सोमवार, 5 अगस्त 2013

डीठ लगी आजादी के समीकरण

डीठ लगी आजादी के समीकरण
आज हम स्वतंत्रता की ६५वीं वर्षगाँठ मनाने जा रहे है और यह भी जानते है कि आज के समय में कितना जरूरी हो गया है ,समझना कि आजादी के मायने क्या है. जिस तरह के संघर्ष के चलते अंग्रेज भारत छॊड कर गये और भारत को उस समय क्या खोकर यह कीमती आजादी मिली यह हमे हर समय याद रखना होगा. आज  ६० वर्ष के ऊपर होगया है भारत अपने विकसित होने की राह सुनिश्चित कर रहाहै. वैज्ञानिकता, व्यावसायिकता, वैश्वीकरण के नये आयाम गढ रहाहै. आज के समय समाज, राज्य, राष्ट्र और अन्य विदेशी मुद्दे ऐसे है कि आज के समय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान में पानी फिरता नजर आ रहा है.ऐसा महसूस होता है कि पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज अपने राजनेताओं के गुलाम हो गये है भारत के हर राज्य अपनी जनसंख्या बढाने में लगे हुये है. पहले जहाँ भारत की प्राकृतिक संपदा और मानव संसाधन समुचित थे यहाँ के विकास के लिये आज के समय में भारत को हर क्षेत्र में आयात ज्यादा और निर्यात कम करना पड रहा है,भारत ने जितना विकास किया और विकास दर बढाई है उतना ही भारत की मुद्रा स्फीति की दर में गिरावट हुई है. आज भारत विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिये जगदोजहद करने में लगा हुया है. और दूसरी तरफ आतंकवाद, और आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे भी कहीं ना कहीं भारत को घुन के समान खत्म करने में लगे हुये है. ऐसा लगता है कि गाडी की लाल बत्तियाँ वही है सिर्फ सवारियाँ बदल गयी है. आज जो भी राज्य और केंद्र की कुर्सी में बैठ रहाहै वह सब अपने राजनैतिक समीकरण बनाने में लगे हुये है.आज के समय में भारत का संविधान भी सुरक्षित नहीं है.इसके साथ साथ भी खिलवाड करने , बलात्कार करने से राजनेता बाज नहीं आरहे है,आज के समय में भाषा गत मुद्दे, क्षेत्र के मुद्दे,जाति धर्म के मुद्दे इस तरह छाये हुये है कि उसके सामने देश को प्रगति और विकास के विचार विमर्श करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है. राष्ट्रीय पार्टी के नाम पर यूपीए, और एनडीए गठबंधन अपनी सरकार बनाने में लगे हुये है. आज सिफ भारत को भौतिक रूप से आजादी मिल गयी है परन्तु सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक, आजादी के सामने भारत आज भी पाश्चात सभ्यता के पीछे घिघिया रहा है.
  आज के समय सिर्फ राजनैतिक समीकरण बनाने के किसी के पास कुछ भी नहीं सूझता है. चाहे वह छात्र नेता हो या राजनैतिक मठाधीश सभी अपने अपने समीकरण से कुर्सी की राजनीति के दलदल में अपने को डुबोने मे लगे हुये है. राजनैतिक स्थिति यह है भितरघात से बचने की कोशिश में खुद भी भितरघाती बन जाते है. आजादी के बाद आज के समय मे एक सर्वहारा वर्ग से पूँछे की बाबा तुम्हे आजादी के पहले और बाद में क्या अंतर दिखाई पडता है तो चाहे किसान हो, मजदूर हो, बुजुर्ग हो, या कामगार हो वह सब यही कहेंगें कि पहले साहूकारों से, बिचौलियों से कर्जा लेकर अपना जीवनयापन करते थे आज सरकार घर आकर जबरन कर्जा दे जाती है. और फिर मार  मारकर वसूल करती है. आज पाश्चात सभ्यता का प्रभाव है कि दो पीढियाँ एक साथ टेलीविजन का मजा नही ले सकती है. कब शीला की जवानी. टिकू जिया, जलेबी बाई जैसे गाने बडे बुजुर्गों को अपने साथ बैठे नाती पोतों से अलग उठ कर जाने के लिये विवश कर देंगें यह वो भी नहीं जानते है.आज के समय में सब कारक उठे है परन्तु आज के समय  में सिर्फ चारित्रिक अवमूल्यन इस तरह हुआ है कि ऐसा लगता है हर रिश्ते बेमानी से है. सगा बाप अपनी बेटी के साथ बिस्तर में शारीरिक संबंध बनाता है और समाज उसे सिर आँखो में बिठाता है.आज के समय मे आरक्षण की आग इस तरह फैली हुई है कि आज के समय में आरक्षित जातियाँ ही इसका दुरुपयोग करने में लगी हुयी है. और सवर्णों को आरक्षण की आवश्यता आन पडी है.आज के समय बौद्धिक आजादी के नाम पर लोग अन्य जातियों धर्मों को गाली देने में अपनी शान समझते है. आज के समय में रुपया डालर और अन्य देशो की मुद्राओं की तुलना में लगातार गिरता ही जा रहा है.आज के समय में मँहगायी सुरसा की तरह अपना मुह फैला रही है और गरीबी को निगलने में आतुर है. आज लोकतंत्र में तंत्रलोक मिलता नजर आरहा है. और पब्लिक प्रापर्टी को लोग अपने घर की जागीर समझ कर अतिक्रमण करने में उतारू होगये है. आज के समय सिनेमा और खेल दोनो सेंसर और डोपिंग टेस्ट की कगार में खडे हुये है. पूरा देश अपनी आजादी के गुमान और गुरूर में इतना मादक होगया है कि उसे ना अपने अतीत के संघर्ष की फिक्र है और ना इस बात का भान है कि भविष्य में भी कोई उसे फिर किसी तरीके से अपना उपनिवेश बना सकता और वो कुछ भी नहीं कर सकता है. आज के समय में भारत के पडोसी ही दुश्मन बने हुये है,. और तब पर भी भारत उनसे भाई चारे की बाँह फैलाये गले लगाने के लिये आतुर नजर आता है. इतने वर्ष होने के बाद भारत आज भी वैचारिक रूप से गुलाम है. बस गुलाम बनाने वाले अपना नकाब बदल लेते है. आज के समय में नपुंसक केंद्र की सत्ता अपने घरेलू लडायी में ही उलझी नजर आती है. आज के समय में लाल किले में तिरंगा फहरा लेने , परेड की सलामी लेलेने से, और संसद मे बैठ कर जूतम पैजार करने भर से सच्ची श्रृद्धाँजलि होगी तो यह सरासर गलत है. आज के समय में जरूरत है कि बेरोजगारी को कम करके आने वाली पीढी को आतंकवादी, अराजक, और डकैत बनने से रोका जाये, पलायन करने से रोका जाये. और यह प्रयास किया जाये कि नजर लग चुकी आजादी का अपने प्रयासों के सार्वभौमिक बनाया जाए नहीं तो. आज के जनप्रतिनिधि... प्रति जन निधि संचय करने में अपने आप के साथ साथ देश को भी विदेशियों के हाँथों बेंचते रहेंगें और आम जनता देश की आजादी के जश्न मनाती रहेगी.
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.

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