किया जा सके। यह कार्यक्रम विश्व भर में सन 1989 से चलाया जा रहा है ताकि, विश्व स्तर पर आबादी क्रांति लाइ जा सके, साथ ही साथ गहरी नींद में सोये लोगों की नींद तोड़ी जा सके ताकि वो अपना ध्यान केन्द्रित कर सकें और जनसंख्या बृद्धि के मुद्दे पर मदद कर सकें।विश्व जनसंख्या दिवस एक महान कार्यक्रम है जो कि 11 जुलाई को दुनिया भर में मनाया जाता है। यह दुनिया भर में जनसँख्या या बढ़ते आबादी के मुद्दों पर लोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
इसके ऐतिहासिक पक्ष को देखे तो हमें समझ मॆं आयेगा कि ये विश्व व्यापी कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की शासी परिषद द्वारा पहली बार 1989 में शुरू हुआ था। जब जनता की आबादी करीब पांच बिलियन के करीब आ गई। तब वर्ष 1987 में 11 जुलाई को जनता के हित के लिए इस दिन की शुरुवात की गयी। यह दुनिया भर में आबादी मुद्दों पर लोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल का लक्ष्य समुदाय के लोगों में प्रजनन स्वास्थ्य समस्याओं की ओर ध्यान देना है। इस कार्यक्रम में प्रमुख उद्देश्य जो रखे गए वो मुख्य रूप से किशोर और युवा पीढ़ी पर आधारित किए गए। इस कार्यक्रम के तहत लड़कियों और लड़कों दोनों के लिंग को संरक्षित करने और सशक्त बनाने के लिए मनाया जाता है। उन्हें अपने जीवन शरीर और देर से विवाह के बारे में जानकारी देने के लिए, जब तक वे अपनी जिम्मेदारियों को समझने में सक्षम न हो जाएं। युवाओं को उचित और युवाओं के अनुकूल उपायों का उपयोग करके अवांछित गर्भधारण से बचने के लिए शिक्षित करना इसका उद्देश्य है।। लोगों से समाज से लैंगिक रूढ़िवाइयों को दूर करने के लिए शिक्षित करना , प्रारंभिक जन्म के खतरे के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना और उन्हें गर्भधारण संबंधी बीमारियों के बारे में शिक्षित करना, उन्हें एसटीडी (यौन संचारित रोगों) के बारे में शिक्षित करना ताकि उन्हें विभिन्न संक्रमणों से बचाया जा सके। बालिका अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ प्रभावी कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन की मांग करना। लड़कियों और लड़कों दोनों को समान प्राथमिक शिक्षा के उपयोग के बारे में सुनिश्चित करना। यह सुनिश्चित करना, कि हर जोड़े के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य हर जगह प्रजनन स्वास्थ्य सेवायें आसानी से पहुंच सकें। आदि बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जो हर समाज की समस्या है और इन समस्याओं को दूर करना कहीं ना कहीं इस विश्वव्यापी अभियान के मुख्य उद्देश्यों में शामिल भी हैं। हर वर्ष यह दिवस किसी ना किसी केंद्रीय विषय पर अधारी ति होता है। इस बार का केंद्रीय विषय 'परिवार नियोजन मानव का अधिकार है'.।
अगर मोटे तौर पर देखा जाए तो किसी देश की जनसंख्या जितनी ज्यादा होगी उस देश की में प्राकृतिक संसाधनों और स्त्रोतों की ज्यादा जरूरत होगी। और इस स्थिति में उस देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। चीन ने इस समस्या को पहले ही भांप लिया था, इसीलिए कई दशक पहले उसने एक बच्चे से अधिक पैदा करने पर कई तरह के दण्ड लगा दिए थे। जिसकी वजह से ज्यादातर लोग एक ही बच्चा पैदा करते थे। हालांकि अब इसमें कुछ बदलाव किया गया है। इस अतिक्रमी आबादी का दुष्प्रभाव दक्षिण एशियाई देशों जैसे चीन, बांग्लादेश, फिलीपींस, भारत और पाकिस्तान में आसानी से देखा जा सकता है। 7 अरब की आबादी वाले विश्व में 1.3 अरब जनसंख्या के साथ भारत आबादी के मामले में दूसरे नंबर पर आता है। और देश की तमाम गंभीर समस्याओं के साथ यह भी एक गंभीर समस्या है। भारत में कई प्रदेशों की जनसंख्या तो विश्व के कई देशों की जनसंख्या से भी ज्यादा है। और उनमें सबसे आगे है-उत्तर प्रदेश। जिसमें 166 मिलियन यानी 16 करोड़ से भी ज्यादा की जनसंख्या निवास करती। जो की रूस की जनसंख्या से ज्यादा है। क्योंकि रूस की कुल जनसंख्या लगभग 15 करोड़ के आस-पास की है। इसी प्रकार उड़ीसा कनाडा से छत्तीसगढ़ ऑस्ट्रेलिया से ज्यादा आबादी वाले प्रदेश हैं।जितने भी देश जनसंख्या की दृष्टि से सबसे पहले खड़े हुए हैं उनकी इस बीमारी के पीछे कुछ बुनियादी कारण भी हैं। उनके अस्पतालों में मृत्यु दर के मुकाबले जन्मदर में अधिकता है।  भारत में अभी स्थिति यह है कि जन्म दर मृत्यु दर के मुकाबले बहुत अधिक है। 2016 के हिसाब से देखें तो 2016 में जन्म दर 19.3 प्रति 1000 था। अर्थात किसी एक निश्चित समय अवधि में 1000 लोगों को बीच 19.3 नए बच्चे जन्म ले रहे हैं। यानी हर पल लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये नही कहा जा रहा है कि मृत्यु दर को बढ़ाया जाए बल्कि ध्यान इसपर देना चाहिये कि जन्मदर को कैसे कम किया जाय। भारत में अधिकतर लोगों के पास अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कोई योजना नहीं होती। उन्हें लगता है कि 15 से 45 वर्ष की आयु में कभी भी बच्चे पैदा कर सकते हैं, और इस प्रकार उनके कई बच्चे हो जाते हैं। जिससे उनके घर की आर्थिक स्थिति पर गहरा असर तब पड़ता है, जब वह बच्चे बड़े होने लगते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होते ही साड़ी व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है। भारत जैसे देश में आज भी रूढ़िवादी मानसिकता वाले लोगों की कमी नहीं है, जो यह सोचते हैं कि परिवार बढ़ाने की योजना बनाना गलत है। जो कुछ भी है भगवान की देन है। अधिकतर वह महिला जो बच्चे को जन्म देने वाली है उनसे इस विषय में कुछ नही कर पाती क्योंकि ऐसा करना भगवान के खिलाफ जाने जैसा हो जाता है। वहीं मुस्लिम धर्म का तो अलग ही उसूल है, हिंदू के मुकाबले मुस्लिमों का जन्मदर कई गुना ज्यादा है। कुछ सर्वेक्षणों की मानें तो पुराने ख्यालात के साथ-साथ अपनी कौम को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के चक्कर में मुसलमान दर्जनों का परिवार खड़ा कर लेते हैं। कम उम्र में शादी भी जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक हैं। आज के इस आधुनिक युग में भी बहुत सारे बच्चे-बच्चियों की शादी कम उम्र में ही हो जाती है। उनकी शादी तभी कर दी जाती है, जब वह ना तो शारीरिक और मानसिक तौर पर फिट होते हैं और ना ही आर्थिक और भावनात्मक तौर पर मजबूत होते हैं। इस स्थिति में उनके भी कई सारे बच्चे हो जाते हैं जो कि जनसंख्या वृद्धि को और बढ़ावा देते हैं। गरीबी भी देश की जनसंख्या बढ़ाने में अहम किरदार निभाती है। बहुत सारे परिवार के लोग इसलिए भी कई बच्चे पैदा कर लेते हैं क्योंकि उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए बच्चों की सहायता की जरूरत पड़ती है। उनकी गरीबी उनको मजबूर करती रहती है कि वो कई बच्चे पैदा करें। बच्चे तो हो जाते हैं हैं लेकिन उनका भरण-पोषण वो अच्छे से नहीं कर पाते, जिससे वो गरीब से और गरीब होते चले जाते हैं।  अगर पर्याप्त शिक्षा मिले तो परिवार नियोजन की कमी, धार्मिक रूढ़िवादिता, कम उम्र में शादी और गरीबी जैसे मुद्दों पर लड़ाई लड़ी जा सकती है। परिवार नियोजन ना सीधे-सीधे अशिक्षा और अज्ञानता की कमी की ओर इशारा करते हैं, खासकर महिलाओं में। जो लोग अशिक्षित होते हैं उन्हें आँकड़े नही समझ में आते। उनको ये बात समझना मुश्किल हो जाता है कि देश में जनसंख्या विस्फोट से कितनी समस्याओं का जन्म होता है। 
आज के इस आधुनिक युग में अतिक्रमी जनसंख्या यानी जनसंख्या विस्फोट पर रोक लगाने में सफलता पा लेने का मतलब है- गरीबी, अशिक्षा बेरोजगारी आर्थिक पिछड़ापन जैसे तमाम समस्याओं से दूर कर देना। हालांकि यह सब कुछ कर पाना इतना आसान नहीं है, लेकिन अगर कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया जाए तो काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। एक समृद्ध और खुशहाल देश के लिए यह जरूरी होता है कि उस देश के आम आदमी स्वस्थ रहें और उनकी जनसंख्या देश की आर्थिक स्थिति के अनुरूप हो।यह तभी संभव है जब उस देश के आम आदमी इस बात को समझेंगे और परिवार नियोजन के उपाय अपनाकर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में अपना योगदान देंगे। दो बच्चों के बीच एक निश्चित अवधि का अंतर होता है तो माता-पिता के साथ साथ बच्चों के स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहेगा। जब स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो उनकी शिक्षा-दीक्षा भी सही रह पाएगी। हालांकि हमारे देश के संविधान में लड़कियों की शादी 18 और लड़कों की 21 वर्ष में शादी का प्रावधान है, लेकिन देश के कई हिस्सों में अभी भी लोग बहुत कम उम्र में शादी कर देते हैं। जो कि समाज के लिए काफी घातक होता है। महिलाओं के सशक्तिकरण से देश बढ़ रही जनसंख्या को कम करने में आसानी मिल सकेगी। बहुत सारे मामलों में देखा जाता है कि परिवार बढ़ाने के मामले में महिलाओं की कोई राय नहीं ली जाती। ऐसे में अगर महिलाओं में सशक्तिकरण का विकास होगा तो उनमें भी निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा। और उन निर्णयों को अमल में लाने की क्षमता का भी विकास होगा।
शिक्षा एक ऐसी कड़ी है जिसके बिना कुछ भी संभव पाना मुश्किल ही है। शिक्षा अगर नहीं है तो समाज के किसी भी वर्ग का उत्थान नहीं हो पाएगा। शिक्षा रहेगी तो लोगों को अच्छे-बुरे में फर्क करना समझ में आ जाएगा। साथ ही उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में भी सुधार होगा। उदाहरण के तौर पर किसान को ले लेते हैं क्योंकि किसान एक कमजोर आर्थिक स्थिति से आते हैं। अगर उनको अच्छी शिक्षा ना मिली तो वह वैसे ही रह जाएंगे जैसे उनकी पिछली पीढ़ी थी। हमारे देश और समाज में एक बड़ी संख्या में ऐसी आयु वर्ग के लोग हैं जिन्हें अब स्कूल भेज पाना मुश्किल है। लेकिन अगर उन्हें अच्छे से समझाया जाय कि अधिक आबादी के दुष्परिणाम क्या होते हैं तो स्थिति को सुधारा जा सकता है। वास्तव में विश्व जनसंख्या दिवस को मनाना तभी सार्थक हो सकता है जब हम बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरूक रवैया अपनाएं और इसके विभिन्न पहलुओं व हितों पर ध्यान देते हुए जनसंख्या विस्फोट में कमी लाने का प्रयास करें। जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न कारणों पर विचार कर इनके लिए उपायों पर ध्यान देना भी उतना ही जरूरी है।

अनिल अयान,सतना
संपर्क- ९४७९४११४०७