शनिवार, 13 अप्रैल 2013

अतिथि विद्वान,पडे उतान....


अतिथि विद्वान,पडे उतान....
स्कूल शिक्षा मे जो हाल संविदा शिक्षकों का सरकार ने कर रखा है वही हाल महाविद्यालयीन शिक्षा मे अतिथि विद्वानों का उच्च शिक्षा मे उच्च शिक्षा विभाग ने कर रखा है. बस जहाँ अंतर सिर्फ इतना है कि संविदा शिक्षको के वेतन मान का अन्य परमानेंट शिक्षकों की तुलना मे अनुपात ५००० और २५००० का है और अतिथि विद्वानो के विषय मे यह अनुपात ८०००-१०००० और ५००००-८०००० का अंतर है. कुल मिलाकर देखा जाये तो इनकी जीवन चर्या को गर्त में मिलाने का काम सरकार के उच्च शिक्षा विभाग ने बखूबी किया है. ये तथाकथित रूप से विद्वान का पद तो पाजाते है पर वेतन मान और अपनी विद्वता का पारितोषित पाने के लिये खून के आँसू बहाने पडते है. साल के दस महीने इनके जलवे  महाविद्यालय मे होते है और फिर काम निकल जाने के बाद इनको दूध मे पडी मक्खी की तरह निकाल कर फेक दिया जाता है. तब इनकी सेवा, शिक्षा , ज्ञान और अनुभव की बारा की ढेर हो जाती है. और सिर्फ यही कहा जाता है की यह नियुक्ति तो जनभागीदारी समिति के तहत सिर्फ पीरियड के तहत हुई थी. हम सब नियम कानून से बंधे हुये है.अतिथि विद्वान योग्यता में प्राध्यापकों की तुलना में कहीं भी कम नहीं होते है. वो नेट, पी.एच.डी. एम.फिल, सभी उच्च योग्यताओं से परिपूर्ण होते है. और ज्ञान में तो कभी कभी ६० वर्ष पूर्ण करने वाले प्राध्यापको से एक कदम आंगे ही होते है. क्योकी के वो अध्ययन में किसी से कम नहीं और अपने को समय समय में अपडेट करते रहते है. पर प्राध्यापक तो इन सबसे परहेज इस लिये है कि ना उनके पास इतना समय है और ना ही उनको जरूरत जब सरकार उन्हे ५००००-८०००० रुपये दे रही है तो पढना भी सिर्फ समय की बरबादी नजर आती है और कालेज के विद्यार्थी तो पढने आते कहाँ है. वो तो डिग्री लेने और राजनीति करने शासकीय महाविद्यालय में आते है.
          सरकार जहाँ एक तरफ प्राध्यापकों की नियुक्ति करने में असमर्थ है या ये कहे कि इतनी भी अब औकात नहीं रह गई की वो सहायक प्राध्यापक की सीधी भर्ती करके सभी महाविद्यालयों मे नियुक्ति करे ताकी यह स्थिति आये ही नहीं, सरकार के पास बैकलाग पदों की नियुक्ति करने का समय ,बजट और योजनायें है पर सामान्य भरती की कोई योजना नहीं है यह कहाँ का न्याय है. और दूसरी तरफ हर जगह महाविद्यालय लगातार कुकुरमुत्तों की तरह खुलते चले जारहे है. तो फिर छात्रो के पठन पाठन के हित के लिये अतिथि विद्वानों की नियुक्ति एक सामान्य प्राध्यापक की तरह क्यों नहीं की जाती है. कई जगह तो ऐसी है जिसमें प्राचार्य को छोड कर सारा स्टाफ अतिथि विद्वानों का है. पूरे सत्र मेहनत करने में ये कभी पीछे नहीं रहते है. वेतन मान में इनकों पीछे क्यों छोड दिया जाता है, सरकार इनके साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार करती है जैसे सरकारी प्राध्यापक सरकार की जायज औलाद हो और ये नाजायज. इनका पूरा कार्य एक प्राध्यापक की तुलना में कहीं भी कम नहीं आँका जा सकता है, बल्कि कई मायनों में कामचोरी और पढने पढाने की चोरी के मामले में प्राध्यापक इन अतिथि विद्वानों से कई कदम आंगे होते है.
  कभी कभी तो ऐसा नहीं लगता है कि शासन की नजरों में जैसे ना इनका परिवार है. ना इन्हे. कोई जरूरत होती है. ये बिल्कुल फकीर है......आखिर क्या हो रहा है इस उच्च शिक्षा विभाग को क्यों इतना भेदभाव है. काम मे समान और वेतनमान में अलग अलग. आज जरूरत है कि उच्च शिक्षा विभाग  या तो लोक सेवा आयोग के तहत या तो परमानेंट नियुक्ति करे, या फिर इन अतिथि विद्वानों की योग्यता और अनुभव के आधार पर इनकी नियुक्ति के प्राध्यापक के रूप में करे तभी इनका भविष्य कुछ हद तक उज्ज्वल होगा. अन्यथा, आज तो ये पूरी तरह से उतान पडे हुये है. ना कोई माई बाप है ना कोई योजना इनका भविष्य बना रही है. और ना महाविद्यालय का कोई सहयोग.साल भर मे ९ महीने काम करने के बाद बाकी ३ महीने इनके कैसे परिवार चलते होंगे. कैसे इनका गुजारा होता होगा. और इनके परिवार का विकास कैसे होगा यह सोच कर चिंता होने लगती है. पर हमारा प्रशासन की कान में जूं तक नहीं रेगती, उसे इनके काम से सरोकार होता है परन्तु इनके जीवन इनके परिवार और इनके भविष्य से कोई सरोकार क्यों नहीं होता. यदि यही चलता रहा तो तय है कि आने वाले वक्त मे अतिथि विद्वान प्राइवेट विद्यालय और महा विद्यालय मे पढा लेगा पर सरकारी अतिथि विद्वान बनना नहीं पसंद करेगा, क्योंकि यदि मेजबान बेशर्म हो जाये तो अतिथि ना बनने में ही बडप्पन होगा.
अनिल अयान सतना.

1 टिप्पणी:

umesh ने कहा…

बहुत ज्वलन्त मुद्दा उठाया है अनिल जी. सचमुच सरकार ने अतिथि विद्वानों को उतान कर दिया है. अच्छा हो, कि आप इस समस्या को सड़क पर लायें, ताकि कोई सार्थक हल निकल सके.