शनिवार, 2 नवंबर 2013

उजाले को भीतर तक आने दो

उजाले को भीतर तक आने दो
अंतर्मन में विचारों के चिरागों को लगातार जलाने के लिये हम जितना मनन और चिंतन करेंगे उतना ही समाज के लिये लाभप्रद होगा. आज के समय में जितना ज्यादा समाजिक विद्वेश और विघटनकारी तत्वों का प्रतिपादन किया जारहा है उतना ही आज के समय में हर भारतवासी को चाहिये कि वह अपने हर पल के व्यवहार में विवेकशीलता की बढोत्तरी करे और अपने घर से किसी भी नेक मुहिम की शुरुआत करे.हमारे साथ हमेशा यही समस्या रही है कि हम हमेशा ही सोचते तो बहुत ऊँचा है परन्तु उसे कभी भी अपने घर से प्रारंभ करने की चेष्टा नहीं करते है. हर बार दीवाली का त्योहार आता है और चला जाता है परन्तु हर व्यक्ति अपने कुछ पलों की खुशी के लिये इफरात रुपया खर्च कर देता है. वह यह नहीं सोचता है कि इस रकम को कमाने में वह कितना समय कितनी मेहनत जी तोड कर करता है.आज के समय में आवश्यकता है कि हम सब समाज के उस कोने के लोगों तक भी पहुँचें जो समाज से बहिस्कृत कर दिये गये अपने समाजिक और अर्थिक निम्नता की वजह से, जिन्हे समाज अनदेखा कर देता है .जो एक दीपक तक नहीं जलासकते है. हम जितना वैभव और ऐश्वर्य में, जंके मंके में अपना समय विचार और मुद्रा नष्ट करते है उतना भाईचारे और मानवता को अपने जीवन में अपनाने पे कभी विचार नहीं करते है. आज के समय में मानव धर्माचरण करने की आवश्यकता है जिससे सच्ची भावना से समाज का हर वर्ग दीवाली मनाये अब देखिये ना...वर्तमान में हिंदुओं के देवताओं के नाम व उनके चित्रोंका उपयोग उत्पादों तथा उनकी विज्ञप्ति के लिए किया जाता है । दिवाली के संदर्भ में इसका उदाहरण देना हो, तो पटाखों के आवरणपर प्राय: लक्ष्मीमाता तथा अन्य देवताका चित्र होता है । देवताओंके चित्रवाले पटाखे जलानेसे उस देवताके चित्रके चिथडे उछलते हैं और वे चित्र पैरोंतले रौंदे जाते हैं । यह देवता, धर्म व संस्कृतिकी घोर विडंबना है । देवता व धर्मकी विडंबना रोकने के लिए प्रयास करना ही खरा लक्ष्मीपूजन है । अपने युवा दिल की धडकनों से दीवाली में यह भी कहना चाहता हूँ कि दोस्तों ! दीवाली का त्योहार जाते-जाते आपको कुछ संदेश देता है बशर्ते आप उसे समझ पाएँ। कोशिश करें कि अगली दिवाली तक आप इस पर अमल कर पाएँ।करियर की चमक को दूर तक बिखेरने के लिए इस दीपावली कुछ प्रण करें कुछ आत्मचिंतन करें और खुद के लिए कुछ फैसले करें। असफलता से डरें नहीं! अपनी असफलता को न केवल अपने शुभचिंतकों के सामने रखें, बल्कि अपने सामने भी रखें, तब आपके भीतर का अंधेरा अपने आप छँट जाएगा। कई बार आप दोस्तों की सलाह पर कोई कदम उठा लेते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा की जरूरी नहीं जो दोस्त कर रहा हो वह आपके के लिए ठीक हो! एक स्तर के ऊपर अगर आपको लगे कि आप किसी अन्य की सफलता से जरा ज्यादा ही जलने लगे हैं तब मन पर जम रही इस बुराईरूपी बारूद को जरूर हटाएँ। इस दीपावली प्रण करें कि अपने करियर को नई ऊँचाई देने के लिए पहले आप अपने आप में खुश रहेंगे। अगर खुश रहेंगे तब सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी।रोशनी का पर्व है दोस्तों और करियर को नई राह देने के लिए भी यह समय ऐसा है, जब आप कुछ बातों पर अगर ध्यान देंगे तब करियर न केवल रोशनी में नहा जाएगा बल्कि आप ओरों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकेंगे। करियर की चमक को दूर तक बिखेरने के लिए इस दीपावली कुछ प्रण करें, कुछ आत्मचिंतन करें और खुद के लिए कुछ फैसले करें। जिस प्रकार दीपावली के दिन संपूर्ण वातावरण प्रकाशमान हो जाता है ठीक उसी तरह आपका करियर भी दैदिप्यमान हो सकता है बस जरूरत है पहल करने की। हम अक्सर अपने भीतर ऐसी बातों को छुपा कर रखते हैं जिनके बाहर आने का हमें डर रहता है और लगता है कि अगर ये बातें जमाने को पता पड़ गईं तो हमें लोग क्या कहेंगे? अगर आप अपने भीतर साफगोई का उजाला आने देंगे और अगर आप अपनी असफलता को न केवल अपने शुभचिंतकों के सामने रखेंगे बल्कि अपने सामने भी रखेंगे तब आपके भीतर का अंधेरा छँट जाएगा और आप स्वयं को दुनिया के सामने और भी बेहतर तरीके से रख सकेंगेअक्सर हम अपने करियर को हड़बड़ाहट में अलग रास्ते पर ले जाते हैं, अगर आप इस दीपावली से किसी भी निर्णय धैर्यपूर्वक लेंगे तब आपके करियर पर इसका अच्छा असर पड़ सकता है। आप कई बार दोस्तों की राय पर कोई कदम उठा लेते हैं पर क्या कभी आपने सोचा की जरूरी नहीं जो दोस्त कर रहा हो वह आपके के लिए ठीक हो।अपने आप को भीतर से रोशन करें.हम अपने करियर को बनाने के लिए पढ़ाई करते हैं और न जाने कितने प्रकार के नोट्स पढ़ते हैं। ऐसे में कई बार हम अपने आप की ओर ध्यान नहीं दे पाते। दोस्तों जान है तो जहान है। इस कारण अपने आपको भीतर से रोशन करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम,योगा आदि जरूर करें।मन से बुराई रूपी बारूद हटाएँ.इंसान का मन में ईर्ष्या,जलन और स्वार्थ की भावनाएँ आना स्वाभाविक हैं। पर एक स्तर के ऊपर अगर आपको लगने लगे की आप किसी अन्य की सफलता से जरा ज्यादा ही जलने लगे हैं, तब मन पर जम रही इस बुराईरूपी बारूद को जरूर हटाएँ वरना यह भविष्य में काफी तकलीफदेह हो सकती है.गर आप मन से प्रसन्न हैं तब निश्चित रूप से आप के आसपास का वातावरण भी खुशियों भरा ही होगा। इस दीपावली प्रण करें की अपने करियर को नई ऊँचाई देने के लिए पहले आप अपने आप में खुश रहेंगे। अगर खुश रहेंगे तब सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी।अंत में बस इतना ही कि....... हौसला ऐसा होना चाहिये कि..
यदि फलक को जिद है बिजलियाँ गिराने की 
फिर हमें भी जिद है वहीं आशियाँ बनाने की
सभी साथियों को इसी संदेश के साथ दीवाली की अशेश शुभकामनायें.

शौचालय बनाम देवालय


शौचालय बनाम देवालय
बहुत दिनो से देश में एक विवादित बयान में बहस छिडी हुई है कि देवालय से पहले शौचालय. यह एक ऐसा मुद्दा है कि जिस पर बहस बहुत पहले होती तो ज्यादा बेहतर होता क्योंकि आज के समय में आवश्यकता है कि शौचालय वाले बिंब की तरफ ध्यान दिया जाये ताकि देश का समग्र विकास हो सके. आज के समय में देश हमेशा की तरह देवालयों की ज्यादा ही चिंता करने मे लगे है. यदि मै धार्मिक बात करूँ तो धर्मग्रंथों में लिखा है कि धर्म और देवालयों का प्रभाव हर वक्त मानव के हॄदय में रहेगा चाहे जितना भी विनाश हो जाये. चाहे जितना भी विकास हो जाये. मानव इसके प्रति यदि अपने उत्तरदायित्व को दर्शाता है  तो वह उसका अति उत्साह में लिया गया अप्रभावी प्रयास होगा.समाज चाहे जितना प्रयास कर ले परन्तु अंधानुकरण से नहीं बच सकता है क्योंकि वह जानता है कि जहां पर जनता अधिकाधिक जाती है वह उतना ही प्रसिद्ध स्थान होता है.समय रहते हमें अपने विचारों और आचारों को परिवर्तित करके सही निर्णय लेने और उसके अनुसार व्यवहार करने की आवश्यकता है.इसके संबंधित बयान में पूरे देश के मीडिया को ऐसे विचलित कर दिया जैसे कि आस्था में किसी ने बहुत गहरी चोंट कर दी हो और सभी के गाल में  बहुत जोर का तमाचा पडा हो. या यह कहूँ कि किसी ने सफेदपोशी में छिपे दाग को लोगो के सामने उजागर कर दिया हो और उस बेइज्जती से  खिसिया कर सब उस पर अपना गुस्सा दिखा रहे हो.
            आज के समय में चुनाव के माहौल के चलते राजनेता भी समाज की प्रगति की बात गाहे बगाहे कर ही लेते है. वर्ना उन्हे तो यह भी नहीं पता होता की पूरे देश में समग्र स्वच्छता अभियान का कितना प्रभाव पडा है. यह भी तय है कि चुनाव के बहाने ये राजनेता समाज से राज तक का सफर तय करने की कोशिश कर रहे है. समय रहते यदि यह स्पष्ट हो जाता कि शौचालय की आवश्यकता हर घर में है बल्कि देवालय हर घर के लिये होना ना होना उनकी श्रद्धा के ऊपर निर्भर करता है. वरना सार्वजनिक रूप से तो  यह हर गली मोहल्ले और शहर में होता है. और आज के समय में यह भी तय है कि देवालयों का उपयोग सरकारी जमीन मे कब्जा करने और शासकीय फंड को हथियाने के लिये ज्यादा उपयोग करने के लिये किया जा रहा है. और समय समय में न्यूज चैनल अपनी टी आर पी बढाने के लिये भी देवालयों का भरपूर उपयोग करती है. कभी कोई चमत्कार दिखाकर, कभी कोई जादू टोना का सहारा लेकर. कभी किसी साधू बाबा की बातों को लेकर पूरे पूरे दिन एक प्रकार की ब्रेकिंग न्यूज बना दिया जाता है और धीरे धीरे वह हमारी सोच को ब्रेकिंग स्थिति में ला देता है. आशाराम और एक साधू के ऊपर सरकार का विश्वास ही तो था कि विगत दिनों में एक ऐतिहासिक मंदिर में सोने की खोज प्रारंभ हो गई. पूरा महकमा सोने की तलाश में लग गया बिना ज्यादा खोज बीन किये कि वहां पर वाकयै सोना है भी या नहीं.उस कदवार राजनैता का यह बयान कहीं ना कहीं हमें प्रायोगिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है. हम हर उस वस्तु और धर्मग्रंथों का सम्मान करे जिसके चलते हमें अपनी विरासत में अनमोल धरोहर मिली है. परन्तु उसका अंधानुकरण करके अपना सारा काम छोड देना और अपना पूरा जीवन भगवान भरोसे छॊडकर वैरागी हो जाना.माता पिता और परिवार को छॊड कर अपनी धुन में रम जाना प्रायोगिक रूप से कहां तक सही है इस बात की विवेचना की आवश्यकता है. आज के समय में यह आवश्यकता बहुत अधिक है कि हम दोनो के बीच सामन्जस्य बना कर रखें और यदि दोनो में असमानता समझ में आती है तो हमारा जीवन कहीं ना कहीं प्रभावित हो जायेगा.
            चुनाव के समय में भले ही नरेद्र मोदी जी ने अपने उदबोधन में यह बात कह दिया हो और देश में फिर नयी परिचर्चा के शिकार हो गये हो.इसी बहाने यदि अन्य राजनीतिज्ञ अपना अपना स्वार्थ परक अर्थ निकाल कर बहस करने में लिप्त हो गये हो परन्तु यदि हम इस वाक्य में गौर करें कि देवालय से पहले शौचालय का ध्यान देने की आवश्यकता है तो हम समझ जायेगे कि ये तो एक बिंब है वास्तविकता को अपने में समेटे हुये.हां यह भी तय है कि चुनाव के समय में ऐसे बयान कहीं ना कहीं पर वख्ता को लोगों के सामने ला देता है और ध्यान केंद्रित करने का काम भी मुफ्त में हो जाता है. आज के समय में जरूरत है कि हम अपने जीवन की मूलभूत जरूरतों को पहले देखे जिसके लिये सरकार तत्पर है वरना यदि ब्रह्मचर्य ही अपनाना है तो समाज पर बोझ बनने की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि यदि हम अपने मन की स्वच्छता पर ध्यान ना कर सकें  तो किसी जगह पर भी ध्यान लगाने से हमारे विकार नहीं जायेगें. इस लिये देवालय का मनन हो परन्तु शौचालय का चिंतन भी सारगर्भित होगा.
अनिल अयान,सतना.

फ्लर्ट sameeksha by anil ayaan


फ्लर्ट को पढते पढते मुझे प्रतिमा खनका के लेखन से पहली बार परिचय हुआ.ऐसा लगा की किसी फिल्म की पटकथा से परिचय हो रहा है. प्रतिमा जी ने अपनी ज्यादा उमर ना होते हुये भी फ्लर्ट की इतनी अलग ह्टकर व्याख्या की वह किसी शब्दकोश में शामिल नहीं है. कभी कभी यह भी लगता है कि यह व्याख्यात्मक भाबना कहा तक सर्वमान्य है. क्योंकि इस  समाज में जो फ्लर्ट की व्याख्या की जाती है वह ऐसा बंदा होता है जो अपनी जिंदगी के विकास के लिये किसी भी दिल के साथ खिलवाड कर सकता है.वह किसी का भी इस्तेमाल कर सकता है.परन्तु लेखिका ने अंश नाम के मुख्य पात्र के माध्यम से यह बताया है कि समाज की वह परिभाषा गलत है. पूरी कथा में अंश का किरदार यह बताता है कि वह इंशान भी फ्लर्ट की श्रेणी में आता है. जिसे उसके हालात ,चालें और उसके फैसले अपनी इच्छा से चलाते है.जिसका खुद का विश्वास कई बार टूटा हो, जो खुद के फैसलों के अनुसार बदल जाते है.जिसके दिल से और खेल जाते है जिसका इस्तेमाल अन्य लोग कई बार कर करते है वो लोग भी फ्लर्ट की श्रेणी में आते है.यह उपन्यास एक मजबूर मध्यम वर्गीय परिवार के लडके अंश की जिदगी की दास्तान है जो बहुत ही स्मार्ट है और लडकियों से अपने को बचाने के चक्कर में खुद बखुद लडकियों के प्रेम प्रसंग में परत दर परत वख्त दर वख्त कैद होता चला जाता है वह एक फैशन माडल बन जाता है परन्तु इस मुकाम तक पहुँचने के लिये उसे अपने दिल की भावनाओं को गिरवी रख देता है और बाद में दूसरे की खुशी और सफलता के लिये खुद का इस्तेमाल करवाने के लिये हंसते हंसते हाँ भी कर देता है.
            कथा वस्तु की बात करे तो अंश जो मुख्य किरदार है वह एक मध्यमवर्गीय परिवार का युवा विद्यार्थी है जिसकी मा और बहन है पिता जी का देहांत हो गया है. वह स्कूल की पढाई कर रहा है. उसके दोस्त समीर और मनोज उसे हमेशा लडकियों के बारे में बताते रहते है. वहीं पर उसकी मुलाकात होती है प्रीति से जो उसके जिंदगी की सबसे ज्यादा करीब और बाद में उसकी मंगेतर भी बन जाती  है परन्तु अंश की माडलिंग के नित नये किस्से उसे मजबूर कर देते है कि वह अंश की पत्नी बन पाने में असमर्थ पाती है. स्कूल खत्म होने के बाद अंश माडलिंग आडीशन में चयनित होकर यामिनी के साथ और संजय के साथ मुम्बई जाता है और वहाँ पर यामिनी के सौन्दर्य पर आकर्षित हो जाता है परन्तु दिल टूटने के पहले उसे पता चलता है कि यामिनी शादीशुदा महिला है जो अपने पति की सहमति से यहाँ माडलिंग कर रही है. और जल्द ही और गैर मर्द के साथ शादी रचाकर जापान शिफ्ट हो जाती है और जब वह अंश की जिंदगी में वापिस लौटती है तो अंश की औलाद के साथ और यह वजह ही अंश की पत्नी सोनाली की आत्म हत्या करने का कारण बनता है.
अंश की जिंदगी में यामिनी से पहले जब वह काल सेंटर में काम कर रहा होता है तब कोमल नाम की लडकी भी आती है वह अंश से बेहद प्यार करती है परन्तु अंश नहीं. परिस्थितियाँ अंश को मजबूर करती है कि वह कोमल को उसकी जान बचाने के लिये यह कहे कि वह उससे प्यार करता है.और यही झूठ उसे फिर से फ्लर्ट शाबित कर देता है.अंश का मुम्बई मे माडलिंग के चलते डाली,योगिता और अर्पणा जैसी महत्वाकांक्षी लडकियों को सफलता के शिखर में पहुँचाने के लिये मजबूरी में और अपने मित्र संजय के विकास के लिये मानसिक दैहिक और समाजिक शोषण करना पडता है.अंश जब हर जगह से हार जाता है और एकाकी हो जाता है तब उसे उसी शहर की अमीर घर की लडकी सोनाली से मित्रता का प्रस्ताव मिलता है वह प्रस्ताव के लिये भी संजय जिम्मेवार होता है क्योंकि इसी बहाने उसके नये स्टूडियो का आर्थिक मददगार सोनाली के पिता उसे मिल जाते है. परन्तु सोनाली अंश में इतना डूब जाती है कि वह अपने अंश के रिस्तो की पब्लिसिटी कर देती है.और अंततःवह सोनाली सेशादी करने के लिये राजी हो जाता है परन्तु जब सोनाली को यह पता चलता है कि यामिनी उसके बच्चे की माँ बनकर वापिस उसकी जिंदगी में में आती है और अनजाने ही एक रिकार्डिंग मे संजय और अंश की चालाकी भरे शब्द सुन कर आत्म हत्या कर लेती है परन्तु नाकाम रहती है. इस तरह अंश नाम का मासूम सा शिमला का बच्चा अनजाने मुकाम पाने के लिये लडकियों के फ्लर्ट के लिये पूरे देश में मसहूर हो जाता है.
            पूरे उपन्यास में प्रतिमा जी ने जो भी बताना चाहा है वह तो उन्होने यह स्पष्ट कर ही दिया परन्तु अनजाने में यह भी बता दिया कि युवा वस्था का उठने वाला तूफान या तो किनारे लगा सकता है या सब कुछ अपने साथ बर्बाद भी कर सकता है. कोमल का प्यार, डाली और अन्य माडल्स का अपनत्व सिर्फ एक दिखावा था. कोमल चाहती तो अपने प्यार को बचासकती थी परन्तु गलतफैमियां उसे और प्रीति के प्यार को कुर्बान कर दिया. यामिनी का प्यार बार बार यह बताता है कि प्यार करने की कोई उमर नहीं होती. वह शादी के पहले और शादी के बाद भी किसी से हो सकता है अपने से अधिक और अपने से कम उमर के साथी से. सोनाली का चरित्र में यह बताता है कि अपनी जिंदगी के प्रति गरीब ही बस नही अमीर घर की लडकियाँ भी संजीदा होती है.संजय का चरित्र यामिनी का चरित्र पाठकों को यह  बताता है कि आज के समय में फ़ैशन उद्योग में किस तरह लोग अपनी स्वार्थपरता के लिये मित्रो के विश्वास का गला घोंट देते है. अंश का चरित्र बार बार चींख चींख कर पाठक से यह बात कहता है कि हमें अपने माता पिता की सलाह पे भी काम करना चाहिये.अपनी इच्छा से जो मन कहे उसे कैरियर में चुनना चाहिये.किसी दोस्त के बहकावे में नहीं आकर जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिये.
            उपन्यास युवा पीढी में फैले प्रेमरोग और आकर्षण में विभेद करने में असमर्थता की गाथा बखान करता है.यह युवा वर्ग को बार बार अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की सलाह देता है.और सबसे बडी बात यह बताता है दिलों से खेलना हमेशा कोई फैशन नहीं होता कभी कभी दिल मजबूरी में किसी से अनजाने खेल में शामिल हो जाता है और कभी किसी के द्वारा खेल लिया जाता है, प्रतिमा जी २९ वर्ष की उमर में यह उपन्यास पाठकों के बीच रखकर युवापाठकों की संख्या में इजाफा किया है.साहित्यिक सरोकार समाज चेतना में हो सकता है कि यह इतना खरा ना उतरे शीर्षक की हिन्दी बाहुल्यता का अभाव भी कहीं ना कहीं इसके प्रसिद्धि में एक रोडा जरूर बन सकती है.
            

my interview at satna jan sandesh newspaper


अनिल अयान श्रीवास्तव .अनिल अयान.
युवा कवि, कहानीकार,समीक्षक संपादक:शब्दशिल्पी,सतना

        जब से मै कालेज में बी.एस.सी.बायोलाजी कर रहा था,तब से मैने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था. शुरुआत में प्रतियोगिताओं के लिये लिखता था.जैसे स्वरचित काव्यपाठ, वकतृत्व कला, भाषण,निबंध, तत्कालिक कहानी लेखन. आदि. फिर मेरी मुलाकात डा. हरीश निगम और डा. लालमणि तिवारी से हुई जो सतना में मेरे कालेज में साहित्य के प्रभारी हुआ करते थे. उनसे संतोष खरे जी केयहाँ आयोजित होने वाली पाठक मंच की गोष्टियों का पता चला.वहीं से मैने औपचारिक रूप से साहित्य मे प्रवेश किया.विज्ञान के विद्यार्थी होने के नाते साहित्य मेरे लिये बिल्कुल नया था.परन्तु कविता में रविशंकर चतुर्वेदी ने रीवा संभाग के सारे कवियों से परिचय कराया. मंजर हाशमी साहब ने शायरों ने परिचय कराया. संतोष खरे ने किताबों और समीक्षाओं के लिये प्रेरित किया. पाठक मंच में मुझे आदरणीय चिंतामणि मिश्र मिले जो उम्रदराज होने के बाद भी जवाँ दिल थे. साहित्य समाज  और पत्रकारिता से वास्तविक रूप से परिचय कराया.उन्होने मुझे समाचार पत्रों में कालम लिखने के लिये प्रेरित किया. आज मै उनके आशीर्वाद से नवस्वदेश और देशबंधु में कालम लिख रहा हूँ. उन्होने समीक्षाओं की बारीकियाँ मुझे बताई.और सबसे बडी बात यह बताई की साहित्य की औकात कितनी है समाज को बदलने की, आज शब्द शिल्पी पत्रिका को मै तीन वर्षों से निकाल रहा हूँ. इस पत्रिका के आगाजसे आज तक के सफर में उनका हर कदम में निर्देशन मुझे मिला..
        अब मुद्दे कीबात पे आना चाह्ता हूँ आज के समय में निःसंदेह युवावर्ग साहित्य से दूर जा रहा है. इसकी प्रमुख वजह साहित्य समय के अनुसार बदलाव करने में असमर्थ रहा जिसतरह युवावर्ग की सोच बदल रही है. आज के समय में पाठकों की कमी नहीं है परन्तु पाठको की बात करने वाला साहित्य नहीं उपलब्ध है. आज के समय में युवा वर्ग साहित्य लिख कर डायरी के पन्नों में कैद करने के लिये विवश है. क्योंकि आज पत्र पत्रिकाओं को साहित्य फिजूल का माल नजर आता है. जो इसे तवज्जो देती है उन्हे खास प्रसिद्ध लोगो के साहित्य से सरोकार है, वह यह नहीं जान पाते की एक अदना सा कलमकार ही लगातार लिखने के बाद खास और प्रसिद्ध हो जाता है. सतना लक्ष्मीपुत्रों का शहर है. परन्तु ये लोग मुजरे, रैंप शो, और धार्मिक गोरखधंधों के लिये अनुदान की कतार खडा कर देते है. परन्तु साहित्य के नाम पर एक फूटी कौडी देने में नाक भौं सिकोड लेते है. मुझे तो एक चिंतामणि जैसे पारस पत्थर मिल गये जो मुझे अनिल श्रीवास्तव से अनिल अयान में परिवर्तित कर दिया. परन्तु युवाकलम कार आज भी ऐसे पारस पत्थर को खोज पाने में असमर्थ है.कहीं ना कहीं मौकों की कमी और सही मार्ग दर्शन ना मिल पाने के कारण वो साहित्य से बहुत दूर हो जाते है.आज के समय में साहित्य यदि पुरुस्कार पाने और पदलोलुपता के लिये लिखा जा रहाहै. परन्तु आम जन की आवाज के लिये लिखा जाने वाला साहित्य यदि कम है  तो भी पढा जा रहाहै. प्रेमचंद्र और परसाई को आज भी लोग बडे चाव से पढना पसंद करते है. आज के समय में जरूरत है कि हम अपनी कोपलों का स्वागत करें वरना हम सब ठूँठ हो जायेगें.यही बात मै अपने अग्रज कलम कारों से भी कहना चाह्ता हूँ.आपने मुझे अपनी बात कहने का अवसर दिया इस हेतु बहुत आभार..शुक्रिया....
अनिल अयान,
९४०६७८१०७०

शब्द शिल्पी-०९ अंक विमोचित.


शब्द शिल्पी
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शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन,सतना म.प्र.
मारुति नगर,पो.:बिडला विकास,सतना,सम्पर्क:९४०६७८१०४०/९४०६७८१०७० Email: ayaananil@gmail.com
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शब्द शिल्पी-०९ अंक विमोचित.
सतना से प्रकाशित होने वाली एक मात्र हिन्दी और उर्दू की त्रैमासिक पत्रिका शब्द शिल्पी-०९ (तीसरे वर्ष का प्रथम अंक)का विमोचन कार्यक्रम शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन सतना के तत्वावधान में शनिवार २६ अक्टूबर को शायं ७ बजे सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार संतोष खरे के निवास राजेन्द्र नगर में आयोजित किया गया जिसके मुख्य अतिथि- वरिष्ट कवि और व्यंकट क्र. एक के पूर्व प्राचार्य विनोद पयासी थे. अध्यक्षता श्री संतोष खरे ने की. विशिष्ट अतिथि के रूप में डां राजन चौरसिया सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार उपस्थित हुये. इस अवसर में सतना के वरिष्ट साहित्यकार ,पत्रकार और पत्रिका के संरक्षक तथा मार्गदर्शक श्री चिंतामणि मिश्र विषेश रूप से उपस्थित हुये. कार्यक्रम को संयोजित अनिल अयान ,संपादक शब्द शिल्पी ने किया.
इस अवसर में श्री विनोद पयासी ने कहा कि शब्द शिल्पी से प्रारंभिक समय से जुडा हुआ हूँ. यह पत्रिका लगातार विकास पग पर अग्रसर है. इतना जल्दी सतना जिले में जिस तरह इस पत्रिका ने स्थान बनाया है वह अतुलनीय है. श्री राजन चौरसिया ने कहा अनिल अयान इस पत्रिका को सतना से सीमित संसाधनों के जरिये जिस तरह नियमित रूप से निकाल रहे है वह रेगिस्तान में जलस्रोत तलाश करने की तरह है. वह सतना में एक रिक्त स्थान भरने का काम कर रहे है. साहित्यकारों को एक मंच में एकत्र कर रहे है. सतना धमाका के संपादक रवि मिश्र ने कहा कि शब्द शिल्पी का जो भी काम हुआ है वह श्री चिंतामणि मिश्र के कुशल मार्गदर्शन और अनिल अयान के द्वारा उस मार्ग को सही समय पर चयन करने का प्रयास है हर वर्ष इस पत्रिका में नये कालम जुडे है और पाठकों की संख्या में इजाफा भी हुआ है.डां रेखा चौरसिया ने कहा शब्द शिल्पी सतना की एक मात्र पत्रिका है जो हिन्दी और उर्दू के लिये एक साथ काम कर रही है जो गंगा जमुनी तहजीब को बखूबी निभा रही है. पत्रिका के संरक्षक श्री चिंतामणि मिश्र ने कहा कि पत्रिका जिस तरह विकास कर रही है इस दरमियां संपादक जी की जिम्मेवारी बढ गई है अब उनका कर्तव्य है कि सामन्जस्य बनाते हुये पाठक को हर अंक उम्दा और संग्रहणीय सामग्र उपलब्ध करायें साथ ही साथ हर विधा को पत्रिका में स्थान मिले. अध्यक्षता कर रहे संतोष खरे ने कहा कि पत्रिका तीन वर्षो में बहुत तीव्रता से नये कलेवर में आयी है. और इस सब के पीछे युवा अनिल अयान का काम वन मैन आर्मी की तरह है जिसमें निदेशन का काम चिंतामणि जी का है पत्रिका में अधिक अधिक रचनाकार उत्कृष्ट रचनाओं के साथ ही स्थान पाये जिससे पत्रिका के साहित्यिक स्तर को बरकरार रखा जा सके यह प्रयास होना चाहिये.और संसाधनों की वृद्धि पर भी पत्रिका को लगातार प्रयास करते रहना चाहिये. शब्द शिल्पी कई सालों से एक रिक्त स्थान को प्रभावी रूप से भरा है. अंत में शब्द शिल्पी के संपादक अनिल अयान ने सभी अतिथियों का आभार प्रदर्शन किया.

संपादक
अनिल अयान
शब्द शिल्पी,सतना.
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उजाले को भीतर तक आने दो


उजाले को भीतर तक आने दो
अंतर्मन में विचारों के चिरागों को लगातार जलाने के लिये हम जितना मनन और चिंतन करेंगे उतना ही समाज के लिये लाभप्रद होगा. आज के समय में जितना ज्यादा समाजिक विद्वेश और विघटनकारी तत्वों का प्रतिपादन किया जारहा है उतना ही आज के समय में हर भारतवासी को चाहिये कि वह अपने हर पल के व्यवहार में विवेकशीलता की बढोत्तरी करे और अपने घर से किसी भी नेक मुहिम की शुरुआत करे.हमारे साथ हमेशा यही समस्या रही है कि हम हमेशा ही सोचते तो बहुत ऊँचा है परन्तु उसे कभी भी अपने घर से प्रारंभ करने की चेष्टा नहीं करते है. हर बार दीवाली का त्योहार आता है और चला जाता है परन्तु हर व्यक्ति अपने कुछ पलों की खुशी के लिये इफरात रुपया खर्च कर देता है. वह यह नहीं सोचता है कि इस रकम को कमाने में वह कितना समय कितनी मेहनत जी तोड कर करता है.आज के समय में आवश्यकता है कि  हम सब समाज के उस कोने के लोगों तक भी पहुँचें जो समाज से बहिस्कृत कर दिये गये अपने समाजिक और अर्थिक निम्नता की वजह से, जिन्हे समाज अनदेखा कर देता है .जो एक दीपक तक नहीं जलासकते है. हम जितना वैभव और ऐश्वर्य में, जंके मंके में अपना समय विचार और मुद्रा नष्ट करते है उतना भाईचारे और मानवता को अपने जीवन में अपनाने पे कभी विचार नहीं करते है. आज के समय में मानव धर्माचरण करने की आवश्यकता है जिससे सच्ची भावना से समाज का हर वर्ग दीवाली मनाये अब देखिये ना...वर्तमान में हिंदुओं के देवताओं के नाम व उनके चित्रोंका उपयोग उत्पादों तथा उनकी विज्ञप्ति के लिए किया जाता है । दिवाली के संदर्भ में इसका उदाहरण देना हो, तो पटाखों के आवरणपर प्राय: लक्ष्मीमाता तथा अन्य देवताका चित्र होता है । देवताओंके चित्रवाले पटाखे जलानेसे उस देवताके चित्रके चिथडे उछलते हैं और वे चित्र पैरोंतले रौंदे जाते हैं । यह देवता, धर्म व संस्कृतिकी घोर विडंबना है । देवता व धर्मकी विडंबना रोकने के लिए प्रयास करना ही खरा लक्ष्मीपूजन है । अपने युवा दिल की धडकनों से दीवाली में यह भी कहना चाहता हूँ कि दोस्तों ! दीवाली का त्‍योहार जाते-जाते आपको कुछ संदेश देता है बशर्ते आप उसे समझ पाएँ। कोशि‍श करें कि‍ अगली दि‍वाली तक आप इस पर अमल कर पाएँ।करियर की चमक को दूर तक बिखेरने के लिए इस दीपावली कुछ प्रण करें कुछ आत्मचिंतन करें और खुद के लिए कुछ फैसले करें। असफलता से डरें नहीं! अपनी असफलता को न केवल अपने शुभचिंतकों के सामने रखें, बल्कि अपने सामने भी रखें, तब आपके भीतर का अंधेरा अपने आप छँट जाएगा। कई बार आप दोस्तों की सलाह पर कोई कदम उठा लेते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा की जरूरी नहीं जो दोस्त कर रहा हो वह आपके के लिए ठीक हो! एक स्तर के ऊपर अगर आपको लगे कि आप किसी अन्य की सफलता से जरा ज्यादा ही जलने लगे हैं तब मन पर जम रही इस बुराईरूपी बारूद को जरूर हटाएँ। इस दीपावली प्रण करें कि अपने करियर को नई ऊँचाई देने के लिए पहले आप अपने आप में खुश रहेंगे। अगर खुश रहेंगे तब सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी।रोशनी का पर्व है दोस्तों और करियर को नई राह देने के लिए भी यह समय ऐसा है, जब आप कुछ बातों पर अगर ध्यान देंगे तब करियर न केवल रोशनी में नहा जाएगा बल्कि आप ओरों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकेंगे। करियर की चमक को दूर तक बिखेरने के लिए इस दीपावली कुछ प्रण करें, कुछ आत्मचिंतन करें और खुद के लिए कुछ फैसले करें। जिस प्रकार दीपावली के दिन संपूर्ण वातावरण प्रकाशमान हो जाता है ठीक उसी तरह आपका करियर भी दैदिप्यमान हो सकता है बस जरूरत है पहल करने की। हम अक्सर अपने भीतर ऐसी बातों को छुपा कर रखते हैं जिनके बाहर आने का हमें डर रहता है और लगता है कि अगर ये बातें जमाने को पता पड़ गईं तो हमें लोग क्या कहेंगे? अगर आप अपने भीतर साफगोई का उजाला आने देंगे और अगर आप अपनी असफलता को न केवल अपने शुभचिंतकों के सामने रखेंगे बल्कि अपने सामने भी रखेंगे तब आपके भीतर का अंधेरा छँट जाएगा और आप स्वयं को दुनिया के सामने और भी बेहतर तरीके से रख सकेंगेअक्सर हम अपने करियर को हड़बड़ाहट में अलग रास्ते पर ले जाते हैं, अगर आप इस दीपावली से किसी भी निर्णय धैर्यपूर्वक लेंगे तब आपके करियर पर इसका अच्छा असर पड़ सकता है। आप कई बार दोस्तों की राय पर कोई कदम उठा लेते हैं पर क्या कभी आपने सोचा की जरूरी नहीं जो दोस्त कर रहा हो वह आपके के लिए ठीक हो।अपने आप को भीतर से रोशन करें.हम अपने करियर को बनाने के लिए पढ़ाई करते हैं और न जाने कितने प्रकार के नोट्स पढ़ते हैं। ऐसे में कई बार हम अपने आप की ओर ध्यान नहीं दे पाते। दोस्तों जान है तो जहान है। इस कारण अपने आपको भीतर से रोशन करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम,योगा आदि जरूर करें।मन से बुराई रूपी बारूद हटाएँ.इंसान का मन में ईर्ष्या,जलन और स्वार्थ की भावनाएँ आना स्वाभाविक हैं। पर एक स्तर के ऊपर अगर आपको लगने लगे की आप किसी अन्य की सफलता से जरा ज्यादा ही जलने लगे हैं, तब मन पर जम रही इस बुराईरूपी बारूद को जरूर हटाएँ वरना यह भविष्य में काफी तकलीफदेह हो सकती है.गर आप मन से प्रसन्न हैं तब निश्चित रूप से आप के आसपास का वातावरण भी खुशियों भरा ही होगा। इस दीपावली प्रण करें की अपने करियर को नई ऊँचाई देने के लिए पहले आप अपने आप में खुश रहेंगे। अगर खुश रहेंगे तब सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी।अंत में बस इतना ही कि....... हौसला ऐसा होना चाहिये कि..
यदि फलक को जिद है बिजलियाँ गिराने की
फिर हमें भी जिद है वहीं आशियाँ बनाने की
सभी साथियों को इसी संदेश के साथ दीवाली की अशेश शुभकामनायें.