"कमलनाथ" बनाम "कमलनाल" की राजलीला
ध्रुवीकरण व विकेंद्रीकरण के खेल में उलझी सियासत
मार्च का पहला सप्ताह मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के लिए हाई टेक ड्रामा लिए रहा, विधायकों के अपहरण की घटनाओं में कथित रूप से गुनहगार बनी भाजपा ने अपने कमल दल की पंखुडियों को समेट करके रख लिया है। राज्य में स्थापित कांग्रेस सरकार को खुद के हाथों के पंजे लड़ाने से फुर्सत नहीं हैं, सरकार बनने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्य मंत्री की दावेदारी को जिस तरह कमलनाथ जी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के लि सुयोग्य बताकर काबिज किया, इसी का परिणाम है कि विरोध की उस समय दबाई गई चिंगारी आज तेज लपटों के साथ कुर्सी की महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित कर रही है, सरकार के द्वारा लगातार बयान देना, सरकार के मंत्रियों के द्वारा सामूहिक स्तीफा, विधायकों को भाजपा की सह में पकड़ में लेना, रातो रात कांग्रेस की कैबिनेट बैठक, ज्योतिरादित्य जी का दिल्ली में भाजपा और प्रधानमंत्री जी से मिलना आदि कितनी ही घटनाएँ हैं जो मध्य प्रदेश सरकार को खतरे में डाल दी है। मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित वयोवृद्ध राजनेता कमलनाथ अपने पत्तों को इस खेल में सम्हालपाने में नाकामयाब हो रहे हैं, कांग्रेस की आंतरिक कलह हमेशा से उनके लिए सिर दर्द बनी हुई हैं, विधायकों की हार्स ट्रेडिंग करने के मामले में भाजपा पुरानी खिलाड़ी रही है, इसके पहले के अन्य राज्यों के चुनाव इस बात की गवाही देते रहे हैं।
इस खेल में माहिर भाजपा पहले तो असंतुष्ट विधायकों के विश्वास को अपने कबजे में लेकर सेंध मारी करती हैं, इसी खेल में कांग्रेस के असंतुष्ट विधायक और मंत्री भी फंस गए। भले ही कांग्रेस ने इतने महीने मध्य प्रदेश की सरकार को घटीस लिया हो किंतु राह इतनी सरल नहीं है जितनी की दिख रही है, सरकार बनाने के लिए लालची किस्म के विधायकों की गद्दारी, संगठन में वरिष्ठ और पावरफुल नेताओं का निरस्तीकरण, करोड़ों में बिक जाने वाले बिन पेंदी के विजेता राजनीतिज्ञ, पूरी तरह से सरकार के साथ विभीषणगिरी करते नज़र आए। अपने ही क्षेत्र की बात की जाए हमारे विधायक ही कांग्रेस से खफा होकर भाजपा का प्रचार करने उतरे, अजय सिंह राहुल, राजेंद्र सिंह, और अन्य कदवार नेताओं के बीच की फूट कांग्रेस में साफ दिखाई दी, विगत महीनों में हुए कमलनाथ जी के दौरे में ये स्थिति साफ दिखाई दी। इस तरह का भितरघात, और आंतरिक फूट कांग्रेस सरकार के लिए गढ़ को ढाने के लिए काफी थी। कांग्रेस को इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि कांग्रेस को इस लिए जीत नहीं मिली क्योंकि वो सत्ता में काबिज होने के लिए सर्व श्रेष्ठ थे, बल्कि कांग्रेस को इसलिए जीत मिली क्योंकि भाजपा की तीन पंचवर्षीय सरकार को ज्यादा ही अहंकार हो गया था, वो आरक्षण, घोटालों में लिप्त हो गई थी, उसने अनारक्षित आम जनमानस को चुनौती दी थी, जनता सब जानती है और उसी का परिणाम भाजपा ने मध्य प्रदेश में भोगा। इतने महीनों में भाजपा ने सिर्फ मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सियासी नौटंकी के देखा उनकी गल्तियों को नोट डाउन किया।
भाजपा की हाई कमान में कांग्रेस की मध्य प्रदेश सरकार पहले से निशाने में थी, दिल्ली चुनावों के बाद के नंबर में खड़ी मध्य प्रदेश की सत्ता उसकी पारखी नजरों के सामने दिन रात झूल रही थी, कई महीनों से लिखी पटकथा का रंगमंचन आखिरकार होली के अवसर पर ही प्रारंभ हुआ। मार्च की क्लोजिंग के बीच किरकिरी बनी मध्य प्रदेश सरकार अल्पमत में आने लगी, यदि इस पंचवर्षीय सरकार को कांग्रेस नहीं सम्हाल सकी तो उसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की आंतरिक पंजा लड़ाओ भागमभाग, मंत्री पद की विधायकों की लोलुपता, और अपने अपने स्वार्थ में आंतरिक पिसाव में चकनाचूर होता कांग्रेस का आंतरिक ढांचा माना जाएगा। कांग्रेस का ग्राफ जिस तरह पूरे देशा में अन्य राज्यों में गिर रहा है, वह कांग्रेस को दम तोड़ने भी न देगा, दम लगाकर हुंकार भरने भी न देगा, आजादी के पहले से स्थापित कांग्रेस को उन्हीं के भितघातियों ने नैया डुबाने वाली स्थिति पैदा कर दी है। राजशाही, जमींदारी, राजघराने वाले नेताओं से भरी कांग्रेस, आज भी अपने अपने पावर और अपने अपने गुटों में बटी कांग्रेस को एक जुट होकर राजनीति में उतरने की आवश्यता है, टुकड़े टुकड़े गैंग बनाने वाली कांग्रेस, परिवारवाद के चक्रव्यूह में घिरी कांग्रेस को चक्रव्यूह भेदन करने के लिए खुद का अभिमन्यु खोजना होगा, सर्व सम्मति से उसे सर्वाधिकार प्रदान करना होगा, राहुल गांधी जी को जिस उम्मीद के साथ कांग्रेस की कमान सौंपी गई वह तो पानी फेर गए, मीड़िया ने वैसे भी कांग्रेस की छीछालेदर की हुई है, कांग्रेस में संयोजन करने वाले कदवार राजनीतिज्ञों का अकाल इस बात का संकेत हैं, कांग्रेस को आगे बढ़ना है और सरकार बचाने की अग्नि परीक्षा में पास होना है तो निश्चित ही उसे अपने पंचत्त्वों को समाविष्ट करते हुए एक होना पडेगा पंजे को बंद करके मुट्ठी में बदलना पड़ेगा। तभी कमलनाथ सरकार बचेगी। कांग्रेस को समझना होगा कि अब युवा नेतृत्व को सत्ता में स्थापित किया जाए, विकेंद्रीकरण को ध्रुवीकरण में बदलने की आवश्यकता है।
भाजपा तो अपना खेल खेल रही है, वह खेल जो अन्य राज्यों में खेला गया, यदि यह खेल न खेला गया, तो मध्य प्रदेश की पूर्वभाजपा के नेताओं मंत्रियों के द्वारा फैलाए गए रायते की कढ़ी कमलनाथ सरकार बनाने की तैयारी कर रही है, राजनीति में सब जायज है, वो सब कुछ जो सत्ता पाने के लिए सही हो, इस में गिरावट का कोई मापदंड़ नहीं है, कोई भी नहीं, चाणक्य, और हिटलर की कही बातों को शब्दशः अपनाने वाले वर्तमान भाजपाई हर राज्य को भगवा रंग में रंगने के लिए युद्ध स्तर की तैयारी किए हुए हैं, मीडिया से लेकर, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तक नतमस्तक हो चुकी है, ऐसे विश्वविजेता भाजपा के विजय रथ के सामने घोड़े बेंचकर सोने वाली कांग्रेस कितना मजबूती से सामना कर मध्य प्रदेश के छत्रप को बचापाती है। यह तो आने वाला समय बताएगा, आज की राजनीति, किताबों की राजनीतिशास्त्र नहीं रह गई, बल्कि सामदाम दंड भेद वाली राजनीति हो गई हैं, जिसके केंद्र में पंचवर्षीय सरकार है, और इस केंद्र लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक गिरना पड़े तो गिरो। विभीषणों को अपने साथ मिलाते चलो तो विजय अपनी होगी वाले सिद्धांत को मानती भाजपा निश्चित ही मध्य प्रदेश की सत्ता के निकट हम सबको महसूस हो रही है, शह और मात के इस खेल में कांग्रेस अपनी फौज की वजह से कमजोर पड़ती जा रही है, और भाजपा कांग्रेस की फौज को मिलाकर खुद को मजबूत महसूस कर रही है। आने वाला भविष्य कमलनाथ है या कमलनाल का यह तो आने वाला भविष्य का अप्रैल बताएगा।
अनिल अयान
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