सोमवार, 27 मई 2013

भारतीय लोकतंत्र बनाम बौद्ध गणतंत्र


भारतीय लोकतंत्र बनाम बौद्ध गणतंत्र
दो दिन पहले बुद्ध जयन्ती का आयोजन शहर मे धूमधाम से हुआ. मुद्दा था वही एक विरोधात्मक विचार बिंदु क्या बुद्ध के विचारों से भारत का लोकतंत्र चल सकता है. विषय कुछ अटपटा सा जरूर है परन्तु कुछ कहने का मन हो रहा है बौद्ध दर्शन और बुद्ध की गणतंत्र की परिकल्पना बनाम भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था कहाँ से कोई जोड तोड ढूँढ कर लाया जाये यह यक्ष प्रश्न खडा मिला. तथागत बुद्ध जिसने पूरी राज सत्ता को त्याग कर ज्ञान प्राप्ति के लिये ब्रह्मचर्य का पालन करने हुये प्रवासी हो गये और अंतत जब ज्ञान प्राप्त कर लिया तब उन्होने नही विचारधारा का प्रतिपादन किया जिसे पंचशील का नाम दिया गया. जो शायद बौद्ध गणतंत्र की नींव मानी जा सकती है. बुद्धम शरणं गच्छामि, संघम शरणं गचछामि, धम्मं शरणं गच्छामि की परिकल्पना को मानने वाल बौद्ध धर्म आज भारत में किस स्थिति में है वो हमारी नजरों के सामने देखने को मिलता है.यह सच है कि बौद्ध धर्म मैत्री, शांति,प्रेम, और भाईचारे का संदेश देता है. परन्तु क्या देश वर्तमान स्थिति में यह संदेश लेकर हम किस समय तक इस विश्व की धरोहर में कायम रह पायेंगे.
  यह धर्म बुद्ध के संदेशो मे पिरोया गया था. आज के विश्व में सबसे अधिक इसी धर्म के लोग निवास करते है. इसी धर्म के अनुयाई है हर जगह बौद्ध शिलालेख हमें देखने और सुनने को मिल जायेगें. अधिक्तर देश बौद्ध धर्म, फिर ईसाइयत, और तत्पश्चात मुस्लिम धर्म के अनुयायी मिलेंगे. भारत मे यह स्थिति पूर्णतः विपरीत है. बौद्ध धर्म में जिस गणतंत्र का जिक्र मिलता है वह उस समय के लिये सही था. वहाँ पर वोट देने का अधिकार सदस्यों को ही हुआ करता था. और उत्तराधिकारी की नियुक्ति परिवार से ही की जाती थी. भारत की स्थिति कुछ या ये कहें की बहुत कुछ अलग है. हमारी सबसे बडी विडम्बना है कि हम हर प्रश्न की खोज हर महापुरुष की बातों में खोजने में उतारू हो जाते है ,बिना ये समझे कि वो किस समय यहाँ जन्म लिया था. उस समय इस देश की परिस्थितियाँ क्या थी. और उसने किन हालातों के चलते अपने अनुयायी बनाये. और फिर हमारा आँकलन शुरू हो जाता है. उसने कैसे यह बात कह दी है. क्या आज के समय में वह समसामायिक है. ये सारे फिजूल के भ्रम हमारे दिलो दिमाग में फितूर उतपन्न कर देता है. और फिर है उस महापुरुष को अपनी आलोचना का शिकार बना लेते है. बुद्ध के अनुयाई ही उनके विचारों को नहीं अपना पाये तो हमारे देश की क्या गिनती है. हमने सिर्फ अपने समय के अनुसार अपने आराध्य बदल दिये है. और आज के समय में तो सिर्फ राजतंत्र ही सबसे बडा तंत्र है. गणतंत्र तो कब का गायब हो चुका है.
  भारत की स्थिति कुछ ऐसी है कि भारत में सिर्फ वोट तंत्र चलता है वोट के लिये हमने दलाईलामा को अपने देश में शरण दिया. ताकि  उस समय में सत्ता में बैठी सरकार को लाभ हो जाये. हमने सिर्फ देश मे उन लोगो को बिठा दिया जिन्होने आज तक देश को सिर्फ बेंचने का काम किया है. चाहे वो प्रत्यक्ष रूप में हो या अप्रत्यक्ष रूप में इस सब के चलते क्या देश के हालात ऐसे  है कि बुद्ध के मैत्री , भाईचारा और प्रेम का संदेश ध्वज लेकर हम अपने शत्रुओं का सामना कर सकते है. नहीं आज के समय में यदि हमें विकास पथ पर लेचलना है तो हमे अपना नियम अपना कानून प्रायोगिक तौर पर बनाना होगा. बौद्ध दर्शन और बौद्ध गणतंत्र की परिकल्पना आज के समय में बेमानी सी लगती है. इतिहास गवाह रहा है कि बुद्ध के अनुयाई बुद्ध के विरोध में चले गये. जितने भी देश इस विचारधारा को मानते है वो आज भी मन ही मन अपने विकास की गति अवरोधक इसी को मानते है. चीन और जापान के बच्चे से जब यह पूँछा जाता है कि देश और बुद्ध में तुम किसे चुनोगे तो वह देश की बात करता है.और बुद्ध को किनारे कर देता है. हिन्दू धर्म में भी बुद्ध को लेकर बहुत से मिथक कथायें ग्रंथों मे उद्धरित है. बुद्ध के सिद्धाँत उस समय में प्रासंगिक हो सकते थे परन्तु आज के समय में वह भारत के परिपेक्षय मे उदासीन से दिखायी देते है.आज के समय में भारत को आवश्यकता है तटस्थ नेतृत्व की जिसके दम पर वह सही और गलत का फैसला देश हित मे कर सके. आज हमारे देश में लोकतंत्र तो कब का खत्म हो चुका है. परन्तु हम कहने से यह डरते है कि कहीं हम बवाल में ना फंस जायें सोचने वाली बात है कि आज एक घर में लोक तंत्र नहीं स्थापित कर सक्ते है तो देश में कैसे संभव हो सकता है. आज देश की जनता को सिर्फ और सिर्फ वोट देने का अधिकार है उसके बाद उसकी हालत चाय में पडी मक्खी की भाँति हो जाती है अगले चुनाव तक. बुद्ध को विष्णु का नवम अवतार माना जाता रहा है उस दृष्टि से वो हमारे आदरणीय और सम्माननीय पूज्य है परन्तु यह जरूरी नहीं ही हर पूज्य महापुरुष के विचारधारा को लेकर देश का प्रशासन चलाया जाये. यदि आज के समय मे देश उनके तरीके से चलता है तो देश अगली बार बहुत ही जल्द बौद्ध देशो का गुलाम हो जायेगा......
अनिल अयान, सतना,

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