मंगलवार, 21 जनवरी 2014

पी.एम.टी घोटालों का कुप्रभाव.


पी.एम.टी घोटालों का कुप्रभाव.
हर एक माता पिता की यह इच्छा होती है कि उसका होनहार बेटा और बेटी अपने कैरियर में डाक्टर और इंजीनियर बने.इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये वह अपने जीवन के हर पल को समर्पित कर देता है.पी.एम.टी घोटालों का असर यह रहेगा कि आने वाले समय में इंजीनियर बनने के लिये जितने अधिक बच्चे इच्छुक रहेंगे उतने ही कम बच्चे डाक्टर बनने के ख्वाब देखेंगें.वैसे तो यह घोटाला बहुत पुराना हो चुका है परन्तु उन बच्चों के भविष्य आज भी खतरे में है जिनके कैरियर का सौदा माता पिता ने दलालों के द्वारा किया गया था.यदि हम एक सक्षिप्त नजर डालें तो जानेंगे कि कक्षा बारहवीं के बाद जीवविज्ञान के सभी विद्यार्थी मेडिकल कालेज में डाक्टर बनने केलिये पी.एम.टी.की परीक्षा देकर एम.बी.बी.एस.,बी.डी.एस.और बी.वी.एस.सी.के पाठ्यक्रम को पूरा करके उस विषय के चिकित्सक बनते है. म.प्र. में यह परीक्षा व्यावसायिक परीक्षा मंडल भोपाल के द्वारा आयोजित की जाती है और इस परीक्षा को एम.पी.पी.एम.टी. भी कहते है जिसमें पास होने वाले परीक्षार्थी मेडिकल कालेज में प्रवेश प्राप्त कर पाते है.म.प्र में मेडिकल कालेज की संख्या में गौर करें तो हम देखेंगे कि इनकी संख्या बहुत कम है और साल भर में बहुत ही कम बच्चे इस परीक्षा को पास करके डाक्टरी की पढाई कर पाते है.कुल मिलाकर यह भी कह सकते है कि इस तरह के गिरोह बहुत पहले से पी.एम.टी. और पी.ई.टी की परीक्षाओं केंदौरान सक्रिय होते है.परन्तु पी.एम.टी. में ज्यादा रकम का खेल इस लिये होता है कि इस परीक्षा का महत्व म.प्र, में बहुत अधिक है.
            जिन अभिभावकों के पास शोहरत और लक्ष्मी दोनो होती है वो यह प्रयास करते हैकि यदि उनके बच्चों में उतनी काबलियत नहीं है कि वह  यह परीक्षा पास कर सके तो वह जुगाड से काम को निपटाने की सोचते है. और इस तरह से परिणाम आपके सामने है कि इस बार एक ही बार में अभिवावक,दलाल,अधिकारी,और संबंधित मंत्री सब इस घोटाले की चपेट में आ गये और कोई चाहकर भी अपना काम नहीं पूरा कर पाया.कभी कभी यह लगता है कि प्रवेश परीक्षाओं में पाये जाने वाले इस तरह के घोटालों का विषय से संबंधित छात्र छात्राओं पर क्या प्रभाव पडेगा.शायद सबसे बडा प्रभाव तो यही है कि कैरियर जेल में कटने से बेहतर है कि उस तरह के विषय लिये जाये जिसमें खतरा ना हो.जिसमें कोई रिस्क ना हो. ऐसे में डाक्टर बहुत कम हो जायेगें.और यदि बनेंगें भी तो जुगाड वाले कमजोर विषय विषेशज्ञ जो ना सही ढंग से किसी बीमारी का इलाज नहीं कर पायेगें.और ना ही किसी मरीज को देख पायेगें.इस तरह के घोटालों से दलालों के जेब गरम करने के चक्कर में अभिवावक भी बहुत बडा धोका खाते है. उनको यह समझ में आता है कि उनका बच्चा उनकी अपेक्षाओं में खरा उतरेगा परन्तु ऐसा कभी नहीं होता है.वो अपनी आखों और अपने बच्चों के कैरियर की आखों में धूल ही झोंकते है.यदि हम इस बात पे गौर करें कि व्यापम की शाख का क्या होगा तो इस परीक्षा के घोटालों का सच उजागर होने के बाद अन्य परीक्षाओं की संभावनाये प्रशासन की नजर में आ गयी है कि कहीं उनमें भी तो इस तरह का खेल नहीं किया गया और फर्जी ही दाखिले या नियुक्तियाँ हुई हों.और यदि ऐसा होता है तो प्रशासन की सबसे बडी कमीं होगी.इस तरह के घोटालों में उतपन्न होने वाला लालच एक बार जेब की गर्मी दे जाता है परन्तु शोहरत,नाम,सम्मान और पद सब मिट्टी पलीत हो जाता है.एक बार में ही सब कुछ तहस नहस हो जाता है. बच्चों का कैरियर,अभिवावकों का सामाजिक सम्मान,और अधिकारियों का रुतबा.
            इस तरह के घोटालों को रोकने के लिये सक्रिय कदम उठाये जाना चाहिये.क्योंकि इस तरह के घोटालों से समाज की एक पीढी पूरी तरह से अपंग हो जाती है. उसका कैरियर मिट्टी में मिल जाता है. और चाहकर भी वह अपनी अनजानी गल्ती को सुधार नहीं पाता है.घोटालों को रोकने के लिये सक्रिय टीम का गढन करना चाहिये.अपने संबंधित मंत्री को युवाओं की खातिर तो थोडा सा ईमानदार हो जाना चाहिये. इस तरह की परीक्षाओं में तो सख्ती बरतनी चाहिये.आवश्यकता पडने पर इस तरह के असमाजिक तत्वों को तुरंत सजा देने का प्रावधान भी होना चाहिये इसके लिये अलग तरह की टीम बनायी जानी चाहिये. जो समय रहते न्याय करके समाज में नया संदेश प्रेषित कर सके.परीक्षाओं मे पार दर्शिता होने से अच्छे परीक्षार्थी निकलेंगे जो बाद में अच्छे डाक्टर बनकर समाज की सेवा करेंगें.यदि हम आने वाले समय में होनहार डाक्टर इजीनियर बनाना चाहते है तो प्रशासन को सख्त तो होना ही पडेगा वरना वह दिन भी दूर नहीं है जब ग्यारहवीं में बच्चे इन सब मुसीबतों से बचने के लिये जीवविज्ञान नहीं लेगें.और लेगें भी तो पी.एम.टी की परीक्षा म.प्र. में नहीं देगें. प्रशासन की प्रमुख जिम्मेवारी बनती है कि हमारे राज्य में इस तरह का शिक्षा के क्षेत्र में घोटाला जिससे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड किया जाता है रोकना चाहिये.तभी हमारे राज्य से युवा प्रोफेसनल्स का जत्था  पूरे देश में अपने कार्य और सेवा से म.प्र का नाम रोशन करेगा.
अनिल अयान सतना.

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

कांग्रेस के कायदे में फँसे आप के वायदे


कांग्रेस के कायदे में फँसे आप के वायदे
आप का दिल्ली में सरकार बनाना और कांग्रेस का पर्दाफास्ट करना सबसे बडी घटना है. जिसके चलते यह कहा जा सकता है कि राजनीति का नया इतिहास दिल्ली की धरती में रचा गया. केजरीवाल अब जब मुख्यमंत्री की सपथ ले चुके है इस दर्मियान जरूरी हो गया है कि यह चर्चा की जाये कि आने वाले समय में दिल्ली की सरकार और विधान सभा का क्या हाल होगा.समय सापेक्ष आज की सत्ता में केजरीवाल किसी अभिमन्यु से कम नहीं है. वो  अभिमन्यु जिसने राजनीति रूपी चक्रव्यूह में प्रवेश करने की शिक्षा तो अन्ना से लेकर सरकार बना लिया परन्तु इससे निकलने का रास्ता खोजने में अभी बहुत वक्त लग जायेगा.क्योंकी एक इंजीनियर के रूप में जीवन जीना और फिर सत्ता के गलियारे में बंजारापन करना बहुत कठिन है.अरविंद केजरीवाल ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होंने आम आदमी को यह एहसास कराया की जनसाधारण चाहे तो सत्ता तक पहुँच सकता है.परन्तु यह भी दुर्भाग्य रहा होगा कि सत्ता के लिये विरोधी भाषण देने का विषय बन चुकी कांग्रेस से ही समझौता करना पडा केजरीवाल को.सत्ता का असली नंगापन तो उसी दिन समझ में आगया होगा जब आप के कई मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस गये.और कांग्रेस के वे विधायक जो आप को समर्थन कर रहे थे वो भी थोथे चने बाजे घने वाले राग अलापने लगे.अब तक मै यह जानने में असमर्थ हूँ कि जनता अंध विश्वास जीत कर सत्ता में आयी आप जनता के अरमानों के साथ खेल कर कांग्रेस से ही हाथ मिलाकर सत्ता सुख क्यों भोग रही है. और क्या वह इस काजल की कोठरी से खुद को बिना डीठ लगे बाहर निकाल पायेगी. वायदों की बात करें तो कांग्रेस का पहले विना शर्त समर्थन और फिर आप के वायदों को समर्थन देना कैसा गुणा भाग है. राजनीति का एकाकी करण तभी देखने को मिल गया था जब भाजपा के द्वारा आप का चुनाव के समय समर्थन करना और फिर आप के द्वारा कांग्रेस का दामन थामने के बाद विरोध करना किस पाले का खेल है.
            बिजली पानी और अन्य सुविधाओं का मामला कितना और कब तक पालन करेगी आप यह तो समय के गर्त में छिपा हुआ है परन्तु केजरीवाल के विचार और उनका दिल्ली के प्रति जुझारूपन वाकये काबिले तारीफ है. परन्तु उनके साथी जिस तृष्णा के वशीभूत होकर आप को ज्वाइन किया था वह तृष्णा अब और बढ गई है इसी का परिणाम था कि गिन्नी जैसे लोग भी मंत्री पद को पाने के लिये लालायित हो गये. सब को पता है कि मंत्री जैसे पद भी आय व्यय का तिलिस्म ही तो होता है जिसमें जाने के बाद सब कई पुस्तों तक करोडपति से ज्यादा रकम हासिल कर लेते है. तो गिन्नी जैसे राजनीतिज्ञ कैसे पीछे हट सकते थे.भले ही आप के सिद्धांतों की मैयत निकल जाये. केजरीवाल का कार्यकाल कब तक चलता है यह कोई नहीं जानता है परन्तु जब तक चलेगा वह अविश्मरणीय रहेगा.क्योंकि इस कार्यकाल में बहुत से ऐसे निर्णय होगें जिसके प्रभाव से अन्य राज्यों के सत्ताधारियों के आँखें भी खुलेंगी. रही बात कांग्रेस की तो वह अपना समर्थन कितने समय तक देती है और किन शर्तों तक देती है इस बात को अरविंद केजरीवाल को अपने डेंजर जोन की सीमा रेखा के रूप में लेना चाहिये.क्योंकि इसके बाद ही अन्य रास्तों पर विचार करना आवश्यक होगा केजरीवाल के लिये.कांग्रेस का उद्देश्य क्या है समर्थन देने का वह तो वक्त दर वक्त जनता और अरविंद केजरीवाल दोनो को समझ में आ जायेगा.यह डगर  पनघट की बहुत कठिन है केजरीवाल के लिये.कौरवों के बीच में फंसे अभिमन्यु की कहानी बयान कर रहे केजरीवाल दिल्ली की संसद में परन्तु आज के समय में अभिमन्यु भी हाईटेक हो गये है नई तकनीकी से लैस है और इंजीनियर भी इस लिये कांग्रेस के कायदों के खिलाफ भी शायद उपाय निकाल लें और पाँच वर्ष पूरे कर लेगें.
            आने वाला समय ही यह बतायेगा कि हाथ झाडू लगायेगा या झाडू हाथ का सफाया कर देगा.जितना भी काम केजरीवाल करेंगे वह सब उनकी इस सत्ता की यात्रा के प्रति प्रगति पथ बतलायेगा.इस घटना के संदर्भ में एक बात तो स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सत्ता के लोगों का भीड में रहकर विरोध करना जितना सरल है उतना ही कठिन है सत्ता का हिस्सा बनकर विरोध जताना और समस्याओं का निराकरण करना.आप के नियम कायदे और वायदे सर्व जन हिताय तभी हो सकेगें  जब उसे उसी तरीके से उपयोग किये जायेगेम वरना यह भी सत्ता के खेल में चली एक चाल बनकर रह जायेंगें,.
अनिल अयान.



राजनैतिक रेगिस्तान से निकला कवि मन का आक्रोशित स्वर


राजनैतिक रेगिस्तान से निकला कवि मन का आक्रोशित स्वर
न दैन्यं ना पलायनम पं अटल बिहारी वाजपेयी के कवि कर्म की रचनाधर्मिता का खुला प्रमाण है. एक राजनीतिज्ञ,सांसद,संपादक,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अंततः प्रधानमंत्री के दायित्वों के बाद सब द्वंदो के मध्य कवित्व का मर्म हृदय में वास करना राजनैतिक रेगिस्तानी दलदल में कहीं मीठे जल की सरिता के उद्गम की तरह जान पडता है. पुस्तक १०३ पॄष्ठों की है. जिसका संपादन डाँ चंद्रिका प्रसाद शर्मा ने किया है.
            पुस्तक में तीन खण्ड है जिसमें प्रथम खण्ड में संपादित की गयी वाजपेयी जी द्वारा लिखित पदबद्ध कविताये हैं और द्वितीय खण्ड तथा तृतीय खण्ड में वायपेयी  जी का जीवन वृत एवं साक्षात्कार है.पुस्तकनुमा इस कृति का मूल स्वर प्रथम खण्ड है जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी के मन के मर्म में दबे आस्था के स्वर ,चिंतन के स्वर, आपातकाल के दंश के स्वर,और विविध स्वर के अंतर्गत ५२ कवितायें संग्रहित है. इसमें अधिक्तर कवितायें सुर,लय,तालय्क्त गेयता लिये हुये छंद बद्धता का पीछा करती नजर आती है जो आज की प्रगति और प्रयोगवादी कविताओं से भिन्नता लिये हुये है.इस संग्रह में उन्होने अपने भाव पक्ष के संदर्भ में खुद लिखा है कि विविधता के नाम पर विभाजन को प्रोत्साहन देना सबसे बडी भूल है. यह प्रादेशिक नहीं होसकता है. हम एक राष्ट्र मेम रहने के कारण एक नहीं वरन  हमारे विचार एक है इस लिये हम सब एक है.जो देश को एक बंद मुट्ठी की तरह मजबूत बनाता है.भावपक्ष की बात करें तो आस्था के स्वर में विभिन्न विषय राष्ट्र प्रेम,हिन्दी भाषा के प्रति लगाव और जीवन दर्शन अ के प्रति अमिट सोच को उभारा है.उन्होने जीवन के कुरुक्षेत्र और जीव को अर्जुन की भाँति माना है लगातार उद्घोष करने के लिये ,आँगे बढने के लिये कहा है. इन पक्तियों को देखें.
            आग्नेय परीक्षा की इस घडी में
            आइये अर्जुन की तरह उद्घोष करें
            ना दैन्यं ना पलायनम
ना दीन बनूँगा और ना ही पलायन करूँगा,अंत तक लडता रहूँगा.एक सफल जीवन जीने का यही संदेश है,उन्होने स्वाधीनता विनोवा भावे,कवियों राष्ट्रभाषा आदि पर बहुत सी कुंडलियाँ लिखी है.चिंतन के स्वर में अंतर्मन की वेदना ,सत्यनिष्ठा ,स्वराज, की कवितायें चतुष्पदी और कुंडलियों में बंधी हुई है.आपातकाल के स्वर में आपातकाल के भयावह  दॄश्यों को पँक्तियों की भाव भंगिमाओं में संजोया गया है. जिसमें अनुशासन पर्व,अंधेरा कब जायेगा,भूल भारी की भाई,मीसामंत्र महान.विविध स्वर में समाजिकविसंगतियों,पर्वों,पर्यावरण,वृद्धों तथा अन्य विषयों पर कवि ने कलम चलायी है. इस पूरे खंड में  प्रथम स्वर और आपात काल का स्वर कवि की लेखनी की ताकत  को पाठकों के समक्ष  रखता है परन्तु विविध स्वर में इस पुस्तक की गरिमा में खटास सा पैदा करता है. क्योंकि भाषा शैली और भाव पक्ष बहुत हल्का और सतही महसूस होता है जिसे अन्य तीन स्वरों मेम डीठ की तरह ही मान सकते है.
            पुस्तक का दूसरा और तीसरा भाग परिशिष्ट और साक्षात्कार सर्ग है जिसमें संपादक शर्मा जी ने वाजपेयी जी के जीवन वृत्त,उनकी शिक्षा दीक्षा,राष्ट्र स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और १९३९ सन से कविता के प्रति झुकाव को भी पाठकों के सामने लाया है.अटल जी ने संपादक के रूप में राष्ट्र धर्म,पांचजन्य,दैनिक स्वदेश, चेतना,वीर अर्जुन,आदि पत्रों को सम्हाला है.उनके अभिनंदन,सम्मान,में नजर डालें तो, हिन्दी गौरव,पद्मविभूषण, और अन्य सम्मान से भी विभूषित किया गया है.प्रकाशित रचनाओं में मृत्यु या हत्या,अमरबलिदान,कैदीकविराय की कुंडलियाँ.अमर राग है,मेरी इक्यावन कवितायें,राजनीति की रपटीली राहें,सेक्युलरवाद,शक्ति से क्रांति,न दैन्यं न पलायनम, नई चुनौतियाँ नया अवसर, आदि का जिक्र इस पुस्तक में मिलता है.संपादक ने साक्षात्कार में पाठकों के सामने यह रखा है कि अटल जी को साहित्य विरासत के रूप में श्याम लाल वाजपेयी वटेश्वर पिता जी और अवधेश वाजपेयी बडे भाई से मिला था. प्रसाद,निराला,नवीन, दिनकर,माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कवियों, जैनेंद्र, अज्ञेय,वॄंदावन लाल वर्मा, तसलीमा नसरीन, जैसे लेखकों भरत,जगन्नाथ मिलिंद रामकुमार वर्मा जैसे नाटककारों के मुरीद है.साहित्यकार से उनकी अपेक्षा और साहित्यकार को राजनीति के लिये सरोकार के लिये उनका अभिमत मुझे ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाया.समाजिक समरसता के लिये उनकी विचारधारा उच्चकोटि की है. इस पुस्तक में "कवि आज सुना वह गान रे" गीत है जो१९३९ में अटल जी नें नौवीं कक्षा में अध्ययन के दौरान लिखे थे.उनकी एक कविता युगबोध में भी राष्ट्र कवि,निराला,दिनकर के, क्रमशः साकेत,राम की शक्ति पूजा, और उर्वशी को विशिष्ट प्रकार से उद्धत किया गया है.इस कविता संग्रह ने अटल बिहारी वाजपेयी का लेखक और कवि होने को चर्चित हस्ताक्षर,खोजी पत्रकार,संपादक,और अंततः राजनीतिज्ञ के रूप में एक कदम और आगें बढाया है. कविता संग्रह के माध्यम से शर्मा जी ने अटल बिहारी वाजपेयी जी के काव्य के माध्यम से पाठकों को यही संदेश देना चाहा है कि  न कभी मन में दीनता रखो ना कभी जीवन रण से पलायन करो.इस पुस्तक का बारहवाँ संस्करण है इस तथ्य के पश्चात ज्यादा टिप्पणी करना अनुचित है.परन्तु एक कवि होने के नाते मुझे लगता है कि अटल जी की कवितायें एक व्याकरणिक छंद बद्धता के  मर्म को स्पष्ट करती है.परन्तु आज के समय पर प्रताडित आम जन सर्वहारा वर्ग,शोषित लोगों की पीडा का बखान करने में प्रतिनिधित्व करती नजर नहीं आती है. वही नौकरशाही,भ्रष्टाचार,खाये अघाये लोगों का विषय पुराना सा नजर आता है.स्त्री और युवाओं का विमर्श भी इस पुस्तक से अनुपस्थित नजर आता है.जो विषय पहले उठाये जा चुके है या उठाये जाते रहे हैं उनके साथ ही इस पुस्तक की इति श्री हुई है.लेखक ने पाठक को इस पुस्तक के माध्यम से यह बताया है कि राजनीति में शामिल होकर भी कविताये लिखी जा सकती है.परन्तु चिंतन के लिये समय की अल्प अवधि हमेशा आपके सामने रहेगी.अटल जी भी उमर भर चिंतन की इसी समस्या से घिरे रहे जिससे वो काव्य में विशंगतियों,परिस्थियों का बखान तो किया परन्तु कहीं ना कहीं निराकरण बताने में कमतर से लगे.पूरी पुस्तक में सामग्री संपादन और साज सज्जा के लिये शर्मा जी बधाई के पात्र हैं.किताबघर को इस बात का आभार कि उसने राष्ट्रचिंतन और ओज वाली कृति पाठकों के समक्ष प्रभावी कलेवर में पहुँचायी है.
अनिल अयान
संपादक
शब्द शिल्पी,सतना
९४०६७८१०४०